चीन ने जापान में अमेरिकी टाइफॉन मिसाइल की तैनाती पर जताया विरोध, कहा- एशिया-प्रशांत की स्थिरता को खतरा

चीन ने मंगलवार को अमेरिका से जापान में तैनात किए गए मिड-रेंज टाइफॉन मिसाइल सिस्टम को तुरंत हटाने की मांग की। बीजिंग का कहना है कि यह कदम एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सामरिक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है, साथ ही इससे हथियारों की दौड़ और सैन्य टकराव की आशंका और तेज हो जाएगी।

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अमेरिका और जापान ने चीन की बार-बार जताई गई आपत्तियों की अनदेखी करते हुए यह तैनाती की है। उनके अनुसार, यह फैसला न केवल क्षेत्रीय देशों के वैध सुरक्षा हितों को कमजोर करता है, बल्कि एशिया में अस्थिरता को भी बढ़ावा देता है।

China protests US Typhoon missile deployment in Japan

अमेरिका-जापान की नीति पर चीन का सवाल:

 

चीन ने अमेरिका और जापान की संयुक्त पहल पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा है कि जापान में तैनात किया गया टाइफॉन मिसाइल सिस्टम पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए अस्थिरता का कारण बन सकता है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने चेतावनी दी कि वॉशिंगटन और टोक्यो सुरक्षा का बहाना बनाकर क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि दोनों देश वास्तव में शांति चाहते हैं, तो उन्हें पड़ोसी देशों की चिंताओं को महत्व देना चाहिए और सैन्य तैनाती जैसी गतिविधियों से बचना चाहिए।

लिन के अनुसार, चीन अपेक्षा करता है कि अमेरिका और जापान इस निर्णय की तुरंत समीक्षा करें और मिसाइल सिस्टम को हटा लें। अन्यथा, इसके नतीजे पूरे क्षेत्र को भुगतने होंगे।

 

जापान-अमेरिका अभ्यास रेजोल्यूट ड्रैगन में टाइफून सिस्टम की मौजूदगी:

अमेरिकी रक्षा विभाग के अनुसार जापान में चल रहे वार्षिक द्विपक्षीय सैन्य अभ्यास रेजोल्यूट ड्रैगन में इस बार टाइफून सिस्टम को प्रदर्शित किया गया। पिछले हफ्ते शुरू हुए इस अभ्यास में 19,000 से अधिक अमेरिकी और जापानी सैनिक हिस्सा ले रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य समुद्री सुरक्षा और तटीय रक्षा क्षमता को मजबूत करना है।

यह ज़मीनी हथियार प्रणाली स्टैंडर्ड मिसाइल-6 और टोमहॉक क्रूज़ मिसाइल दागने में सक्षम है, जिनकी मार चीन के पूर्वी तट तक पहुँचती है। इसे पिछले महीने दक्षिण-पश्चिमी जापान के इवाकुनी स्थित अमेरिकी मरीन कॉर्प्स बेस पर पहुँचाया गया था। जापान में इसकी मौजूदगी, फिलीपींस में पिछले साल हुई तैनाती के बाद आई है, जिस पर चीन और रूस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी।

 

अभ्यास में टाइफून से फायरिंग की योजना नहीं, तैनाती 25 सितंबर तक सीमित:

रिपोर्ट के अनुसार, रेजोल्यूट ड्रैगन अभ्यास के दौरान अमेरिकी सेना टाइफून या अन्य उन्नत मिसाइल प्रणालियों का प्रक्षेपण करने की संभावना नहीं है। इवाकुनी में इनकी तैनाती केवल इस सैन्य अभ्यास के लिए की गई है, जो 25 सितंबर को समाप्त होगा।

 

टाइफून सिस्टम की मार चीन, ताइवान और कोरिया तक:

न्यूज़वीक के एक मानचित्र के अनुसार, इवाकुनी में तैनात टाइफून मिसाइल सिस्टम टोमहॉक मिसाइलों के ज़रिए चीन के उत्तरी, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी तटों को निशाना बना सकता है। इसकी रेंज में आधा ताइवान, पूरा कोरियाई प्रायद्वीप और रूस के सुदूर पूर्वी हिस्से भी आते हैं।

Image credit: Newsweek

 

जापान में पहली बार टाइफून मिसाइल सिस्टम की तैनाती:

जापान में पहली बार टाइफून मिसाइल सिस्टम की तैनाती की गई है। इस टास्क फोर्स के कमांडर कर्नल वेड जर्मन ने मरीन कॉर्प्स एयर स्टेशन इवाकुनी में लॉन्चर के सामने कहा कि यह प्रणाली कई तरह के हथियारों के इस्तेमाल के ज़रिए विरोधी के लिए दुविधा और दबाव पैदा करने की क्षमता रखती है।

