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1अक्टूबर से RBI के नए बैंकिंग नियम, EMI और गोल्ड लोन में राहत, क्रेडिट रिपोर्ट अपडेट करने का प्रस्ताव

1 अक्टूबर 2025 से देश में कई अहम वित्तीय और नियामकीय बदलाव (Financial and regulatory changes) लागू होने जा रहे हैं। इनमें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा ऋण पर ब्याज दरों और गोल्ड मेटल लोन से जुड़े नियमों में संशोधन शामिल हैं।

इसके साथ ही भारतीय रेल यात्रियों के लिए ऑनलाइन टिकट बुकिंग के नियम भी सख्त किए जाएंगे। इन कदमों का उद्देश्य वित्तीय अनुशासन को बढ़ाना, ऋण प्रणाली को सुव्यवस्थित करना और रेल टिकटिंग में पारदर्शिता लाना है।

RBI's new banking rules from October 1
  1. ऋण पर ब्याज दरों में बदलाव:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकों को फ्लोटिंग रेट लोन (Floating Rate Loans) पर ब्याज दर तय करने की स्वतंत्रता दे दी है। इससे उधारकर्ताओं को पहले की तुलना में जल्दी फायदा मिलेगा, क्योंकि अब तीन साल की समय सीमा का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।

 

इसके अलावा, 1 अक्टूबर 2025 से बैंक अपने ग्राहकों को यह विकल्प भी देंगे कि वे फिक्स्ड ब्याज दर (Fixed Interest Rate) से फ्लोटिंग ब्याज दर (Floating Interest Rate) में अपनी सुविधा अनुसार स्विच कर सकें। यह कदम ब्याज दरों में पारदर्शिता बढ़ाने और ग्राहकों को अधिक लचीलापन देने की दिशा में एक अहम बदलाव है।

 

फ्लोटिंग लोन क्या है?

फ्लोटिंग लोन वह ऋण होता है जिसकी ब्याज दर निश्चित नहीं होती, बल्कि यह बाज़ार की स्थितियों के आधार पर समय-समय पर बदलती रहती है। यह किसी बेंचमार्क दर, जैसे कि भारतीय रिज़र्व बैंक की रेपो दर, से जुड़ी होती है। जब बेंचमार्क दर बदलती है, तो आपके ऋण की ब्याज दर भी बदल जाती है, जिससे आपकी मासिक किस्त (EMI) या ऋण की अवधि प्रभावित हो सकती है। 

 

  1. सोने-चांदी के बदले ऋण पर नए नियम:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक आधिकारिक बयान में बताया कि उसने निर्धारित वाणिज्यिक बैंकों (SCBs) को ज्वैलर्स को वर्किंग कैपिटल लोन (Working Capital Loan) देने के लिए पहले से मौजूद ‘कार्व-आउट’ प्रावधान में संशोधन किया है।

इसके साथ ही, टियर-3 और टियर-4 अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों को भी अब यह अनुमति दी गई है कि वे ऐसे उधारकर्ताओं को वर्किंग कैपिटल लोन दे सकें, जो सोने को कच्चे माल या इनपुट के रूप में मैन्युफैक्चरिंग या औद्योगिक प्रसंस्करण में उपयोग करते हैं।

ये नए नियम 1 अक्टूबर 2025 से प्रभावी होंगे, जिससे ज्वैलरी और गोल्ड प्रोसेसिंग उद्योग को अतिरिक्त वित्तीय सहूलियत मिलने की उम्मीद है।

 

  1. बैंकों की पूंजी को मजबूत करने के लिए RBI के नए कदम:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने परपेचुअल डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स (PDI) से जुड़े नियमों में अहम बदलाव किया है। PDI एक विशेष प्रकार के बॉन्ड होते हैं जिनका कोई निश्चित परिपक्वता समय (Maturity Period) नहीं होता और बैंक इनसे धन जुटाते हैं।

नए प्रावधानों के तहत, अब बैंकों को विदेशी मुद्रा या विदेश में रुपए में जारी बॉन्ड के ज़रिए अधिक मात्रा में PDI जारी करने की अनुमति दी गई है। इस कदम से बैंक विदेशी निवेशकों से बड़ी मात्रा में पूंजी जुटा सकेंगे। यह पूंजी बैंकों के टियर-1 कैपिटल को मज़बूती देगी, जिससे वे अधिक ऋण (Loan) दे पाएंगे और आर्थिक झटकों व जोखिमों से बेहतर तरीके से निपट सकेंगे।

 

  1. ऋण पर जुर्माने की दर नहीं, केवल शुल्क:

अब वित्तीय संस्थानों को ऋण चूक पर लगाए जाने वाले जुर्माने को “penal interest” के बजाय “penal charge” के रूप में मानना होगा। यह शुल्क एक निर्धारित राशि के रूप में लिया जाएगा और इसे मूलधन में जोड़कर ब्याज की तरह कम्पाउंड नहीं किया जा सकता। यह दिशा-निर्देश मौजूदा ऋणों के लिए 30 जून 2024 तक लागू किया गया था और नए ऋणों के लिए 1 अप्रैल 2024 से प्रभावी है।

  1. राजस्व तटस्थता: बैंकों और अन्य नियामक संस्थाओं को penal charges को आय बढ़ाने के साधन के रूप में उपयोग नहीं करना चाहिए। यह शुल्क “उचित और गैर-अनुपालन के अनुरूप” होना चाहिए।

 

RBI ने मसौदा जारी किए, जिन पर फीडबैक आमंत्रित है:

 

  1. गोल्ड मेटल लोन के नियमों में बदलाव:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने गोल्ड मेटल लोन को लेकर महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखा है। अब बैंकों को इन लोन की अवधि को वर्तमान 180 दिनों से बढ़ाकर 270 दिन तक करने की अनुमति दी गई है।

