नेपाल में प्रधानमंत्री के इस्तीफे के बाद उत्पन्न अशांति के बीच, देशव्यापी कर्फ्यू और प्रतिबंधात्मक आदेश लागू कर दिए गए हैं। राजधानी और अन्य शहरों में सैनिकों ने सड़कों पर निगरानी बढ़ा दी है, ताकि हिंसा और तोड़फोड़ को रोका जा सके। नेपाली सेना ने शांति और सुरक्षा बनाए रखने का दावा करते हुए कहा कि वह देश में जारी अराजकता पर कड़ी नजर रखे हुए है।

नेपाल में हुआ हिंसक आंदोलन:
भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर सरकार के प्रतिबंध के खिलाफ सोमवार को Gen-Z आंदोलन में पुलिस कार्रवाई में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई थी। इन मौतों के बाद आंदोलन उग्र हो गया था और प्रधानमंत्री ओली को ने मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। हालात इतने बिगड़ गए थे कि प्रदर्शनकारियों ने संसद, राष्ट्रपति कार्यालय, प्रधानमंत्री आवास, सरकारी इमारतों, राजनीतिक दलों के कार्यालयों और वरिष्ठ नेताओं के घरों में आग लगा दी थी। फिलहाल, नेपाल में हालात को काबू करने के लिए सेना को आगे आना पड़ा है।
पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी की आगजनी में मौत: रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने नेताओं के घरों पर हमला किया, उन्हें आग के हवाले कर दिया और मारपीट की। इसी क्रम में नेपाल में हिंसक प्रदर्शनों के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री झालानाथ खनल की पत्नी राज्यलक्ष्मी चित्रकार की मौत हो गई।
सेना ने नागरिकों से की सहयोग की अपील:
नेपाल की सेना ने देश में घटनाओं को रोकने के लिए सभी नागरिकों से सहयोग की अपील की है। सेना ने कहा है कि शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए कर्फ्यू 10 सितंबर शाम 5 बजे तक पूरे देश में लागू रहेगा और इसके बाद कर्फ्यू अगले दिन सुबह 6 बजे तक जारी रहेगा। उन्होंने नागरिकों से आग्रह किया है कि वे इस दौरान घरों में रहें और सुरक्षा नियमों का पालन करें। आगे की स्थिति का आकलन करने के बाद नई जानकारी समय पर जनता के साथ साझा की जाएगी।
त्रिभुवन हवाई अड्डे और सिंह दरबार पर भी सेना का नियंत्रण:
नेपाल सेना ने त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को अपने नियंत्रण में ले लिया है। यह कदम मंगलवार शाम प्रदर्शनकारियों द्वारा हवाई अड्डे के परिसर में घुसने की कोशिश के बाद उठाया गया। विरोध प्रदर्शनों के चलते हवाई अड्डे पर उड़ान सेवाएं आंशिक रूप से निलंबित कर दी गई हैं। इसके साथ ही सेना ने सरकार के मुख्य सचिवालय भवन, सिंह दरबार, पर भी कब्जा कर लिया और प्रदर्शनकारियों को बाहर निकालकर नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।
विदेशी नागरिकों के लिए जारी की सुरक्षा एडवाइजरी:
नेपाल की सेना ने देश में मौजूद विदेशी नागरिकों से कहा है कि अगर वे फंसे हुए हैं तो तुरंत नजदीकी सुरक्षा एजेंसी या आसपास मौजूद सुरक्षा बलों से संपर्क करें ताकि उन्हें सुरक्षित बाहर निकाला जा सके। सेना ने सभी होटल मालिकों और टूर ऑपरेटरों से भी अपील की है कि वे समन्वय करें और विदेशी नागरिकों को मदद मुहैया कराएं।
नेपाल में Gen-Z का गुस्सा क्यों भड़का?
