14 अगस्त: ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ – 1947 के बलिदान और पीड़ा की स्मृति:

आज, 14 अगस्त को भारत में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाया जा रहा है। इस दिन राष्ट्र उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है जिन्होंने 1947 में विभाजन के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी और अकल्पनीय पीड़ा झेली। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अनेक भाजपा नेताओं ने संदेश जारी कर विभाजन पीड़ितों के साहस और बलिदान को नमन किया।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, भारत आज ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ मनाते हुए हमारे इतिहास के उस दुखद अध्याय को स्मरण करता है, जिसमें अनगिनत लोगों ने भीषण उथल-पुथल और अपार पीड़ा झेली। यह दिन उनके अदम्य धैर्य और अकल्पनीय क्षति के बावजूद नए सिरे से जीवन शुरू करने की अद्भुत क्षमता को सलाम करने का अवसर है। विभाजन से प्रभावित अनेक लोगों ने कठिनाइयों को पार कर न केवल अपना जीवन पुनर्निर्मित किया, बल्कि उल्लेखनीय उपलब्धियाँ भी हासिल कीं। यह दिवस हमें उस स्थायी जिम्मेदारी की भी याद दिलाता है कि हम अपने देश को एकजुट रखने वाले सद्भाव और भाईचारे के बंधन को और मजबूत करें।”

 

विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस की शुरुआत-

1947 का भारत-पाक विभाजन लाखों लोगों के लिए दर्द, विस्थापन और हिंसा का भयावह दौर लेकर आया। इस ऐतिहासिक त्रासदी को स्मरण करने और भावी पीढ़ियों को इसके सबक से अवगत कराने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अगस्त 2021 को घोषणा की कि अब हर वर्ष 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ (Partition Horrors Remembrance Day) के रूप में मनाया जाएगा।

यह दिवस विभाजन पीड़ितों के साहस, बलिदान और पुनर्निर्माण की भावना को नमन करने के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सौहार्द को मजबूत करने का संदेश देता है।

 

आइए जानते है- भारत का विभाजन के बारे में-

भारत के बंटवारे की शुरुआत 20 फरवरी 1947 को मानी जाती है, जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार 30 जून 1948 से पहले भारत में सत्ता भारतीयों को सौंप देगी। हालांकि, भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने इस प्रक्रिया को एक वर्ष पहले ही पूरा करने का निर्णय लिया।

31 मई 1947 को माउंटबेटन लंदन से सत्ता हस्तांतरण की मंजूरी लेकर नई दिल्ली लौटे। इसके बाद 2 जून 1947 को एक ऐतिहासिक बैठक हुई, जिसमें भारत के विभाजन पर सिद्धांततः सहमति बन गई।

मुस्लिम लीग की भूमिका और विभाजन का फैसला

भारत का विभाजन एक तरह से एक पूर्व निर्धारित शर्त बन चुका था, हालांकि धार्मिक आधार पर विभाजन के विचार का व्यापक विरोध हुआ। इतिहासकारों के अनुसार, वे ही नेता विभाजन के लिए तैयार हुए, जिन्हें इसमें अपना राजनीतिक लाभ और भविष्य सुरक्षित नजर आ रहा था।

4 जून 1947 को माउंटबेटन ने ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर एक साल पहले ही सत्ता हस्तांतरण की घोषणा की। सबसे अहम सवाल उस समय लोगों के बड़े पैमाने पर पलायन का था। जल्द ही माउंटबेटन ने 14-15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता की तिथि घोषित कर दी। इसके लिए ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई 1947 को भारत स्वतंत्रता अधिनियम (Indian Independence Act) पारित किया।

 

भारत और पाकिस्तान  सीमा निर्धारण – रैडक्लिफ रेखा

भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा तय करने के लिए माउंटबेटन ने जून 1947 में ब्रिटिश न्यायविद सर सिरिल रैडक्लिफ को भारत बुलाया। उन्हें बंगाल और पंजाब की नई सीमाएँ तय करने की जिम्मेदारी दी गई। वे 8 जुलाई 1947 को भारत पहुँचे और 12 अगस्त 1947 तक अपनी रिपोर्ट पूरी कर ली। यह सीमांकन रेखा पाकिस्तान और भारत की स्वतंत्रता के दो दिन बाद, 17 अगस्त 1947 को प्रकाशित हुई थी। आज, इस रेखा का पंजाब वाला हिस्सा भारत-पाकिस्तान सीमा का हिस्सा है , जबकि बंगाल वाला हिस्सा बांग्लादेश-भारत सीमा के रूप में कार्य करता है ।