उन्होंने आगे कहा कि इस सिस्टम को बेहद तेज़ी से तैनात किया जा सकता है, जिससे आवश्यकता पड़ने पर इसे अग्रिम मोर्चों पर तुरंत भेजा जा सकता है। कर्नल जर्मन ने यह भी स्पष्ट किया कि रेजोल्यूट ड्रैगन अभ्यास के बाद टाइफून जापान से वापस ले जाया जाएगा। हालांकि, उन्होंने यह बताने से इनकार कर दिया कि यह यूनिट आगे कहाँ जाएगी या दोबारा जापान लौटेगी या नहीं।

 

फिलीपींस में पहली विदेशी तैनाती पर भी चीन का विरोध:

अप्रैल 2024 में संयुक्त अमेरिका-फिलीपींस अभ्यास के दौरान पहली बार टाइफॉन मिसाइल प्रणाली फिलीपींस लाई गई थी। यही इसकी पहली विदेशी तैनाती मानी जाती है।

फिलीपींस में इस तैनाती पर चीन ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था। दक्षिण चीन सागर को लेकर बीजिंग और मनीला के बीच पहले से ही विवाद जारी है, ऐसे में मिसाइल की मौजूदगी ने दोनों देशों के रिश्तों में और अधिक तनाव पैदा कर दिया।

 

टायफून फायर सिस्टम के बारे मे

टायफून, जिसे आधिकारिक रूप से स्ट्रैटेजिक मिड-रेंज फायर सिस्टम (SMRF) कहा जाता है, एक यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी का ट्रांसपॉर्टर-इरेक्टर-लॉन्चर है जो स्टैंडर्ड SM-6 तथा टोमहॉक क्रूज़ मिसाइलों का संचालन कर सकता है।

हर इकाई में मार्क-41 वर्टिकल लॉन्चिंग सिस्टम के समकक्ष चार स्ट्राइक-लेंथ सेल होते हैं, जिन्हें 40-फुट (12 मीटर) आईएसओ कंटेनर के आयाम में फिट किया गया है। इस प्रणाली को आरम्भ में मिड-रेंज कैपेबिलिटीज सिस्टम (MCS) कहा जाता था, बाद में इसका नाम बदलकर SMRF रखा गया और व्यावसायिक नाम “टायफून” दिया गया।

यह मोबाइल, सतह-से-सतह मारक क्षमता वाली प्रणाली है जिसे लॉकहीड मार्टिन (यूएस) ने विकसित किया। टायफून का डिजाइन मॉड्यूलर है और यह विभिन्न प्रकार की मिसाइलों को चलाने में सक्षम है-  उदाहरण के लिए SM-6 जिसका अनुमानित प्रभावी दायरा लगभग 500 किमी है, तथा टोमहॉक क्रूज़ मिसाइल जिसका रेंज करीब 2,500 किमी तक बताया जाता है।

  • SM-6 मुख्यतः वायु तथा सतह लक्ष्यों के खिलाफ उपयोगी है।
  • जबकि टोमहॉक भू-हल्ला और कुछ एंटी-शिप भूमिकाओं में प्रभावी रहता है।

 

टायफून की क्षमताएँ और संभावित असर

  • मजबूत निवारक क्षमता: टॉमहॉक मिसाइलों की 1,500 किलोमीटर से अधिक की रेंज के साथ टायफून, दक्षिण चीन सागर में संभावित समुद्री खतरों के खिलाफ फिलीपींस की रोकथाम क्षमता को मज़बूती देता है।
  • सटीक प्रहार की संभावना: लगभग 240 किलोमीटर की रेंज वाली SM-6 मिसाइलें वायु-रक्षा की अतिरिक्त परत उपलब्ध कराती हैं, जिससे हवाई ख़तरों से सुरक्षा मिलती है।
  • बदलते रक्षा समीकरण: अमेरिकी मूल की इस प्रणाली की तैनाती से संकेत मिलता है कि फिलीपींस अपने रक्षा साझेदारी को विविध बना सकता है। इससे उसे न केवल उन्नत हथियार प्रणालियों तक पहुँच मिलेगी, बल्कि रक्षा वार्ताओं में अतिरिक्त leverage भी हासिल होगा।

 

चीन-उत्तर कोरिया-रूस से खतरों के बीच जापान ने तेजी से बढ़ा रहा अपनी सैन्य क्षमता:

