भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंधों के बाद आर्थिक और व्यापारिक रिश्तों को फिर से मजबूत करने की कोशिशें तेज हो रही हैं। इस संदर्भ में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जोर देकर कहा कि दोनों देशों के बीच केवल औपचारिक बातचीत नहीं बल्कि वास्तविक और सार्थक संवाद होना चाहिए।
एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि चीन के साथ निष्कर्ष तक पहुँचने में समय लगेगा और इसके लिए व्यापार, निवेश और बाज़ार तक पहुँच से जुड़े मुद्दों पर गंभीर चर्चा जरूरी है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने चीन से आने वाले निवेश पर कुछ प्रतिबंधों में ढील दी है और नए प्रोजेक्ट खुलने के लिए रास्ता तैयार किया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि भारत निवेश के लिए खुला है, बशर्ते चीन भी समान रूप से सहयोग करे।

भारत-चीन व्यापार: बढ़ता व्यापार घाटा और द्विपक्षीय संबंधों की रणनीति:
भारत का चीन के बाज़ार में पहुँच सीमित है, जबकि चीन से भारी मात्रा में आयात होता है और भारतीय निर्यात अपेक्षाकृत कम है, जिससे व्यापार में भारत को लगातार बड़ा घाटा हो रहा है। भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है, लेकिन व्यापार घाटा अब भी चीन के पक्ष में अधिक झुका हुआ है। भारत ने बार-बार बढ़ते व्यापार घाटे और चीनी बाजार में भारतीय वस्तुओं को सामना करने वाली गैर-व्यापारिक बाधाओं पर अपनी चिंता जताई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि वैश्विक आर्थिक स्थिरता लाने के लिए भारत और चीन को मिलकर काम करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि नई दिल्ली द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ाने के लिए तैयार है, और यह संबंध आपसी सम्मान, आपसी हित और संवेदनशीलता पर आधारित होना चाहिए।
द्विपक्षीय व्यापार की वर्तमान स्थिति:
अप्रैल-जुलाई 2025-26 के दौरान भारत का निर्यात 19.97% बढ़कर 5.75 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जबकि आयात में 13.06% की बढ़ोतरी हुई और यह 40.65 अरब अमेरिकी डॉलर रहा। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का निर्यात 14.25 अरब अमेरिकी डॉलर और आयात 113.5 अरब अमेरिकी डॉलर था।
भारत-चीन व्यापार घाटे का बढ़कर 99.2 अरब डॉलर पर पहुंचा:
व्यापार घाटा, यानी आयात और निर्यात के बीच का अंतर, 2003-04 में 1.1 अरब अमेरिकी डॉलर था, जो वित्त वर्ष 2024-25 में बढ़कर 99.2 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। पिछले वित्त वर्ष में, चीन के साथ व्यापार घाटा भारत के कुल व्यापार असंतुलन (283 अरब अमेरिकी डॉलर) का लगभग 35 प्रतिशत था। वित्त वर्ष 2023-24 में यह अंतर 85.1 अरब अमेरिकी डॉलर था।
चीन के अत्यधिक प्रभुत्व का जोखिम:
GTRI संस्थापक अजय श्रीवास्तव का कहना है कि चीन का अत्यधिक प्रभुत्व भारत के लिए संभावित दबाव का साधन बन सकता है। इसका कारण यह है कि आपूर्ति शृंखलाओं को राजनीतिक तनाव के समय में दबाव डालने के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारत और चीन के बीच यह असंतुलन लगातार बढ़ रहा है, क्योंकि भारत का चीन के साथ निर्यात घट रहा है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार में भारत का हिस्सा अब केवल 11.2 प्रतिशत रह गया है। यह स्थिति दो दशकों पहले 42.3 प्रतिशत थी, जिससे स्पष्ट होता है कि भारत की बाजार हिस्सेदारी में लगातार गिरावट आई है।
यह चीन के प्रभुत्व और व्यापार असंतुलन के जोखिम को उजागर करता है, जो भारत की आर्थिक सुरक्षा और रणनीतिक स्वायत्तता के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
SCO सम्मेलन में सहयोग और रणनीतिक बातचीत:
वित्त मंत्री की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब हाल ही में तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में भारत और चीन के शीर्ष नेताओं ने अमेरिकी टैरिफ के बीच एक-दूसरे के समर्थन का संकेत दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ब्रिक्स 2026 का निमंत्रण भी दिया, जिसकी मेजबानी भारत करेगा।
अक्टूबर 2024 में भारत और चीन के बीच संबंधों को बेहतर बनाने की पहल के एक साल बाद, SCO शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी और शी की मुलाकात सबसे करीबी और महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक रही।
इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “दोनों देशों के लिए यह सही विकल्प है कि वे मित्र बनें, जिनके बीच अच्छे पड़ोसी और सौहार्दपूर्ण संबंध हों, वे साझेदार बनें जो एक-दूसरे की सफलता में सहायक हों, तथा राष्ट्रपति जिनपिंग ने कहा कि ड्रैगन और हाथी एक साथ आएं।”
यह बयान दोनों देशों के बीच साझेदारी और सहयोग की प्रतिबद्धता को स्पष्ट करता है और भविष्य में रणनीतिक व्यापार एवं कूटनीतिक संबंधों की दिशा को रेखांकित करता है।
किन चीजों में चीन की हिस्सेदारी 75% से ज्यादा है?
