फ्रांस में गहराया राजनीतिक संकट, बायरू सरकार गिरने के बाद राष्ट्रपति मैक्रों के सामने नई राजनीतिक चुनौती

फ्रांस की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को बड़ा झटका लगा है क्योंकि प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू संसद में विश्वास मत हार गए। महज आठ महीने के कार्यकाल के बाद ही उन्हें 364-194 मतों से सत्ता से बाहर होना पड़ा। बायरू मंगलवार को इस्तीफा दे दिए है और राष्ट्रपति मैक्रों जल्द ही नए प्रधानमंत्री की घोषणा करेंगे।

Political crisis deepens in France

प्रधानमंत्री बायरू का इस्तीफ़ा: कारण और पृष्ठभूमि:

 

फ्रांस की राजनीति 2024 में उस समय अस्थिर हो गई जब राष्ट्रपति मैक्रों ने अचानक संसदीय चुनाव बुलाकर बड़ा दांव खेला, लेकिन नतीजा भारी राजनीतिक विभाजन के रूप में सामने आया। बढ़ते कर्ज और बजट घाटे ने उनकी स्थिति और कमजोर कर दी। कोविड और जीवन-यापन संकट के दौरान की गई उदार नीतियों से फ्रांस का सार्वजनिक ऋण जीडीपी के 113.9% तक पहुंच गया और घाटा भी यूरोपीय संघ की सीमा से दोगुना हो गया। प्रधानमंत्री बायरू ने 2026 के लिए 44 अरब यूरो की बचत वाला बजट पारित करने की कोशिश की, लेकिन यही कदम उनके खिलाफ गुस्से और राजनीतिक अस्थिरता का बड़ा कारण बन गया।

 

विश्वास मत से पहले सरकार बचाने का प्रयास, लेकिन बहुमत की कमी से बढ़ी मुश्किलें:

विश्वास मत से पहले प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू ने माना कि उनकी सरकार शुरुआत से ही बहुमत के बिना कमजोर थी। उन्होंने कहा कि लगभग सभी विपक्षी दल पहले ही सरकार को गिराने का फैसला कर चुके थे और ऐसी सरकार का पतन पहले दिन से ही तय माना जा रहा था।

 

दो साल में तीसरे प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा:

फ्रांस की राजनीति इस समय अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को पिछले दो सालों में लगातार तीसरी बार अपने प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े का सामना करना पड़ा है।

  • सबसे पहले गैब्रियल अट्टल जनवरी से सितंबर 2024 तक केवल आठ महीने ही पद पर टिक पाए।
  • उनके बाद मिशेल बार्नियर ने दिसंबर में प्रधानमंत्री पद संभाला लेकिन अविश्वास प्रस्ताव हारकर महज़ तीन महीने में ही इतिहास के सबसे कम कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री बन गए।
  • अब फ्रांस्वा बायरू भी आठ महीने के भीतर ही संसद में विश्वास मत हारकर पद छोड़ने को मजबूर हो गए हैं।

 

कौन हो सकता है, फ्रांस का अगला प्रधानमंत्री:

NDTV की एक रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति मैक्रों अपने पुराने विश्वासपात्रों में से किसी को प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा रखते हैं। इसमें न्याय मंत्री गेराल्ड दारमानिन और रक्षा मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नु के नाम आगे आ रहे हैं, हालांकि इन्हें वामपंथी दल बहुत अधिक दक्षिणपंथी मानते हैं। इस कारण सोशलिस्ट पार्टी के साथ समझौता करना एक संभावित रास्ता हो सकता है। वहीं, एक अधिक व्यावहारिक और संतुलित विकल्प स्वास्थ्य मंत्री कैथरीन वौट्रिन मानी जा रही हैं, जिनका नाम पहले भी कई बार प्रधानमंत्री पद के लिए सामने आ चुका है।

 

सहवास (Cohabitation) की संभावना:

राष्ट्रपति मैक्रों फ्रांस की राजनीति में “सहवास” का प्रयोग कर सकते हैं, यानी किसी विरोधी पार्टी के प्रधानमंत्री के साथ काम करना।

