एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने मंगलवार को हुए उपराष्ट्रपति चुनाव में स्पष्ट बहुमत हासिल कर जीत दर्ज की। चुनाव में कुल 767 सांसदों ने मतदान किया, जिनमें से 752 वोट वैध पाए गए, जबकि 15 वोट अमान्य घोषित कर दिए गए।
सीपी राधाकृष्णन को 452 प्रथम वरीयता के वोट मिले, वहीं विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के प्रत्याशी जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट प्राप्त हुए। और इस तरह राधाकृष्णन ने जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 मतों से पराजित किया। राज्यसभा महासचिव पी.सी. मोदी ने परिणाम की घोषणा करते हुए कहा कि सीपी राधाकृष्णन अब देश के नए उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं।
उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टियां व्हिप जारी नहीं कर सकतीं, इसी कारण यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इंडिया ब्लॉक के कई सांसदों ने क्रॉस वोटिंग का उपयोग करते हुए एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दी शुभकामनाएँ: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने बधाई संदेश में कहा कि सार्वजनिक जीवन में राधाकृष्णन के दशकों के अनुभव राष्ट्र की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देंगे। उन्होंने उनके सफल और प्रभावी कार्यकाल की कामना की।
प्रधानमंत्री मोदी ने दी बधाई-
राधाकृष्णन की जीत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी। पीएम मोदी ने कहा कि उनका जीवन सदैव समाज सेवा और गरीबों व वंचितों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित रहा है। उन्होंने विश्वास जताया की राधाकृष्णन एक उत्कृष्ट उपराष्ट्रपति साबित होंगे और संवैधानिक मूल्यों तथा संसदीय संवाद को नई दिशा देंगे।

पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ ने दी बधाई:
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सीपी राधाकृष्णन को पत्र लिखकर बधाई दी। उन्होंने लिखा
“आदरणीय राधाकृष्णन जी, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र और मानवता के छठे हिस्से के निवास भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में आपके निर्वाचन पर हार्दिक बधाई। यह पद हमारे राष्ट्र के प्रतिनिधियों के विश्वास और भरोसे को दर्शाता है। सार्वजनिक जीवन में आपके अनुभव के आधार पर मुझे विश्वास है कि आपके नेतृत्व में यह पद और अधिक गौरव प्राप्त करेगा। आपके सफल कार्यकाल और राष्ट्र सेवा के लिए मेरी शुभकामनाएँ।”
विपक्ष के 14 सांसद ने मतदान से बनाई थी दूरी:
उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के 14 सांसदों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। वाईएसआर कांग्रेस के 11 सांसदों ने एनडीए उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन को समर्थन देकर उनका आंकड़ा 438 तक पहुँचा दिया। इसके बाद न्यूट्रल सांसदों की संख्या 28 से घटकर 14 रह गई।
इनमें बीजेडी के 7, बीआरएस के 4, अकाली दल के 1 और दो निर्दलीय सांसद सरबजीत सिंह खालसा और अमृतपाल शामिल रहे, जिन्होंने वोटिंग में भाग नहीं लिया।
क्रॉस वोटिंग से बढ़ी राधाकृष्णन की ताकत
वाईएसआर कांग्रेस के समर्थन के बाद राधाकृष्णन को 438 वोट मिलने चाहिए थे, लेकिन उन्हें कुल 452 वोट हासिल हुए। यानी उन्हें 14 अतिरिक्त वोट मिले। माना जा रहा है कि यह अतिरिक्त वोट न्यूट्रल सांसदों और क्रॉस वोटिंग से आए है।
- क्रॉस-वोटिंग क्या है? क्रॉस-वोटिंग उस स्थिति को कहते हैं जब किसी पार्टी या गठबंधन के सांसद/विधायक अपनी पार्टी लाइन से हटकर विपक्षी या किसी अन्य दल के उम्मीदवार को वोट देते हैं।
निरस्त वोटों ने भी बदला समीकरण: कुल 15 वोट निरस्त पाए गए, जिनमें से 10 एनडीए और 5 ‘इंडिया’ ब्लॉक के थे। राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से एनडीए के पक्ष में कुल 14 अतिरिक्त वोट जुड़े, जिससे उनका अंतिम आंकड़ा 452 तक पहुँचा।
विपक्ष को हुआ नुकसान: क्रॉस वोटिंग और निरस्त वोटों की वजह से ‘इंडिया’ ब्लॉक को लगभग 15 वोटों का नुकसान हुआ। इनमें पाँच निरस्त वोट और दस क्रॉस वोट शामिल हैं। हालांकि, किन सांसदों ने क्रॉस वोटिंग की, यह साफ नहीं हो पाया है।
पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में जगदीप धनखड़ की शानदार जीत हुई थी:
पिछले उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ ने शानदार जीत हासिल की थी। अगस्त 2022 में हुए उस चुनाव में कुल 725 वोटों में से उन्हें 528 वोट मिले, यानी करीब 73% मतों के साथ वे विजयी हुए थे, हालाँकि जुलाई 2025 में धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए पद से इस्तीफा दे दिया।
आइए जानते है उपराष्ट्रपति चुनाव में क्यों जारी नहीं होता व्हिप?
