भारतीय सेना में महिला अफसरों को स्थायी कमीशन (Permanent Commission) न दिए जाने का मुद्दा एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में उठा है। यह मामला शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) की 13 महिला अफसरों से जुड़ा है, जिन्होंने आरोप लगाया है कि स्थायी कमीशन देने में उनके साथ पुरुष अफसरों की तुलना में भेदभाव किया गया। अफसरों का कहना है कि उन्होंने गलवान, बालाकोट और ऑपरेशन सिंदूर जैसे कठिन अभियानों में पुरुष अफसरों की तरह बराबर योगदान दिया, लेकिन इसके बावजूद उन्हें स्थायी कमीशन नहीं दिया गया।
महिला अफसरों ने अदालत में दलील दी कि उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) का आकलन पुरुष अफसरों की तरह नहीं किया गया। पुरुष अफसरों की ‘क्राइटेरिया अपॉइंटमेंट्स’ को आधिकारिक रिपोर्ट में दर्ज किया गया, जबकि महिला अफसरों की पोस्टिंग और योगदान को नजरअंदाज कर दिया गया। उन्होंने इसे मनमानी और असमान व्यवहार करार दिया।

महिला अफसरों को स्थायी कमीशन से वंचित करने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र से मांगा जवाब:
सुप्रीम कोर्ट ने भी 18 सितंबर को इस पर नाराजगी जताते हुए सवाल उठाया कि जब महिला और पुरुष अफसरों को समान ट्रेनिंग और पोस्टिंग दी जाती है, तो फिर उनके आकलन के लिए अलग-अलग पैमाने क्यों रखे गए हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की मनमानी स्वीकार्य नहीं हो सकती।
इस मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल वनीता पाधी, लेफ्टिनेंट कर्नल चंदनी मिश्रा, लेफ्टिनेंट कर्नल गीता शर्मा और अन्य महिला अफसर शामिल हैं, जिन्होंने कठिन और संवेदनशील इलाकों में सेवा दी है, लेकिन फिर भी उन्हें स्थायी कमीशन से वंचित रखा गया। अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई बुधवार को करेगा, जहां केंद्र सरकार का पक्ष एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी रखेंगी।
क्या है ‘नियुक्ति मानदंड‘ (Criteria Appointments)?
‘नियुक्ति मानदंड’ का आशय उन विशेष जिम्मेदारियों या नियुक्तियों से है, जिनमें अफसर को बेहद कठिन, संवेदनशील और रणनीतिक महत्व वाले इलाकों में कमान संभालनी पड़ती है। जैसे- दुश्मन सीमा से सटे क्षेत्रों में तैनाती, उच्च जोखिम वाले अभियानों में भागीदारी या ऐसी जगह सेवा करना जहां सैन्य दबाव और चुनौतियां अधिक हों।
पुरुष अफसरों के लिए ऐसी पोस्टिंग को उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में ‘मानदंड रिपोर्ट’ (Criteria Report) के रूप में दर्ज किया जाता है। यह उनके मूल्यांकन और स्थायी कमीशन (Permanent Commission) पाने की संभावना को मजबूत करता है।
वहीं, महिला अफसरों के मामले में, भले ही उन्होंने कठिन और संवेदनशील इलाकों में कमान संभाली हो, उनकी पोस्टिंग को अक्सर ‘गैर-मानदंड रिपोर्ट‘ (Non-Criteria Report) बताया गया। परिणामस्वरूप उनकी सेवाओं को आधिकारिक रूप से उस महत्व का दर्जा नहीं मिला, जिससे उनके करियर विकास और स्थायी कमीशन पर प्रतिकूल असर पड़ा।
महिला अफसरों का योगदान : प्रमुख उदाहरण
- लेफ्टिनेंट कर्नल वनीता पाधी को कांगो में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन और फिरोजपुर (पंजाब) बॉर्डर एरिया में कंपनी कमांडर की जिम्मेदारी सौंपी गई।
- लेफ्टिनेंट कर्नल चांदनी मिश्रा 88 देशों में पहली महिला पायलट बनीं, जिन्होंने MEAT (Manoeuvrable Expendable Aerial Target) उड़ाने का कार्य किया।
