अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दवा उद्योग को लेकर बड़ा ऐलान किया है। ट्रम्प ने घोषणा की है कि ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाइयों पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा, जो 1 अक्टूबर 2025 से प्रभावी होगा। हालांकि ट्रम्प ने कहा है, टैरिफ से छूट केवल उन कंपनियों को मिलेगी जो अमेरिका में अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू करेंगी। इसका उद्देश्य विदेशी दवा कंपनियों को अमेरिका में उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करना है, ताकि घरेलू स्तर पर रोजगार और सप्लाई चेन को मजबूती मिल सके। गौरतलब है कि भारत पर अमेरिका पहले ही 27 अगस्त 2025 से 50% टैरिफ लगा चुका है।

ट्रम्प ने अपने प्लेटफ़ॉर्म ट्रुथ सोशल में लिखा– ‘1 अक्टूबर से हम ब्रांडेड या पेटेंटेड दवाई पर 100% टैरिफ लगा देंगे, सिवाय उन कंपनियों के जो अमेरिका में अपना दवा बनाने वाला प्लांट लगा रही हैं।

अन्य सामानों पर भी लगाया टैरिफ-
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आयातित दवाइयों पर 100% टैरिफ की घोषणा के साथ-साथ अन्य विदेशी उत्पादों पर भी बड़े पैमाने पर शुल्क लगाने का ऐलान किया है। ट्रंप ने कहा कि विदेशी उत्पादकों की वजह से अमेरिकी कंपनियों और कामगारों को नुकसान हो रहा है, इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक मजबूती के लिए यह कदम उठाना आवश्यक है।
नई घोषणा के तहत:
- किचन के सामान और बाथरूम वैनिटी पर 50% टैरिफ
- फर्नीचर पर 30% टैरिफ
- भारी ट्रकों और उनके पुर्जों पर 25% टैरिफ
ट्रंप ने स्पष्ट किया कि “अमेरिका में फर्नीचर और कैबिनेटरी की बाढ़ आ गई है, वहीं भारी ट्रक और पुर्जे भी घरेलू उद्योग को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं।” उनका तर्क है कि इन टैरिफ से अमेरिकी उद्योगों को राहत मिलेगी और घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन मिलेगा।
ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% शुल्क, जेनेरिक को मिली राहत
डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% शुल्क लगाया जाएगा, जबकि जेनेरिक दवाओं को इससे छूट दी गई है। भारतीय फार्मा उद्योग के लिए यह राहत की बात है, क्योंकि अमेरिका भारतीय जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा बाजार है।
डॉ. रेड्डीज, सन फार्मा, ल्यूपिन और अरबिंदो फार्मा जैसी कंपनियां लंबे समय से अमेरिकी बाजार में जेनेरिक दवाओं की सप्लाई पर निर्भर हैं और अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा यहीं से अर्जित करती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भविष्य में जेनेरिक दवाओं पर भी टैरिफ लगा दिया गया, तो अमेरिकी बाजार में दवाओं की कमी हो सकती है और हेल्थकेयर की लागत में भारी बढ़ोतरी हो जाएगी। संभवतः इसी कारण ट्रंप प्रशासन ने फिलहाल जेनेरिक दवाओं को छूट दी है। हालांकि, भारत की बड़ी फार्मा कंपनियां केवल जेनेरिक तक सीमित नहीं हैं, वे कुछ पेटेंटेड दवाओं का निर्यात भी करती हैं, जिन पर इस नई नीति का सीधा असर पड़ेगा।
ब्रांडेड और जेनरिक दवाई क्या है
ब्रांडेड दवाई:
- यह वह ओरिजिनल दवाई होती है जिसकी खोज किसी फार्मा कंपनी ने गहन रिसर्च और भारी खर्च के बाद की होती है।
- इसे बनाने वाली कंपनी को आमतौर पर 20 साल के लिए पेटेंट अधिकार मिलते हैं।
- इस दौरान कोई दूसरी कंपनी उस फॉर्मूले का इस्तेमाल करके दवाई नहीं बना सकती।
- रिसर्च और डेवलपमेंट के खर्च को वसूलने के लिए इसकी कीमत अक्सर बहुत ज्यादा होती है।
जेनरिक दवाई:
- यह वह दवाई होती है जो ब्रांडेड दवाई के पेटेंट खत्म होने के बाद बाजार में आती है।
- इसमें ब्रांडेड दवाई का वही फॉर्मूला इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए नया पेटेंट नहीं होता।
