भारत समेत 141 देशों ने किया समर्थन, UN में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने के पक्ष में मतदान

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन समस्या के शांतिपूर्ण समाधान हेतु न्यूयॉर्क घोषणापत्र को समर्थन देने वाला प्रस्ताव पारित किया। इस पर 142 देशों ने समर्थन, 10 ने विरोध और 12 ने मतदान से परहेज़ किया।

141 countries including India supported voted in favor of granting state status to Palestine in the UN

भारत ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट देते हुए अपने रुख को दोहराया कि वह एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फिलिस्तीन राज्य का समर्थन करता है, जो मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर एक सुरक्षित इज़राइल राज्य के साथ शांतिपूर्वक सहअस्तित्व में रह सके।

प्रस्ताव में दोनों पक्षों की निंदा, दो-राज्य समाधान पर जोर:

 

संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस प्रस्ताव में अक्टूबर 2023 में हमास द्वारा इज़रायल पर किए गए हमले की निंदा की गई, जिसमें 1200 लोगों की मौत हुई और 250 से अधिक लोग बंधक बनाए गए थे।

साथ ही, प्रस्ताव में गाज़ा में इज़रायल की जवाबी कार्रवाई की भी आलोचना की गई, जिसमें नागरिक हताहत, इंफ्रास्ट्रक्चर की तबाही, नाकेबंदी और भुखमरी के चलते गहराए मानवीय संकट का ज़िक्र किया गया।

प्रस्ताव में इज़रायल से आग्रह किया गया कि वह दो-राज्य समाधान के लिए स्पष्ट प्रतिबद्धता जताए, सभी हिंसक कदमों पर तुरंत रोक लगाए, कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों में नई बस्तियों और ज़मीन पर कब्ज़ा बंद करे और पूर्वी येरूशलम समेत किसी भी क्षेत्र को जोड़ने या विस्तार करने की नीति से सार्वजनिक रूप से इनकार करे।

 

क्या है न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन?

न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन फ्रांस और सऊदी अरब की अगुवाई में तैयार किया गया प्रस्ताव है, जिसे जुलाई में आयोजित एक उच्च-स्तरीय सम्मेलन के बाद प्रस्तुत किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य दो-राष्ट्र समाधान (Two-State Solution) को लागू करना और मध्य पूर्व में स्थायी शांति स्थापित करना है।

 

डिक्लेरेशन के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:

  • गाज़ा युद्धविराम के बाद पूरे फिलिस्तीनी क्षेत्र का प्रशासन फिलिस्तीनी अथॉरिटी को सौंपा जाए।
  • गाज़ा में हमास का शासन समाप्त किया जाए और उसके हथियार फिलिस्तीनी अथॉरिटी को सौंपे जाएं।
  • फिलिस्तीनी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।
  • शांति समझौते की निगरानी के लिए संयुक्त राष्ट्र के तहत एक अस्थायी अंतरराष्ट्रीय मिशन तैनात किया जाए।

 

इज़रायल और अमेरिका ने किया न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन का विरोध:

इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि “यहां कोई फिलिस्तीनी राष्ट्र नहीं होगा, यह ज़मीन हमारी है।” उन्होंने वेस्ट बैंक में बस्तियों को बढ़ाने के लिए एक नए समझौते पर भी हस्ताक्षर किए। इज़रायल के UN राजदूत डैनी डैनन ने इस प्रस्ताव को “नाटक” करार दिया और कहा कि यह केवल हमास को फायदा पहुंचाएगा।

अमेरिका, जो इज़रायल का सबसे बड़ा सहयोगी है, ने भी इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। अमेरिकी मिशन की काउंसलर मॉर्गन ऑरटागस ने इसे “गलत समय पर किया गया प्रचार स्टंट” बताया और कहा कि यह प्रस्ताव हमास के लिए तोहफे जैसा है।

 

इमैनुएल मैक्रों का बयान: “मध्य पूर्व में स्थायी शांति के लिए नया मार्ग”

