ऑस्ट्रेलिया-ईरान संबंधों में तनाव: राजदूत को देश से बाहर भेजा गया, 80 वर्षों में पहला कड़ा कूटनीतिक कदम

ईरान और ऑस्ट्रेलिया के बीच कूटनीतिक तनाव और गहरा गया है। ऑस्ट्रेलिया ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार किसी देश के राजदूत को निष्कासित करते हुए ईरान के खिलाफ बड़ा कदम उठाया है। सिडनी और मेलबर्न में यहूदी-विरोधी हमलों की साजिश के आरोप में यह कार्रवाई की गई। इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया ने तेहरान से अपना राजदूत वापस बुलाकर 1968 से चल रहा अपना दूतावास भी बंद कर दिया है। इस फैसले के बाद ईरान और ऑस्ट्रेलिया के बीच कूटनीतिक तनाव और गहरा हो गया है। इसके जवाब में ईरान ने गुरुवार को घोषणा की कि उसने ऑस्ट्रेलिया के साथ अपने राजनयिक संबंधों को सीमित कर दिया है।

Tension in Australia-Iran relations

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता का ब्यान:

 

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बाघेई ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया का हमारे राजदूत को निष्कासित करने का निर्णय पूरी तरह अनुचित और निराधार है। हमने जवाबी कदम उठाते हुए ऑस्ट्रेलिया में अपनी राजनयिक उपस्थिति का स्तर घटा दिया है। हालांकि, हमारा वाणिज्य दूतावास ऑस्ट्रेलिया में सक्रिय रहेगा और वहां रह रहे ईरानी नागरिकों की आवश्यक सेवाओं को पूरा करता रहेगा। हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि यहूदी-विरोधी हमलों के आरोप पूरी तरह झूठे और बेबुनियाद हैं।

 

सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया ने बुलाये थे अपने राजदूत:

ऑस्ट्रेलिया ने सिडनी और मेलबर्न में हुए यहूदी-विरोधी आगजनी हमलों के पीछे ईरान की भूमिका का आरोप लगाते हुए कड़ा कदम उठाया है। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने कहा कि खुफिया एजेंसियों की जांच में यह “बेहद चिंताजनक निष्कर्ष” सामने आया है कि इन हमलों के पीछे ईरान का हाथ था और कम से कम दो घटनाओं को तेहरान के इशारे पर अंजाम दिया गया।

 

कब हुए थे यह हमले, क्या है पूरा मामला?

प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि अक्टूबर 2024 में सिडनी के बौंडी इलाके के कोषेर कैफे और दिसंबर 2024 में मेलबर्न के एडास इजराइल सिनेगॉग पर हुए आगजनी हमलों के पीछे ईरान का हाथ था। उन्होंने कहा कि यह ऑस्ट्रेलियाई धरती पर किसी विदेशी देश द्वारा की गई खतरनाक और अस्वीकार्य आक्रामकता है, जिसका उद्देश्य सामाजिक एकता को तोड़ना और समाज में कलह फैलाना था। इसी के चलते ऑस्ट्रेलिया ने ईरानी राजदूत अहमद सादेघी और तीन अन्य अधिकारियों को “पर्सोना नॉन ग्रेटा” घोषित कर सात दिनों में देश छोड़ने का आदेश दिया है।

प्रधानमंत्री अल्बानीज ने यह भी घोषणा की कि ऑस्ट्रेलिया, ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) को आतंकवादी संगठन घोषित करने के लिए नया कानून लाएगा ।

 

इजरायली दूतावास ने फैसले का किया स्वागत:

ऑस्ट्रेलिया में इजरायल के दूतावास ने सरकार द्वारा इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स को आतंकवादी संगठन घोषित करने के फैसले का स्वागत किया। दूतावास ने सोशल मीडिया पर लिखा, “यह एक ऐसा कदम है जिसकी हम लंबे समय से मांग कर रहे थे।

 

ईरान द्वारा ऑस्ट्रेलिया में यहूदी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने के पीछे का कारण:

विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान सीधे तौर पर ऑस्ट्रेलिया में यहूदी समुदाय को निशाना बनाकर इज़राइल पर दबाव बनाना चाहता है, क्योंकि यहां दुनिया में इज़राइल के बाहर होलोकॉस्ट बचे लोगों की सबसे बड़ी आबादी रहती है। अक्टूबर 2023 से अक्टूबर 2024 के बीच देश में 2,000 से अधिक यहूदी-विरोधी घटनाएँ दर्ज हुईं, जिनमें से कुछ हमलों के पीछे ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने ईरान की IRGC की भूमिका बताई है।

 

क्या है, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC):

यह ईरान का एक शक्तिशाली और समानांतर सैन्य निकाय है, जो 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद देश की इस्लामी शासन प्रणाली की रक्षा के लिए गठित किया गया था। यह ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के प्रति सीधे जवाबदेह है। IRGC में अपनी जमीनी सेना, नौसेना और वायु सेना शाखाएं शामिल हैं। यह ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल और परमाणु कार्यक्रमों का भी संचालन करता है। आईआरजीसी मध्य पूर्व में प्रॉक्सी समूहों का समर्थन करता है, और अपनी आर्थिक शक्ति के साथ, ईरान की राजनीति और अर्थव्यवस्था में भी इसकी जड़ें गहरी हैं।

  • अमेरिका ने 2019 में IRGC को एक विदेशी “आतंकवादी” संगठन नामित किया था।

 

ऑस्ट्रेलिया के इस कदम का कितना असर  होगा?

आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञ लेवी वेस्ट ने कहा कि ईरान के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया की कार्रवाई का बड़ा असर होने की संभावना नहीं है, क्योंकि दोनों देशों के रिश्ते पहले से ही बहुत सीमित हैं और उनके बीच न तो रक्षा सहयोग है और न ही खुफिया साझेदारी।

 

गाजा युद्ध पर ऑस्ट्रेलिया का रुख:

ऑस्ट्रेलिया पारंपरिक रूप से इज़राइल का सहयोगी रहा है, लेकिन गाज़ा में युद्ध, कथित अकाल और फिलिस्तीनियों की बढ़ती मौतों को देखते हुए अब सरकार संतुलित रुख अपनाने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ ने ऐलान किया कि सितंबर 2025 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के 80वें सत्र में ऑस्ट्रेलिया फ़िलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देगा। यह कदम दो-राज्य समाधान, युद्धविराम और बंधकों की रिहाई की दिशा में अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मज़बूती देगा। हाल ही में हुए सर्वेक्षण में 45% ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने इस फैसले का समर्थन किया है, जबकि केवल 23% ने विरोध किया है।

 

क्या है, राजनयिक संबंधों पर वियना कन्वेंशन (Vienna Convention on Diplomatic Relations 1961:

विएना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमैटिक रिलेशंस (VCDR) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसे 18 अप्रैल 1961 को अपनाया गया और 24 अप्रैल 1964 से लागू किया गया। इसका उद्देश्य देशों के बीच राजनयिक संबंधों की रूपरेखा तय करना और राजनयिकों व उनके मिशनों को दिए जाने वाले विशेषाधिकार और प्रतिरक्षाएँ सुनिश्चित करना है, ताकि वे मेज़बान देश में बिना हस्तक्षेप के अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें।

 

प्रमुख प्रावधान

  • राजनयिक संबंधों की स्थापना: स्वतंत्र देशों के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए कानूनी आधार प्रदान करता है।
  • मिशन परिसरों की अवध्यता: राजनयिक मिशन के परिसरों को अवध्य माना जाता है; मेज़बान देश के अधिकारी बिना अनुमति प्रवेश नहीं कर सकते और मेज़बान देश पर सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है।
  • राजनयिक प्रतिरक्षा (Immunity): राजनयिकों को स्थानीय कानूनों से छूट प्राप्त होती है, ताकि वे बिना दबाव या भय के अपने आधिकारिक कार्य कर सकें।
  • कर और सीमा शुल्क से छूट: राजनयिक मिशन और उनके कर्मचारी राष्ट्रीय करों और सीमा शुल्क से मुक्त रहते हैं, कुछ विशेष सेवाओं पर अपवाद लागू हो सकते हैं।
  • परिवार के सदस्यों के अधिकार: राजनयिक परिवारों को भी लगभग वही विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा दी जाती है जो स्वयं राजनयिकों को मिलती है।
  • दस्तावेज़ और अभिलेख: मिशन के अभिलेख और दस्तावेज़ हर परिस्थिति में अवध्य माने जाते हैं।

महत्व: VCDR अंतरराष्ट्रीय कानून की आधारशिला है। यह संधि सुनिश्चित करती है कि राजनयिक सुरक्षित और प्रभावी ढंग से विदेशों में कार्य कर सकें। यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों में शांति और विश्वास को बढ़ावा देती है और लंबे समय से प्रचलित राजनयिक परंपराओं और प्रतिरक्षाओं को औपचारिक रूप से संहिताबद्ध करती है।

 

निष्कर्ष:

ऑस्ट्रेलिया और ईरान के बीच बढ़ते कूटनीतिक तनाव ने दोनों देशों के रिश्तों को ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर पहुँचा दिया है। ईरानी राजदूत का निष्कासन और IRGC को आतंकवादी संगठन घोषित करने की तैयारी, ऑस्ट्रेलिया की सख्त नीति को दिखाता है। दूसरी ओर, फ़िलिस्तीन को मान्यता देने का निर्णय यह संकेत देता है कि ऑस्ट्रेलिया केवल सुरक्षा ही नहीं बल्कि मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया में भी सक्रिय और संतुलित भूमिका निभाना चाहता है।