भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने 12 सितंबर को हुई बोर्ड मीटिंग में कई महत्वपूर्ण सुधारों को मंजूरी दी। इसमें आईपीओ से जुड़े नियमों में ढील, न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (MPS) को पूरा करने के लिए अतिरिक्त समय, और विदेशी निवेशकों के लिए निवेश प्रक्रिया को सरल बनाना शामिल है।
इसके अलावा, REITs और InvITs को इक्विटी इंस्ट्रूमेंट्स का दर्जा देकर सेबी ने इन निवेश साधनों को और आकर्षक बना दिया है। साथ ही, अब बड़ी कंपनियों को भी छोटे साइज के आईपीओ लाने की सुविधा होगी, जिससे वे आसानी से बाजार से पूंजी जुटा सकेंगी।

सेबी की बोर्ड बैठक में लिए गए अहम फैसले:
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) की शुक्रवार को हुई बैठक में आईपीओ और MPS नियमों में बड़े बदलाव किए गए।
- अब 50,000 करोड़ से 1 लाख करोड़ रुपये के पूंजीकरण वाली कंपनियों को आईपीओ में 8% इक्विटी जारी करनी होगी, जबकि पहले यह सीमा 10% थी। साथ ही, न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (MPS) का 25% लक्ष्य पाने की अवधि तीन साल से बढ़ाकर पांच साल कर दी गई है।
- एक लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य वाली कंपनियों के लिए अनिवार्य प्रस्ताव 75% इक्विटी निर्गम और 5 लाख करोड़ रुपये से ऊपर के मूल्यांकन पर यह सीमा 2.5% तय की गई है। इन बड़ी कंपनियों को एमपीएस लक्ष्य हासिल करने के लिए अब 10 साल का समय मिलेगा।
एंकर निवेशकों के लिए नए नियम: सेबी ने एंकर निवेशकों को शेयर आवंटन के ढांचे में बदलाव किए हैं।
- अब 250 करोड़ रुपये से अधिक के एंकर हिस्से के लिए निवेशकों की संख्या 10 से बढ़ाकर 15 कर दी गई है।
- कुल एंकर निवेश के लिए 40% हिस्सा आरक्षित रहेगा। इसमें से एक-तिहाई घरेलू म्यूचुअल फंड्स को मिलेगा, जबकि शेष हिस्सा बीमा कंपनियों और पेंशन कोष के लिए तय किया गया है।
- सेबी चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने बताया कि यदि बीमा और पेंशन फंड के लिए आरक्षित 7% हिस्सा नहीं भरा जाता, तो इसे म्यूचुअल फंड्स को आवंटित कर दिया जाएगा।
विदेशी निवेशकों के लिए नई सुविधा: ‘स्वागत-एफआई’
भारतीय पूंजी बाज़ार को वैश्विक निवेशकों के लिए और आकर्षक बनाने की दिशा में सेबी ने ‘स्वागत-एफआई’ नामक एकल खिड़की प्रणाली शुरू करने का फैसला किया है। इस ढांचे का उद्देश्य विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) के लिए पंजीकरण और निवेश प्रक्रियाओं को सरल करना है।
- नई व्यवस्था के तहत, कम जोखिम वाले विदेशी निवेशकों को कई बार अनुपालन और दस्तावेज़ जमा करने की ज़रूरत नहीं होगी। इसके बजाय उन्हें एक एकीकृत पंजीकरण प्रक्रिया उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे निवेश की शुरुआत अधिक तेज़ और आसान हो सकेगी।
- इसके अलावा, पंजीकरण की वैधता अवधि बढ़ाकर 10 साल कर दी गई है। साथ ही, निवेशकों को अब एक ही डीमैट खाते में विभिन्न प्रकार के निवेश रखने का विकल्प भी मिलेगा।
इन फैसलों का मकसद बड़ी कंपनियों को छोटे आकार के आईपीओ लाने और सार्वजनिक हिस्सेदारी को धीरे-धीरे बढ़ाने की सुविधा देना है।
इस लेख में प्रयुक्त टर्मिनोलॉजी के बारे में जानिए विस्तार से
- REITs (Real Estate Investment Trusts)
REITs ऐसी कंपनियाँ होती हैं जो बड़े पैमाने पर आय-उत्पन्न करने वाली रियल एस्टेट संपत्तियों (जैसे मॉल, ऑफिस, अपार्टमेंट, होटल आदि) का स्वामित्व और संचालन करती हैं।