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने एक्स (X) पर संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई साझा करते हुए लिखा कि फ्रांस और सऊदी अरब के साहयोगसे 142 देशों ने द्वि-राज्य समाधान पर आधारित न्यूयॉर्क घोषणापत्र को अपनाया है।

उन्होंने आगे कहा, “हम सब मिलकर मध्य पूर्व में शांति की दिशा में एक मार्ग तैयार कर रहे हैं। मैक्रों ने आगे यह भी कहा कि फ्रांस, सऊदी अरब और उनके सहयोगी द्वि-राष्ट्र समाधान सम्मेलन में इस शांति योजना को आगे बढ़ाने के लिए न्यूयॉर्क में मौजूद रहेंगे।

दो-राष्ट्र समाधान क्या है?

 

दो-राष्ट्र समाधान का मतलब है कि इज़रायल और फ़िलिस्तीन दोनों के लिए अलग-अलग स्वतंत्र राष्ट्र बनाए जाएँ। इस विचार को लंबे समय से इज़रायल–फ़िलिस्तीन विवाद में शांति स्थापित करने की सबसे बड़ी उम्मीद माना जाता है।

 

इसकी उत्पत्ति कहाँ से हुई?

  • 1947 में संयुक्त राष्ट्र (UN) ने फिलिस्तीन को दो हिस्सों में बाँटने का प्रस्ताव रखा – एक अरब राष्ट्र और एक यहूदी राष्ट्र, जबकि येरूशलम पर अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण हो।
  • यहूदी नेताओं ने इस योजना को स्वीकार कर लिया, जिसमें उन्हें लगभग 56% भूमि दी गई।
  • 1948 में इज़रायल ने स्वतंत्रता की घोषणा की, जिसके अगले दिन पाँच अरब देशों ने हमला कर दिया। युद्ध के बाद इज़रायल ने 77% भूमि पर नियंत्रण कर लिया।
  • इस दौरान करीब 7 लाख फिलिस्तीनी अपने घरों से बेघर हो गए और शरणार्थी बनकर जॉर्डन, लेबनान, सीरिया, गाज़ा, वेस्ट बैंक और पूर्वी येरूशलम में बस गए।
  • 1967 के युद्ध में इज़रायल ने जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी येरूशलम, तथा मिस्र से गाज़ा पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद इज़रायल का नियंत्रण भूमध्य सागर से लेकर जॉर्डन घाटी तक फैल गया।

किन देशों ने दी है फिलिस्तीन को मान्यता?

 

संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 140 से अधिक देश पहले ही फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे चुके हैं।

यूरोप में:

  • स्वीडन, स्लोवेनिया, आयरलैंड और स्पेन जैसे देश पहले ही मान्यता दे चुके हैं।
  • फ्रांस भी अब ऐसा करने जा रहा है और यह ऐसा करने वाला पहला G-7 देश होगा।
  • हालांकि G-7 के अन्य सदस्य (यूके, अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, इटली और जापान) ने अभी तक मान्यता नहीं दी है।

 

भारत की भूमिका: भारत 1988 में ही फिलिस्तीन को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।

 

यूरोपीय संघ (EU):

  • 27 सदस्य देशों में से 10 देश पहले ही फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं।
  • बुल्गारिया, साइप्रस, हंगरी, पोलैंड और रोमानिया ने तो 1988 में ही मान्यता दे दी थी, जब वे EU के सदस्य भी नहीं थे।

संयुक्त राष्ट्र में स्थिति:

  • वर्तमान में फिलिस्तीन को स्थायी पर्यवेक्षक राज्य” (Permanent Observer State) का दर्जा प्राप्त है।
  • इससे उसे बहस में भाग लेने की अनुमति है, लेकिन मतदान का अधिकार नहीं है।

 

क्या फिलिस्तीन राज्य के रूप में योग्य है?