नेपाल में चल रहे विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई जेन-ज़ी यानी 1997 से 2012 के बीच जन्मे नौजवान कर रहे हैं। ये युवा सरकार के बढ़ते भ्रष्टाचार और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों से नाराज़ हैं। हाल ही में सरकार ने फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बैन कर दिया, जिससे युवाओं का गुस्सा और भड़क गया। उनका कहना है कि सरकार उनकी आवाज़ दबाना चाहती है और यह कदम लोकतंत्र के खिलाफ है। इसी वजह से हजारों युवा सड़कों पर उतर आए हैं और आंदोलन तेज हो गया है।
PM ओली को देना पड़ा त्यागपत्र:
नेपाल में देशभर में छात्रों और युवाओं के नेतृत्व में हो रहे हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने मंगलवार को इस्तीफ़ा दे दिया। सोमवार को शुरू हुआ यह आंदोलन सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध हटाने और भ्रष्टाचार खत्म करने की मांग को लेकर था। हालांकि सरकार ने आदेश वापस ले लिया, लेकिन नाराज़गी शांत नहीं हुई और मंगलवार को प्रदर्शन और भी तेज हो गए। बढ़ते दबाव और बिगड़ती हालात के बीच आखिरकार ओली को पद छोड़ना पड़ा।
PM मोदी ने की नेपालवासियों से शांति की अपील:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल में विरोध प्रदर्शन और 19 प्रदर्शनकारियों की मौत को अत्यंत दुखद बताया। उन्होंने कहा कि इसमें कई युवाओं की जान गई, जो अत्यंत पीड़ादायक है। मोदी ने नेपालवासियों से विनम्र अपील की है कि वे शांति और व्यवस्था बनाए रखें, क्योंकि नेपाल की स्थिरता, शांति और समृद्धि हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
नेपाल का राजनीतिक इतिहास:
नेपाल, हिमालय की गोद में बसा एक खूबसूरत और रणनीतिक देश है, लेकिन इसका राजनीतिक इतिहास हमेशा अस्थिर रहा है।
- राजतंत्र से लोकतंत्र तक: 18वीं शताब्दी में पृथ्वीनारायण शाह ने नेपाल को एकीकृत किया। 1951 में राणा शासन खत्म हुआ और लोकतंत्र की शुरुआत हुई, लेकिन सत्ता संघर्ष लगातार बने रहे।
- पंचायत और जनआंदोलन: 1960 में राजा महेंद्र ने बहुदलीय व्यवस्था खत्म कर ‘पंचायत व्यवस्था’ लागू की। 1990 के जनआंदोलन ने बहुदलीय लोकतंत्र वापस लाया।
- गृहयुद्ध और माओवादी विद्रोह: 1996-2006 तक माओवादी विद्रोह ने देश को संकट में डाला। 2001 में दरबार हत्याकांड ने राजनीतिक स्थिति और बिगाड़ दी।
- गणतंत्र की स्थापना: 2006 के जनआंदोलन के बाद राजतंत्र खत्म हुआ और 2008 में नेपाल गणतंत्र बना। 2015 में नया संघीय लोकतांत्रिक संविधान लागू हुआ।
- वर्तमान स्थिति: लगातार सरकारों का बदलना, सत्ता संघर्ष और क्षेत्रीय मुद्दों के कारण नेपाल आज भी राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है।
नेपाल में पिछले 17 साल की सरकारों का उतार-चढ़ाव:
- पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड (2008-09): लोकतंत्र की शुरुआत के बाद पहले निर्वाचित प्रधानमंत्री बने, लेकिन सेना प्रमुख विवाद और राष्ट्रपति से टकराव के कारण 9 महीने में ही इस्तीफा देना पड़ा।
- माधव कुमार नेपाल (2009-11): गठबंधन के सहारे सत्ता में आए और संविधान निर्माण का वादा किया, लेकिन राजनीतिक खींचतान और असहमति से सरकार गिर गई।
- झलनाथ खनाल (2011): UML नेता बने, मगर सिर्फ 6 महीने में ही आंतरिक मतभेद और संवैधानिक मुद्दों पर असफल होकर सत्ता से बाहर हो गए।
- बाबूराम भट्टराई (2011-13): पढ़े-लिखे और विजनरी माने गए, लेकिन संसद भंग करनी पड़ी और उम्मीदें अधूरी रह गईं।
- खिल राज रेग्मी (2013-14): न्यायपालिका से अंतरिम पीएम बनाए गए, जिनका काम सिर्फ चुनाव कराना था।