- लेफ्टिनेंट कर्नल गीता शर्मा को लद्दाख में गलवान ऑपरेशन के दौरान कम्युनिकेशन यूनिट की कमान दी गई।
- लेफ्टिनेंट कर्नल स्वाति रावत को ऑपरेशन सिंदूर और जम्मू-कश्मीर के बासौली क्षेत्र में काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन्स की कमांडिंग पोस्टिंग दी गई।
- एक महिला अफसर ने बालाकोट एयर स्ट्राइक से विमान सुरक्षित वापस लाने का कार्य किया, लेकिन उन्हें केवल एक सप्ताह बाद ही सेवा छोड़ने के लिए कहा गया।
ऑपरेशन सिंदूर में महिलाओं की अहम भूमिका
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 29 मई 2025 को बताया था कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ भारत की कार्रवाई में महिला पायलटों और अन्य महिला सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने कहा कि सियाचिन की ऊँचाइयों से लेकर समुद्र की गहराइयों तक, भारतीय महिलाएँ विभिन्न जिम्मेदारियाँ निभा रही हैं, जिससे देश का सुरक्षा ढांचा और मज़बूत हुआ है।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों की हर शाखा में महिलाओं की सक्रिय और प्रभावी भागीदारी देखी गई, जिससे उनकी क्षमताओं और योगदान को नए सिरे से मान्यता मिली।
महिला अफसरों ने संविधान का उल्लंघन बताया:
महिला अफसरों ने अदालत में तर्क दिया कि उन्हें स्थायी कमीशन से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (लैंगिक भेदभाव पर रोक) का स्पष्ट उल्लंघन है। उनका कहना था कि समान जिम्मेदारियों और योगदान के बावजूद उनके साथ अलग व्यवहार किया गया।
फरवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि सेना में महिला अफसरों को केवल स्टाफ पदों तक सीमित रखना “असंगत और अवैध” है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि योग्य महिला अफसरों को स्थायी कमीशन दिया जाना चाहिए।
इस बार की सुनवाई बुधवार को पूरी नहीं हो सकी और अब यह बुधवार को जारी रहेगी। इसके बाद नौसेना और वायुसेना की उन महिला अफसरों की याचिकाओं पर भी सुनवाई होगी, जिन्होंने स्थायी कमीशन न मिलने के फैसले को चुनौती दी है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश दरकिनार:
18 सितंबर को सीनियर एडवोकेट वी. मोहना ने बेंच के सामने दलील दी कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के 2020 और 2021 के आदेशों को बार-बार अनदेखा किया है। उनका कहना था कि सरकार स्थायी कमीशन न देने के लिए वैकेंसी की कमी का बहाना बनाती रही है, जबकि कई मौकों पर 250 अफसरों की तय सीमा भी पार हो चुकी है।
महिला अफसरों की बढ़ती संख्या:
साल 2014 में भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना में महिला अफसरों की संख्या लगभग 3,000 थी। आज यह संख्या 11,000 से भी अधिक हो गई है, जो न केवल संख्या में बढ़ोतरी बल्कि संस्थागत मानसिकता में बदलाव का भी संकेत देती है।
सरकार ने वर्षों में महिलाओं के लिए रक्षा क्षेत्र में नए अवसर खोले हैं, जिनमें महिला अफसरों को स्थायी कमीशन (Permanent Commission) देने का कदम शामिल हैं।
निष्कर्ष:
महिला अफसरों ने कई बार समान परिस्थितियों में पुरुष अफसरों के बराबर या बेहतर प्रदर्शन किया है। गलवान, बालाकोट और ऑपरेशन सिंदूर जैसे संवेदनशील अभियानों में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा। इसके बावजूद उन्हें स्थायी कमीशन में समान अवसर नहीं मिला। यह मामला समान जिम्मेदारी निभाने वाले अफसरों के मूल्यांकन और करियर विकास के पैमानों पर सवाल उठाता है।