उपराष्ट्रपति चुनाव में कोई भी राजनीतिक दल अपने सांसदों को व्हिप जारी नहीं कर सकता। इसका मतलब है कि सांसदों को मतदान करने या उपस्थित रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। चूंकि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव किसी भी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़े जाते, इसलिए इन पर व्हिप लागू नहीं होता।
वोटिंग की आज़ादी और क्रॉस वोटिंग:
- उपराष्ट्रपति चुनाव में सांसदों को पूरी आजादी से वोट करने का अधिकार होता है।
- अगर कोई बीजेपी सांसद चाहे तो विपक्षी उम्मीदवार को वोट कर सकता है और कोई विपक्षी सांसद एनडीए उम्मीदवार का समर्थन कर सकता है।
- इस स्थिति में कानूनी तौर पर सांसदों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।
- यही वजह है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों में अक्सर क्रॉस वोटिंग देखने को मिलती है।
व्हिप क्या होता है?
संसद में व्हिप किसी पार्टी द्वारा अपने सांसदों को दिया गया लिखित आदेश होता है, इसमें यह तय किया जाता है कि सांसदों को सदन में उपस्थित रहना है और मतदान के समय किसके पक्ष में वोट देना है।
व्हिप जारी होने के बाद सांसदों के लिए इसे मानना अनिवार्य होता है, प्रत्येक पार्टी एक वरिष्ठ सांसद को मुख्य सचेतक (Chief Whip) नियुक्त करती है, जो व्हिप जारी करता है।
व्हिप का पालन न करने पर परिणाम:
अगर कोई सांसद पार्टी व्हिप का उल्लंघन करता है, तो उसकी सदस्यता खतरे में पड़ सकती है, और दलबदल-रोधी कानून के तहत उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
हालांकि, अगर किसी पार्टी के कम से कम एक-तिहाई सदस्य व्हिप तोड़कर अलग वोट करते हैं, तो इसे नई पार्टी बनाना माना जाता है और उन पर दलबदल कानून लागू नहीं होता।
आइए जानते है, उपराष्ट्रपति के पद, चुनाव प्रक्रिया और सुविधाओ के बारे में-
भारत के संविधान के अनुच्छेद 63 में कहा गया है कि देश में एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 के अनुसार उपराष्ट्रपति राज्यसभा के एक्स-ऑफिशियो चेयरमैन होते हैं। वहीं अनुच्छेद 65 यह व्यवस्था करता है कि राष्ट्रपति की मृत्यु, इस्तीफा, हटाए जाने या अनुपस्थिति की स्थिति में उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बनते हैं और इस दौरान राष्ट्रपति के सभी अधिकार और विशेषाधिकार उनके पास रहते हैं। यही कारण है कि उपराष्ट्रपति का पद देश का दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद माना जाता है।
विस्तार से समझिए कैसे होता है, उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान
उपराष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 66 में वर्णित है। यह चुनाव अनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के तहत होता है, जो आम लोकसभा या विधानसभा चुनाव से पूरी तरह अलग है।
इस चुनाव में वोटिंग सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम से की जाती है। सरल शब्दों में कहें तो मतदाता को अपनी पसंद के आधार पर क्रमांकित वोट देना होता है। मतदाता बैलट पेपर पर मौजूद उम्मीदवारों में अपनी पहली पसंद को 1, दूसरी को 2 और इसी तरह अन्य उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता नंबर के अनुसार अंकित करता है।
यह पूरी प्रक्रिया गुप्त मतदान (Secret Ballot) के रूप में संपन्न होती है और वोट लिखने के लिए चुनाव आयोग द्वारा दिए गए विशेष पेन का उपयोग किया जाता है।
चुनाव में यदि कोई उम्मीदवार शुरुआती दौर में विजयी नहीं होता और रेस से बाहर हो जाता है, तो उस उम्मीदवार को पहली प्राथमिकता देने वाले वोटों की दूसरी पसंद को अन्य उम्मीदवारों में ट्रांसफर किया जाता है। जब किसी उम्मीदवार के पास पर्याप्त वोट (Quota) पहुंच जाते हैं, तो उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है।
