अमेरिका द्वारा भारतीय रत्न और आभूषण आयात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने से देश के इस प्रमुख उद्योग को गंभीर संकट का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा जेम्स एवं जूलरी बाजार है, जो हीरे के निर्यात का एक तिहाई और जड़े हुए गहनों का लगभग आधा हिस्सा खरीदता है। सूरत, जयपुर और मुंबई समेत प्रमुख केंद्रों में व्यापार प्रभावित हो रहा है और लोगों की नौकरियां खतरे में हैं।
भारत के रत्न और आभूषण उद्योग के लिए अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार बना हुआ है। वित्त वर्ष 2025 में भारत ने अमेरिका को 9.9 अरब डॉलर मूल्य के आभूषण निर्यात किए। अमेरिका प्रमुख निर्यात गंतव्यों में से एक है और इस टैरिफ वृद्धि से रत्न एवं आभूषण उद्योग, जो निर्यात पर काफी निर्भर है, गंभीर प्रभावित होगा।
अमेरिकी टैरिफ से भारत के हीरा और रत्न उद्योग पर गंभीर दबाव
संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के रत्न और आभूषण निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है, जिसमें वार्षिक व्यापार 10 अरब डॉलर (लगभग ₹87,500 करोड़) से अधिक का है, जो उद्योग के वैश्विक व्यापार का लगभग 30 प्रतिशत है।
SEEPZ विशेष आर्थिक क्षेत्र, जो 50,000 लोगों को रोजगार प्रदान करता है, के 85 प्रतिशत निर्यात अमेरिका को जाते हैं। कटे और पॉलिश किए गए हीरों के लिए भारत के आधे निर्यात अमेरिकी बाजार में जाते हैं। GJEPC के सदस्य भंसाली के अनुसार, “50 प्रतिशत टैरिफ बढ़ोतरी के साथ पूरा उद्योग ठहर सकता है, जिससे मूल्य श्रृंखला के हर स्तर पर छोटे कारीगरों से लेकर बड़े उत्पादकों तक भारी दबाव पड़ेगा।”
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट और लागत दबाव
यूक्रेन-रूस युद्ध, चीन और हांगकांग के बाजारों में मंदी, और लेब-ग्रोवन हीरों के आगमन के कारण प्राकृतिक हीरों की कीमतों में पिछले दो वर्षों में लगभग 30 प्रतिशत की गिरावट आई है। इस कारण, हीरा निर्यातक और पॉलिशर उत्पादन कम कर रहे हैं ताकि कीमतों को स्थिर किया जा सके।
अमेरिका भारत के हीरा पॉलिशिंग निर्यात से होने वाले कुल राजस्व का लगभग 25 प्रतिशत है। 50 प्रतिशत टैरिफ के चलते पहले से सीमित मार्जिन वाले व्यापार में नुकसान निश्चित है। गुजरात के सूरत और सौराष्ट्र के छोटे और मध्यम हीरा पॉलिशिंग उद्योग, जो बड़े कंपनियों के लिए कटाई और पॉलिशिंग करते हैं, गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।
लेब-ग्रोवन हीरों पर भी असर
लेब-ग्रोवन हीरों के सेक्टर, जो उद्योग में श्रमिकों के लिए रोजगार का विकल्प माना जा रहा था, पर भी 50 प्रतिशत टैरिफ की वजह से अनिश्चितता बढ़ गई है। इस क्षेत्र में अमेरिका एक प्रमुख बाजार है। भारत के हीरा पॉलिशिंग उद्योग में सूरत, अहमदाबाद और सौराष्ट्र के शहरों में लगभग 8 लाख कारीगर कार्यरत हैं।

विकल्प और उपाय
- भारतीय निर्यातक अब घरेलू बाजार को प्राथमिकता दे रहे हैं, प्राकृतिक हीरों के प्रचार और विपणन में निवेश बढ़ाया जा रहा है।
- अन्य देशों में निर्यात बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, जैसे UAE में 20 प्रतिशत बढ़ोतरी का लक्ष्य।
- कुछ निर्यातक कम टैरिफ वाले देशों जैसे UAE (10 प्रतिशत) और मैक्सिको (25 प्रतिशत) के माध्यम से उत्पादों को पुनः मार्गित करने पर विचार कर रहे हैं, लेकिन इसमें अतिरिक्त लागत और लॉजिस्टिक चुनौती शामिल हैं।
सरकारी समर्थन और राहत प्रस्ताव
- उद्योग ने भारतीय सरकार से अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार वार्ता को प्राथमिकता देने का अनुरोध किया है।
- कस्टम ड्यूटी रिटर्न, ब्याज सब्सिडी और GST रिफंड जैसे उपायों की मांग की गई है।
- GJEPC ने दिसंबर 2025 तक अमेरिका-निर्गमित उत्पादों के लिए टैरिफ प्रभाव को आंशिक रूप से कम करने के लिए लक्ष्य आधारित प्रतिपूर्ति तंत्र प्रस्तावित किया है।
- COVID-19 के दौरान की तरह, अगस्त 2025 से जनवरी 2026 तक ब्याज देयता में छह महीने की स्थगन की अनुमति देने का अनुरोध किया गया है।
किस क्षेत्र की अमेरिकी बाजार में हिस्सेदारी:
- कपड़ा, रत्न एवं आभूषण और सीफूड उद्योग मिलकर अमेरिका को होने वाले निर्यात में 25% की हिस्सेदारी रखते हैं। इन क्षेत्रों पर उच्च टैरिफ का सबसे अधिक असर पड़ेगा।
- एमएसएमई की इन क्षेत्रों में हिस्सेदारी 70% से अधिक है।
- रसायन उद्योग में एमएसएमई की हिस्सेदारी लगभग 40% है और उच्च टैरिफ से निर्यातकों को नुकसान होगा। जापान और दक्षिण कोरिया के कम टैरिफ वाले उत्पादों से प्रतिस्पर्धा और बढ़ जाएगी।
- रत्न एवं आभूषण क्षेत्र में सूरत के हीरा पॉलिशर, जो देश के निर्यात में 80% से अधिक योगदान देते हैं, बुरी तरह प्रभावित होंगे। भारत के कुल रत्न और आभूषण निर्यात में हीरे का योगदान आधे से अधिक है और अमेरिका इसका प्रमुख उपभोक्ता है।
- सी-फूड एमएसएमई को इक्वाडोर जैसे कम टैरिफ वाले देशों से प्रतिस्पर्धा में कठिनाई होगी।
- ऑटो कंपोनेंट एमएसएमई, जो गियरबॉक्स और ट्रांसमिशन उपकरण आपूर्ति करते हैं, को भी दबाव का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका में इनके निर्यात की लगभग 40% हिस्सेदारी है, जबकि कुल ऑटो कंपोनेंट निर्यात भारत के कुल उत्पादन का केवल 3.5% है।
निष्कर्ष:
अमेरिकी टैरिफ के चलते भारत के हीरा उद्योग में अनिश्चितता बढ़ गई है। यह उद्योग लाखों कारीगरों और कर्मचारियों के रोजगार का प्रमुख स्रोत है। इसलिए त्वरित समाधान और राहत उपाय अत्यंत आवश्यक हैं, ताकि आर्थिक प्रभाव कम किया जा सके और इस महत्वपूर्ण उद्योग के कर्मचारियों के जीवन यापन की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।