 

पलायन और अत्याचार की दर्दनाक कहानी-

1947 का भारत-पाक विभाजन केवल राजनीतिक घटना नहीं था, बल्कि यह अभूतपूर्व मानव विस्थापन और मजबूरी में पलायन की सबसे दर्दनाक कहानियों में से एक है। लाखों लोग अपने घर-आंगन, ज़मीन-जायदाद और पहचान छोड़ने के लिए मजबूर हो गए।

मानव विस्थापन के भयावह आंकड़े:

  • विभाजन के बाद लगभग 60 लाख गैर-मुसलमान उस क्षेत्र से पलायन कर भारत आए, जो आगे चलकर पश्चिमी पाकिस्तान बना।
  • करीब 65 लाख मुसलमान पंजाब, दिल्ली और आसपास के भारतीय इलाकों से पश्चिमी पाकिस्तान चले गए।
  • 20 लाख गैर-मुसलमान पूर्वी बंगाल से पश्चिम बंगाल आए, जबकि 1950 में और 20 लाख लोग वहां से पलायन कर आए।
  • लगभग 10 लाख मुसलमान पश्चिम बंगाल से पूर्वी पाकिस्तान चले गए।
  • विभाजन की हिंसा में मृतकों का आधिकारिक आंकड़ा 5 लाख बताया जाता है, लेकिन अनुमान 15 से 20 लाख तक पहुंचते हैं।

 

रेलगाड़ियां से आती थी भर-भर कर लाशे

विभाजन के दौरान रेल ही लोगों के आवागमन का मुख्य साधन थी लेकिन उस समय कई रेलगाड़ियों पर हमले हुए, जिनमें यात्रियों को लूटा गया, घायल किया गया, और यहां तक कि मार डाला गया। कुछ रेलगाड़ियाँ अपने गंतव्य तक पहुँचने पर लाशों और घायलों से भरी हुई थीं, जो उस समय की भयावहता का एक भयावह प्रतीक था।

विभाजन के दौरान महिलाओं पर अत्याचार –

1947 का भारत-पाक विभाजन केवल राजनीतिक सीमाओं का बंटवारा नहीं था, बल्कि यह इंसानियत के खिलाफ अमानवीय घटनाओं का दौर भी था। इस त्रासदी में सबसे अधिक पीड़ा महिलाओं को सहनी पड़ी। अनुमान है कि विभाजन के दौरान लगभग 1 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ।

  • 1 से 2 लाख महिलाओं का अपहरण किया गया या उन्हें जबरन पाकिस्तान में रोक लिया गया।
  • सबसे ज्यादा अत्याचार हिंदू समाज के वंचित और निर्धन वर्ग पर हुए, क्योंकि अज्ञानता और संसाधनों की कमी के कारण वे सुरक्षित भारत नहीं पहुँच सके।
  • इन महिलाओं में से कई को वहाँ के स्थानीय मुसलमानों ने बंधक बनाकर जबरी गुलामी करने पर मजबूर किया।

 

काफिले, कठिनाइयाँ और मौत का साया:

हज़ारों लोग पैदल, ट्रकों, तांगों, बैलगाड़ियों और नावों से पलायन कर रहे थे। भीषण गर्मी, मूसलाधार बारिश, भूख, प्यास और बीमारी ने सफर को और भयावह बना दिया।
काफिले कभी 10 मील तो कभी 27 मील लंबे होते, जिनमें राह में मिलने वाले लोग भी शामिल हो जाते। रास्ते में लूटपाट और हमलों का डर हमेशा बना रहता था। थकान, भूख और बीमारी से अनगिनत लोग सफर में ही दम तोड़ देते थे।

 

निष्कर्ष

‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ केवल अतीत की पीड़ा को याद करने का अवसर नहीं है, बल्कि यह उन लाखों लोगों के साहस, धैर्य और संघर्ष को नमन करने का दिन है, जिन्होंने विस्थापन, हिंसा और अपनी जाने गवाई ।