उत्तराखंड में रहस्यमयी बुखार का कहर: अल्मोड़ा और हरिद्वार में हुई 10 लोगों की मौत, जांच के लिए भेजे गए सैंपल..

उत्तराखंड के अल्मोड़ा और हरिद्वार जिलों में पिछले दो सप्ताह के अंदर अचानक और अस्पष्टीकृत बीमारी के कारण कम से कम दस लोगों की मौत हो गई है। अल्मोड़ा के धौलादेवी ब्लॉक में सात और हरिद्वार के रुड़की क्षेत्र में तीन लोगों की जान गई है। रहस्यमयी बुखार के इस तेजी से फैलने वाले प्रकोप ने स्थानीय लोगों में डर और चिंता बढ़ा दी है और स्वास्थ्य अधिकारियों को तुरंत कार्रवाई करने पर मजबूर कर दिया है।

मरीजों को तेज़ बुखार और प्लेटलेट्स की संख्या में गिरावट जैसी परेशानियाँ हो रही हैं। प्रभावित लोगों में दिख रहे लक्षण जैसे: तेज़ बुखार और प्लेटलेट्स की गिरावट-अक्सर डेंगू और मलेरिया जैसी वायरल बीमारियों में पाए जाते हैं, इसलिए यह संभावना जताई जा रही है कि यह कोई वेक्टर जनित बीमारी हो सकती है। लेकिन अल्मोड़ा के डॉक्टरों ने कहा है कि जांच के लिए नमूने भेज दिए गए हैं और नतीजे आने तक कुछ भी निश्चित नहीं कहा जा सकता।

Mysterious fever wreaks havoc in Uttarakhand

वेक्टर जनित रोग क्या है?

वेक्टर जनित रोग वे बीमारियाँ होती हैं जो वेक्टर यानी मच्छर, किलनी, पिस्सू जैसी कीटों के जरिए फैलती हैं। ये कीट बीमारी फैलाने वाले सूक्ष्मजीवों के वाहक होते हैं। इनकी संख्या और फैलाव का संबंध मौसम और जलवायु से होता है। ऐसी बीमारियाँ दुनिया भर में पाई जाती हैं और काफी लोगों को प्रभावित करती हैं। हर साल वेक्टर जनित रोगों की वजह से 7,00,000 से ज़्यादा लोग मरते हैं, और दुनिया भर में होने वाली संक्रामक बीमारियों में लगभग 17% रोग इन्हीं से जुड़े हैं।

 

भारत में वेक्टर जनित रोग:

भारत में हर साल लगभग 20 लाख मलेरिया के मामले सामने आते हैं और ज्यादातर ग्रामीण इलाके मलेरिया से प्रभावित हैं। ओडिशा, उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में हर साल मलेरिया के कई मामले आते हैं।

भारत में राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP) मलेरिया, चिकनगुनिया, जापानी इंसेफेलाइटिस, डेंगू, कालाजार और लसीका फाइलेरिया जैसी छह वेक्टर जनित बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए काम करता है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।

 

वेक्टर जनित रोगों को रोकने के उपाय:

  • टीके लगवाएँ और मच्छरदानी व कीट निरोधक का इस्तेमाल करें।
  • टिक की जाँच कराएँ और लंबे समय बाहर रहने के बाद कपड़े धोकर सुखाएँ।
  • घर के आस-पास स्थिर पानी, पत्तियाँ और लकड़ी के ढेर हटाएँ।

 

अल्मोड़ा की स्थिति:

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. नवीन चंद्र तिवारी ने कहा की रिपोर्ट में दर्ज सात मौतों में से सिर्फ तीन ही वायरल संक्रमण से जुड़ी लगती हैं। बाकी मौतें उम्र के कारण हुई स्वास्थ्य समस्याओं के चलते हुई प्रतीत होती हैं। उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग की टीमें प्रभावित इलाकों में मौजूद हैं, नमूने इकट्ठा कर रही हैं और मरीजों का इलाज कर रही हैं। नमूने अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज भेजे गए हैं और रिपोर्ट आने के बाद ही बीमारी का सही कारण पता चलेगा।

 

दूषित पानी हो सकती है बीमारी की वजह:

दूषित पानी बीमारी का कारण हो सकता है। जिला सर्विलांस अधिकारी डॉ. कमलेश जोशी ने बताया कि पानी सप्लाई करने वाले टैंक की जांच में कोलीफार्म बैक्टीरिया मिला है, जो टाइफाइड, डायरिया, उल्टी और हैजा जैसी बीमारियां फैला सकता है। पानी की सफाई के लिए क्लोरीनेशन कर दिया गया है, लेकिन ग्रामीणों को उबला पानी पीने की सलाह दी गई है।

