हाल ही में, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री ने जानकारी दी कि सरकार सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने और लोगों की जान बचाने के लिए एक व्यापक 10 मिनट की आधुनिक एम्बुलेंस योजना विकसित कर रही है। यह व्यापक योजना भारत में आपातकालीन चिकित्सा सेवा और सड़क सुरक्षा में सुधार लाने की एक विस्तृत रणनीति का हिस्सा है।
दस मिनट की आधुनिक एम्बुलेंस योजना
- “दस मिनट की आधुनिक एम्बुलेंस योजना” भारत सरकार की एक नई पहल है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सड़क दुर्घटना पीड़ितों तक विशेष एम्बुलेंस दस मिनट के भीतर पहुंच जाएं।
- यह योजना “गोल्डन आवर” का उपयोग करके सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को प्रतिवर्ष 50,000 तक कम करने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
- योजना के अनुसार, केंद्र सरकार राज्य सरकारों के साथ समझौता ज्ञापनों (एमओयू) पर हस्ताक्षर करेगी और एम्बुलेंस के परिचालन खर्चों की प्रतिपूर्ति केवल तभी करेगी जब वे दस मिनट के भीतर पहुंचने के लक्ष्य को पूरा करेंगी।
- मानक एम्बुलेंस के विपरीत, ये आधुनिक वाहन जटिल बचाव स्थितियों के लिए विशेष उपकरणों से लैस होंगे। यह योजना इन एम्बुलेंस सेवाओं को एक एकल, केंद्रीकृत आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर से जोड़ती है ताकि विभिन्न राज्यों में प्रेषण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जा सके।
भारत की सड़क सुरक्षा व्यवस्था में त्वरित आपातकालीन प्रतिक्रिया की अनिवार्यता
- सड़क दुर्घटनाओं की गंभीरता: भारत में सड़क दुर्घटनाएँ आज एक गंभीर सार्वजनिक संकट बन चुकी हैं। देश हर वर्ष लगभग 5 लाख सड़क हादसों का सामना करता है। इनमें औसतन 1.8 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। वर्ष 2024 में 1,77,000 से अधिक मौतें दर्ज की गईं। इसका अर्थ है कि प्रतिदिन लगभग 485 लोग सड़कों पर जान गंवा रहे हैं। इन मौतों का बड़ा हिस्सा 18 से 45 वर्ष की आयु के युवाओं का है।
- उच्च जोखिम क्षेत्र: राष्ट्रीय राजमार्ग कुल सड़क नेटवर्क का छोटा भाग हैं, लेकिन दुर्घटनाओं में इनकी हिस्सेदारी बहुत अधिक है। 2025 की पहली छमाही में ही करीब 27,000 लोगों की मौत राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुई। तेज रफ्तार और भारी यातायात के कारण यहां दुर्घटनाएँ अधिक घातक होती हैं। ऐसे मार्गों पर तेज और संगठित आपात चिकित्सा सेवा जीवन और मृत्यु के बीच अंतर तय कर सकती है।
- बढ़ता जोखिम: सरकारी रिपोर्ट बताती हैं कि लगभग 68% सड़क दुर्घटना मौतों का कारण वाहनों की तेज गति है। इसके साथ ही हेलमेट और सीटबेल्ट का प्रयोग न करना भी गंभीर चोटों की संभावना बढ़ाता है। ऐसे मामलों में पीड़ितों को तुरंत चिकित्सा सहायता न मिले तो स्थिति तेजी से बिगड़ती है। इसलिए केवल कानून ही नहीं, बल्कि तत्काल उपचार व्यवस्था भी उतनी ही आवश्यक है।
- क्षेत्रीय असमानता: कुछ जिले और क्षेत्र दुर्घटनाओं के हॉटस्पॉट बन चुके हैं। उदाहरण के तौर पर 2025 में उज्जैन जिले में अक्टूबर तक 1,600 से अधिक दुर्घटनाएँ हुईं और 370 से ज्यादा मौतें दर्ज की गईं। ऐसे आंकड़े दिखाते हैं कि कुछ इलाकों में यदि तेज आपात प्रतिक्रिया तंत्र उपलब्ध हो, तो बड़ी संख्या में जानें बचाई जा सकती हैं।
- ‘गोल्डन ऑवर’ का निर्णायक महत्व: चिकित्सा विज्ञान स्पष्ट करता है कि दुर्घटना के बाद के पहले 60 मिनट, जिन्हें ‘गोल्डन ऑवर’ कहा जाता है, सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इस समय के भीतर विशेषज्ञ इलाज मिलने पर गंभीर रूप से घायल व्यक्ति के बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। यही कारण है कि तेज एम्बुलेंस सेवा और नजदीकी ट्रॉमा सेंटर अनिवार्य हैं।
