2047 तक भारत में 4.1 ट्रिलियन डॉलर की ग्रीन इन्वेस्टमेंट, 4.8 करोड़ नौकरियों की संभावना: CEEW रिपोर्ट

एक नई स्टडी में दावा किया गया है कि भारत 2047 तक 4.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक की ग्रीन निवेश संभावनाएँ आकर्षित कर सकता है। साथ ही देश में 4.8 करोड़ फुल-टाइम नौकरियों का निर्माण भी हो सकता है। यह रिपोर्ट काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) द्वारा जारी की गई है।

 

रिपोर्ट कहती है कि भारत 2047 तक 1.1 ट्रिलियन डॉलर वार्षिक ग्रीन मार्केट भी विकसित कर सकता है, जो आने वाले वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था का बड़ा स्तंभ बन सकता है।

India to attract $4.1 trillion in green investment by 2047 creating 48 million jobs

36 ग्रीन वैल्यू चेन से खुलेगा विशाल आर्थिक अवसर

CEEW की इस पहली राष्ट्रीय स्तर की स्टडी में 36 ऐसी ग्रीन वैल्यू चेन की पहचान की गई है, जो ऊर्जा परिवर्तन, सर्कुलर इकोनॉमी, बायो-इकोनॉमी और प्रकृति आधारित समाधानों से जुड़ी हैं।

 

रिपोर्ट का कहना है कि ग्रीन इकोनॉमी केवल सोलर पैनल और इलेक्ट्रिक वाहनों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें शामिल हैं-

  • जैव-आधारित उत्पाद
  • ग्रीन निर्माण सामग्री
  • टिकाऊ पर्यटन
  • वेस्ट-टू-वैल्यू उद्योग
  • सर्कुलर मैन्युफैक्चरिंग
  • एग्रोफॉरेस्ट्री
  • प्रकृति आधारित आजीविकाएँ

 

यह सभी अगले दो दशकों में अरबों डॉलर के उद्योग बन सकते हैं और भारत की संसाधन सुरक्षा को मजबूत करेंगे।

 

“भारत का ग्रीन ट्रांजिशन नेट पॉजिटिव है” – जयंत सिन्हा

पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और एवरसोर्स कैपिटल के अध्यक्ष जयंत सिन्हा ने कहा,

“भारत का ग्रीन बदलाव पूर्ण रूप से सकारात्मक है-यह रोजगार देगा, अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएगा, प्रदूषण कम करेगा और घरेलू ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल से राष्ट्रीय सुरक्षा भी मजबूत करेगा।”

उन्होंने यह भी कहा कि भूमि से जुड़ी समस्याओं और निवेश जोखिमों को कम करने के लिए स्थिर नीतियाँ और ब्लेंडेड फाइनेंस जैसे उपकरणों का उपयोग ज़रूरी है।

 

हरित अर्थव्यवस्था क्या है?

हरित अर्थव्यवस्था वह आर्थिक मॉडल है जिसमें-

  • जीवाश्म ईंधन की जगह स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग होता है,
  • उत्सर्जन कम करने पर जोर दिया जाता है,
  • और प्रकृति व संसाधनों का संरक्षण प्रमुख आधार होता है।

 

भारत का हरित बदलाव मुख्यतः इन क्षेत्रों पर निर्भर है-

  • नवीकरणीय ऊर्जा (सौर, पवन, हाइड्रो)
  • इलेक्ट्रिक वाहन और ई-मोबिलिटी
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy)
  • कचरा प्रबंधन
  • बायोफ्यूल और जैव आधारित उद्योग

 

चक्रीय अर्थव्यवस्था अपशिष्ट कम करने और संसाधनों के पुन: उपयोग को बढ़ावा देती है-जैसे ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग, वाहन स्क्रैपिंग और hazardous waste प्रबंधन।

 

“भारत के पास नया विकास मॉडल बनाने का मौका” – अमिताभ कांत

पूर्व G20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा कि भारत अब जब 3 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ रहा है, तो उसे पश्चिमी देशों के पुराने मॉडल नहीं अपनाने चाहिए।

उन्होंने कहा:

“हमारी ज्यादातर इंफ्रास्ट्रक्चर अभी बनना बाकी है। ऐसे में हमारे पास शहरों, उद्योगों और सप्लाई चेन को क्लीन एनर्जी, सर्कुलैरिटी और बायो-इकोनॉमी के आधार पर डिजाइन करने का सुनहरा अवसर है।”

 

वे कहते हैं कि जैसे भारत ने डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिए तेज प्रगति की, उसी तरह देश ग्रीन इकोनॉमी में भी छलांग लगा सकता है।

 

ऊर्जा संक्रमण से 1.66 करोड़ नौकरियाँ, 3.79 ट्रिलियन डॉलर निवेश संभव

CEEW का अनुमान है कि सिर्फ एनर्जी ट्रांजिशन से-

  • 1.66 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियाँ
  • 3.79 ट्रिलियन डॉलर तक का निवेश

मिल सकता है। इसमें रिन्यूएबल एनर्जी, बैटरी स्टोरेज, डिस्ट्रीब्यूटेड एनर्जी और क्लीन मोबिलिटी मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्र शामिल हैं।

 

ग्रीन इकोनॉमी में सबसे ज्यादा रोजगार इलेक्ट्रिक मोबिलिटी सेक्टर में पैदा होंगे-कुल एनर्जी ट्रांजिशन नौकरियों का 57% से अधिक।

 

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बड़ा फायदा: 2.3 करोड़ नौकरियाँ

बायो-इकोनॉमी और प्रकृति आधारित समाधान भारत के गांवों और कस्बों में 2.3 करोड़ नौकरियाँ पैदा कर सकते हैं और 415 बिलियन डॉलर का मार्केट बना सकते हैं।

 

सबसे ज़्यादा नौकरियाँ इन क्षेत्रों में-

  • केमिकल-फ्री खेती और जैव-इनपुट – 72 लाख नौकरियाँ
  • एग्रोफॉरेस्ट्री व सस्टेनेबल फॉरेस्ट मैनेजमेंट – 47 लाख नौकरियाँ
  • वेटलैंड मैनेजमेंट – 37 लाख नौकरियाँ

 

ग्रीन इकोनॉमी क्यों ज़रूरी?

CEEW के अभिषेक जैन ने कहा कि ग्रीन इकोनॉमी भारत को भविष्य के ईंधन और संसाधनों के मामले में आत्मनिर्भर बनाएगी।

 

उन्होंने बताया:

  • भारत 87% कच्चा तेल आयात करता है
  • 100% लिथियम, निकेल, कोबाल्ट बाहर से आते हैं
  • 93% कॉपर ओरे भी आयात होता है
  • पोटाश पूरी तरह और यूरिया 88% तक आयात-निर्भर है

EVs, सोलर एनर्जी, बायोफ्यूल और सर्कुलर इकोनॉमी इन सभी आयातों को लगभग शून्य कर सकते हैं।

 

“भारत के लिए ग्रीन विकास कोई विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है,” – अभिषेक जैन

 

भारत के हरित संक्रमण की मुख्य चुनौतियाँ

  1. वायु प्रदूषण और कमजोर क्रियान्वयन: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के बावजूद कई शहरों की वायु गुणवत्ता में सीमित सुधार हुआ है। राज्यों में धन की कमी और पर्यावरण कानूनों का कमजोर लागू होना बड़ी समस्या है।
  2. ऊर्जा और जलवायु की चुनौतियाँ: भारत अभी भी कोयले और तेल पर निर्भर है।
  • स्वच्छ ऊर्जा की ओर बदलाव के लिए बड़े निवेश, बेहतर तकनीक और मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़, सूखा और तूफानों जैसी घटनाओं से निपटने के लिए भारी संसाधन चाहिए।
  1. बायोफ्यूल और इथेनॉल मिश्रण में बाधाएँ: भारत ने 2025 तक पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा है। लेकिन-
  • इथेनॉल की असमान उपलब्धता,
  • परिवहन और भंडारण के कमजोर ढाँचे के कारण प्रगति धीमी है।
  1. वैश्विक सप्लाई चेन में व्यवधान: अमेरिका-चीन तनाव, व्यापार युद्ध और स्लोबलाइजेशन जैसी स्थितियाँ हरित तकनीक की आपूर्ति को प्रभावित करती हैं। भारत का विनिर्माण क्षेत्र अभी पर्याप्त मजबूत नहीं है कि वह इन चुनौतियों से निपट सके।
  2. कार्यबल बदलाव का खतरा: कोयला जैसे कार्बन-आधारित क्षेत्रों में काम करने वाले लाखों लोगों की नौकरियाँ खतरे में हैं।
    अगर डीकार्बोनाइजेशन तेज हुआ तो 2050 तक 3 करोड़ से अधिक नौकरियाँ समाप्त हो सकती हैं। स्किल प्रशिक्षण की कमी यह बदलाव और कठिन बना देती है।

 

यदि भारत को हरित अर्थव्यवस्था तेज करनी है, तो क्या कदम जरूरी हैं?