- सुशील कोइराला (2014-15): शांत स्वभाव वाले नेता रहे, 2015 के विनाशकारी भूकंप और नए संविधान के पारित होने से उनका कार्यकाल ऐतिहासिक बन गया।
- केपी शर्मा ओली (2015-16): पहली बार पीएम बने, भारत-नेपाल विवाद और चीन की ओर झुकाव दिखाया, लेकिन गठबंधन टूटने से 10 महीने में सरकार गिर गई।
- प्रचंड (2016-17): दूसरी बार प्रधानमंत्री बने और तय समझौते के तहत 9 महीने बाद पद छोड़ दिया।
- शेर बहादुर देउबा (2017-18): मुख्य रूप से चुनाव करवाने के लिए प्रधानमंत्री बने, लेकिन नीतिगत रूप से कमजोर साबित हुए।
- केपी शर्मा ओली (2018-21): दूसरी बार पीएम बने और शुरुआत में मजबूत दिखे, लेकिन गुटबाजी और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से सत्ता गंवा बैठे।
- केपी शर्मा ओली (2021): अल्पमत में बने, पर केवल 2 महीने टिक पाए और कोर्ट के आदेश से हटना पड़ा।
- देउबा (2021-22): फिर सत्ता में आए, लेकिन कोरोना संकट और गठबंधन की मजबूरियों ने बड़ा असर डाला।
- पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ (2022-24): तीसरी बार सत्ता में लौटे, पर बार-बार गठबंधन बदलने से संसद और जनता का भरोसा खो दिया।
- केपी शर्मा ओली (2024-25): चौथी बार प्रधानमंत्री बने और स्थिरता का दावा किया, लेकिन सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हालात बिगड़ गए। अंततः “Gen Z आंदोलन” की उग्रता के बीच 9 सितंबर 2025 को इस्तीफा देना पड़ा।
नेपाल में सरकारें बदलने के कारण:
- दल-बदल और गठबंधन की मजबूरी: नेपाल की संसद में किसी भी पार्टी को लंबे समय से स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया है। इसी कारण सरकारें हमेशा गठबंधन पर टिकी रहती हैं। लेकिन गठबंधन आपसी अविश्वास, छोटे-छोटे मतभेद और व्यक्तिगत हितों के कारण बार-बार टूट जाते हैं। यही अस्थिरता राजनीतिक स्थायित्व की सबसे बड़ी चुनौती रही है।
- नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा: नेपाल की राजनीति में बड़े नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा हमेशा आगे रही है। केपी शर्मा ओली, प्रचंड (पुष्पकमल दहल) और शेरबहादुर देउबा कई बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं। ये नेता कभी आपस में गठबंधन करते हैं तो कभी उसे तोड़ देते हैं। जनता से जुड़े असली मुद्दे पीछे रह जाते हैं और सत्ता की कुर्सी की राजनीति हावी हो जाती है।
- संवैधानिक असमंजस: नेपाल ने 2015 में नया संविधान लागू किया, जिसका उद्देश्य देश को स्थिर संघीय ढांचे में ढालना था। लेकिन संविधान की कई धाराएं अस्पष्ट रहीं, खासकर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अधिकारों को लेकर लगातार विवाद होता रहा। कई बार सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा और उसके फैसलों ने सरकारों को या तो गिरा दिया या बहाल कर दिया।
- बाहरी दबाव (भारत–चीन का प्रभाव): नेपाल की राजनीति हमेशा भारत और चीन के बीच संतुलन साधने की कोशिश में उलझी रही है। विदेशी दबाव और भू-राजनीतिक खिंचतान के कारण सरकारें कई बार कमजोर साबित हुईं। बाहरी प्रभाव ने आंतरिक राजनीति को और अस्थिर बना दिया।
निष्कर्ष:
नेपाल इस समय गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े के बाद हालात और तनावपूर्ण हो गए हैं, जिसे काबू में करने के लिए सेना को कर्फ्यू और सख्त पाबंदियां लागू करनी पड़ीं। सेना ने नागरिकों से संयम और सहयोग की अपील की है ताकि शांति और सुरक्षा बहाल की जा सके। आने वाले दिनों में स्थिति किस दिशा में जाएगी, यह नागरिकों की जिम्मेदारी और राजनीतिक दलों की समझदारी पर निर्भर करेगा।