जापान अपनी सैन्य क्षमता को तेज़ी से बढ़ा रहा है और खासतौर पर मध्यम से लंबी दूरी की मिसाइलों के ज़रिए स्ट्राइक-बैक क्षमता विकसित कर रहा है। इसका उद्देश्य चीन, उत्तर कोरिया और रूस से बढ़ते मिसाइल एवं परमाणु ख़तरों का सामना करना है।

यह घटनाक्रम उस घोषणा के कुछ दिनों बाद सामने आया है, जिसमें जापान के रक्षा मंत्रालय ने पहली बार पूर्वी चीन सागर में चीन के नए विमानवाहक पोत फुजियान की गतिविधियाँ देखे जाने की पुष्टि की थी। यह पोत विवादित सेनकाकू द्वीप के ठीक उत्तर में दिखाई दिया, जिस पर जापान और चीन दोनों अपना दावा करते हैं। बीजिंग इस क्षेत्र को दियाओयू कहता है।

 

सेनकाकू द्वीप को लेकर चीन और जापान मे विवाद:

चीन और जापान के बीच तनाव केवल मौजूदा घटनाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें ऐतिहासिक और क्षेत्रीय संघर्षों में गहरी हैं। द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937–1945) की पृष्ठभूमि और पूर्वी चीन सागर में सेनकाकू द्वीपसमूह पर स्वामित्व विवाद इस रिश्ते को लगातार प्रभावित करते रहे हैं।

स्थान और विशेषताएँ:

सेनकाकू द्वीप पूर्वी चीन सागर में स्थित निर्जन द्वीपों का समूह है, जो ताइवान के उत्तर-पूर्व, चीन की मुख्यभूमि के पूर्व और जापान के ओकिनावा के पश्चिम में आता है। प्रशासनिक रूप से ये जापान के ओकिनावा प्रान्त में शामिल हैं, लेकिन चीन (डियाओयू) और ताइवान (तियाओयुताई) भी इन पर दावा करते हैं। द्वीप समुद्री नौवहन मार्गों के पास स्थित हैं और मछली पकड़ने के समृद्ध क्षेत्र तथा तेल-गैस भंडार की संभावना के कारण इनका रणनीतिक व आर्थिक महत्व और बढ़ जाता है।

विवाद का इतिहास:

  • जापानी कब्ज़ा (1895): जापान ने पहली बार इन द्वीपों पर नियंत्रण स्थापित किया।
  • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद: अमेरिका ने इन्हें अपने कब्जे में लिया और 1971 में जापान को वापस सौंप दिया।
  • 1970 के दशक में दावे: जब पूर्वी चीन सागर में तेल व गैस संसाधनों की संभावना सामने आई, तब चीन और ताइवान ने इन द्वीपों पर औपचारिक दावे करने शुरू कर दिए।

वर्तमान स्थिति और दावे: आज ये द्वीप जापान के प्रशासनिक नियंत्रण में हैं, लेकिन उनका स्वामित्व अब भी विवादित है।

  • चीन का दावा: ऐतिहासिक, भौगोलिक और कानूनी आधार पर इन्हें अपने साम्राज्य का हिस्सा बताता है।
  • जापान का दावा: अंतर्राष्ट्रीय कानून और ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर इन्हें अपने क्षेत्र का अभिन्न हिस्सा मानता है।

 

जापान ने पहली बार प्रशांत महासागर में देखे दो चीनी विमानवाहक पोत, हवाई उल्लंघन का भी आरोप:

हाल ही मे जापान ने दावा किया है कि प्रशांत महासागर में पहली बार चीन के दो विमानवाहक पोत एक साथ देखे गए हैं। टोक्यो का कहना है कि यह गतिविधि उसके लिए गंभीर सुरक्षा चिंता का विषय है।

इसके साथ ही जापान ने चीन पर पूर्वी चीन सागर में विवादित द्वीपों के पास हवाई क्षेत्र का उल्लंघन करने का आरोप भी लगाया है। ये वही क्षेत्र हैं जिन पर जापान और चीन दोनों अपना-अपना दावा करते हैं, जिससे तनाव और बढ़ गया है।

 

निष्कर्ष:

इसलिए जापान में टायफून मिसाइल सिस्टम की तैनाती ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा बहस को और तेज़ कर दिया है। यह कदम जहां अमेरिका-जापान गठबंधन की सैन्य तत्परता और शक्ति का संकेत है, वहीं चीन के लिए यह सीधा चुनौतीपूर्ण संदेश बनकर उभरा है। बीजिंग का कहना है कि ऐसी तैनातियाँ सामरिक संतुलन बिगाड़ सकती हैं और हथियारों की होड़ को बढ़ावा देती हैं।