भारत को मक्का बेचने के लिए इतना बेचैन क्यों है अमेरिका और क्यों भारत में तेजी से बढ़ रही है मक्का की मांग?

अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने रविवार को भारत की व्यापार नीतियों की तीखी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि नई दिल्ली वैश्विक वाणिज्य से लाभ तो उठाता है, लेकिन वह भारत के बाजार तक पहुंच को सीमित करता है।

उनका कहना है कि जब भारत यह दावा करता है कि उसके पास 1.4 अरब की आबादी वाला विशाल उपभोक्ता वर्ग है, तो उसे अमेरिकी कृषि उत्पादों, विशेषकर मक्का, के आयात के प्रति अधिक उदार होना चाहिए। उन्होंने यह भी प्रश्न उठाया कि इतनी बड़ी जनसंख्या वाला देश गुणवत्तापूर्ण अमेरिकी मक्का क्यों नहीं खरीदता।

America so anxious to sell maize to India

भारत की संरक्षणवादी नीतियों पर अमेरिकी वाणिज्य मंत्री की नाराजगी:

 

अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने भारत की संरक्षणवादी नीतियों पर असंतोष व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि भारत भले ही स्वयं को एक मुक्त-बाजार लोकतंत्र और उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में प्रस्तुत करता हो, लेकिन व्यवहार में वह विदेशी वस्तुओं, विशेषकर अमेरिकी उत्पादों, के लिए अपने बाजार में अवरोध खड़ा करता है। लुटनिक के अनुसार, “यह निष्पक्षता का प्रश्न है। अमेरिका भारत से बिना किसी प्रतिबंध के सामान खरीदता है, किंतु जब अमेरिका अपने उत्पाद भारत को बेचने का प्रयास करता है, तो भारत व्यापारिक दीवारें खड़ी कर देता है।”

 

अमेरिकी मक्‍के को लेकर ट्रंप की नाराजगी:

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के आयात नीति को लेकर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि जब भारत म्यांमार, यूक्रेन और अन्य देशों से मक्‍का खरीद सकता है, तो फिर अमेरिका से आयात करने में परहेज़ क्यों करता है।

 

अमेरिका की बेचैनी क्यों?

अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा मक्का उत्पादक और निर्यातक है। 2024-25 में उसका उत्पादन 377.63 मिलियन टन और निर्यात 71.70 मिलियन टन रहा। 2025-26 में इन आँकड़ों के और बढ़ने की संभावना है। पहले चीन अमेरिका का सबसे बड़ा खरीदार था, लेकिन व्यापार युद्ध के बाद चीन ने आयात घटा दिया। 2022 में चीन ने अमेरिका से 5.21 अरब डॉलर का मक्का खरीदा था, जो 2024 में घटकर केवल 331 मिलियन डॉलर रह गया।

इस गिरावट ने अमेरिकी निर्यातकों के लिए नई चुनौतियाँ खड़ी कर दीं। अब अमेरिका को नए बाज़ारों की सख्त तलाश है और भारत उसके लिए सबसे बड़ा अवसर बनकर उभर रहा है।

 

भारत म्यांमार से मगाता है, सबसे ज्यादा मक्‍का:

व्यापार मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2024 में म्यांमार से 1 से 2 लाख टन मक्‍का खरीदा था, जबकि 2025 में अगस्त तक यह मात्रा बढ़कर 1.3 लाख टन हो गई। म्यांमार से आयात टैक्‍स फ्री है, जिससे यह भारत के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी साबित होता है। इसके अलावा, भारत ने जनवरी से अगस्त 2025 के बीच यूक्रेन से भी लगभग 4 लाख टन मक्‍का खरीदा, जो आयात शुल्क से मुक्त था।

 

  • अन्य देशों से भी आयात: भारत के कुल 10 लाख टन मक्‍का आयात में थाईलैंड और अर्जेंटीना जैसे देशों से भी खरीद शामिल रही। वर्तमान में भारत को 60 से 70 लाख टन मक्‍के की आवश्यकता है, जिसे वह विभिन्न स्रोतों से पूरा करने की कोशिश कर रहा है।

 