धार गाँव के सुरेश पांडे कहते हैं, “पानी के टैंक की सफाई समय पर नहीं होती और पाइपलाइन टूटी हुई है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती।” धौलादेवी ब्लॉक के लगभग 7 हजार लोग सरयू–दन्या पेयजल योजना पर निर्भर हैं।

 

अल्मोड़ा के निवासियों का आरोप:

अल्मोड़ा के लोग मानते हैं कि स्थिति अधिकारियों के बताए अनुमान से कहीं ज़्यादा गंभीर है। धौलादेवी निवासी दिनेश भट्ट ने कहा, “सात लोगों की मौत हो चुकी है, फिर भी पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ। इसके बिना हम मौत का असली कारण कैसे जान पाएँगे? शायद कभी पता ही न चले।”

एक अन्य ग्रामीण गणेश पांडे ने कहा, “इस बीमारी का पता प्लेटलेट्स की संख्या में भारी गिरावट से चलता है।” मरने वालों में प्लेटलेट्स का स्तर 27,000 से 30,000 तक गिर गया था। कई लोग प्लेटलेट्स की जाँच के लिए अल्मोड़ा और हल्द्वानी भाग रहे हैं क्योंकि उन्हें स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं है।

 

हरिद्वार की स्थिति:

हरिद्वार में मंगलौर के पास मुडलाना गाँव रहस्यमयी बुखार का केंद्र बन गया है। पिछले 15 दिनों में यहाँ तीन लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग 100 से ज़्यादा लोग बीमार हुए हैं। स्वास्थ्य प्रशासन ने किसी महामारी से इनकार किया है और इन मौतों को “मौसमी वायरल बुखार और देर से इलाज” के कारण बताया है।

इनमें राव इसरार अहमद की 35 वर्षीय पत्नी सितारा भी शामिल थीं, जिन्हें एक हफ़्ते से तेज़ बुखार था और प्लेटलेट्स तेजी से गिर रहे थे। परिवार उन्हें देहरादून के अस्पताल ले गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका। इसी तरह ओमवीर सिंह के 13 वर्षीय बेटे और रतन सिंह की 22 वर्षीय बेटी की भी पिछले पखवाड़े में मौत हो गई।

 

हरिद्वार के निवासियों का आरोप:

हरिद्वार के लोग मानते हैं कि स्वास्थ्य अधिकारी स्थिति को हल्का दिखा रहे हैं। ग्राम प्रधान कुंवर सिंह कहते हैं, “स्वास्थ्य विभाग के नमूनों में डेंगू नहीं मिला, लेकिन कई निजी लैब की रिपोर्ट में डेंगू पॉजिटिव पाए गए हैं। गाँव में करीब सौ लोग इस बुखार से पीड़ित हैं और अलग-अलग जगहों पर इलाज करवा रहे हैं। साथ ही, मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए खुद फॉगिंग भी की है।”

 

हरिद्वार के ज़िला मलेरिया कार्यालय के अनुसार,

हरिद्वार ज़िला मलेरिया कार्यालय के अनुसार, 9 और 10 अक्टूबर को गाँव में 90 लोगों के नमूने जाँच के लिए लिए गए। रैपिड टेस्ट में आठ लोग डेंगू पॉजिटिव पाए गए, लेकिन एलिसा टेस्ट में केवल एक ही मामले की पुष्टि हुई। अधिकारियों ने बताया कि 24 सितंबर से ज़िले के डेंगू संदिग्ध इलाकों में रक्त के नमूने इकट्ठा करने के लिए शिविर लगाए जा रहे हैं। अब तक डेंगू के 17 पुष्ट मामले सामने आए हैं, लेकिन आधिकारिक तौर पर किसी की मौत दर्ज नहीं हुई है।

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि “जिले में कोई रहस्यमयी बुखार या डेंगू का प्रकोप नहीं है। यह एक सामान्य मौसमी वायरल बुखार लगता है। सर्दियों के शुरू होने के साथ ही मामलों की संख्या में स्वाभाविक रूप से कमी आने की उम्मीद है।”

 

निष्कर्ष:

अल्मोड़ा और हरिद्वार में हुई मौतों ने स्थानीय समुदाय और स्वास्थ्य विभाग को सतर्क कर दिया है। बुखार का कारण अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन जांच जारी है। समय पर सतर्कता और स्वच्छता से संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है।

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