जैसलमेर: खुदाई में मिले डायनासोर के जीवाश्म, वैज्ञानिक कर रहे जांच

राजस्थान के जैसलमेर जिले के एक गांव में तालाब की खुदाई के दौरान स्थानीय लोगों को हड्डी जैसी आकृति और जीवाश्मकृत लकड़ी सहित कुछ अवशेष मिले हैं। ये अनोखे पत्थरनुमा ढांचे, जो बड़े कंकाल जैसी संरचना से मिलते-जुलते हैं, विशेषज्ञों का मानना है कि पश्चिमी राजस्थान में जीवाश्मकृत लकड़ी मिलना आम बात है, लेकिन हड्डी जैसी संरचनाओं का मिलना इस खोज को खास और संभवतः प्रागैतिहासिक डायनासोर युग से जुड़ा बना देता है।

 

जैसलमेर की झील की खुदाई में मिले कंकाल:

जैसलमेर जिले के फतेहगढ़ क्षेत्र के मेघा गांव में झील की सफाई और गहरी खुदाई के दौरान ग्रामीणों को हड्डियों और पत्थरों के अवशेष मिले हैं। गांव के निवासी ने सबसे पहले इन संरचनाओं को देखा और तुरंत प्रशासन व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को सूचना दी। मौके पर पहुंचे एसडीएम ने भी इन संरचनाओं को डायनासोर या किसी अन्य जीव की रीढ़ की हड्डी जैसी बताया।

ग्रामीण ने बताया कि सफाई और खुदाई के दौरान लंबे आकार का कंकाल और जीवाश्म जैसे अवशेष मिले, जो देखने में डायनासोर की हड्डियों जैसे प्रतीत हो रहे थे। इसके बाद गांव वालों ने तस्वीरें खींचकर जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग को भेजीं। सूचना मिलने पर पुरातत्व विभाग की टीम सर्वे और जांच के लिए मौके पर पहुंची।

 

जैसलमेर: संभावित डायनासोर अवशेषों से जुड़ी 5वीं खोज:

जैसलमेर क्षेत्र में डायनासोर से जुड़े जीवाश्म पहले भी मिल चुके हैं। सबसे पहले थियात गांव में हड्डियों के जीवाश्म पाए गए थे, इसके बाद डायनासोर के पदचिह्न खोजे गए और वर्ष 2023 में डायनासोर का एक अंडा भी सुरक्षित अवस्था में मिला था।

अब मेघा गांव में मिले हड्डी जैसे अवशेष यदि डायनासोर के साबित होते हैं, तो यह जैसलमेर की ऐसी पांचवीं ऐतिहासिक खोज होगी।

विशेषज्ञों की राय: कार्बन डेटिंग से होगी असली उम्र की जांच

प्रोफेसर श्याम सुंदर मीणा ने बताया कि मिले हुए अवशेष किसी गहरी खुदाई से नहीं निकले, बल्कि सतह पर ही दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में संभव है कि ये वास्तव में अत्यधिक प्राचीन न हों और इनकी उम्र केवल 50 से 100 साल पुरानी ही हो। उन्होंने कहा कि इनकी सही आयु और प्रकृति का पता केवल कार्बन डेटिंग और अन्य वैज्ञानिक परीक्षणों के जरिए ही लगाया जा सकेगा।

अधिकारियों के अनुसार, संदिग्ध जीवाश्म तालाब के पास पत्थर की चोटियों में धंसे हुए पाए गए हैं, जो अक्सर प्राचीन तलछटी जमाव से जुड़े होते हैं। हालांकि, थार रेगिस्तान में पहले भी जीवाश्मकृत लकड़ी मिलने के कई उदाहरण सामने आए हैं, लेकिन इस बार कंकाल जैसी संरचना और पत्थरनुमा अवशेषों का संयुक्त रूप इस खोज को और भी विशिष्ट बना रहा है।

डायनासोर के बारे में

डायनासोर सरीसृपों (रेपटाइल) का एक समूह है जो लगभग 245 मिलियन साल पहले पृथ्वी पर प्रकट हुआ था और लगभग 6.6 करोड़ साल पहले विलुप्त हो गया, सिवाय आधुनिक पक्षियों के जो डायनासोर के वंशज हैं. ये विभिन्न आकारों, आकृतियों और आहारों वाले जीव थे, जो ज़मीन पर रहते थे, अंडे देते थे और सीधे खड़े होकर चलते थे, जो उन्हें अन्य सरीसृपों से अलग करता है. 

डायनासोर धरती के सबसे रहस्यमयी और प्राचीन जीवों में गिने जाते हैं। वे लगभग 16 करोड़ सालों तक इस पृथ्वी पर अस्तित्व में रहे, जबकि मानव का इतिहास अभी केवल करीब 25 लाख साल पुराना है। आश्चर्यजनक रूप से इनके अवशेष अंटार्कटिका जैसे ठंडे क्षेत्रों तक में पाए गए हैं।

डायनासोर कई प्रकार और आकार के होते थे  कुछ बेहद विशालकाय तो कुछ मानव से भी छोटे। इनके पूंछ 45 फीट से भी लंबी हो सकती थीं, जो दौड़ते समय इनके शरीर का संतुलन बनाए रखने में मदद करती थीं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि कुछ प्रजातियां 200 साल तक जीवित रह सकती थीं। इनका सबसे बड़ा अंडा लगभग बास्केटबॉल के आकार का होता था और उसका खोल भी उतना ही मोटा होता था।

दिलचस्प बात यह है कि सबसे पहले मांसाहारी डायनासोर धरती पर आए, उसके बाद सर्वाहारी और शाकाहारी प्रजातियां विकसित हुईं। शाकाहारी डायनासोर सुरक्षा के लिए झुंड में रहते थे, जबकि मांसाहारी डायनासोर अपने दो पैरों पर दौड़ते और शिकार करते थे। वहीं शाकाहारी प्रजातियां अधिकतर चार पैरों का इस्तेमाल करती थीं।