अगर पहले राउंड में भी कोई उम्मीदवार पूर्ण कोटा नहीं हासिल करता, तो प्रक्रिया जारी रहती है। इस दौरान सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को बाहर कर दिया जाता है। उसके बैलट पेपर में दी गई प्राथमिकताओं को जांचा जाता है और अगली पसंद के अनुसार वोट अन्य उम्मीदवारों को ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक किसी एक उम्मीदवार को आवश्यक संख्या में वोट नहीं मिल जाते और उसे विजयी घोषित किया जा सके।
योग्यता के बारे में:
- भारतीय नागरिक होना चाहिए।
- न्यूनतम आयु: 35 वर्ष।
- राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता होनी चाहिए।
- किसी भी लाभ के पद (Office of Profit) पर कार्यरत नहीं होना चाहिए।
कार्यकाल और हटाए जाने की स्थिति:
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है, लेकिन नया उपराष्ट्रपति कार्यभार संभालने तक वे पद पर बने रहते हैं। वे राष्ट्रपति को इस्तीफ़ा देकर या संसद के प्रस्ताव द्वारा हटाए जाने की स्थिति में पद से मुक्त हो सकते हैं। इसके लिए राज्यसभा में बहुमत और लोकसभा की सहमति आवश्यक होती है।
चुनाव विवाद की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का अहम रोल :
संविधान का अनुच्छेद 71 यह प्रावधान करता है कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से जुड़ा कोई भी विवाद केवल सुप्रीम कोर्ट ही सुलझा सकता है। यदि सुप्रीम कोर्ट चुनाव को निरस्त भी कर दे, तो उस अवधि में उपराष्ट्रपति द्वारा किए गए कार्य मान्य माने जाते हैं।
वेतन, पेंशन और अन्य सुविधाएँ:
सुविधाओं की बात करें तो 2018 में उपराष्ट्रपति का वेतन बढ़ाकर 4 लाख रुपये प्रतिमाह कर दिया गया था। कार्यकाल पूरा होने के बाद उन्हें आजीवन पेंशन मिलती है, जो वेतन का 50 प्रतिशत होती है। उनकी मृत्यु के बाद उनके जीवनसाथी को आधी पेंशन मिलती है। इसके अलावा उपराष्ट्रपति को आजीवन सरकारी आवास, चिकित्सा सुविधा, यात्रा खर्च और निजी सचिव, अतिरिक्त निजी सचिव, पीए और दो सहायकों सहित सचिवालय स्टाफ की सुविधा भी उपलब्ध होती है।
उपराष्ट्रपति के अधिकार और कर्तव्य:
- उपराष्ट्रपति का एक मुख्य कर्तव्य राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में कार्य करना है।
- वे सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं और सदस्यों के अनुशासन या अयोग्यता जैसे मामलों में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार रखते हैं, विशेषकर एंटी-डिफेक्शन कानून के तहत।
- इसके अलावा, यदि किसी कारणवश राष्ट्रपति का पद खाली हो जाता है, चाहे वह मृत्यु, त्यागपत्र या किसी अन्य कारण से हो तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाते हैं और उस अवधि में राष्ट्रपति के सभी अधिकार और कर्तव्य निभाते हैं।
भारत के पहले उपराष्ट्रपति:
भारत के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे। उन्होंने 1952 से 1962 तक यह पद संभाला और इसके बाद राष्ट्रपति के रूप में भी देश की सेवा की।
आइए जान लेते है, सी. पी. राधाकृष्णन के बारे में-
चंद्रपुरम पोन्नुसामी राधाकृष्णन (जन्म: 4 मई 1957) एक वरिष्ठ भारतीय राजनेता हैं, जिन्हें एनडीए ने भारत के उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया है। वह वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं और इससे पहले झारखंड के राज्यपाल रह चुके हैं।
राधाकृष्णन दो बार कोयंबटूर से भाजपा सांसद चुने गए, तमिलनाडु भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे और पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे। उन्हें संगठनात्मक मजबूती और राजनीतिक अनुभव के लिए जाना जाता है।
उन्होंने 1998 और 1999 के चुनावों में बड़ी जीत दर्ज की और बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 16 वर्ष की उम्र से ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हैं और लगातार संगठन व राजनीति में सक्रिय रहे हैं।
उनकी उम्मीदवारी को एनडीए की ओर से रणनीतिक कदम माना जा रहा है, क्योंकि वह प्रशासनिक अनुभव, तमिलनाडु में राजनीतिक पकड़ और राष्ट्रीय पहचान, तीनों को साथ लाते हैं।
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