BRICS—यानी ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका—दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक ऐसा मंच है जो वैश्विक शक्ति संतुलन को बदलने की दिशा में काम करता है। BRICS समूह न केवल आर्थिक सहयोग पर केंद्रित है, बल्कि यह वैश्विक शासन, बहुपक्षीय व्यवस्था, और विकासशील देशों की आवाज़ को मजबूत करने के लिए भी प्रयास करता है।
हाल ही में ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में 6–7 जुलाई 2025 को 17वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाग लिया। ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुईस इनासियो लूला दा सिल्वा ने प्रधानमंत्री मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने मंच पर कई महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर अपने विचार रखे, जिनमें शामिल थे —
वैश्विक शासन में सुधार, शांति और सुरक्षा, बहुपक्षवाद को मजबूत करना, AI और नई तकनीकों का उपयोग, जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई, वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली, और
आर्थिक व वित्तीय सहयोग जैसे अहम विषय।
प्रधानमंत्री मोदी ने BRICS मंच को विकासशील देशों की आवाज़ और वैश्विक संतुलन को मजबूत करने वाला मंच बताते हुए, साझेदारी, समावेश और सुधार आधारित वैश्विक व्यवस्था की आवश्यकता पर जोर दिया।

17वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन: वैश्विक दक्षिण की नई आवाज़ बनकर उभरा ब्रिक्स
ब्राज़ील की अध्यक्षता में आयोजित 17वां BRICS शिखर सम्मेलन इस बार न केवल नई वैश्विक चुनौतियों पर केंद्रित रहा, बल्कि इसने विकासशील देशों के पक्ष में एक समावेशी, बहुपक्षीय और स्वतंत्र वैश्विक व्यवस्था की ओर कदम भी बढ़ाया। इस सम्मेलन की चर्चा इसलिए भी अहम रही क्योंकि इसमें उन मुद्दों को प्राथमिकता दी गई, जो लंबे समय से वैश्विक दक्षिण (Global South) के लिए चिंता का विषय रहे हैं।
सम्मेलन के दो केंद्रीय उद्देश्य स्पष्ट थे —
1. वैश्विक दक्षिण का सहयोग
- सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय विकास के लिए ब्रिक्स साझेदारी
ब्रिक्स अब न केवल एक आर्थिक मंच है, बल्कि यह एक रणनीतिक गठबंधन बन चुका है जो वैश्विक वित्त, स्वास्थ्य, तकनीक, सुरक्षा और पर्यावरण जैसे अहम क्षेत्रों में समानांतर वैश्विक दृष्टिकोण को जन्म देने की दिशा में बढ़ रहा है।
ब्रिक्स 2025: छह रणनीतिक स्तंभों पर केंद्रित रहा सम्मेलन
इस वर्ष के BRICS Summit के नतीजे छह प्रमुख क्षेत्रों में सिमटे हुए हैं, जिन पर सदस्य देशों ने मिलकर विचार किया और आगे की रणनीति तय की:
- वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग:
ब्रिक्स देशों ने एक साझा हेल्थ विज़न पर काम करने की प्रतिबद्धता जताई। इसका उद्देश्य है सभी नागरिकों को समान और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना और विशेष रूप से नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज़ (NTDs) को खत्म करने के लिए मिलकर प्रयास करना। यह उन देशों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच असमान है।
- व्यापार, निवेश और वित्त
ब्रिक्स ने अमेरिकी डॉलर पर अत्यधिक निर्भरता को लेकर चिंता जताई और सदस्य देशों के बीच स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को प्रोत्साहित करने की दिशा में सहमति जताई।
हालांकि, अभी कोई साझा BRICS करेंसी अस्तित्व में नहीं है, लेकिन सम्मेलन ने स्पष्ट किया कि साझा मुद्रा के बजाय मौजूदा मुद्रा संरचनाओं को मजबूत करने और वित्तीय आज़ादी बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। यह निर्णय BRICS के उन प्रयासों का हिस्सा है जो डॉलर-आधारित वैश्विक वित्तीय व्यवस्था को चुनौती देने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई:
ब्रिक्स देशों ने BRICS Climate Leadership Agenda को अपनाया, जो हरित और सतत विकास को प्राथमिकता देता है।
