उपराष्ट्रपति चुनाव 2025: मतदान जारी, राधाकृष्णन और बी. सुदर्शन रेड्डी के बीच सीधा मुकाबला, जानिए पूरी चुनावी प्रक्रिया

देश के 15वें उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए आज संसद भवन में मतदान हो रहा है। वोटिंग सुबह 10 बजे से शुरू हुई है और शाम 5 बजे तक चलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मतदान की प्रक्रिया में पहला वोट डाला।

 

इस बार एनडीए की ओर से 68 वर्षीय सी.पी. राधाकृष्णन जबकि विपक्षी गठबंधन INDIA ने 79 वर्षीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है। कुल 781 सांसद इस चुनाव में मतदान करेंगे।

 

वोटों की गिनती शाम 6 बजे से शुरू होगी और उसी के बाद नए उपराष्ट्रपति का नाम घोषित किया जाएगा। विजेता उम्मीदवार उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की जगह लेंगे, जिन्होंने 21 जुलाई को स्वास्थ्य कारणों से पद छोड़ दिया था। उनका कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक निर्धारित था।

Vice Presidential Election 2025

इन तीन पार्टियों ने बनाई दूरी:

 

आज हो रहे उपराष्ट्रपति चुनाव में सभी दल सक्रिय नहीं हैं। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजद (BJD), पंजाब की शिरोमणि अकाली दल और तेलंगाना के सी.एम. चंद्रशेखर राव की पार्टी बीआरएस (BRS) ने मतदान प्रक्रिया से खुद को अलग रखा है।

 

वहीं, गठबंधन स्तर पर भी दिलचस्प समीकरण देखने को मिले हैं। एआईएमआईएम (AIMIM) और आम आदमी पार्टी (AAP) ने विपक्षी INDIA उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी का समर्थन करने का फैसला लिया है। दूसरी ओर, आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) ने NDA प्रत्याशी सी.पी. राधाकृष्णन पर भरोसा जताया है।

 

लोकसभा और राज्य सभा के 781 सांसद करेंगे मतदान:

इस बार उपराष्ट्रपति पद के लिए लोकसभा और राज्यसभा के कुल 781 सांसद मतदान करेंगे। खास बात यह है कि इस चुनाव में पार्टियां अपने सांसदों को व्हिप जारी नहीं कर सकतीं, यानी वोटिंग पूरी तरह सांसदों की व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करेगी।

 

अगर सभी सांसद पार्टी लाइन पर वोट डालते हैं तो आंकड़े साफ़ दिखते हैं—

  • एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन को लगभग 422 वोट मिलने का अनुमान है।
  • वहीं विपक्षी उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी के हिस्से में करीब 319 वोट जाने की संभावना है।

इन आंकड़ों के आधार पर राधाकृष्णन की जीत लगभग पक्की मानी जा रही है। हालांकि, यह चुनाव गुप्त मतदान से होता है, ऐसे में क्रॉस वोटिंग किसी भी पल खेल बिगाड़ सकती है और परिणाम को अप्रत्याशित बना सकती है।

 

पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में जगदीप धनखड़ की शानदार जीत हुई थी:

पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने शानदार जीत हासिल की थी। अगस्त 2022 में हुए उस चुनाव में कुल 725 वोटों में से उन्हें 528 वोट मिले, यानी करीब 73% मतों के साथ वे विजयी हुए थे।

 

हालाँकि जुलाई 2025 में धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए पद से इस्तीफा दे दिया। अब नए उपराष्ट्रपति के चुनाव में क्रॉस वोटिंग की अटकलें लगाई जा रही हैं। मौजूदा समीकरण में एनडीए की जीत स्पष्ट दिखाई दे रही है, लेकिन अगर मतों के अंतर में कोई कमी आती है, तो विपक्ष इसे सत्ता पक्ष की ताकत में कमजोरी के रूप में पेश कर सकता है।

 

आइए जानते है, उपराष्ट्रपति के  पद, चुनाव प्रक्रिया और सुविधाओ के बारे में-

भारत के संविधान के अनुच्छेद 63 में कहा गया है कि देश में एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 के अनुसार उपराष्ट्रपति राज्यसभा के एक्स-ऑफिशियो चेयरमैन होते हैं। वहीं अनुच्छेद 65 यह व्यवस्था करता है कि राष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफा, हटाए जाने या अनुपस्थिति की स्थिति में उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बनते हैं और इस दौरान राष्ट्रपति के सभी अधिकार और विशेषाधिकार उनके पास रहते हैं। यही कारण है कि उपराष्ट्रपति का पद देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद माना जाता है।

 

विस्तार से समझिए कैसे होता है, उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान

उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 66 में वर्णित है। यह चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत होता है, जो आम लोकसभा या विधानसभा चुनाव से पूरी तरह अलग है।

 

इस चुनाव में वोटिंग सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्ट से की जाती है। सरल शब्दों में कहें तो मतदाता को अपनी पसंद के आधार पर क्रमांकित वोट देना होता है। मतदाता बैलट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों में अपनी पहली पसंद को 1, दूसरी को 2 और इसी तरह अन्य उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता नंबर के अनुसार अंकित करता है।

 

यह पूरी प्रक्रिया गुप्त मतदान (Secret Ballot) के रूप में संपन्न होती है और वोट लिखने के लिए चुनाव आयोग द्वारा दिए गए विशेष पेन का उपयोग किया जाता है।

 