फिलिस्तीन को लेकर अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या वह अंतरराष्ट्रीय कानून के मानकों पर एक स्वतंत्र राज्य कहलाने का हकदार है। इस संदर्भ में 1933 का मोंटेवीडियो कन्वेंशन महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसमें किसी भी राज्य की परिभाषा के चार बुनियादी मानदंड बताए गए थे।

1933 के मोंटेवीडियो कन्वेंशन के अनुसार किसी भी राज्य के लिए चार बुनियादी मानदंड तय किए गए थे:

  1. स्थायी आबादी (Permanent Population)
  2. परिभाषित क्षेत्र (Defined Territory)
  3. एक प्रभावी सरकार (Effective Government)
  4. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में संलग्न होने की क्षमता (Capacity to Enter Relations with Other States)

फिलिस्तीन की स्थिति:

इसके पास स्थायी आबादी और परिभाषित क्षेत्र हैं- वेस्ट बैंक, गाज़ा और पूर्वी येरूशलम। लेकिन इन क्षेत्रों पर इज़रायल का अलग-अलग स्तर पर नियंत्रण है।

  • पूर्वी येरूशलम पर इज़रायल ने प्रभावी कब्ज़ा कर लिया है।
  • गाज़ा हमास के शासन में है और लगातार संघर्ष से प्रभावित है।

फिलिस्तीन के पास अंतरराष्ट्रीय संबंध बनाने की क्षमता है और वह कई देशों से मान्यता भी पा चुका है।

 

7 अक्टूबर 2023: हमास का हमला और भयावह अत्याचार:

7 अक्टूबर 2023 को हमास आतंकियों ने इजरायल में घुसपैठ कर 1200 लोगों की हत्या कर दी और करीब 234 लोगों को बंधक बना लिया। हमले के कुछ घंटों बाद ही इजरायली सेना ने गाज़ा पर बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी और तब से अब तक संघर्ष जारी है।

पीड़ितों पर निर्मम अत्याचार: हमास के आतंकियों ने हमले के दौरान कई निर्दोष लोगों को बेरहमी से गोलियों से भून दिया। जांच में सामने आया कि कई पीड़ितों के शवों के साथ दरिंदगी की गई।

  • कई महिलाओं और युवतियों को गोली मारने के बाद उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म के सबूत मिले।
  • मृत पीड़ितों के प्राइवेट पार्ट्स को विकृत किया गया था।
  • कई शव बिना कपड़ों या बहुत ही कम कपड़ों में पाए गए, जिनके हाथ बंधे हुए थे।

हैवानियत की हद: युवा लड़कियों को कपड़े उतारकर पेड़ों और खंभों से बांध दिया गया। इसके बाद उनके सिर और संवेदनशील अंगों में गोली मारी गई। इन घटनाओं ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक निंदा हुई।

 

गाजा में अकाल और व्यापक भुखमरी :

अक्टूबर 2023 से शुरू हुई इजरायल-हमास जंग ने गाजा को बुरी तरह तबाह कर दिया है। यहां रहने वाले करीब 21 लाख लोगों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। युद्ध में अब तक 40 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। लगातार हो रहे इजरायली हवाई हमले, बमबारी और ज़मीनी स्तर पर इजरायल-हमास के बीच जारी संघर्ष में 62,000 से अधिक फिलिस्तीनी अपनी जान गंवा चुके हैं। यह आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र की मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (OCHA) ने जारी किया है।

बर्बादी की तस्वीर:

  • इस संघर्ष ने गाज़ा के बुनियादी ढांचे को लगभग पूरी तरह तबाह कर दिया है।
  • घर, अस्पताल, स्कूल, शरण स्थल और धार्मिक स्थल तक मलबे में तब्दील हो गए हैं।
  • इतना ही नहीं, ज़रूरी सेवाएं जैसे कि रोटी बनाने वाली बेकरी भी नष्ट हो चुकी हैं, जिससे मानवीय संकट और गहराता जा रहा है।

मानवीय संकट की चरम स्थिति:

पूरे गाज़ा में अब कोई जगह सुरक्षित नहीं बची है। लाखों फिलिस्तीनी अपनी ज़िंदगी बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। परिवारों को खाने का सामान, साफ़ पीने का पानी और जीवनरक्षक चिकित्सा सेवाएं तक मुश्किल से मिल रही हैं। बुनियादी ढांचे के ढह जाने से लोग पूरी तरह बेबस और असुरक्षित हो गए हैं

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