सम्मेलन में यह स्पष्ट किया गया कि ग्रीन फाइनेंसिंग रणनीतियों, कार्बन उत्सर्जन में कटौती और जलवायु न्याय जैसे विषयों पर BRICS देशों को मिलकर काम करना होगा। इस पहल का उद्देश्य है विकासशील देशों को जलवायु कार्रवाई के लिए जरूरी संसाधनों तक समान रूप से पहुंच दिलाना।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर वैश्विक दृष्टिकोण
AI आज की दुनिया का सबसे उभरता हुआ विषय है। BRICS देशों ने इस क्षेत्र में एक नैतिक, समावेशी और नवाचारी विकास मॉडल अपनाने की बात की।
सम्मेलन में यह प्रस्तावित किया गया कि BRICS देश AI के क्षेत्र में नए वैश्विक मानक और दिशा-निर्देश तैयार करें जो केवल मुनाफे पर नहीं, बल्कि समाज के हित पर आधारित हों।
- शांति और सुरक्षा:
संयुक्त राष्ट्र जैसी वैश्विक संस्थाओं में सुधार की आवश्यकता को लेकर BRICS ने फिर से एकजुट होकर आवाज़ उठाई।
आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक प्रयासों, क्षेत्रीय संघर्षों के समाधान, और बहुपक्षीय सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने की दिशा में BRICS देशों ने सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। यह वैश्विक न्यायसंगत व्यवस्था की स्थापना की दिशा में एक ठोस पहल मानी जा रही है।
- संस्थागत विकास और आंतरिक मजबूती
BRICS अब एक विस्तारित समूह बन चुका है जिसमें नए देश शामिल हुए हैं। ऐसे में आंतरिक समन्वय, पारदर्शिता और संस्थागत प्रक्रियाओं को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
सम्मेलन में इस बात पर विशेष चर्चा हुई कि किस तरह BRICS को एक और प्रभावशाली व संगठित मंच में बदला जाए ताकि यह वैश्विक मंचों पर सामूहिक रूप से निर्णय लेने में सक्षम बन सके।
आइए जानते है, BRICS क्या है?
BRICS उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का एक समूह है, जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं। इन देशों के अंग्रेज़ी नामों के पहले अक्षरों (B, R, I, C, S) से मिलकर इस समूह का नाम BRICS रखा गया है।
स्थापना और विकास:
इसकी स्थापना वर्ष 2009 में हुई थी। प्रारंभ में यह समूह “BRIC” के नाम से जाना जाता था, लेकिन 2010 में दक्षिण अफ्रीका के जुड़ने के बाद इसे “BRICS” कहा जाने लगा। रूस को छोड़कर बाकी सभी सदस्य देश विकासशील या नव औद्योगीकृत हैं जिनकी अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है। ये देश क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इन्हें अक्सर G7 देशों के भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता है।
ब्रिक्स: अब 11 देशों का विस्तृत समूह
शुरुआत में ब्राजील, रूस, भारत और चीन BRICS के मूल सदस्य थे, जिन्होंने 2009 में इस संगठन की नींव रखी। इसके एक साल बाद, 2010 में दक्षिण अफ्रीका को भी इस समूह में शामिल किया गया, जिससे यह “BRIC” से “BRICS” बन गया।
समय के साथ संगठन का विस्तार हुआ और 2024 के बाद छह नए देशों को आमंत्रित किया गया:
- सऊदी अरब, मिस्र, ईरान, इथियोपिया, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया
इन नए सदस्य देशों के जुड़ने से BRICS अब 11 देशों का एक शक्तिशाली वैश्विक गठबंधन बन गया है, जो वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को और भी मजबूत बनाता है और बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था की दिशा में अहम भूमिका निभा रहा है।
BRICS की वैश्विक स्थिति और प्रभाव
BRICS समूह का वैश्विक स्तर पर खासा प्रभाव है। इन देशों का संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) लगभग 28 ट्रिलियन डॉलर है, जो वैश्विक GDP का 27% है। क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर देखा जाए तो इनका GDP करीब 57 ट्रिलियन डॉलर है, जो वैश्विक PPP GDP का लगभग 33% है। इसके अतिरिक्त, BRICS देश संयुक्त रूप से करीब 4.5 ट्रिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। BRICS का वैश्विक व्यापार में लगभग 18% और वैश्विक GDP में लगभग 23% योगदान है। जनसंख्या के लिहाज़ से भी यह समूह बहुत बड़ा है — इन देशों में विश्व की लगभग 45% जनसंख्या निवास करती है और इनका क्षेत्रफल विश्व के लगभग 30% भूभाग को घेरता है।