- मौजूदा खामियाँ: ग्रामीण क्षेत्रों और शहरों के बीच के हाईवे हिस्सों में एम्बुलेंस की दूरी, ट्रैफिक जाम, और सूचना में देरी बड़ी समस्या है। समन्वित तंत्र के अभाव में मामूली चोट भी जानलेवा बन जाती है। इन कमियों को दूर किए बिना सड़क सुरक्षा में सुधार संभव नहीं है।
सड़क दुर्घटनाओं के बाद त्वरित सहायता के लिए सरकारी नीतियाँ और पहल
- नकद-रहित तत्काल उपचार व्यवस्था: सरकार ने सड़क हादसों में घायल लोगों के लिए पहले सात दिनों तक कैशलेस इलाज की सुविधा लागू की है। इस योजना के तहत प्रति व्यक्ति ₹1.5 लाख तक का चिकित्सा खर्च कवर किया जाता है। इसका उद्देश्य इलाज शुरू करने में होने वाली आर्थिक देरी को समाप्त करना है।
- ‘राह-वीर’ पुरस्कार योजना: दुर्घटना पीड़ित की मदद करने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र सरकार ने ‘राह-वीर योजना’ शुरू की। इस योजना के तहत योग्य नागरिक को ₹25,000 का नकद पुरस्कार दिया जाता है। यह पहल 2025 में लागू की गई। इसका मकसद लोगों में डर और कानूनी झिझक को कम करना है। साथ ही, यह योजना मददगार नागरिकों को कानूनी सुरक्षा भी प्रदान करती है।
- राष्ट्रीय एम्बुलेंस सेवा नेटवर्क का विस्तार: सरकार ने राष्ट्रीय एम्बुलेंस सेवा (NAS) को लगातार मजबूत किया है। इसमें 108 और 102 जैसी सेवाएँ शामिल हैं। मंत्रालय के अनुसार मध्य-2024 तक 15,000 से अधिक बेसिक लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस और हजारों उन्नत इकाइयाँ कार्यरत थीं। 2025 में जारी प्रगति रिपोर्ट के अनुसार नेटवर्क का और विस्तार किया गया। इसका सीधा लाभ ग्रामीण और हाईवे क्षेत्रों को मिला है।
- एकीकृत आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली: आपात सेवाओं को बेहतर तालमेल देने के लिए 112 और आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ERSS) को लागू किया गया। यह प्रणाली पुलिस, फायर और मेडिकल सेवाओं को एक मंच पर जोड़ती है। इसमें रीयल-टाइम ट्रैकिंग की सुविधा है। इसके माध्यम से डिजिटल मैप पर नजदीकी एम्बुलेंस या रेस्क्यू वाहन तुरंत भेजा जा सकता है। इससे प्रतिक्रिया समय में स्पष्ट कमी आई है।
- ट्रॉमा केयर सुविधाओं का विकास: स्वास्थ्य मंत्रालय राष्ट्रीय ट्रॉमा एवं बर्न इंजरी प्रबंधन कार्यक्रम के तहत हाईवे के पास अस्पतालों को उन्नत कर रहा है। 11वीं पंचवर्षीय योजना से अब तक 100 से अधिक ट्रॉमा केयर केंद्रों को मंजूरी और सहायता दी गई। यह कार्य 2023–2025 के दौरान भी जारी रहा। इससे गंभीर घायलों को समय पर विशेषज्ञ इलाज मिलने लगा है।
- आपात चिकित्सा कौशल विकास: सरकार ने इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (EMT) और पैरामेडिक प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया है। ये पाठ्यक्रम राष्ट्रीय पाठ्यक्रम के अनुसार संचालित होते हैं। इनमें प्री-हॉस्पिटल ट्रॉमा केयर पर विशेष जोर दिया जा रहा है। 2024–2025 में प्रशिक्षण का विस्तार किया गया, जिससे कुशल एम्बुलेंस स्टाफ और प्रथम प्रतिक्रिया देने वालों की संख्या बढ़ी है।
निष्कर्ष:
दस मिनट की आधुनिक एम्बुलेंस योजना, सड़क सुरक्षा और आपातकालीन स्वास्थ्य सेवा के प्रति भारत के दृष्टिकोण में एक निर्णायक बदलाव को दर्शाती है। यह पहल कैशलेस उपचार ट्रॉमा केयर सेंटर और एकीकृत आपातकालीन नंबर जैसी मौजूदा व्यवस्थाओं की पूरक है। दीर्घकालिक रूप से, यह योजना स्टॉकहोम घोषणा के अनुरूप, 2030 तक सड़क दुर्घटनको 50 प्रतिशत तक कम करने सहित वैश्विक सड़क सुरक्षा लक्ष्यों और सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्देश्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का समर्थन करती है।