- जीटीआरआई के अनुसार, कई आवश्यक वस्तुओं और तकनीकी सामग्री में चीन की हिस्सेदारी अत्यधिक है:
- दवाइयां: एरिथ्रोमाइसिन जैसी एंटीबायोटिक दवाओं में भारत की ज़रूरत का 7% हिस्सा चीन से आता है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स: सिलिकॉन वेफर्स का 8%, फ्लैट पैनल डिस्प्ले का 86% चीन द्वारा बनाया जाता है।
- सौर ऊर्जा: सौर सेल का 7%, लिथियम-आयन बैटरी का 75.2% चीन से आता है।
- रोजमर्रा और औद्योगिक सामान:
- लैपटॉप में 80.5%,
- कढ़ाई मशीन में 91.4%,
- विस्कोस यार्न में 98.9% हिस्सा चीन का है।
यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि भारत कई महत्वपूर्ण दवाइयों, इलेक्ट्रॉनिक और औद्योगिक उत्पादों में चीन पर अत्यधिक निर्भर है।
भारत इन महत्वपूर्ण चीजों के लिए भी चीन पर निर्भर
- रेयर अर्थ्स (Rare Earths): भारत रेयर अर्थ्स पर चीन पर अत्यधिक निर्भर है। इनकी आपूर्ति से मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा मिलेगा और इससे ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रिक व्हीकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल, पवन ऊर्जा, रक्षा तकनीक और रोबोटिक्स जैसे सेक्टर्स को लाभ होगा। वर्तमान में भारत की सालाना दुर्लभ खनिज की मांग लगभग 4010 मीट्रिक टन है, जो 2030 तक बढ़कर 8220 मीट्रिक टन होने का अनुमान है।
- उर्वरक (Fertilizers): भारत उर्वरकों का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। वर्ष 2024 में भारत ने 15 अरब डॉलर के उर्वरक आयात किए। मुख्य आपूर्तिकर्ता रूस, चीन, सऊदी अरब, ओमान और जॉर्डन हैं।
- पोटाश के लिए भारत पूरी तरह आयात पर निर्भर है।
- यूरिया की घरेलू मांग का लगभग 20% और डीएपी की मांग का 60% आयात से पूरी होती है। चीन से सीमित कीमतों पर उर्वरक उपलब्ध होने से भारत को महंगी खरीद से राहत मिलती है।
- मशीनें: भारत भारी मशीनरी और औद्योगिक उपकरणों के लिए चीन पर निर्भर है। इसमें स्पेयर पार्ट्स, परमाणु रिएक्टर और बॉयलर शामिल हैं।
- 2024 में भारत ने चीन से 27 अरब डॉलर मूल्य की मशीनरी आयात की।
- अब चीन ने टनल मशीन और अन्य उपकरण सस्ते दामों पर उपलब्ध कराने का भरोसा दिया है, जिससे भारत अपने रोड और टनल प्रोजेक्ट्स में तेजी ला सकेगा।
बढ़ते व्यापार घाटे का भारत पर प्रभाव
- विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव: लगातार उच्च व्यापार घाटा होने से विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय लेनदेन और आयात के लिए आवश्यक मुद्रा की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
- बाहरी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता: चीन और अन्य देशों पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ती है, जिससे आपूर्ति श्रृंखलाओं में किसी भी व्यवधान या राजनीतिक तनाव के समय भारत कमजोर स्थिति में आ सकता है।
- स्थानीय उद्योगों पर असर: सस्ते आयात से घरेलू उद्योग प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि वे आयातित वस्तुओं की तुलना में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते, जिससे रोजगार और उत्पादन पर असर पड़ सकता है।
- महंगाई में वृद्धि: मुद्रा मूल्य गिरने से आयातित वस्तुओं की कीमत बढ़ सकती है, जिससे उपभोक्ता मूल्य स्तर में वृद्धि और महंगाई बढ़ने की संभावना होती है।
- औद्योगिक विकास में कमी: प्रमुख उद्योगों में घरेलू क्षमता विकसित करने की प्रेरणा कम हो सकती है, जिससे दीर्घकालिक औद्योगिक विकास धीमा हो सकता है और आत्मनिर्भरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
भारत और चीन के बीच बढ़ता व्यापार घाटा केवल आर्थिक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह देश की विदेशी मुद्रा सुरक्षा, आपूर्ति स्वतंत्रता, घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धा और दीर्घकालिक औद्योगिक विकास के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। लगातार आयात पर निर्भरता और मुद्रा मूल्य में उतार-चढ़ाव महंगाई बढ़ा सकते हैं, जबकि घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की प्रेरणा कम हो सकती है। इसलिए, स्थिर और संतुलित द्विपक्षीय व्यापार स्थापित करना और महत्वपूर्ण वस्तुओं में आत्मनिर्भरता बढ़ाना भारत के लिए आवश्यक है।