BRICS की कार्यप्रणाली
BRICS देशों के आपसी संबंधों की नींव संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून के मान्यता प्राप्त सिद्धांतों और कुछ मुख्य मूल्यों पर आधारित है, जैसे कि खुलापन, व्यावहारिकता, एकजुटता, गुटनिरपेक्षता, और तटस्थता – विशेष रूप से तीसरे पक्ष के मामलों में। यह समूह सहयोग की भावना के साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक साझा दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
BRICS के भीतर अध्यक्षता की प्रणाली B-R-I-C-S के नाम के अनुसार तय होती है, जिसमें हर सदस्य देश सालाना आधार पर बारी-बारी से अध्यक्षता करता है। समूह के कार्यों का संचालन 2010 से हर वर्ष आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलनों में स्वीकृत कार्य योजनाओं (Action Plans) के माध्यम से किया जाता है। इससे BRICS को स्पष्ट दिशा और दीर्घकालिक रणनीति मिलती है।
BRICS की प्रमुख पहलें
BRICS देशों ने सहयोग को तीन प्रमुख स्तंभों के अंतर्गत संगठित किया है, जिनके तहत कई अहम पहलें की गई हैं:
- राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग: इस स्तंभ का उद्देश्य वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर संवाद और सहयोग को बढ़ावा देना है ताकि विश्व में शांति, स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित की जा सके। इस क्षेत्र में दो प्राथमिकताएं विशेष रूप से प्रमुख हैं —
- बहुपक्षीय व्यवस्था में सुधार
- आतंकवाद-रोधी सहयोग
- BRICS राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक:यह बैठक BRICS के राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग स्तंभ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस मंच पर BRICS देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आपसी सुरक्षा से संबंधित विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श करते हैं।इनमें शामिल हैं:
- आतंकवाद-रोधी रणनीति (Counter-Terrorism)
- साइबर सुरक्षा (Cyber Security)
- क्षेत्रीय और वैश्विक शांति एवं स्थिरता
- अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध (Transnational Organised Crime)
- सदस्य देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा के विविध पहलू
इस प्रकार, BRICS न केवल आर्थिक सहयोग का मंच है, बल्कि यह सुरक्षा, कूटनीति और वैश्विक शासन में भी अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। BRICS का यह बहुआयामी दृष्टिकोण इसे विकसित और विकासशील देशों के लिए एक सशक्त साझेदारी मंच बनाता है।
BRICS की मुख्य पहलें और संस्थान
BRICS समूह ने अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए कई संस्थागत और आर्थिक पहलों की शुरुआत की है, जिनमें न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB), BRICS कंटिंजेंट रिजर्व अरेंजमेंट, BRICS पे, संयुक्त सांख्यिकीय प्रकाशन और BRICS बास्केट रिजर्व मुद्रा प्रमुख हैं। वर्ष 2009 में पहला BRICS शिखर सम्मेलन रूस के येकातेरिनबर्ग में हुआ था, जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन शामिल थे। इसके एक वर्ष बाद दक्षिण अफ्रीका सदस्य बना। आगे बढ़ते हुए, 1 जनवरी 2024 को ईरान, मिस्र, इथियोपिया और संयुक्त अरब अमीरात को BRICS में शामिल किया गया। सऊदी अरब को अभी तक पूर्ण सदस्यता नहीं मिली है, लेकिन वह एक आमंत्रित राष्ट्र के रूप में भाग लेता है।