चुनाव में यदि कोई उम्मीदवार शुरुआती दौर में विजयी नहीं होता और रेस से बाहर हो जाता है, तो उस उम्मीदवार को पहली प्राथमिकता देने वाले वोटों की दूसरी पसंद को अन्य उम्मीदवारों में ट्रांसफर किया जाता है। जब किसी उम्मीदवार के पास पर्याप्त वोट (Quota) पहुंच जाते हैं, तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है।

 

अगर पहले राउंड में भी कोई उम्मीदवार पूर्ण कोटा नहीं हासिल करता, तो प्रक्रिया जारी रहती है। इस दौरान सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है। उसके बैलट पेपर में दी गई प्राथमिकताओं को जांचा जाता है और अगली पसंद के अनुसार वोट अन्य उम्मीदवारों को ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक किसी एक उम्मीदवार को आवश्यक संख्या में वोट नहीं मिल जाते और उसे विजयी घोषित किया जा सके।

 

योग्यता के बारे में:

  • भारतीय नागरिक होना चाहिए।
  • न्यूनतम आयु: 35 वर्ष
  • राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता होनी चाहिए।
  • किसी भी लाभ के पद (Office of Profit) पर कार्यरत नहीं होना चाहिए।

 

कार्यकाल और हटाए जाने की स्थिति:

उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, लेकिन नया उपराष्ट्रपति कार्यभार संभालने तक वे पद पर बने रहते हैं। वे राष्ट्रपति को इस्तीफ़ा देकर या संसद के प्रस्ताव द्वारा हटाए जाने की स्थिति में पद से मुक्त हो सकते हैं। इसके लिए राज्यसभा में बहुमत और लोकसभा की सहमति आवश्यक होती है।

 

चुनाव विवाद की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का अहम रोल :

संविधान का अनुच्छेद 71 यह प्रावधान करता है कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से जुड़ा कोई भी विवाद केवल सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है। यदि सुप्रीम कोर्ट चुनाव को निरस्त भी कर दे, तो उस अवधि में उपराष्ट्रपति द्वारा किए गए कार्य मान्य माने जाते हैं।

 

वेतन, पेंशन और अन्य सुविधाएँ:

सुविधाओं की बात करें तो 2018 में उपराष्ट्रपति का वेतन बढ़ाकर 4 लाख रुपये प्रतिमाह कर दिया गया था। कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें आजीवन पेंशन मिलती है, जो वेतन का 50 प्रतिशत होती है। उनकी मृत्यु के बाद उनके जीवनसाथी को आधी पेंशन मिलती है। इसके अलावा उपराष्ट्रपति को आजीवन सरकारी आवास, चिकित्सा सुविधा, यात्रा खर्च और निजी सचिव, अतिरिक्त निजी सचिव, पीए और दो सहायकों सहित सचिवालय स्टाफ की सुविधा भी उपलब्ध होती है।

 

उपराष्ट्रपति के अधिकार और कर्तव्य:

उपराष्ट्रपति का एक मुख्य कर्तव्य राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य करना है। वे सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं और सदस्यों के अनुशासन या अयोग्यता जैसे मामलों में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार रखते हैं, विशेषकर एंटी-डिफेक्शन कानून के तहत। इसके अलावा, यदि किसी कारणवश राष्ट्रपति का पद खाली हो जाता है—चाहे वह मृत्यु, त्यागपत्र या किसी अन्य कारण से हो तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाते हैं और उस अवधि में राष्ट्रपति के सभी अधिकार और कर्तव्य निभाते हैं।

 

भारत के पहले उपराष्ट्रपति:

भारत के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे। उन्होंने 1952 से 1962 तक यह पद संभाला और इसके बाद राष्ट्रपति के रूप में भी देश की सेवा की।

 

कौन हैं सी. पी. राधाकृष्णन?

 

चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन (जन्म: 4 मई 1957) एक वरिष्ठ भारतीय राजनेता हैं, जिन्हें एनडीए ने भारत के उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है। वह वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं और इससे पहले झारखंड के राज्यपाल रह चुके हैं।

राधाकृष्णन दो बार कोयंबटूर से भाजपा सांसद चुने गए, तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे। उन्हें संगठनात्मक मजबूती और राजनीतिक अनुभव के लिए जाना जाता है।

उन्होंने 1998 और 1999 के चुनावों में बड़ी जीत दर्ज की और बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 16 वर्ष की उम्र से ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं और लगातार संगठन व राजनीति में सक्रिय रहे हैं।

उनकी उम्मीदवारी को एनडीए की ओर से रणनीतिक कदम माना जा रहा है, क्योंकि वह प्रशासनिक अनुभव, तमिलनाडु में राजनीतिक पकड़ और राष्ट्रीय पहचान, तीनों को साथ लाते हैं।

 

कौन हैं बी. सुदर्शन रेड्डी?

 

बी. सुदर्शन रेड्डी (जन्म: 8 जुलाई 1946) एक वरिष्ठ न्यायविद् हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रह चुके हैं। वह आंध्र प्रदेश के रंगारेड्डी जिले के अकुला मायलाराम गांव में एक किसान परिवार में जन्मे थे।

उन्होंने 1971 में हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री प्राप्त की और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में रिट और सिविल मामलों की प्रैक्टिस शुरू की। इसके बाद वह आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में सरकारी वकील और केंद्र सरकार के अतिरिक्त स्थायी वकील भी रहे।

1995 में उन्हें आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 2005 में वह गुवाहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने और 2007 में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत हुए। 2011 में सेवानिवृत्त होने के बाद मार्च 2013 में उन्हें गोवा का पहला लोकायुक्त नियुक्त किया गया, हालांकि कुछ महीनों बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

उनका करियर न्यायपालिका और सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए जाना जाता है।