आइए जानते हैं परमाणु बम के बारे में,

हाल ही के दिनों में बम और विशेषकर परमाणु बम को लेकर चर्चा एक बार फिर तेज हो गई है। चाहे बात रूस-यूक्रेन युद्ध की हो, भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव की या फिर ईरान और इज़रायल के बीच की खींचतान की—इन सभी स्थितियों में हथियारों की भूमिका और विनाशकारी क्षमता को लेकर वैश्विक चिंताएं बढ़ी हैं। मीडिया रिपोर्टों, सैन्य विश्लेषणों और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि यदि कोई देश अत्यधिक विनाशकारी हथियारों का उपयोग करता है तो उसके परिणाम कितने गंभीर हो सकते हैं।

ऐसे समय में यह समझना जरूरी हो जाता है कि आखिर ये बम होते क्या हैं, कितने प्रकार के होते हैं, और कैसे काम करते हैं। परमाणु बम तो सबसे घातक माने जाते हैं, लेकिन पारंपरिक बमों (conventional bombs) की भी अपनी अलग भूमिका और प्रभाव होता है। आज हम जानेंगे बमों के विभिन्न प्रकारों के बारे में  और समझेंगे कि ये युद्ध के मैदान में कैसे काम करते हैं।

आइए पहले बमों के इतिहास और उत्पत्ति के बारे में जानते है-

  • बमों के प्रयोग की शुरुआत प्राचीन चीन में मानी जाती है, जब 9वीं शताब्दी में ‘गनपाउडर’ (बारूद) की खोज हुई थी। यह खोज तांग वंश के काल में मानी जाती है, लेकिन सैन्य उद्देश्यों के लिए इसका व्यापक उपयोग चीन के ‘सॉन्ग राजवंश’ के समय शुरू हुआ। उस काल में गनपाउडर का उपयोग रॉकेट, ग्रेनेड, और प्रारंभिक बमों जैसे हथियारों में किया जाने लगा। यह बारूद प्रारंभ में धुआं छोड़ने वाला यानी धूमयुक्त हुआ करता था।

    समय के साथ तकनीक में विकास होता गया। 19वीं शताब्दी तक आते-आते धूम्ररहित बारूद  का आविष्कार हुआ, जिससे युद्धों में बारूद के उपयोग का तरीका पूरी तरह बदल गया। इसके कारण युद्धों में बेहतर और अधिक प्रभावी हथियारों का निर्माण संभव हुआ।

    आज जिस गनपाउडर का प्रारंभिक रूप हमें इतिहास में मिलता है, उसे आधुनिक संदर्भ में आमतौर पर ‘ब्लैक पाउडर’ (काला बारूद) कहा जाता है, ताकि इसे आधुनिक आग्नेयास्त्रों में इस्तेमाल होने वाले प्रणोदकों (propellants) से अलग पहचाना जा सके।

     

    आधुनिक बम की अवधारणा:

    आधुनिक बम की अवधारणा 19वीं और 20वीं सदी में विकसित हुई, जब डायनामाइट का आविष्कार अल्फ्रेड नोबेल ने किया और बाद में दोनों विश्व युद्धों में विस्फोटकों का सैन्यकरण बड़े पैमाने पर हुआ। आज बमों की तकनीक अत्यंत उन्नत हो चुकी है — चाहे वो मिसाइलों के रूप में लॉन्च हों, परमाणु हथियार हों।

     

    बम के प्रकार:

    बम मुख्यतः तीन प्रमुख श्रेणियों में बाँटे जा सकते हैं — पारंपरिक बम, परमाणु बम, और असंगठित (Improvised) बम।

     

    आइए पारंपरिक बमों (Conventional Bombs) के बारे में बात करते हैं।

    ये ऐसे बम होते हैं जिन्हें सामान्य युद्ध स्थितियों में उपयोग किया जाता है और इनका उद्देश्य बड़े स्तर पर विनाश करना होता है। पारंपरिक बमों में TNT, RDX जैसे विस्फोटक पदार्थ होते हैं और ये तोप, हवाई जहाज, या मिसाइल से दागे जाते हैं। इन बमों के कई प्रकार होते हैं, जो विभिन्न लक्ष्यों और परिस्थितियों के अनुसार डिजाइन किए गए हैं। यह कई प्रकार के होते है-

    जनरल-पर्पज़ बम, जिन्हें विस्फोट और छर्रों (fragmentation) दोनों के संतुलित प्रभाव के लिए तैयार किया गया है। ये बम सामान्य रूप से सबसे अधिक प्रयोग किए जाते हैं क्योंकि ये कई प्रकार के लक्ष्यों को नुकसान पहुंचाने में सक्षम होते हैं।

    फ्रैगमेंटेशन बम, जिन्हें विस्फोट के समय जानलेवा छर्रे फैलाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिससे अधिकतम हताहत सुनिश्चित किए जा सकें। ये मुख्य रूप से हल्के ढांचे या जनशक्ति को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल होते हैं।

