सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून से जुड़ी याचिकाओं पर अहम फैसला सुनाते हुए साफ किया है कि पूरे कानून पर रोक नहीं लगाई जाएगी। अदालत ने हालांकि, इसमें किए गए तीन बड़े संशोधनों पर अंतिम निर्णय आने तक रोक लगाने का आदेश दिया है। इनमें सबसे प्रमुख बदलाव वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति से जुड़ा है।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि केंद्रीय वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या अधिकतम चार और राज्य वक्फ बोर्ड में तीन से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। साथ ही सरकारों को यह सलाह दी गई कि बोर्ड में शामिल किए जाने वाले सरकारी सदस्य यथासंभव मुस्लिम समुदाय से हों।
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने मई में लगातार तीन दिन सुनवाई की थी और 22 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसके बाद अब यह महत्वपूर्ण निर्णय आया है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और उसके मुख्य बिंदु:
वक्फ (संशोधन) अधिनियम से जुड़े मामलों पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट नेएक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया। यह आदेश तीन अहम मुद्दों पर केंद्रित रहा।
- पहला सवाल यह था कि क्या सुनवाई पूरी होने तक वक्फ की संपत्तियों को डी-नोटिफाई किया जा सकता है।
- दूसरा मुद्दा वक्फ बोर्ड की संरचना से जुड़ा था, जिसमें कहा गया था कि पदेन सदस्यों को छोड़कर सभी सदस्य मुस्लिम ही होने चाहिए।
- तीसरा सवाल जिला कलेक्टर की जांच से संबंधित था कि यदि कलेक्टर किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति न माने तो क्या वह वक्फ संपत्ति मानी जाएगी या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी बिंदुओं पर साफ किया कि फिलहाल कानून को रोके जाने की कोई वजह नहीं है और आगे की विस्तृत सुनवाई में इन मुद्दों पर गहराई से विचार किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोके गए प्रावधान:
- धारा 3R: पाँच वर्ष तक मुस्लिम धर्म पालन की शर्त:
सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रावधान पर रोक लगाई, जिसमें यह शर्त रखी गई थी कि कोई व्यक्ति तभी वक्फ कर सकता है जब वह कम से कम पाँच साल से मुस्लिम धर्म का पालन कर रहा हो। न्यायालय ने कहा कि इस तरह की शर्त को परखने का कोई ठोस तंत्र मौजूद नहीं है, जिससे यह नियम मनमाने ढंग से लागू किया जा सकता है। इसलिए, जब तक राज्य सरकारें स्पष्ट नियम नहीं बनातीं, तब तक यह धारा लागू नहीं होगी।
- धारा 3C(2): कलेक्टर द्वारा वक्फ संपत्ति का निर्धारण
एक और अहम प्रावधान जिस पर कोर्ट ने रोक लगाई, वह धारा 3C(2) से जुड़ा है। इसमें कहा गया था कि जब तक कलेक्टर (नामित अधिकारी) अपनी रिपोर्ट न दे, तब तक किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। यदि कलेक्टर उसे सरकारी संपत्ति घोषित कर देता, तो राजस्व अभिलेखों (Revenue Records) में तुरंत संशोधन हो जाता। अदालत ने इसे संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ बताया, क्योंकि संपत्ति के अधिकार का फैसला कार्यपालिका (Executive) को देना सत्ता के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि जब तक अंतिम फैसला नहीं हो जाता, तब तक संपत्ति के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे।
- धारा 3C और धारा 83: वक्फ संपत्ति के स्वामित्व और कब्जे का सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक वक्फ संपत्ति के स्वामित्व का अंतिम निर्णय धारा 3C और आगे की कार्यवाही धारा 83 के तहत पूरी नहीं हो जाती, तब तक न तो वक्फ बोर्ड को उसकी संपत्ति से बेदखल किया जाएगा और न ही राजस्व अभिलेखों या वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में बदलाव होगा। साथ ही, कोर्ट ने यह आदेश भी दिया कि धारा 3C के तहत जाँच शुरू होने से लेकर धारा 83 के तहत अंतिम निर्णय आने तक, किसी भी संपत्ति पर तीसरे पक्ष के अधिकार (Third Party Rights) नहीं बनाए जा सकते। इससे यह सुनिश्चित होगा कि विवादित संपत्तियाँ प्रक्रिया पूरी होने तक सुरक्षित रहें।
- धारा 9 और धारा 14: वक्फ निकायों में गैर-मुसलमानों की भागीदारी
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ परिषदों और बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या पर भी निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि केंद्रीय वक्फ परिषद (Central Waqf Council) में कुल 20 सदस्यों में से 4 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते। इसी तरह, राज्य वक्फ बोर्डों (State Waqf Boards) में 11 में से 3 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल नहीं किए जा सकते। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि वक्फ संस्थाओं का धार्मिक चरित्र बना रहे, साथ ही सीमित स्तर पर अन्य वर्गों की भागीदारी भी बनी रहे।
आइए जानते है, वक्फ क्या है?
