न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया आरंभ

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मंगलवार को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने हेतु प्राप्त बहुदलीय नोटिस को स्वीकार करते हुए, उनके खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया। इस कदम के साथ ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू हो गई।

 

लोकसभा अध्यक्ष ने भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की प्रतिबद्धता का संदेश दिया

लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि बेदाग चरित्र, वित्तीय एवं बौद्धिक ईमानदारी न्यायपालिका में आम जनता के विश्वास की नींव होती है। मौजूदा मामले से जुड़े तथ्य भ्रष्टाचार की ओर संकेत करते हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, अनुच्छेद 217 तथा अनुच्छेद 218 के अनुसार कार्रवाई योग्य हैं।

उन्होंने कहा कि संसद को इस विषय पर एक स्वर में बोलना चाहिए और देश के प्रत्येक नागरिक को भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस की प्रतिबद्धता का स्पष्ट संदेश देना चाहिए।

ओम बिरला ने स्पष्ट किया कि उन्होंने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया है और न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 की धारा 3(2) के तहत न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है।

 

गठित जांच समिति में निम्न सदस्य शामिल हैं:

  1. न्यायमूर्ति अरविंद कुमार– सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश
  2. न्यायमूर्ति मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव– मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
  3. बी. वी. आचार्य– कर्नाटक उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता

लोकसभा अध्यक्ष ने बताया कि समिति शीघ्र ही अपनी जांच पूरी कर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने का प्रस्ताव, जांच समिति की रिपोर्ट प्राप्त होने तक, लंबित रहेगा।

इससे पूर्व, 21 जुलाई को, लोकसभा अध्यक्ष को भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद, विपक्ष के नेता राहुल गांधी तथा अन्य सांसदों सहित कुल 146 लोकसभा सदस्यों द्वारा न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने का प्रस्ताव सौंपा गया था।

 

क्या है मामला?

मार्च 2025 में, दिल्ली स्थित 30, तुगलक क्रेसेंट स्थित न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने की घटना हुई। घटना की सूचना पाकर दमकल विभाग और पुलिस मौके पर पहुँचे, जहाँ स्टोर रूम और परिसर के आसपास जली एवं आधी जली 500 रुपये के नोटों की गड्डियाँ बरामद हुईं।

NDMC के सफाईकर्मियों ने भी आस-पास के कचरे से जले नोटों के टुकड़े मिलने की पुष्टि की। ये टुकड़े आग लगने से कुछ दिन पहले और बाद तक मिलते रहे।

इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने एक समिति गठित की, जिसने अपनी रिपोर्ट सरकार को आगे की कार्रवाई हेतु भेज दी।

28 जुलाई 2025 को एक सुनवाई के दौरान, सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए उनसे कई सवाल पूछे थे।

क्या है महाभियोग और उसकी प्रक्रिया-

‘महाभियोग’ शब्द का अर्थ है- किसी पद पर कार्यरत व्यक्ति को उस पद से हटाने के लिए अपनाई जाने वाली औपचारिक प्रक्रिया, जिसके बाद वह उस पद से जुड़ी सभी शक्तियों और जिम्मेदारियों से वंचित हो जाता है। संक्षेप में, पद से हटाने की पूरी प्रक्रिया को ही महाभियोग कहा जाता है।

भारतीय संदर्भ में महाभियोग शब्द दो स्थितियों में प्रयुक्त होता है:

  1. राष्ट्रपति का महाभियोग
  2. न्यायाधीशों की पद से हटाने की प्रक्रिया– हालांकि भारतीय संविधान में न्यायाधीशों को हटाने के लिए महाभियोग शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है।

 

भारत में न्यायाधीशों को हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया

  • अनुच्छेद 124(4) – सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने से संबंधित प्रावधान।
  • अनुच्छेद 218 – उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने से संबंधित प्रावधान।

हटाने के आधार: न्यायाधीश को केवल इन दो आधारों पर ही हटाया जा सकता है:

  • सिद्ध दुराचार: पद पर रहते हुए जानबूझकर किया गया अनुचित आचरण, भ्रष्टाचार, ईमानदारी की कमी, या कोई ऐसा अपराध जिसमें नैतिक पतन शामिल हो।
  • अक्षम्यता: कोई चिकित्सकीय स्थिति जिसके कारण न्यायाधीश अपने कर्तव्यों का पालन न कर सके, जिसमें शारीरिक या मानसिक अक्षम्यता दोनों शामिल हैं।

