नासा-इसरो के निसार सैटेलाइट ने भेजी पहली तस्वीर: जानिए क्या-क्या आया नजर, 30 जुलाई, 2025 को हुआ था प्रक्षेपित..

इसरो और नासा के संयुक्त मिशन निसार (NISAR) ने पृथ्वी की सतह की पहली रडार तस्वीरें भेजी हैं। इन तस्वीरों में उपग्रह की शक्तिशाली रडार क्षमता दिखती है, जो भविष्य में पृथ्वी के अद्भुत और विस्तृत दृश्य प्रदान करेगी।

 

निसार उपग्रह 30 जुलाई, 2025 को प्रक्षेपित हुआ और अब पृथ्वी की सतह से 747 किलोमीटर ऊपर परिक्रमा कर रहा है। इसकी पहली तस्वीरें अगस्त में ली गई थीं, लेकिन इन्हें सितंबर के अंत में ही सार्वजनिक किया गया। प्रक्षेपण के बाद, इंजीनियरों को रडार उपकरणों का परीक्षण और संरेखण करने में कई हफ्ते लगते हैं।

NASA-ISRO's NISAR satellite sends its first image

नासा के कार्यवाहक प्रशासक सीन डफी का बयान:

नासा के कार्यवाहक प्रशासक सीन डफी ने कहा कि ट्रंप सरकार के दौरान भारत के सहयोग से लॉन्च किए गए निसार की पहली तस्वीरें यह दिखाती हैं कि जब हम नवाचार और खोज की साझा सोच के साथ मिलकर काम करते हैं, तो बड़ी उपलब्धियाँ हासिल की जा सकती हैं। उन्होंने कहा कि यह तो बस शुरुआत है, आगे नासा बेहतरीन विज्ञान के जरिए अंतरिक्ष में अमेरिका की बढ़त बनाए रखने के लिए काम करता रहेगा।

 

निसार की रडार इमेजिंग क्षमता: निसार की उन्नत रडार तकनीक बाढ़, भूकंप, ज्वालामुखी, जंगलों के विनाश, कृषि और अवसंरचना जैसी चुनौतियों की सटीक निगरानी कर सकती है।

  • 21 अगस्त को नासा के JPL द्वारा विकसित L-बैंड रडार ने अमेरिका के मेन(Maine) राज्य के माउंट डेजर्ट आइलैंड की तस्वीरें लीं, जिसमें पानी, जंगल और इमारतें अलग-अलग रंगों में साफ नज़र आईं।
  • 23 अगस्त को ली गई नॉर्थ डकोटा की तस्वीरों में खेत, फसलें और सिंचाई पैटर्न स्पष्ट दिखे।
NASA-ISRO's NISAR satellite sends its first image

L-band/S-band का उपयोग:

  • L-band SAR (by NASA): वन छत्र, बर्फ और मिट्टी में प्रवेश करता है, बायोमास और विरूपण अध्ययन के लिए उपयोगी है।
  • S-band SAR (by ISRO): फसलों, आर्द्रभूमि और अन्य सतह-स्तरीय विशेषताओं की निगरानी के लिए बेहतर।

 

तस्वीर लेने के लिए किस तकनीक का हुआ इस्तेमाल?

निसार पहला ऐसा उपग्रह है जिसमें एक साथ L-बैंड और S-बैंड रडार लगे हैं। इसकी 25 सेंटीमीटर लंबी तरंगें पेड़ों की छतरी के अंदर तक पहुंच सकती हैं और मिट्टी की नमी या जमीन की हलचल का पता लगा सकती हैं। यही तकनीक बाढ़, भूस्खलन और भूकंप जैसी आपदाओं पर नजर रखने में बहुत मददगार है।

 

धरती को स्कैन करने में कितने दिन लेता है?