  1. ऊर्जा क्षेत्र में सुधार और कार्बन मूल्य निर्धारण
  • स्मार्ट ग्रिड, कार्बन ट्रेडिंग मार्केट और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ आवश्यक हैं।
  • सौर और पवन ऊर्जा क्षमता में तेजी से विस्तार करना होगा।
  1. हरित तकनीक का घरेलू विनिर्माण बढ़ाना

 

PLI योजना के तहत-

  • सौर पैनल,
  • पवन टर्बाइन
  • बैटरी स्टोरेज के स्थानीय निर्माण को बढ़ाने से आयात निर्भरता घटेगी।

 

भारत 2025-26 तक 110 GW सौर मॉड्यूल बनाने की क्षमता हासिल करने की दिशा में काम कर रहा है।

  1. EV और बैटरी स्वैपिंग नीति

 

बैटरी स्वैपिंग नीति से-

  • चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर की लंबी लाइनों की समस्या घटेगी,
  • ई-रिक्शा, बसों और डिलीवरी वाहनों में EV का उपयोग बढ़ेगा।
  1. चक्रीय अर्थव्यवस्था और हरित औद्योगिकीकरण: कृषि वानिकी, सतत विनिर्माण, कचरा प्रबंधन और रीसाइक्लिंग उद्योगों को बढ़ावा देना जरूरी है। यह पर्यावरणीय स्थिरता के साथ लाखों रोजगार भी दे सकता है।
  2. मैंग्रोव और वेटलैंड संरक्षण

 

मैंग्रोव Initiative और ठोस वेटलैंड प्रबंधन-

  • कार्बन अवशोषण बढ़ाएंगे,
  • तटीय राज्यों में आजीविका के अवसर पैदा करेंगे।

 

MISHTI प्रोग्राम को MGNREGA से जोड़कर ग्रामीण रोजगार भी बढ़ाया जा सकता है।

 

भारत में हरित अर्थव्यवस्था को बढ़ाने वाली पहलें

  1. सरकारी बजट समर्थन
  • उच्च दक्षता वाले सौर मॉड्यूल
  • बैटरी उत्पादन के लिए 1950 करोड़ रुपये आवंटित किए गए।
  1. वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका: G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान भारत ने विकासशील देशों के लिए हरित वित्त और तकनीक तक पहुंच बढ़ाने को प्राथमिकता दी।
  2. पर्यावरण और जैव विविधता संरक्षण
  • प्रोजेक्ट टाइगर
  • प्रोजेक्ट एलीफेंट
  • नेशनल कोस्टल मिशन
  • ग्रीन इंडिया मिशन

जैसी योजनाएँ वन क्षेत्र, जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा में अहम भूमिका निभाती हैं।

 

निष्कर्ष:

CEEW की यह रिपोर्ट साफ दिखाती है कि ग्रीन इकोनॉमी भारत के लिए आने वाले समय में एक बड़ा अवसर बन सकती है। अगर सही नीतियों, स्थिर निवेश माहौल और सर्कुलर इकोनॉमी पर ध्यान दिया जाए, तो भारत 2047 तक

  • 1 ट्रिलियन डॉलर का ग्रीन निवेश,
  • 8 करोड़ नई नौकरियाँ,
  • और 1 ट्रिलियन डॉलर का वार्षिक ग्रीन मार्केट तैयार कर सकता है।

रिपोर्ट बताती है कि ग्रीन विकास सिर्फ पर्यावरण की जरूरत नहीं, बल्कि रोजगार, आर्थिक प्रगति, ऊर्जा सुरक्षा और आत्मनिर्भरता का भी मजबूत रास्ता है।