- कैसे काम करती हैं: निवेशक इसमें शेयर खरीदकर अप्रत्यक्ष रूप से रियल एस्टेट में निवेश करते हैं और रेंट/लाभांश के रूप में आय पाते हैं।
- महत्त्व:
- छोटे निवेशक भी बड़ी रियल एस्टेट परियोजनाओं में भाग ले सकते हैं।
- रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता और निवेश को बढ़ावा मिलता है।
- InvITs (Infrastructure Investment Trusts)
InvITs ऐसी निवेश ट्रस्ट हैं जो इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स (जैसे हाईवे, पावर ट्रांसमिशन लाइनें, टोल रोड आदि) में निवेश के लिए बनाई जाती हैं।
- कैसे काम करती हैं: इनकी यूनिटें शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध होती हैं और इनमें इक्विटी व डेब्ट दोनों का मिश्रण होता है।
- महत्त्व:
- भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निजी और संस्थागत निवेश को बढ़ावा देना।
- निवेशकों को स्थिर नकदी प्रवाह और लंबी अवधि के लाभ देना।
- न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (MPS – Minimum Public Shareholding)
यह सेबी द्वारा निर्धारित नियम है, जिसके तहत भारत में सूचीबद्ध हर कंपनी को अपनी कम से कम 25% हिस्सेदारी सार्वजनिक शेयरधारकों (गैर-प्रवर्तकों) के पास रखनी अनिवार्य है।
- नियम:
- यदि किसी कंपनी में प्रमोटरों की हिस्सेदारी 75% से अधिक है, तो उन्हें अतिरिक्त हिस्सेदारी जनता को बेचना अनिवार्य है।
- यह हिस्सा राइट्स इश्यू, शेयर बिक्री या अन्य तरीकों से घटाया जा सकता है।
- महत्त्व:
- पूंजी बाजार में पारदर्शिता और लिक्विडिटी (तरलता) बनाए रखना।
- निवेशकों को कंपनियों में हिस्सेदारी और लाभ का अवसर देना।
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के बारे मे:
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) एक वैधानिक नियामक संस्था है, जिसकी स्थापना भारत सरकार ने 12 अप्रैल 1992 को की थी। इसका मुख्य उद्देश्य निवेशकों के हितों की रक्षा करना, प्रतिभूति बाजार का विकास करना और उसे नियंत्रित करना है।
SEBI पूंजी बाजार में निष्पक्षता, पारदर्शिता और कार्यकुशलता बनाए रखने के लिए कार्य करता है। यह संस्था क्वासी-विधायी, क्वासी-न्यायिक और क्वासी-कार्यकारी शक्तियों से लैस है, जिससे यह नियम बना सकती है, विवादों का निपटारा कर सकती है और कानून लागू कर सकती है।
- मुख्यालय: मुख्यालय मुंबई में स्थित है और इसके क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, चेन्नई, दिल्ली और कोलकाता सहित अन्य प्रमुख शहरों में हैं।
मुख्य पहलू:
- वैधानिक संस्था: SEBI Act, 1992 के तहत गठित, जिसे पूंजी बाजार को नियंत्रित करने के पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं।
- निवेशक संरक्षण: निवेशकों के हितों की रक्षा करना और बाजार में पारदर्शिता सुनिश्चित करना इसका प्राथमिक उद्देश्य है।
- बाजार विकास: प्रतिभूति बाजार की दक्षता और वृद्धि के लिए मानक तय करना और सुधारों को बढ़ावा देना।
- नियामक शक्तियाँ: नियम बनाने, विवादों पर निर्णय देने और नियम लागू करने की क्षमता रखता है।
- त्रि-कार्यात्मक भूमिका:
- विधायी (Legislative): नियम और विनियम बनाना।
- न्यायिक (Judicial): विवादों का निपटारा करना।
- कार्यकारी (Executive): जांच करना और दंड देना।
- नियमन का दायरा: स्टॉक एक्सचेंज, ब्रोकर, म्यूचुअल फंड, सूचीबद्ध कंपनियाँ और अन्य बाजार मध्यस्थ।