‘वक्फ’ शब्द अरबी भाषा से लिया गया है, जिसका मूल ‘वकुफ़ा’ है और इसका अर्थ होता है- ठहरना या रोकना। इसी से बना शब्द वक्फ, जिसका भावार्थ है- किसी संपत्ति को संरक्षित करना या समाज के कल्याण हेतु स्थायी रूप से समर्पित कर देना।
इस्लाम में वक्फ का अर्थ उस संपत्ति से है जिसे जन-कल्याण के उद्देश्य से दान कर दिया जाए। यह दान चल संपत्ति जैसे पंखा, कूलर, साइकिल या पैसा हो सकता है और अचल संपत्ति जैसे मकान, खेत, दुकान या ज़मीन भी। शर्त बस इतनी होती है कि यह दान केवल और केवल समाजहित या धार्मिक कार्यों के लिए दिया गया हो।
दान देने वाले व्यक्ति को ‘वाकिफ’ कहा जाता है और वह यह भी तय कर सकता है कि उसकी संपत्ति या उससे होने वाली आमदनी का उपयोग किस विशेष कार्य के लिए होगा। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति वक्फ़ करते समय यह शर्त रखता है कि उसकी आमदनी केवल अनाथ बच्चों पर खर्च हो, तो ऐसा ही करना अनिवार्य होगा।
वक्फ का कानूनी स्वरूप:
इस्लामी क़ानून (शरीयत) के अनुसार वक्फ़ को एक धर्मार्थ ट्रस्ट या अविभाज्य बंदोबस्ती के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसे अंग्रेज़ी में Mortmain property भी कहा जाता है। इसमें दान की गई संपत्ति को दोबारा वापस लेने का कोई अधिकार दानदाता या उसके वारिसों के पास नहीं होता। वक्फ संपत्ति गैर-हस्तांतरणीय (Non-transferable) होती है- न इसे बेचा जा सकता है, न गिरवी रखा जा सकता है और न ही किसी और को दान किया जा सकता है।
भारत में वक्फ की शुरुआत:
भारत में वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत के दौर से शुरू मानी जाती है।
- मुगल काल (1526–1857): मुगलों के शासनकाल में कई अमीर, नवाबों और राजाओं ने मस्जिदों, मदरसों, दरगाहों व सरायों आदि के निर्माण हेतु जमीनें वक्फ की थीं। ये संपत्तियां आमतौर पर धार्मिक या परोपकारी गतिविधियों के लिए होती थीं।
- ब्रिटिश काल (1858–1947): ब्रिटिश शासन में वक्फ संपत्तियों को लेकर कई कानूनी विवाद उत्पन्न हुए। इन्हें स्पष्ट करने के लिए 1913 में Mohammadan Waqf Validating Act पास किया गया, जिससे वक्फ को कानूनी मान्यता मिली।
- स्वतंत्र भारत में वक्फ व्यवस्था: भारत के संविधान में धार्मिक संस्थाओं को संरक्षण दिया गया है। इसी के तहत वक्फ संपत्तियों को कानून के दायरे में लाया गया।
आज़ादी से पहले मुस्लिम वक्फ मान्यता अधिनियम 1913 का उल्लेख मिलता है।
वक्फ को लेकर मुख्य कानून:
- 1954: जवाहरलाल नेहरू सरकार ने वक्फ अधिनियम पारित किया। इसके बाद वक्फ का केंद्रीकरण हुआ। अधिनियम के तहत, सरकार ने 1964 में एक केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना की।
- 1995: प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्डों के गठन की अनुमति देने के लिए कानून में संशोधन किया गया। इसके साथ ही केंद्रीय वक्फ परिषद को सरकार के समक्ष वक्फ से संबंधित मामलों पर सलाहकार भूमिका में कार्य करने की अनुमति दी गई।
- 2013: UPA सरकार ने 1995 के मूल वक्फ एक्ट में बदलाव कर वक्फ बोर्ड की शक्तियाँ बढ़ाई।
वक्फ संपत्तियों का दायरा:
आज वक्फ़ संपत्तियाँ भारत में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं। अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने 2022 में लोकसभा में जानकारी दी थी कि वक्फ बोर्ड के पास लगभग 8,65,644 एकड़ अचल संपत्ति है, जिनकी अनुमानित कीमत करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये आँकी जाती है। संपत्तियों के मामले में वक्फ़, सेना और रेलवे के बाद भारत का तीसरा सबसे बड़ा संस्थान है। इन संपत्तियों की देखरेख और प्रबंधन का कार्य राज्य या केंद्र स्तर पर बने वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है।
अप्रैल में बना था कानून:
वक्फ (संशोधन) बिल 2025 को बजट सत्र के दौरान दोनों सदनों में पास किया गया था। लोकसभा में 288 और राज्यसभा में 232 सांसदों ने इस बिल पर मुहर लगाई थी। इसके बाद 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने भी इस कानून को मंजूरी दे दी थी।
इस कानून को रद करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। अदालत ने कानून रद करने से साफ इनकार करते हुए कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर विवाद:
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के पास होने के बाद कई मुस्लिम संगठनों ने आपत्तियाँ और चिंताएँ जताई हैं। उनका कहना है कि इस संशोधन से धार्मिक स्वायत्तता और समुदाय की पारंपरिक भूमिकाओं पर असर पड़ेगा।