    आर्मर-पीयरसिंग बम  विशेष रूप से भारी बख्तरबंद लक्ष्यों जैसे युद्धपोतों या बंकरों को भेदने के लिए बनाए जाते हैं। इनकी मोटी धातु की परत और विलंबित विस्फोट तकनीक इन्हें गहराई तक नुकसान पहुँचाने में सक्षम बनाती है।

    क्लस्टर बम ऐसे बम होते हैं जिनमें कई छोटे बम (bomblets) भरे होते हैं। यह एक बड़े क्षेत्र में फैलते हैं और कई लक्ष्यों को एक साथ प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि, इनका उपयोग विवादास्पद है और कई देशों ने इन पर प्रतिबंध भी लगाया है।

    गाइडेड बम जिन्हें “स्मार्ट बम” भी कहा जाता है, आधुनिक तकनीकों जैसे GPS या लेज़र गाइडेंस से लैस होते हैं। ये बम अत्यधिक सटीकता के साथ निशाना बनाते हैं और अनावश्यक क्षति को कम करते हैं।

     

    आइए परमाणु बम के बारे में जान लेते हैं।

    न्यूक्लियर बम आधुनिक युग के सबसे घातक हथियारों में गिने जाते हैं। ये पारंपरिक बमों से कहीं अधिक ऊर्जा छोड़ते हैं और उनका प्रभाव केवल तत्काल विस्फोट तक सीमित नहीं होता, बल्कि दीर्घकालिक विकिरण (radiation) और पर्यावरणीय प्रभाव भी उत्पन्न करता है। परमाणु बम मुख्यतः दो प्रकारों में विभाजित किए जाते हैं— विखंडन (Fission) और संलयन (Fusion) आधारित बम।

    विखंडन बम, जिन्हें आमतौर पर एटॉमिक बम कहा जाता है, परमाणु नाभिक के टूटने की प्रक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। जब किसी भारी तत्व जैसे यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 के नाभिक को विभाजित किया जाता है, तो अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है, जो विनाशकारी विस्फोट का कारण बनती है। इतिहास में सबसे भयावह उदाहरण द्वितीय विश्व युद्ध के समय जापान पर गिराए गए “लिटिल बॉय” (हिरोशिमा) और “फैट मैन” (नागासाकी) बम हैं, जिन्होंने लाखों लोगों की जान ली और वैश्विक युद्ध नीति को हमेशा के लिए बदल दिया।

    इसके विपरीत, संलयन बम जिन्हें हाइड्रोजन बम भी कहा जाता है, उससे भी अधिक घातक होते हैं। ये बम हल्के परमाणुओं (जैसे हाइड्रोजन के समस्थानिक – ड्यूटेरियम और ट्रिटियम) को आपस में जोड़कर विस्फोट करते हैं। इस प्रक्रिया में निकलने वाली ऊर्जा विकिरण और तापमान के रूप में इतनी अधिक होती है कि यह किसी भी शहर या क्षेत्र को पूरी तरह नष्ट कर सकती है। हाइड्रोजन बम अपेक्षाकृत कम उपयोग में लाए गए हैं, लेकिन विश्व की बड़ी परमाणु शक्तियों के शस्त्रागार में यह एक स्थायी और रणनीतिक भूमिका निभाते हैं।

     

    तीसरी श्रेणी IEDs — Improvised Explosive Devices इम्प्रोवाइज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेज़ (IEDs) यानी संगठित सेना के बाहर बनाए गए विस्फोटक उपकरण आज के समय में गैर-राज्य आतंकवादी समूहों और विद्रोही संगठनों द्वारा सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले हथियारों में से एक हैं। इन्हें आमतौर पर स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री जैसे पाइप, गैस सिलेंडर, बैटरियाँ, कीलें, मोबाइल फोन और बारूद के संयोजन से बनाया जाता है। यही कारण है कि IEDs के स्वरूप, आकार और कार्यप्रणाली में बहुत अधिक विविधता देखने को मिलती है।

     

    कैसे बनाए जाते हैं बम:

    विज्ञान और नियंत्रण का संतुलन
    बम का निर्माण अत्यधिक गोपनीय और तकनीकी प्रक्रिया है। इसके लिए एक ‘इनीशिएटर’ (जो विस्फोट आरंभ करता है), ‘विस्फोटक कोर’, और ‘आवरण’ की आवश्यकता होती है।

    जैसे परमाणु बम में विस्फोट तब होता है जब यूरेनियम या प्लूटोनियम का एक निश्चित ‘क्रिटिकल मास’ बहुत ही तेज़ी से एक साथ संकुचित किया जाता है — जिससे एक चेन रिएक्शन शुरू होता है और कुछ ही सेकंड में लाखों जूल ऊर्जा निकलती है।  

     

    परमाणु बम कैसे करता है काम?