BRICS को R-5 भी कहा जाता है क्योंकि इन पांचों देशों की मुद्रा का नाम ‘R’ से शुरू होता है — जैसे कि भारत का रुपया, चीन का रेनमिन्बी, रूस का रूबल, ब्राज़ील का रीयाल और दक्षिण अफ्रीका का रैंड। इसके अलावा, इन सभी देशों की भागीदारी G20 जैसे वैश्विक मंचों पर भी है, जो BRICS को वैश्विक नीति निर्धारण में एक सशक्त आवाज़ बनाती है। इस तरह, BRICS वैश्विक दक्षिण की आकांक्षाओं को दर्शाने वाला एक प्रभावशाली संगठन बनकर उभरा है।
भारत BRICS के संबंध:
भारत BRICS समूह का एक प्रभावशाली सदस्य है, जिसने इस मंच के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी रणनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति को सशक्त किया है। BRICS ने भारत को सुरक्षा, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन और व्यापार जैसे महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर सहयोग का अवसर दिया है। आतंकवाद के खिलाफ साझा प्रयासों और वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था में भारत की सक्रिय भूमिका इस सहयोग से और मजबूत हुई है।
आर्थिक रूप से, BRICS लगभग 3 अरब लोगों के बाजार का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे भारत को व्यापार और निवेश के बड़े अवसर मिलते हैं। BRICS का न्यू डेवलपमेंट बैंक भारत की आधारभूत संरचना और विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है। इसके साथ ही, भारत ने BRICS मंच का उपयोग बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार की दिशा में अपनी भूमिका निभाने और एक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था की मांग को मजबूती देने में किया है।
BRICS के जरिए भारत ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग को भी बढ़ावा दिया है, जहां व्यापार, निवेश और तकनीक के आदान-प्रदान में उसकी नेतृत्व भूमिका रही है। इस प्रकार, BRICS भारत के लिए न केवल सहयोग का मंच है, बल्कि वैश्विक प्रभाव बढ़ाने का भी सशक्त साधन है।
ब्रिक्स बनाम डॉलर: क्या अब वैश्विक व्यापार को नई मुद्रा मिलने जा रही है?
ब्रिक्स की सोच – डॉलर से बाहर निकलने की कोशिश: ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) ने एक बार फिर अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने की अपनी मंशा को दोहराया है। अब चर्चा एक संभावित साझा स्वर्ण-समर्थित मुद्रा (Gold-backed currency) की हो रही है, जिसे “यूनिट” (Unit) नाम दिया जा सकता है। यह नई मुद्रा अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर के विकल्प के रूप में काम कर सकती है।
इसका मकसद है:
- डॉलर की अधिपत्य वाली व्यवस्था से बाहर निकलना
- आर्थिक स्वतंत्रता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना
- राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ाना
साल 2023 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में यह बात कही थी कि अब वक्त आ गया है कि ब्रिक्स देश आपस में अपनी मुद्राओं में व्यापार करें, न कि डॉलर में। 2024 में भी इसका समर्थन किया गया।
डॉलर का प्रभाव:
अमेरिकी डॉलर आज भी वैश्विक व्यापार प्रणाली की सबसे मजबूत और प्रभावशाली मुद्रा मानी जाती है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन में इसकी भूमिका लगभग निर्विवाद है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में दुनिया का लगभग 88% अंतरराष्ट्रीय व्यापार अमेरिकी डॉलर में ही होता है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र जैसे उभरते क्षेत्रों में भी 74% व्यापार डॉलर में होता है, जबकि बाकी दुनिया में यह आंकड़ा 79% है। स्वयं अमेरिका में यह हिस्सेदारी 96% तक पहुंच जाती है। ये आंकड़े बताते हैं कि डॉलर का वर्चस्व आज भी पूरी दुनिया की वित्तीय व्यवस्था पर बना हुआ है। हालांकि, बीते कुछ वर्षों में कुछ देशों द्वारा वैकल्पिक मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देने की कोशिशें शुरू हो चुकी हैं, जिससे अब इस वर्चस्व में धीरे-धीरे गिरावट के संकेत मिलने लगे हैं।
क्यों हो रहा है डॉलर पर हमला?
