भारत में 7 सितंबर की रात एक दुर्लभ खगोलीय नजारा देखने को मिलेगा। इस दिन देशभर के लोग पूर्ण चंद्रग्रहण का साक्षी बनेंगे। खास बात यह है कि 27 जुलाई 2018 के बाद पहली बार पूरे भारत में पूर्ण चंद्रग्रहण दिखाई देगा और यह 2022 के बाद अब तक का सबसे लंबा पूर्ण चंद्रग्रहण होगा।

7 सितंबर की रात लगेगा पूर्ण चंद्र ग्रहण
खगोलविदों के अनुसार, उसी दिन रात 8 बजकर 59 मिनट से चांद पर हल्की छाया (पेनुम्ब्रा स्टेज) पड़नी शुरू हो जाएगी। हालांकि यह चरण आंखों से आसानी से नहीं दिखाई देता।
चंद्र ग्रहण का वास्तविक आरंभ 7 सितंबर की रात 9 बजकर 58 मिनट पर होगा और इसका समापन 8 सितंबर की आधी रात 1 बजकर 26 मिनट पर होगा। इस दौरान ग्रहण का सबसे महत्वपूर्ण चरण यानी पूर्णता का समय (पीक टाइमिंग) रात 11 बजकर 42 मिनट पर रहेगा। कुल मिलाकर भारत में यह ग्रहण 3 घंटे 28 मिनट तक चलेगा।
विशेषज्ञों के अनुसार, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं और पृथ्वी सूर्य की किरणों को रोक देती है, तो चंद्रमा पर चंद्रग्रहण दिखाई देता है। इस बार का ग्रहण न सिर्फ भारत, बल्कि एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, यूरोप के कई हिस्सों और अमेरिका के कुछ क्षेत्रों से भी देखा जा सकेगा। दिल्ली के नेहरू तारामंडल में इस मौके पर विशेष ‘चंद्र मेला’ का आयोजन किया जाएगा।
नंगी आंखों, दूरबीन या टेलीस्कोप से देख सकेंगे
भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बंगलूरू के विज्ञान, संचार, जनसंपर्क एवं शिक्षा (स्कोप) अनुभाग के प्रमुख मोहन रामानुजम ने बताया कि उपछाया ग्रहण (जब चंद्रमा पृथ्वी की हल्की छाया से ढक जाता है) को नंगी आंखों से देख पाना मुश्किल होता है और इसके लिए दूरबीन या टेलीस्कोप की जरूरत पड़ती है। वहीं आंशिक ग्रहण (जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा के एक हिस्से को ढक लेती है) बिना किसी उपकरण के आसानी से देखा जा सकता है। सूर्य ग्रहण के विपरीत, पूर्ण चंद्र ग्रहण को देखने के लिए किसी विशेष सुरक्षा उपकरण की आवश्यकता नहीं होती। इसे नंगी आंखों, दूरबीन या टेलीस्कोप से साफ़-साफ़ देखा जा सकता है।
विश्व में कहां दिखेगा?
7 सितंबर को लगने वाला है यह चंद्रग्रहण एशिया, पूर्वी अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के अधिकांश भागों से देखा जा सकता है. साथ ही सिंगापुर, सिडनी, मेलबर्न, दुबई, लन्दन, टोक्यो और केप टाउन कुछ लोकप्रिय शहर हैं, जहां पूर्ण चन्द्र ग्रहण दिखाई देगा, यह चंद्रग्रहण उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश भागों से दिखायी नहीं देगा.
भारत में कहां-कहां दिखेगा चंद्रग्रहण?
नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ में चंद्र ग्रहण नजर आएगा.
चंद्र ग्रहण के दौरान ग्रहों की स्थिति:
7 सितंबर को लगने वाला चंद्र ग्रहण राहु के नक्षत्र शतभिषा से शुरू होकर गुरु के नक्षत्र पूर्वभाद्रपद पर समाप्त होगा। इस दिन आकाश में कई विशेष योग बनने वाले हैं। सूर्य, शनि और गुरु जैसे बड़े ग्रह एक साथ महासंयोग बनाएंगे।
ग्रहण के समय सबसे अहम भूमिका राहु और चंद्रमा की रहती है, क्योंकि यही दोनों ग्रह एक साथ आते हैं। इस बार खास बात यह है कि ग्रहण रविवार को पड़ रहा है, जो सूर्य देव का दिन माना जाता है, इसलिए सूर्य की भी इसमें अहम भागीदारी रहेगी।
साल 2025 को मंगल का साल कहा जा रहा है, इसलिए मंगल का प्रभाव भी इस ग्रहण में दिखाई देगा। इसके अलावा, ग्रहण की तारीख और उस दिन का मूलांक 7 है, जो केतु का प्रतिनिधित्व करता है। इस तरह यह ग्रहण कई ग्रहों के विशेष संयोग और प्रभावों से जुड़ा होगा।
सूतक काल की अवधि
पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्र ग्रहण शुरू होने से 9 घंटे पहले सूतक काल आरंभ हो जाता है। इसलिए इस बार ग्रहण का सूतक काल 7 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 57 मिनट से शुरू होकर ग्रहण समाप्त होने तक प्रभावी रहेगा।
सूतक काल क्या होता है?