- जेनरिक दवाई बनाने वाली कंपनियों को रिसर्च का खर्च नहीं उठाना पड़ता, इसलिए इसकी कीमत ब्रांडेड दवाई की तुलना में 80% से 90% तक कम हो सकती है।
ट्रंप ने ब्रांडेड दवाओं पर टैरिफ क्यों लगाया?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% टैरिफ लगाने का फैसला मुख्य रूप से अमेरिका में दवा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लिया है। यह कदम उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट‘ और ‘मेक इन अमेरिका‘ नीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह विदेशी निर्भरता कम कर घरेलू उद्योग को मजबूत करना चाहते हैं।
निर्भरता राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा:
ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि दवाओं के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। महामारी के दौरान यह स्पष्ट हो गया था कि सप्लाई चेन टूटने पर अमेरिका में दवाओं की भारी कमी हो सकती है। ऐसे हालात से बचने और दवा क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ट्रंप ने ब्रांडेड दवा कंपनियों पर दबाव डाला है। उनका उद्देश्य यह है कि पूरी फार्मा सप्लाई चेन को अमेरिका के भीतर सुरक्षित और मजबूत किया जाए।
अमेरिका की दवा सप्लाई चेन पर विदेशी निर्भरता: चीन और भारत का बड़ा योगदान-
अमेरिका में दी जाने वाली कुल दवाइयों में से 90% से अधिक जेनेरिक दवाएं होती हैं। इसके बावजूद, इन दवाओं के उत्पादन के लिए ज़रूरी 80% से अधिक कच्चा माल (Active Pharmaceutical Ingredients – API) विदेशों से आता है। इसमें सबसे बड़ा योगदान भारत और चीन का है।
यह स्थिति अमेरिकी प्रशासन के लिए चिंता का विषय रही है। महामारी के दौरान जब सप्लाई चेन बाधित हुई, तो दवाओं की उपलब्धता पर असर पड़ा। इसी पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 100% टैरिफ का ऐलान किया है, ताकि अमेरिकी कंपनियां स्थानीय स्तर पर उत्पादन बढ़ाएं और दवा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल हो सके।
फार्मा कंपनियों पर 200% तक टैरिफ लगाने का प्लान है-
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस साल की शुरुआत में ही संकेत दे दिए थे कि वे फार्मा कंपनियों पर और भी कड़े कदम उठा सकते हैं। ट्रंप ने यहां तक कहा था कि कंपनियों पर 200% तक का टैरिफ लगाया जा सकता है। उनका साफ कहना है कि जो भी कंपनियां अमेरिकी बाजार में कारोबार करती हैं, उन्हें अमेरिका के भीतर ही अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने होंगे। ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया कि कंपनियों को अमेरिका आने के लिए लगभग एक से डेढ़ साल का समय दिया जाएगा और उसके बाद टैरिफ का सख्ती से पालन होगा।
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लीविट ने इस नीति का बचाव करते हुए कहा, “हमने अपनी सप्लाई चेन को बाहर के देशों पर निर्भर कर दिया है। क्या हम चाहते हैं कि हमारी जीवन रक्षक दवाएं, मेडिसिन और चिप्स चीन जैसे देशों में बने या फिर अमेरिका में? यह एक कॉमन सेंस पॉलिसी है।”
भारत पर ट्रंप के फैसले का असर:
डोनाल्ड ट्रंप के नए टैरिफ फैसले का सीधा असर भारतीय फार्मा कंपनियों पर सीमित रहने की संभावना है। इसकी मुख्य वजह यह है कि अधिकांश भारतीय कंपनियां अमेरिका को जेनेरिक दवाओं का निर्यात करती हैं, न कि ब्रांडेड या पेटेंटेड दवाओं का। यही कारण है कि 100% टैरिफ का बोझ भारतीय निर्यात पर ज्यादा नहीं पड़ेगा।
इसके अलावा कई बड़ी भारतीय फार्मा कंपनियों के पास पहले से ही अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग सुविधाएं मौजूद हैं। इसका मतलब यह है कि वे स्थानीय स्तर पर दवाइयां बनाकर बेच सकती हैं और नए टैरिफ से बच सकती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब बाजार खुला रहेगा, तो इन कंपनियों पर कोई बड़ा वित्तीय झटका नहीं लगेगा।