डॉलर के प्रभाव को लेकर सबसे बड़ा बदलाव तेल व्यापार में देखने को मिल रहा है। एक समय था जब वैश्विक तेल व्यापार का 100% हिस्सा केवल डॉलर में होता था, लेकिन अब यह आंकड़ा घटकर 80% तक पहुंच गया है। इसका सबसे बड़ा कारण चीन और रूस पर लगे अमेरिकी प्रतिबंध हैं। इन प्रतिबंधों के चलते इन दोनों देशों ने अमेरिकी डॉलर की जगह अपनी-अपनी स्थानीय मुद्राओं में आपसी व्यापार करना शुरू कर दिया है। दोनों देश BRICS के सदस्य हैं और वे अब ब्रिक्स की एक साझा मुद्रा की अवधारणा को भी बल दे रहे हैं, ताकि वे अमेरिकी डॉलर के प्रभाव से स्वतंत्र होकर वैश्विक व्यापार कर सकें। यह स्थिति अमेरिका की मुद्रा प्रभुता पर सीधा असर डाल रही है और डॉलर के एकाधिकार को चुनौती देने वाली नई रणनीतियों को जन्म दे रही है।
ट्रंप क्यों हैं परेशान?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो एक बार फिर “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” के नारे के साथ सत्ता में लौटे हैं, इस संभावित बदलाव को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं। उन्हें इस बात की आशंका है कि अगर BRICS देश अपनी स्वर्ण-समर्थित साझा मुद्रा को व्यवहार में लाते हैं, तो वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर का वर्चस्व कमजोर हो सकता है। यह केवल आर्थिक रूप से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अमेरिका की वैश्विक शक्ति को प्रभावित कर सकता है। ट्रंप जानते हैं कि डॉलर की गिरती उपयोगिता अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय हैसियत को गहरी चोट पहुंचा सकती है।
इसी कारण, ट्रंप डॉलर की ताकत को बनाए रखने के लिए आक्रामक कदम उठाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। आने वाले समय में ट्रंप और अमेरिका की आर्थिक नीति, डॉलर को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में बनाए रखने के लिए और भी सख्त रुख अपना सकती है। BRICS की संभावित मुद्रा के जवाब में अमेरिका किस हद तक जाएगा, यह अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अर्थव्यवस्था का एक अहम प्रश्न बन गया है।
निष्कर्ष:ब्राज़ील में आयोजित 17वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन विकासशील देशों की सामूहिक शक्ति, रणनीतिक सोच और वैश्विक नेतृत्व में उनकी उभरती भूमिका का प्रतीक बनकर सामने आया। डॉलर पर निर्भरता कम करने, AI और जलवायु जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर साझा दृष्टिकोण अपनाने, तथा वैश्विक स्वास्थ्य और सुरक्षा में योगदान देने के संकल्प ने यह सिद्ध कर दिया कि ब्रिक्स अब नई वैश्विक व्यवस्था की नींव रखने की दिशा में एक निर्णायक मंच बन चुका है।