 

संविधान में सिद्ध दुराचार और अक्षम्यता की परिभाषा स्पष्ट रूप से नहीं दी गई है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों में इनका अर्थ बताया गया है:

 

न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 सर्वोच्च न्यायालय (SC) और उच्च न्यायालय (HC) के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया को विनियमित करता है।

प्रक्रिया की शुरुआत: लोकसभा में कम से कम 100 सांसद या राज्यसभा में कम से कम 50 सांसद इस संबंध में प्रस्ताव (Motion) पर हस्ताक्षर करें।

  • लोकसभा अध्यक्ष (Speaker) या राज्यसभा सभापति (Chairman) विचार एवं परामर्श के बाद प्रस्ताव को स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं।
  • यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है, तो तीन-सदस्यीय जांच समिति (Committee of Inquiry) का गठन किया जाता है।

जांच समिति (Committee of Inquiry)

  1. सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (CJI) या कोई अन्य SC न्यायाधीश
  2. किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
  3. एक विशिष्ट विधिवेत्ता (Distinguished Jurist)

ये आरोपों की जांच करते है, और  आरोपों का निर्धारण और साक्ष्यों की जांच, गवाहों से पूछताछ और प्रतिपरीक्षण, रिपोर्ट तैयार कर लोकसभा अध्यक्ष/राज्यसभा सभापति को सौंपना

संसद में मतदान: प्रत्येक सदन में प्रस्ताव तभी पारित होगा जब:

    • उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से अनुमोदन मिले और सदन की कुल सदस्य संख्या के 50% से अधिक सदस्य पक्ष में हों
  • यदि दोनों सदन प्रस्ताव को पारित कर दें, तो राष्ट्रपति हटाने का आदेश जारी करते हैं

कार्यवाही की समाप्ति: यदि समिति न्यायाधीश को निर्दोष पाती है, तो कार्यवाही यहीं समाप्त हो जाती है और मामला आगे नहीं बढ़ता।

 

भारतीय इतिहास में न्यायाधीशों पर महाभियोग के प्रमुख मामले:

  1. जस्टिस वी. रामास्वामी (1993): सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर अनियमित आचरण और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप; लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया, लेकिन दो-तिहाई बहुमत न मिलने से असफल।
  2. जस्टिस सौमित्र सेन (2011): कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर धन के गबन के आरोप; राज्यसभा ने महाभियोग प्रस्ताव पारित किया, लेकिन लोकसभा में बहस से पहले इस्तीफा दे दिया।
  3. जस्टिस पी. डी. दिनाकरण (2011): सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग के आरोप; प्रस्ताव पेश हुआ, लेकिन इस्तीफा देने के कारण प्रक्रिया समाप्त।
  4. जस्टिस जे. बी. परदीवाला (2015): गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर आरक्षण पर विवादास्पद टिप्पणी के आरोप; टिप्पणी हटाने के बाद महाभियोग प्रस्ताव वापस लिया गया।
  5. जस्टिस सी. वी. नागराजुन रेड्डी (2017): आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर दलित न्यायाधीश को लक्षित करने और वित्तीय अनियमितताओं के आरोप; सांसदों द्वारा समर्थन वापस लेने पर प्रस्ताव रद्द।
  6. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा (2018): भारत के मुख्य न्यायाधीश पर उपचारात्मक प्रक्रिया के दुरुपयोग और न्यायमूर्ति लोया मामले में अनियमितताओं के आरोप; राज्यसभा सभापति ने महाभियोग प्रस्ताव प्रारंभिक चरण में ही खारिज किया।

आगे की प्रक्रिया:

समिति आरोपों की जांच पूरी करने के बाद अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंपेगी। यदि रिपोर्ट में आरोप सिद्ध होते हैं, तो महाभियोग प्रस्ताव संसद में प्रस्तुत किया जाएगा। इसके बाद लोकसभा में इस पर बहस होगी, जिसमें न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा। सभी तथ्यों पर विचार के बाद प्रस्ताव को पारित करने या अस्वीकार करने का निर्णय लिया जाएगा।