बांग्लादेश ने अपने समुद्री क्षेत्र में युद्धपोत और गश्ती हेलीकॉप्टरों की तैनाती की है। यह कदम किसी युद्ध की तैयारी के लिए नहीं, बल्कि देश की सबसे कीमती मछली हिल्सा की सुरक्षा के लिए उठाया गया है। अधिकारियों ने बताया कि प्रजनन काल के दौरान अवैध मछली पकड़ने को रोकने के लिए विशेष निगरानी अभियान चलाया जा रहा है।
हिल्सा मछली के प्रजनन क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए 4 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक तीन सप्ताह के लिए मछली पकड़ने पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है। बांग्लादेश के रक्षा बल ने कहा कि प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए 17 नौसेना युद्धपोतों और गश्ती हेलीकॉप्टरों को तैनात किया गया है। यह अभियान सुनिश्चित करेगा कि प्रजनन काल में मछली को अवैध रूप से पकड़ा न जा सके।

हिलसा: बांग्लादेश की राष्ट्रीय मछली:
हिलसा (जिसे इलिश भी कहा जाता है) बांग्लादेश की राष्ट्रीय मछली है और देश की संस्कृति, भोजन और अर्थव्यवस्था में इसका विशेष स्थान है। बांग्लादेश दुनिया में हिलसा का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
यह मछली बंगाली समुदाय में बेहद लोकप्रिय है और इसे “मछलियों की रानी” कहा जाता है। हिलसा बांग्लादेश के कुल मछली उत्पादन का लगभग 12% योगदान देती है और देश की जीडीपी में भी इसकी अहम भूमिका है। इसकी खासियत यह है कि यह नदी के मीठे पानी और समुद्र के खारे पानी दोनों में पाई जाती है। प्रजनन के समय यह समुद्र से नदियों में आती है, जिससे यह पारिस्थितिकी तंत्र का एक अनूठा हिस्सा बनती है।
हिलसा की संख्या में गिरावट:
जलवायु परिवर्तन, बढ़ते समुद्र स्तर और अत्यधिक मछली पकड़ने के कारण हिलसा की संख्या तेजी से घट रही है। 2025 के ताजा आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक हिलसा उत्पादन का 70% से अधिक बांग्लादेश से आता है, लेकिन अवैध शिकार ने इसके स्टॉक को लगभग 30% तक घटा दिया है। यह जानकारी फिशरीज डिपार्टमेंट की हालिया रिपोर्टों में सामने आई है, जो हिलसा संरक्षण की तत्काल जरूरत को रेखांकित करती है।
बांग्लादेश में हिलसा मछली का आर्थिक महत्व:
बांग्लादेश में हर साल लगभग 3,87,000 हिल्सा मछलियों का उत्पादन होता है, और हिल्सा मछली का बाजार करीब 158.7 अरब टका (बांग्लादेशी मुद्रा) का है। यह उत्पादन बांग्लादेश के कुल जीडीपी का लगभग 1% योगदान देता है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष हिलसा मछली को बांग्लादेश के भौगोलिक पहचान (Geographical Indication – GI) का दर्जा भी मिला, जिससे इसकी विशिष्टता और संरक्षण को कानूनी मान्यता प्राप्त हुई।
हिल्सा मछली की कीमत और महत्व:
हिल्सा (इलिश) राष्ट्रीय मछली होने के साथ ही इसे ‘मां’ का दर्जा भी प्राप्त है। यह मछली प्रजनन के लिए हर साल समुद्र (गर्म पानी) से नदियों (ठंडे पानी) की ओर लौटती है। हिल्सा पर लाखों लोगों की आजीविका निर्भर है। ढाका में इसकी कीमत वर्तमान में 2800 से 3000 टका (लगभग 2050 से 2200 रुपए) प्रति किलो के बीच है। भारत के पश्चिम बंगाल में भी यह मछली अत्यधिक पसंद की जाती है और महंगी कीमत पर बिकती है।
हिल्सा संरक्षण पर पर्यावरण विशेषज्ञों की राय:
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और समुद्र के बढ़ते जलस्तर से हिल्सा मछली के स्टॉक पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके साथ ही यह चिंता भी जताई जा रही है कि नौसेना के युद्धपोत प्रजनन के दौरान शांत पानी में बाधा डाल सकते हैं। वर्ल्ड फिश की परियोजना के पूर्व प्रमुख मोहम्मद अब्दुल वहाब ने कहा कि हिल्सा को प्रजनन के लिए शांत और निर्बाध पानी चाहिए और इस उद्देश्य के लिए ड्रोन का इस्तेमाल अधिक प्रभावी होगा।
सरकार की मदद और मछुआरों की चुनौतियां: बांग्लादेश सरकार ने प्रजनन अवधि के दौरान मछुआरों के समर्थन के लिए हर मछुआरे परिवार को 25 किलो चावल प्रदान किया है। हालांकि, कई मछुआरों का कहना है कि यह पर्याप्त नहीं है। क्योकि उनका जीवनयापन उसी से होता है।
भारत-बांग्लादेश के बीच हिल्सा को लेकर तनाव:
भारत और बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक विवाद में हिल्सा मछली अक्सर चर्चा का विषय रही है। तीस्ता नदी के पानी पर दिल्ली और ढाका के बीच बातचीत विफल होने के बाद, बांग्लादेश ने 2012 से 2018 के बीच हिल्सा के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। इससे पश्चिम बंगाल में निराशा फैल गई, जहां लोग इस मछली का आनंद लेने के लिए उत्सुक रहते हैं। पिछले साल शेख हसीना के तख्तापलट के बाद यूनुस सरकार ने दुर्गा पूजा से पहले लंबे समय तक हिल्सा के निर्यात पर रोक लगा रखी थी।
फरक्का बैराज का हिल्सा मछली पर प्रभाव:
1971 में चालू किया गया फरक्का बैराज हिल्सा मछली की प्रवास प्रक्रिया में एक बड़ा अवरोध बन गया है। बैराज ने नदी के प्रवाह और पानी के खारापन (सालिनिटी) को बदल दिया है, जिससे हिल्सा के प्रजनन और उत्पादन पर जटिल और दूरगामी प्रभाव पड़े हैं।
CIFRI के अध्ययन के अनुसार, बैराज के कारण हिल्सा मछली गंगा नदी के उन ऊपरी हिस्सों तक नहीं पहुँच पाती जहां यह अंडे देती है। इससे मछली की संख्या और उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा है।

हिलसा विवाद और कूटनीतिक पहल:
विवाद के मुख्य कारण:
- निर्यात पर प्रतिबंध: 2012 में बांग्लादेश ने हिल्सा के निर्यात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि देश में हिल्सा की आपूर्ति कम थी और कीमतें बढ़ रही थीं।
- तीस्ता नदी जल-बंटवारा विवाद: हिल्सा पर प्रतिबंध आंशिक रूप से तीस्ता नदी के जल-बंटवारे को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच चल रहे विवाद का नतीजा था। हालांकि यह प्रतिबंध 2018 में हटा लिया गया, लेकिन दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों के दौरान यह मुद्दा फिर उभरता है।
- अत्यधिक मछली पकड़ना: पर्यावरणविदों के अनुसार, प्रजनन काल में अत्यधिक मछली पकड़ने से हिल्सा मछलियों की संख्या कम हो सकती है, जिससे दोनों देशों में स्टॉक प्रभावित होता है।
- राजनीतिक बदलाव: 2024 में शेख हसीना की सरकार के सत्ता से हटने के बाद, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने हिल्सा निर्यात पर प्रतिबंध लगाया। इसे भारत के साथ संबंधों में बदलाव के रूप में देखा गया, हालांकि बाद में यह प्रतिबंध हटा लिया गया।
हिलसा कूटनीति:
- सद्भावना का संकेत: शेख हसीना की पिछली सरकारें दुर्गा पूजा के समय भारत को हिल्सा निर्यात की विशेष अनुमति देती थीं, खासकर पश्चिम बंगाल में जहां इसकी मांग बहुत अधिक होती है।
- संबंध सुधारने की कोशिश: 2025 में बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार ने दुर्गा पूजा से पहले भारत को 1,200 टन हिल्सा निर्यात की मंजूरी दी, जिससे तनावपूर्ण संबंधों को बेहतर बनाने का प्रयास किया गया।
दोनों बंगाल में हिल्सा का सांस्कृतिक महत्व:
हिल्सा को दोनों तरफ के बंगाली समुदाय में “मछलियों की रानी” का दर्जा प्राप्त है। हालांकि, बंटवारे के बाद भी बहस जारी है कि कौन सी हिल्सा अधिक स्वादिष्ट है बांग्लादेश की पद्मा नदी की या पश्चिम बंगाल की गंगा नदी की। आम धारणा है कि जब मछली समुद्र से ऊपर आकर नदी में आती है, तो इसका स्वाद और बढ़ जाता है। बंगाली साहित्य में भी हिल्सा का विशेष स्थान है; रवींद्रनाथ टैगोर और जीवनानंद दास जैसे कवियों ने इस मछली पर अपनी रचनाओं में उल्लेख किया है।
पश्चिम बंगाल में हिलसा की उच्च मांग:
हिलसा मछली दुर्गा पूजा के दौरान विशेष रूप से लोकप्रिय मानी जाती है और इसे बंगाल में “मछलियों का राजा” कहा जाता है। त्योहार के समय इसकी मांग बहुत बढ़ जाती है, इसलिए बांग्लादेश हर साल सीमित मात्रा में भारत को हिलसा की आपूर्ति करता है। 2024 में, बांग्लादेश ने 3,000 टन पर विचार करने के बाद 2,420 टन हिलसा निर्यात की अनुमति दी थी। 2025 में इस कोटा को घटाकर 1,200 टन कर दिया गया है।
निष्कर्ष: हिल्सा मछली प्रजनन के दौरान कमजोर होती है और इसी समय इसकी सुरक्षा करना बेहद जरूरी है। बांग्लादेश सरकार द्वारा युद्धपोत और गश्ती हेलीकॉप्टर तैनात करना इस महत्वपूर्ण अवधि में मछली के संरक्षण और उसके प्रजनन को सुनिश्चित करने के लिए अहम कदम है।