- धार्मिक स्वायत्तता का उल्लंघन: संगठनों का तर्क है कि वक्फ संपत्तियों और बोर्ड का प्रबंधन धार्मिक न्याय-क्षेत्र का विषय है। नए प्रावधानों से सरकार का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा।
- संवैधानिक अधिकारों पर असर: उनका मानना है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार देता है।
- परामर्श की कमी: संगठनों का कहना है कि अधिनियम बनाने से पहले मुसलमानों और वक्फ निकायों की राय को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया।
- नई शर्तें और अधिकार: अधिनियम में वक्फ की घोषणा करने वाले व्यक्ति के लिए कम से कम पाँच वर्ष तक इस्लाम धर्म का पालन करने की शर्त रखी गई है, जिसे धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध बताया जा रहा है।
- राजस्व अधिकारियों को अधिकार: विवादित वक्फ संपत्तियों के मामलों में अब कलेक्टर और राज्य-राजस्व अधिकारियों को शक्तियाँ देने का प्रावधान है, जिससे वक्फ बोर्ड की भूमिका कमजोर पड़ सकती है।
- धार्मिक भेदभाव का आरोप: मुस्लिम संगठनों का कहना है कि ये प्रावधान केवल वक्फ़ पर लागू होते हैं, जबकि अन्य धार्मिक और चैरिटेबल संस्थाओं पर ऐसी बाध्यता नहीं है।
वक्फ संशोधन अधिनियम: अब तक की पूरी टाइमलाइन:
3 अप्रैल 2025: लोकसभा ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी दी।
4 अप्रैल 2025: राज्यसभा से भी विधेयक पारित हो गया।
5 अप्रैल 2025: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विधेयक पर हस्ताक्षर किए और यह कानून बन गया।
अप्रैल 2025:
- आप नेता अमानतुल्लाह खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की।
- असदुद्दीन ओवैसी, AIMPLB और कई अन्य याचिकाकर्ताओं ने भी कानून को चुनौती दी।
17 अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए स्वीकार किया।
- अदालत ने मामले को “वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025” नाम दिया।
- केंद्र ने आश्वासन दिया कि ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ और ‘दस्तावेज द्वारा वक्फ’ संपत्तियों को तब तक डिनोटिफाई नहीं किया जाएगा।
25 अप्रैल 2025: केंद्र सरकार ने कानून पर रोक लगाने का विरोध करते हुए याचिकाओं को खारिज करने की मांग की।
29 अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट ने नई दाखिल याचिकाओं पर विचार से इनकार किया।
5 मई 2025: तत्कालीन CJI संजीव खन्ना ने कहा कि इस मामले की सुनवाई उनके उत्तराधिकारी जस्टिस बी.आर. गवई करेंगे।
15 मई 2025: CJI गवई ने अंतरिम राहत पर सुनवाई की तारीख 20 मई तय की।
20–22 मई 2025: तीन दिनों तक सुनवाई हुई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।
15 सितंबर 2025: CJI गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अंतरिम आदेश पारित किया।
- तीन प्रमुख प्रावधानों (गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति, यूजर डिनोटिफिकेशन और कलेक्टर की शक्तियों) पर रोक लगाई गई।
- हालांकि अदालत ने कानून पर पूरी तरह से रोक लगाने से इनकार किया और कहा कि फिलहाल संवैधानिक वैधता की धारणा इसके पक्ष में है।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर रिजिजू का बयान:
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरेन रिजिजू ने इस मामले पर कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करता हूं।
उन्होंने कहा कि यह देश के लोकतंत्र और मुस्लिम समुदाय के लिए सकारात्मक है। रिजिजू ने आगे कहा कि कोर्ट ने जो भी तय किया है वह अच्छे संकेत है।
कांग्रेस पार्टी का पक्ष:
इस मामले पर कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने टिप्पणी की। उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा कि देश की सर्वोच्च अदालत के अंतरिम आदेश ने देश के अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की है, उन्होंने कहा कि यह वहीं मुद्दा है, जिसको लेकर पूरा विपक्ष एकजुट होकर केंद्र सरकार का विरोध कर रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी बिना किसी भेद-भेदभाव के संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ी है ।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के ये आदेश वक्फ संपत्तियों और उनके प्रबंधन से जुड़े लंबे समय से चले आ रहे विवादों में संतुलन बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। एक ओर अदालत ने मनमानी रोकने के लिए कलेक्टर की शक्तियों को सीमित किया, वहीं दूसरी ओर धार्मिक स्वतंत्रता और भेदभाव से जुड़े प्रावधानों को निरस्त करके संविधान की मूल भावना को मज़बूती दी।