सरकार ने जर्मनी के साथ 70,000 करोड़ रुपये की ‘प्रोजेक्ट-75 इंडिया’ पनडुब्बी परियोजना को दी मंज़ूरी

भारत सरकार ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, ‘प्रोजेक्ट 75 इंडिया’ के अंतर्गत छह उन्नत पनडुब्बियों के अधिग्रहण हेतु जर्मनी से तकनीकी सहयोग प्राप्त करने के लिए औपचारिक वार्ता आरंभ करने की अनुमति प्रदान की है।

इस परियोजना के अंतर्गत रक्षा मंत्रालय तथा सार्वजनिक क्षेत्र की प्रतिष्ठित शिपबिल्डिंग कंपनी मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) को जर्मन कंपनी थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स के साथ बातचीत शुरू करने की स्वीकृति दी गई है।

संभावित समय-सीमा:

  • बातचीत अगस्त माह के अंत तक प्रारंभ होने की संभावना
  • अनुबंध आगामी छह महीनों के भीतर पूर्ण होने की अपेक्षा

 

पनडुब्बियाँ (Submarines) क्या है?:

पनडुब्बियाँ विशेष जलयान (specialised watercrafts) होती हैं, जो पानी के भीतर लंबे समय तक स्वतंत्र रूप से संचालित हो सकती हैं। इनमें अपना ऑनबोर्ड पावर और सिस्टम होता है, जिससे वे लंबे समय तक अंडरवाटर रह सकती हैं। नौसैनिक युद्ध में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि ये गुप्त और फुर्तीली होती हैं।

मुख्य कार्य:

  • खुफिया जानकारी (Intelligence Gathering)
  • पनडुब्बी रोधी अभियान (Anti-Submarine Operations)

आधुनिक पनडुब्बियों में उन्नत नेविगेशन, संचार और हथियार प्रणाली होती हैं, जिससे वे समुद्री रक्षा में बेहद प्रभावशाली बनती हैं।

 

प्रोजेक्ट 75 इंडिया’ के तहत पनडुब्बियों की प्रमुख विशेषता:

भारतीय नौसेना छह डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के निर्माण की योजना पर काम कर रही है। यह महत्वाकांक्षी परियोजना कई उन्नत क्षमताओं को लक्ष्य बना रही है, जिनमें शामिल हैं:

  • भूमि-हमला क्षमता
  • जहाज-रोधी युद्ध
  • पनडुब्बी-रोधी युद्ध
  • सतह-रोधी युद्ध
  • खुफिया, निगरानी और टोही
  • विशेष अभियान बल संचालन
  • हवाई-स्वतंत्र प्रणोदन (AIP) जिसे इस परियोजना का सबसे महत्वपूर्ण तत्व माना जा रहा है।

AIP तकनीक क्या है?

एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (Air Independent Propulsion – AIP) एक ऐसी तकनीक है, जो पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की क्षमता को कई गुना बढ़ा देती है। इस तकनीक से लैस पनडुब्बियां बिना सतह पर आए कम से कम 2–3 हफ्ते तक पानी के भीतर रह सकती हैं।

आमतौर पर डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों को बार-बार सतह पर आकर बैटरियां चार्ज करनी पड़ती हैं। इस प्रक्रिया के दौरान उनका दुश्मन की नजर में आने का खतरा बढ़ जाता है। लेकिन AIP तकनीक से पनडुब्बियां लंबे समय तक गहराई में रहकर गुप्त तरीके से ऑपरेशन कर सकती हैं।

AIP तकनीक की मुख्य विशेषताएँ:

  • पानी के नीचे संचालन की अवधि बढ़ाती है: बिना सतह पर आए पनडुब्बी कई दिन (यहां तक कि हफ्तों) तक जल में रह सकती है।
  • ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं: पारंपरिक प्रणालियों के विपरीत, इसमें बाहरी ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती।
  • कम ध्वनि उत्पन्न करती है: जिससे पनडुब्बी का पता लगाना कठिन हो जाता है।
  • सुरक्षा और रणनीतिक लाभ: युद्ध स्थितियों में यह तकनीक पनडुब्बियों को अधिक समय तक छिपे रहने की क्षमता देती है।
Project-75 India submarine project

AIP तकनीक कैसे काम करती है?