भारत में मक्‍के का उत्‍पादन और उपयोग:

उत्पादन के दृष्टिकोण से भारत दुनिया का छठा सबसे बड़ा मक्‍का उत्पादक देश है। यहां इसका उपयोग केवल भोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि पशु आहार, एथनॉल उत्पादन और पॉल्ट्री उद्योग में भी व्यापक रूप से किया जाता है। देश में वर्तमान में लगभग 4 करोड़ टन मक्‍का पैदा होता है और इसे वर्ष 2047 तक बढ़ाकर 8.6 करोड़ टन तक पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

 

उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, बिहार, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्य मक्‍का उत्पादन के प्रमुख केंद्र हैं।

 

भारत में मक्का की बढ़ती मांग:

भारत में मक्का की मांग लगातार बढ़ रही है क्योंकि दूध, अंडे, मछली और मांस जैसी प्रोटीन आधारित वस्तुओं की खपत तेजी से बढ़ रही है। अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) के अनुमान के अनुसार, 2022-23 में भारत की मक्का खपत 34.7 मिलियन टन थी, जो 2040 तक बढ़कर 98 मिलियन टन और 2050 तक 200 मिलियन टन तक पहुँच सकती है (तेज आय वृद्धि की स्थिति में)। इसका मतलब है कि आने वाले दशकों में भारत वैश्विक मक्का बाजार में एक अहम भूमिका निभा सकता है।

 

भारत को मक्का आयात क्यों करना पड़ रहा है, क्या कारण है ?

भारत को मक्का का आयात इसलिए करना पड़ा क्योंकि सरकार ने पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण (E20) को बढ़ा दिया था। 2023 में महाराष्ट्र जैसे राज्यों में सूखे जैसी स्थिति ने उत्पादन पर असर डाला। मक्का, जो पहले पोल्ट्री और स्टार्च उद्योगों का प्रमुख स्रोत था, बड़े पैमाने पर डिस्टिलरी में भेजा जाने लगा।

 

भारत पेट्रोल में इथेनॉल क्यों मिला रहा है?

  • तेल आयात बिल कम करने के लिए: इथेनॉल से आयातित कच्चे तेल पर निर्भरता घटेगी।
  • विदेशी मुद्रा बचत: कम आयात से विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
  • प्रदूषण नियंत्रण: मिश्रित ईंधन से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी।
  • लक्ष्य प्राप्ति: भारत ने 2025 तक E20 का लक्ष्य तय किया था, लेकिन इसे 5 साल पहले ही हासिल कर लिया।
  • इतिहास: इथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम जनवरी 2003 में शुरू हुआ, पर 2014 के बाद तेजी से आगे बढ़ा।

उत्पादन वृद्धि: 2014 में 38 करोड़ लीटर से जून 2025 तक 661.1 करोड़ लीटर उत्पादन पहुँचा।

 

अमेरिका से भारत मक्‍का क्यों नहीं खरीदता?

भारत कई कारणों से अमेरिका से मक्‍का नहीं खरीदता। इसके पीछे जेनेटिकली मोडिफाइड बीजों की समस्या, ऊंचे टैरिफ, लॉजिस्टिक लागत और नीतिगत प्राथमिकताएं शामिल हैं।

  1. जेनेटिकली मोडिफाइड मक्‍का: अमेरिका में लगभग 90% मक्‍का जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) है। भारत में इंसानों और पशुओं दोनों के लिए GM मक्‍के के इस्तेमाल पर सख्त पाबंदी है। यही सबसे बड़ा कारण है कि भारत अमेरिकी मक्‍का खरीदने से बचता है।
  2. घरेलू उत्पादन और मांग: भारत में मक्‍के की मांग और उत्पादन लगभग बराबर है। थोड़ी बहुत कमी होने पर भारत टैरिफ-फ्री देशों से गैर-GM मक्‍का आयात कर लेता है।
  3. किसानों की सुरक्षा: भारत की नीति घरेलू किसानों को प्राथमिकता देने और उन्हें आयात पर निर्भरता से बचाने की है। यही कारण है कि अमेरिकी मक्‍के को अनुमति नहीं दी जाती।
  4. ऊंचा टैरिफ और लागत: अमेरिकी मक्‍के पर भारत में 50% तक टैरिफ लगता है। वहीं, भारत यूक्रेन और म्यांमार जैसे देशों से टैरिफ-फ्री मक्‍का आयात करता है। अमेरिका से मंगाने पर लॉजिस्टिक्स लागत भी ज्यादा होती है, जिससे यह घरेलू बाजार में महंगा पड़ता है।

 

जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) मक्का क्या है?

जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) मक्का वह मक्का है जिसके डीएनए (जीनोम) में वैज्ञानिक तरीके से बदलाव किए जाते हैं ताकि उसमें विशेष गुण विकसित हो सकें। इसे मुख्य रूप से कीटों और शाकनाशियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तैयार किया जाता है, जिससे खेती में कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों के उपयोग में कमी आती है। साथ ही, इसमें सुधारित पोषण मूल्य भी हो सकता है। हालाँकि, इसके संभावित स्वास्थ्य प्रभावों और पर्यावरणीय असर को लेकर विवाद बने हुए हैं।

 

जीएम मक्का क्यों विकसित किया जाता है?

  • कीट और रोग प्रतिरोधक क्षमता: ऐसे जीन डाले जाते हैं जो मक्का को विशेष कीटों के प्रति प्रतिरोधी बनाते हैं, जिससे कीटनाशकों का उपयोग कम हो जाता है।
  • खरपतवारनाशी सहिष्णुता: जीएम मक्का कुछ खास खरपतवारनाशियों के प्रति सहनशील बनाया जाता है, जिससे खेतों की जुताई की आवश्यकता कम होती है।

 

जीएम फसलों से जुड़ी चिंताएँ:

  • जैव विविधता को खतरा: प्राकृतिक खेती और विविध प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा।
  • मिट्टी का विषैलापन: जीएम फसलें मिट्टी और भू-जल स्तर को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
  • पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जोखिम: इनके संभावित दुष्प्रभावों को लेकर वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों में चिंता।
  • किसानों की लागत: हर साल नए बीज खरीदने की मजबूरी से लागत बढ़ना।
  • बहुराष्ट्रीय कंपनियों का एकाधिकार: बीजों पर नियंत्रण से किसानों पर आर्थिक बोझ।

 

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता फिर से शुरू:

भारत और अमेरिका के बीच अटकी हुई व्यापार वार्ता अब नए सिरे से शुरू होने जा रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर यह संकेत दिया था कि दोनों देश व्यापार बाधाओं को दूर करने के लिए बातचीत कर रहे हैं। ट्रंप ने कहा था, “मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और अमेरिका के बीच बातचीत जारी है। मैं आने वाले हफ्तों में अपने अच्छे दोस्त प्रधानमंत्री मोदी से चर्चा करने को उत्सुक हूं।

 

टैरिफ विवाद के बाद 16 सितंबर को पहली बैठक

अमेरिका द्वारा भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगाए जाने के बाद यह पहली बार है जब दोनों देशों के बीच ट्रेड डील पर औपचारिक चर्चा हो रही है। आज यानी 16 सितंबर को दिल्ली में एक अहम बैठक रखी गई है, जिसमें यह तय किया जाएगा कि व्यापार वार्ता के छठे दौर की शुरुआत कब होगी। गौरतलब है कि यह बातचीत पहले 25 से 29 अगस्त के बीच होनी थी, लेकिन रूस से तेल खरीदने को लेकर अमेरिका की नाराजगी के चलते उस समय भारत पर 50% टैरिफ लगा दिया गया था और बैठक टाल दी गई थी।

 

उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल की भागीदारी: इस बार की बातचीत में अमेरिका की ओर से असिस्टेंट ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव ब्रेंडन लिंच अपने डेलिगेशन के साथ भारत पहुंचे हैं। वहीं, भारत की ओर से कॉमर्स डिपार्टमेंट के स्पेशल सेक्रेटरी राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल शामिल हो रहा है। इस वार्ता से उम्मीद है कि दोनों देश व्यापारिक मतभेदों को कम कर एक व्यावहारिक समझौते की दिशा में आगे बढ़ेंगे।