    परमाणु बम की कार्यप्रणाली एक अत्यंत जटिल लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से सटीक प्रक्रिया पर आधारित होती है, जिसे नाभिकीय विखंडन (nuclear fission) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में यूरेनियम-235, यूरेनियम-233 या प्लूटोनियम-239 जैसे रेडियोधर्मी तत्वों के परमाणु नाभिक पर न्यूट्रॉन का तीव्र प्रहार किया जाता है। जैसे ही नाभिक टूटता है, वह अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा को गर्मी, रोशनी और दबाव तरंगों के रूप में छोड़ता है। यही वह विस्फोटक ऊर्जा होती है जो परमाणु बम को विनाशकारी बनाती है।

     

    परमाणु ऊर्जा कैसे बनती है?

    परमाणु ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी तत्व के संवर्धन (enrichment) से शुरू होती है। यूरेनियम प्राकृतिक रूप में दो प्रमुख आइसोटोप – यूरेनियम-238 (U-238) और यूरेनियम-235 (U-235) के रूप में पाया जाता है। इनमें से केवल U-235 ही ऐसा तत्व है जो आसानी से विखंडित होकर बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करता है। लेकिन कच्चे यूरेनियम में U-235 की मात्रा बहुत कम होती है — मात्र 0.7%। इसलिए ऊर्जा उत्पादन या हथियार निर्माण के लिए इसकी संवर्धन (enrichment) की आवश्यकता होती है।

    संवर्धन की सबसे सामान्य तकनीक है गैस सेंट्रीफ्यूज विधि। इसमें यूरेनियम को पहले गैसीय रूप (यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड) में परिवर्तित किया जाता है और फिर उसे तेज़ गति से घूमने वाले सेंट्रीफ्यूज में डाला जाता है। इस प्रक्रिया में भारी U-238 आइसोटोप किनारे की ओर चला जाता है जबकि हल्का और अधिक प्रतिक्रियाशील U-235 केंद्र की ओर इकट्ठा होता है। हर चक्र में U-235 का अनुपात थोड़ा बढ़ता है, और कई चक्रों के बाद वांछित स्तर तक संवर्धन संभव हो जाता है।

    संवर्धित यूरेनियम दो श्रेणियों में बांटा जाता है:

    • निम्न-समृद्ध यूरेनियम (LEU): इसमें U-235 की मात्रा 20% से कम होती है और इसका उपयोग मुख्यतः परमाणु बिजली संयंत्रों, चिकित्सा अनुसंधान, और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
    • अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम (HEU): इसमें U-235 की मात्रा 20% से अधिक होती है और इसका प्रयोग परमाणु हथियारों और परमाणु पनडुब्बियों जैसे सैन्य उपयोगों के लिए किया जाता है।

     

    एक परमाणु बम से कितना नुकसान संभव है?

    परमाणु बम का प्रभाव केवल विस्फोट की तीव्रता तक सीमित नहीं होता, बल्कि उसका दायरा सामाजिक, पर्यावरणीय और जैविक स्तर तक फैला होता है। आधुनिक परमाणु हथियार इतनी अधिक क्षमता रखते हैं कि किसी भी बड़े शहर को कुछ ही मिनटों में पूरी तरह से नष्ट कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बमों की तुलना में आज के हथियार सैकड़ों गुना अधिक शक्तिशाली हैं।

    एक परमाणु विस्फोट के बाद उस क्षेत्र की भूमि बंजर हो सकती है, जहाँ न तो पौधे उगते हैं और न ही जीव जन्तु बच पाते हैं। हवा और जल स्रोत जहरीले हो सकते हैं, और यह विषाक्तता कई पीढ़ियों तक बनी रह सकती है। प्रभावित लोग रेडिएशन की वजह से कैंसर, अपंगता और मानसिक विकारों से ग्रसित हो सकते हैं। इसीलिए परमाणु बम को मानव सभ्यता का सबसे घातक आविष्कार माना जाता है।

     

    वैश्विक परिप्रेक्ष्य:  कितने परमाणु बम हैं दुनिया में?

    विश्व में वर्तमान समय में अनुमानित 12,241 हथियार हैं (SIPRI, 2025)। इनमें से अमेरिका और रूस के पास सबसे अधिक बम हैं — प्रत्येक के पास लगभग 5,000। भारत के पास 180 परमाणु बम होने का अनुमान है, वहीं पाकिस्तान के पास लगभग 170। चीन 600 से अधिक परमाणु हथियार विकसित कर चुका है। यह संख्या बताती है कि परमाणु शक्ति अब केवल हथियार नहीं, कूटनीति और डर की भाषा बन चुकी है।

     

    प्रभाव और परिणाम: बम फटने के बाद क्या होता है?

    बम फटने पर सबसे पहला असर विस्फोट क्षेत्र में होता है — जहां तापमान हजारों डिग्री तक पहुँच सकता है, जिससे शरीर, भवन और धातुएँ पलभर में भस्म हो जाती हैं। परमाणु बम के मामले में रेडिएशन का प्रभाव दशकों तक बना रहता है। हिरोशिमा और नागासाकी में आज भी कई लोग रेडिएशन के प्रभाव से उत्पन्न कैंसर, अपंगता, और मानसिक रोगों से पीड़ित हैं। IED जैसे बमों के कारण नागरिक क्षेत्रों में भय, अफरातफरी, और सांप्रदायिक तनाव बढ़ जाता है।

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