इसके साथ ही, RBI ने यह भी प्रस्ताव दिया है कि बैंक अब घरेलू नॉन-मैन्युफैक्चरर्स (जैसे ज्वेलरी डिज़ाइनर या व्यापारी) को भी लोन दे सकेंगे, जो अपनी ज्वेलरी का निर्माण किसी तीसरे पक्ष से कराते हैं। यह कदम ज्वेलरी उद्योग को अतिरिक्त वित्तीय लचीलापन देगा और निर्यात व उत्पादन को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है।

 

  1. लार्ज एक्सपोज़र फ्रेमवर्क (LEF) और इंट्रा-ग्रुप एक्सपोज़र (ITE):

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव रखा है जिसके तहत भारत में काम कर रहे विदेशी बैंकों को अब अपने एक्सपोज़र की गणना, जोखिम न्यूनीकरण (Risk Mitigation) और थ्रेशहोल्ड को टियर-1 कैपिटल से जोड़ने के नियमों को स्पष्ट करना होगा।

इस बदलाव का उद्देश्य विदेशी बैंकों के जोखिम प्रबंधन ढांचे को और पारदर्शी बनाना तथा यह सुनिश्चित करना है कि उनकी लार्ज एक्सपोज़र और ग्रुप के अंदर के एक्सपोज़र (Intra-Group Exposures) भारत के नियामक मानकों के अनुरूप हों।

 

  1. क्रेडिट सूचना रिपोर्टिंग:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने क्रेडिट सूचना रिपोर्टिंग सिस्टम को और मज़बूत बनाने के लिए एक अहम कदम उठाया है। अब बैंकिंग सिस्टम में साप्ताहिक आधार पर क्रेडिट सूचना रिपोर्टिंग की जाएगी।

इस बदलाव के तहत निम्न प्रावधान शामिल होंगे:

  • तेज़ डेटा सबमिशन: बैंकों को क्रेडिट जानकारी समय पर जमा करनी होगी ताकि रिकॉर्ड हमेशा अपडेटेड रहें।
  • गलतियों का शीघ्र सुधार: रिपोर्टिंग में हुई किसी भी त्रुटि को तुरंत ठीक करने की व्यवस्था की जाएगी।
  • CKYC डेटा कैप्चर: सेंट्रल ‘नो योर कस्टमर’ (CKYC) डेटा को भी बेहतर तरीके से कैप्चर किया जाएगा।

RBI के ये संशोधन बैंकों को अधिक लचीलापन देंगे, उधारकर्ताओं के लिए क्रेडिट की उपलब्धता में सुधार करेंगे और वित्तीय प्रणाली में समय पर व सटीक क्रेडिट रिपोर्टिंग सुनिश्चित करेंगे।

 

RBI ने मसौदा नियमों पर राय आमंत्रित की, 20 अक्टूबर तक भेजें सुझाव:

आरबीआई ने इन मसौदा नियमों पर सुझाव और टिप्पणियां आमंत्रित की हैं। कोई भी व्यक्ति 20 अक्टूबर 2025 तक अपनी राय RBI के “कनेक्ट 2 रेगुलेट” पोर्टल पर या डिपार्टमेंट ऑफ रेगुलेशन को ईमेल के माध्यम से भेज सकती है।

 

अन्य महत्वपूर्ण बदलाव :

  • बैंकों और नियामक संस्थानों के बीच संचार और प्रक्रियाओं में सुधार।
  • बैंकिंग शुल्क, NPS पेंशन नियमों में संशोधन और रेलवे टिकट बुकिंग के नए नियम लागू होंगे।
  • UPI पर कलेक्ट रिक्वेस्ट फीचर बंद किया जाएगा जिससे धोखाधड़ी की संभावना कम होगी।
  • पॉजिटिव क्रेडिट सूचना प्रबंधन और उपभोक्ता रिकॉर्ड में त्रुटियों को सुधारने के लिए पर्यवेक्षण बढ़ेगा।

 

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI): परिचय और प्रमुख कार्य-

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भारत का केंद्रीय बैंक है, जो देश की मौद्रिक नीति और वित्तीय व्यवस्था को नियंत्रित करता है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के तहत हुई थी।

 

RBI के प्रमुख कार्य:

  • मौद्रिक प्राधिकरण: देश में मुद्रास्फीति और ऋण प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति निर्धारित और लागू करना।
  • मुद्रा का निर्गम: करेंसी नोट जारी करना और मुद्रा की आपूर्ति का प्रबंधन।
  • सरकार का बैंकर: केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बैंकर और वित्तीय सलाहकार के रूप में कार्य करना।
  • बैंकों का बैंक: वाणिज्यिक बैंकों के लिए बैंक के रूप में सेवा प्रदान करना, उनके खातों का प्रबंधन करना और ऋण उपलब्ध कराना।
  • विदेशी मुद्रा का प्रबंधक: विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन और विदेशी व्यापार को सुविधाजनक बनाना।
  • भुगतान और निपटान प्रणाली का पर्यवेक्षक: सुरक्षित और कुशल भुगतान प्रणालियों का नियमन और पर्यवेक्षण।

स्थापना और इतिहास:

  • स्थापना: हिल्टन यंग आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1 अप्रैल 1935।
  • मुख्यालय: शुरुआत में कोलकाता में, 1937 में मुंबई में स्थानांतरित।
  • वर्तमान गवर्नर (अक्टूबर 2025): संजय मल्होत्रा।

RBI न केवल वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है, बल्कि देश की आर्थिक नीतियों को दिशा देने में भी केंद्रीय है।

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