हालांकि, सन फार्मा एक ऐसी प्रमुख भारतीय कंपनी है जो अमेरिका में ब्रांडेड और पेटेंटेड उत्पाद बेचती है। लेकिन इस कंपनी ने भी संभावित जोखिम से बचने के लिए अपनी दवा उत्पादन की रणनीति को विविधतापूर्ण बनाया है। यह अमेरिका और यूरोप में मौजूद कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग ऑर्गनाइजेशन (CMO) सुविधाओं के जरिए विशेष दवाओं का उत्पादन आउटसोर्स करती है। इस वजह से ट्रंप का नया टैरिफ निर्णय भी इसे गंभीर रूप से प्रभावित नहीं करेगा।
अगर जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगा तो भारत को बड़ा झटका:
भारत के कुल अमेरिकी निर्यात में फार्मा उत्पादों का हिस्सा करीब 13% है। हर साल भारत अमेरिका को लगभग 76,000 करोड़ रुपये के फार्मा प्रोडक्ट्स निर्यात करता है, जिसमें ज्यादातर हिस्सा जेनेरिक दवाओं का होता है।
भारत की दवा कंपनियां अमेरिकी बाजार पर काफी हद तक निर्भर हैं, क्योंकि वहीं से उनकी सबसे ज्यादा कमाई होती है। अगर जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाया गया, तो भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त कम हो जाएगी और उनकी मार्जिन पर सीधा असर पड़ेगा।
दूसरी ओर, भारत भी अमेरिका से आयातित फार्मा उत्पादों पर 10% टैरिफ लगाता है। लेकिन अमेरिकी टैरिफ कहीं ज्यादा ऊंचा और व्यापक होगा, जिससे द्विपक्षीय व्यापार संतुलन बिगड़ सकता है

अमेरिका में भारत की दवाइयों का निर्यात:
वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का कुल फार्मा निर्यात $27.9 बिलियन रहा, जिसमें से 31% यानी $8.7 बिलियन अमेरिका को गया। अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली 45% से अधिक जेनेरिक और 15% बायोसिमिलर दवाओं की आपूर्ति भारत करता है। डॉ. रेड्डीज, अरबिंदो फार्मा, जाइडस लाइफसाइंसेज, सन फार्मा और ग्लैंड फार्मा जैसी कंपनियां अपने कुल राजस्व का 30-50% हिस्सा अमेरिकी बाजार से कमाती हैं।
फार्मा सेक्टर में गिरावट, दिग्गज शेयर 4% तक लुढ़के:
कारोबार के दौरान फार्मा सेक्टर में करीब 2% की गिरावट दर्ज हुई। सन फार्मा, सिप्ला, ऑरोबिंदो फार्मा, ल्यूपिन, जायडस लाइफसाइंसेज और डॉ रेड्डी जैसे शेयरों में 4% तक की गिरावट देखी गई। दोपहर 2:45 बजे तक सन फार्मा 2.88% गिरकर ₹1,580.60 पर, सिप्ला 0.64% गिरकर ₹1,500.00 पर, ल्यूपिन 1.84% गिरकर ₹1,927.40 पर और डॉ रेड्डी 1.51% गिरकर ₹1,255.90 पर ट्रेड कर रहे थे। वहीं बायोकॉन लिमिटेड में सबसे ज्यादा दबाव दिखा और इसका शेयर 4.57% टूटकर ₹339.70 पर आ गया।
अमेरिका और भारत के बीच व्यापार:
अमेरिका और भारत के बीच वस्तुओं और सेवाओं का कुल व्यापार वर्ष 2024 में अनुमानित $212.3 बिलियन रहा, जो 2023 की तुलना में 8.3% ($16.3 बिलियन) अधिक है। वस्तुओं के व्यापार (निर्यात और आयात) का अनुमान $128.9 बिलियन रहा। इसमें अमेरिका से भारत को वस्तुओं का निर्यात $41.5 बिलियन रहा, जो 2023 से 3% ($1.2 बिलियन) अधिक है। वहीं, भारत से अमेरिका को वस्तुओं का आयात $87.3 बिलियन रहा, जो पिछले वर्ष से 4.5% ($3.8 बिलियन) अधिक है। इस दौरान अमेरिका का भारत के साथ वस्तु व्यापार घाटा $45.8 बिलियन तक पहुंच गया, जो 2023 के मुकाबले 5.9% ($2.6 बिलियन) अधिक है।
निष्कर्ष:
अमेरिका द्वारा ब्रांडेड दवाओं पर 100% टैरिफ का असर फिलहाल सीमित है, लेकिन अगर जेनेरिक दवाओं पर भी यह लागू होता है तो भारतीय फार्मा सेक्टर को गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। इससे कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता घटेगी और अमेरिकी बाजार में उनकी कमाई पर दबाव बढ़ेगा।