  • बिजली उत्पादन (Electricity Generation): AIP सिस्टम बिजली पैदा करते हैं, जो पनडुब्बी के इलेक्ट्रिक मोटर को चलाने या बैटरियों को चार्ज करने में काम आती है।
  • सहायक ऊर्जा स्रोत (Auxiliary Power Source): यह तकनीक डीजल इंजन को सपोर्ट करती है, जो सतह पर पनडुब्बी को शक्ति देते हैं।
  • रीट्रोफिटिंग (Retrofitting): AIP मॉड्यूल को पहले से मौजूद पनडुब्बियों में भी लगाया जा सकता है। इसके लिए पनडुब्बी के ढांचे में एक अतिरिक्त सेक्शन जोड़ा जाता है।

 

भारत में पनडुब्बियाँ (Submarines in India):

भारत के पास पारंपरिक (Conventional) और परमाणु ऊर्जा से संचालित (Nuclear-powered) पनडुब्बियों का बेड़ा है। ये आधुनिक सेंसर, हथियार और इंजन से सुसज्जित हैं और विभिन्न समुद्री अभियानों में काम आती हैं।

  1. पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ

(A) शिशुमार श्रेणी (Shishumar Class)

  • जर्मनी से तकनीक हस्तांतरण (Technology Transfer) के तहत बनी 4 पनडुब्बियाँ।
  • मुख्य उद्देश्य: पनडुब्बी रोधी (ASW) और जहाज रोधी युद्ध (AShW)।
  • तैनाती: अरब सागर पर प्रभुत्व कायम करने के लिए।
  • सक्रिय पनडुब्बियाँ: INS Shishumar, INS Shankush, INS Shalki, INS Shankul

(B) सिन्धुघोष श्रेणी (Sindhughosh Class)

  • रूस की Kilo-Class पनडुब्बियों से निर्मित।
  • कुल 10 में से 7 सक्रिय, 3 डीकमिशन।
  • क्षमता: सैटेलाइट सेंसर, रडार, सोनार, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी, साथ ही जहाज-रोधी और पनडुब्बी-रोधी हथियार।
  • सक्रिय पनडुब्बियाँ: INS Sindhughosh, INS Sindhudhvaj, INS Sindhuraj, INS Sindhuvir, INS Sindhuratna, INS Sindhukesari

(C) कलवरी श्रेणी (Kalvari Class – Project 75)

  • फ्रांस की Scorpene Class डिज़ाइन पर बनी 6 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियाँ।
  • निर्माण: मझगांव डॉक, भारत।
  • आधुनिक स्टेल्थ तकनीक और Air Independent Propulsion (AIP) क्षमता।
  • सक्रिय पनडुब्बियाँ: INS Kalvari, INS Khanderi, INS Karanj, INS Vela, INS Vagir
  • भविष्य: Project 75 (I) के तहत नई AIP युक्त पनडुब्बियाँ विकासाधीन।

 

  1. परमाणु ऊर्जा से संचालित पनडुब्बियाँ

(A) परमाणु अटैक पनडुब्बियाँ (SSN): वर्तमान में कोई सक्रिय SSN नहीं।

  • INS Chakra II (Akula Class): रूस से लीज़ पर, 2021 में डीकमिशन।
  • भविष्य:
    • INS Chakra III (Akula Class): 2025 में शामिल होने की योजना।
    • Project 75 Alpha – स्वदेशी SSN विकासाधीन।

(B) परमाणु बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बियाँ (SSBN):

  • यह भारत की सबसे शक्तिशाली पनडुब्बी श्रेणी है, जो देश को परमाणु प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है। इनमें सबसे प्रमुख INS Arihant (S2) है, जिसे 2009 में लॉन्च किया गया और 2016 में कमीशन किया गया।
  • INS Arihant में 12 K-15 मिसाइलें (750 किमी रेंज) या 4 K-4 मिसाइलें (3500 किमी रेंज) ले जाने की क्षमता है।
  • यह डबल-हुल डिज़ाइन, उन्नत सेंसर और रणनीतिक SLBMs (Submarine-Launched Ballistic Missiles) से लैस है।
  • इसके बाद INS Arighat (S3) है, जो INS Arihant का उन्नत संस्करण है और विकासाधीन है।
  • इसके अतिरिक्त, INS S4 और INS S5 जैसी अन्य SSBN पनडुब्बियाँ योजना और विकास चरण में हैं, जो भविष्य में भारत की समुद्री परमाणु क्षमता को और सशक्त बनाएंगी।

 

आइए जानते हैं ‘प्रोजेक्ट 75 इंडिया’ के बारे में:

‘प्रोजेक्ट 75 इंडिया’ (Project 75 India / P-75I) भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी रक्षा परियोजना है, जिसका उद्देश्य भारतीय नौसेना के लिए छह उन्नत पारंपरिक (गैर-परमाणु) पनडुब्बियों का स्वदेशी निर्माण करना है। यह परियोजना मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहल के अंतर्गत आती है।

उद्देश्य: ‘प्रोजेक्ट 75 इंडिया’ के अंतर्गत भारत सरकार का उद्देश्य उन्नत Air Independent Propulsion (AIP) तकनीक से युक्त छह पनडुब्बियों का स्वदेशी निर्माण करना है, जिससे देश की समुद्री रणनीति को सशक्त किया जा सके तथा राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित की जा सके।

इस परियोजना के माध्यम से नौसेना के पुराने पनडुब्बी बेड़े का समयबद्ध प्रतिस्थापन करते हुए, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को भी सुदृढ़ किया जाएगा। इस दिशा में जर्मनी से आवश्यक तकनीकी सहयोग प्राप्त किया जा रहा है।