सूतक काल चंद्र ग्रहण के प्रारंभ होने से पहले के समय को कहते हैं. सूतक काल को अशुभ समय माना जाता है क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पाप ग्रह राहु और केतु के कारण चंद्रमा पर ग्रहण लगता है. सूतक काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं. चंद्र ग्रहण का सूतक काल ग्रहण के समय से 9 घंटे पहले प्रारंभ होगा।
चंद्रग्रहण क्या है?
चंद्रग्रहण उस खगोलीय घटना को कहते हैं, जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया (Shadow) में आ जाता है। यह स्थिति तभी बनती है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में स्थित हों और पृथ्वी बीच में आकर सूर्य की रोशनी को चंद्रमा तक पहुँचने से रोक दे।
इस ज्यामितीय स्थिति के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा के दिन ही घटित हो सकता है, क्योंकि उसी समय चंद्रमा पृथ्वी के ठीक विपरीत दिशा में सूर्य के सामने होता है।
चंद्र ग्रहण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-
- पूर्ण चंद्र ग्रहण
- आंशिक चंद्र ग्रहण
- उपछाया चंद्र ग्रहण
इन प्रकारों का निर्धारण इस बात से होता है कि चंद्रमा पृथ्वी की छाया के किन हिस्सों से गुज़रता है, जिसमें पूर्ण ग्रहण में पृथ्वी की गहरी छाया (अम्ब्रा) चंद्रमा को पूरी तरह ढक लेती है, आंशिक ग्रहण में चंद्रमा का केवल एक हिस्सा छाया में आता है, और उपछाया ग्रहण में चंद्रमा केवल पृथ्वी की हल्की, बाहरी छाया (पेनम्ब्रा) से गुज़रता है।
चंद्र ग्रहण के प्रकार:
- पूर्ण चंद्र ग्रहण: जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच पूरी तरह से आ जाती है, तब चंद्रमा पृथ्वी की गहरी छाया (अम्ब्रा) में पूरी तरह प्रवेश कर जाता है। इस समय चंद्रमा लाल या नारंगी रंग का दिखाई देता है, जिसे “ब्लड मून” कहा जाता है।
- आंशिक चंद्र ग्रहण: इसमें पृथ्वी की छाया केवल चंद्रमा के एक हिस्से पर पड़ती है। परिणामस्वरूप, चंद्रमा का कुछ भाग अंधकारमय दिखाई देता है जबकि बाकी हिस्सा प्रकाशित रहता है।
- उपछाया (पेनुम्ब्रल) चंद्र ग्रहण: इस प्रकार के ग्रहण में चंद्रमा पृथ्वी की केवल हल्की छाया (उपछाया/पेनुम्ब्रा) से गुजरता है। इससे चंद्रमा की चमक थोड़ी कम हो जाती है, लेकिन यह बदलाव इतना हल्का होता है कि इसे पहचानना कठिन होता है।

चंद्रमा क्यों हो जाता है लाल?
जब पृथ्वी सीधे सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है, तो उसकी सबसे गहरी छाया, जिसे अम्ब्रा (Umbra) कहते हैं, चंद्रमा की सतह पर पड़ती है। इसी कारण पूर्ण चंद्रग्रहण होता है। इस दौरान चंद्रमा पूरी तरह अंधेरे में गायब नहीं होता, बल्कि तांबे और गहरे लाल रंग की आभा में चमकता है।
इस रहस्यमयी और अद्भुत दृश्य का कारण है पृथ्वी का वायुमंडल। जब सूर्य की रोशनी वायुमंडल से गुजरती है, तो छोटे तरंग दैर्ध्य वाली किरणें, जैसे नीली और बैंगनी रोशनी, फैल जाती हैं या छँट जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप केवल लाल और नारंगी रंग की लंबी तरंग दैर्ध्य वाली रोशनी चंद्रमा तक पहुँचती है। यही कारण है कि चंद्रग्रहण के दौरान चांद लाल दिखाई देता है।
अगला चंद्रग्रहण कब होगा?
7 सितंबर 2025 के बाद अगला पूर्ण चंद्रग्रहण मार्च 2026 की शुरुआत में आएगा। इसे उत्तर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी एशिया से देखा जा सकेगा।