इसका सबसे बड़ा विकल्प समाजवादी नेता ओलिवियर फॉरे हैं, जिन्होंने इस पद में रुचि भी दिखाई है। लेकिन चुनौती यह है कि उनकी सरकार संसद में बहुमत के बिना दक्षिणपंथियों के समर्थन पर निर्भर रहेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि मैक्रों समाजवादियों के साथ समझौते की ओर बढ़ सकते हैं और कम महत्वाकांक्षी बजट पेश करने वाले प्रधानमंत्री को चुन सकते हैं।

 

चुनाव का बढ़ता दबाव:

बायरू के इस्तीफ़े के बाद मैक्रों ने तुरंत चुनाव कराने से इनकार किया और नया प्रधानमंत्री नियुक्त करने का फैसला लिया। यह उनके कार्यकाल का सातवां प्रधानमंत्री होगा। अगर आगे भी सरकार गिरती है तो चुनाव की मांग तेज़ हो जाएगी।

दक्षिणपंथी नेता मरीन ले पेन ने चुनाव को “अनिवार्य” बताया है, जबकि अतिवामपंथी ज्यां-ल्यूक मेलेंचन ने मैक्रों से खुद इस्तीफ़ा देने की अपील की। हालांकि, मैक्रों ने साफ़ कहा है कि वे 2027 तक अपना कार्यकाल पूरा करेंगे।

 

फ्रांस में नया प्रधानमंत्री चुनना चुनौतीपूर्ण, जनता में अस्थिरता और कर्ज को लेकर बढ़ी चिंता: राष्ट्रपति मैक्रों  के लिए नया प्रधानमंत्री चुनना आसान नहीं होगा, क्योंकि संसद में कोई भी दल स्पष्ट बहुमत में नहीं है. फ्रांस की जनता में भी बढ़ते कर्ज और राजनीतिक अस्थिरता को लेकर चिंता बढ़ रही है।

 

गंभीर संकटों से घिरा फ्रांस:

फ्रांस इस समय कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। बायरू की अल्पमत सरकार महज नौ महीनों में गिर गई और अब संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति मैक्रों को अपना इस्तीफ़ा सौंपना होगा। इस राजनीतिक अस्थिरता ने देश को नई अनिश्चितता और लंबे विधायी गतिरोध की ओर धकेल दिया है।

इसी बीच फ्रांस बजट संबंधी मुश्किलों, यूक्रेन और गाजा में जारी युद्धों और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बदलती नीतियों जैसी वैश्विक परिस्थितियों से भी जूझ रहा है।

 

आइए जानते है फ़्राँस्वा बायरू के बारे में:

फ़्राँस्वा बायरू फ्रांस की राजनीति के वरिष्ठ और प्रभावशाली नेता हैं।

  • वे यूरोपीय डेमोक्रेटिक पार्टी (EDP) और मूवमेंट डेमोक्रेट (MoDem) के अध्यक्ष हैं।
  • 2017 में उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापस लेकर मैक्रों का समर्थन किया और 2020 में उन्हें “योजना के लिए उच्चायुक्त” नियुक्त किया गया।
  • वे 2014 से पाउ के मेयर और पाउ-बेर्न पाइरेनीस समुदाय के अध्यक्ष हैं।
  • लंबे संसदीय अनुभव वाले बायरू यूरोपीय संसद और फ्रांसीसी राष्ट्रीय सभा के सदस्य रह चुके हैं। 2007 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें पहले चरण में 18.57% वोट मिले थे।
  • वे राष्ट्रीय शिक्षा मंत्री (1993–1997) और फ्रांसीसी लोकतंत्र संघ (UDF) के अध्यक्ष (1998–2007) भी रह चुके हैं।

 

निष्कर्ष:

फ्रांस में प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरू का विश्वास मत हारना और इस्तीफ़ा देना राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन गया है। महज़ नौ महीने में ही सरकार का गिरना सत्ता की अस्थिरता को दर्शाता है। अब सबकी नज़रें इस पर टिकी हैं कि मैक्रों किसे नया प्रधानमंत्री चुनते हैं और क्या वह राजनीतिक संकट से निकलने में सफल हो पाएंगे या नहीं।