यह सैटेलाइट हर 12 दिन में 2 बार धरती की जमीन और बर्फ को स्कैन करेगा. इसके लिए यह 12 मीटर के एक विशाल एंटीना का इस्तेमाल करता है. यह NASA द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया अब तक का सबसे बड़ा रिफ्लेक्टर एंटीना है

 

NASA और ISRO का साझा मिशन:

नासा और इसरो का साझा निसार मिशन कई सालों की तैयारी का नतीजा है। इसमें नासा ने L-बैंड रडार, रिफ्लेक्टर और कम्युनिकेशन सिस्टम दिए, जबकि इसरो ने S-बैंड रडार और सैटेलाइट का ढांचा बनाया। नवंबर 2025 से साइंस ऑपरेशन शुरू होने पर निसार लगातार उच्च गुणवत्ता वाली रडार तस्वीरें भेजेगा।

 

निसार उपग्रह के बारे में:

निसार इसरो और नासा द्वारा मिलकर बनाया गया है और यह एकल प्लेटफॉर्म से दोहरे आवृत्ति रडार (L-बैंड और S-बैंड) का उपयोग करने वाला पहला मिशन है। इस मिशन का जीवनकाल 5 वर्ष है।

प्रक्षेपण: जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क-II (GSLV-F16) से प्रक्षेपित।

  • पहली बार GSLV का उपयोग सूर्य-समकालिक ध्रुवीय कक्षा (SSPO) में उपग्रह स्थापित करने के लिए हुआ।

 

निसार मिशन के मायने:

  • वैज्ञानिक महत्व: यह उपग्रह पृथ्वी की सतह, पर्यावरणीय बदलावों, कृषि और प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी के लिए अभूतपूर्व जानकारी देगा।
  • रणनीतिक महत्व: यह भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते सहयोग और गहराते रणनीतिक संबंधों का प्रतीक है, जो अंतरिक्ष अनुसंधान को नई दिशा देगा।
  • तकनीकी महत्व: उन्नत रडार तकनीक से आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और संसाधन प्रबंधन में मदद मिलेगी।
  • वैश्विक महत्व: निसार आने वाले समय में चांद और मंगल जैसे गहरे अंतरिक्ष मिशनों की तैयारी को भी मजबूत करेगा।

 

NISAR मिशन की कुल लागत:

NISAR, जो NASA और ISRO द्वारा मिलकर चलायी जा रही है। इसकी कुल लागत लगभग 1.5 बिलियन डॉलर है। यह इसे दुनिया के सबसे महंगे पृथ्वी अवलोकन उपग्रह मिशनों में से एक बनाता है। इसमें NASA ने लगभग 1.2 बिलियन डॉलर और ISRO ने लगभग 91 मिलियन डॉलर का योगदान दिया है।

 

इसरो का विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों के साथ सहयोग:

  • रोस्कोस्मोस (रूस)
  • गगनयान मिशन सहयोग: रूस ने भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने में मदद की।
  • अंतरिक्ष यान प्रौद्योगिकी सहयोग: क्रायोजेनिक इंजन और चालक दल मिशनों में तकनीकी सहयोग।
  • ऐतिहासिक उदाहरण: राकेश शर्मा, सोवियत सोयुज टी-11 से अंतरिक्ष जाने वाले पहले भारतीय नागरिक।
  • नासा (USA)
  • NISAR मिशन: नासा और इसरो का संयुक्त सिंथेटिक एपर्चर रडार मिशन।
  • उद्देश्य: पृथ्वी का 12 दिन में मानचित्रण
  • डेटा क्षेत्र: पारिस्थितिक तंत्र, बर्फ़, वनस्पति, समुद्र स्तर, भूजल, प्राकृतिक आपदाएँ (भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी, भूस्खलन)
  • अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण: Axiom 4 मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण और आईएसएस पर भेजने का सहयोग।
  • JAXA (जापान): LUPEX (चंद्र ध्रुवीय अन्वेषण) इसरो और JAXA का एक संयुक्त मिशन है जिसका उद्देश्य चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों का अन्वेषण करना है , विशेष रूप से स्थायी रूप से छायादार क्षेत्रों को लक्ष्य करके पानी की उपस्थिति की जांच करना और एक स्थायी दीर्घकालिक चंद्र स्टेशन की क्षमता का आकलन करना है ।
  • CNES (फ्रांस): मेघा-ट्रॉपिक्स (2011) एक संयुक्त भारत-फ्रांसीसी संयुक्त उपग्रह मिशन है , जो मानसून, चक्रवात आदि जैसे पहलुओं से संबंधित उष्णकटिबंधीय वातावरण और जलवायु के अध्ययन के लिए लॉन्च किया गया है।

 

निष्कर्ष:

नासा-इसरो का निसार मिशन अंतरिक्ष विज्ञान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की बड़ी उपलब्धि है। इसकी उन्नत रडार तकनीक आपदा प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण और कृषि में अहम योगदान देकर धरती को समझने और सुरक्षित करने की दिशा में नया अध्याय खोलेगी।

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