यूएस चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा नए H-1B वीज़ा पर $1 लाख शुल्क लगाने के फैसले के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। चेम्बर ने कहा कि यह भारी शुल्क उन कंपनियों के लिए समस्या पैदा करेगा जो H-1B वीज़ा कार्यक्रम पर निर्भर हैं, क्योंकि उन्हें या तो श्रम लागत बढ़ानी होगी या कुशल पेशेवरों की भर्ती कम करनी होगी। वर्तमान में, कंपनियां प्रति H-1B वीज़ा लगभग $2,000 से $5,000 शुल्क देती हैं, जो कंपनी के आकार और अन्य कारकों पर निर्भर करता है। कैलिफ़ोर्निया की संघीय अदालत में संघ, नियोक्ता और धार्मिक समूहों ने भी इस शुल्क वृद्धि को चुनौती दी है।
एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नई H-1B वीज़ा आवेदन पर लागू होगा, मौजूदा वीज़ा धारकों या नवीनीकरण पर नहीं।
इस कदम से भारतीय तकनीकी पेशेवरों पर असर पड़ने की चिंता है, क्योंकि कुल H-1B वीज़ा में लगभग 71% भारतीय नागरिकों को जारी किए जाते हैं। इससे भाड़े की पेशेवर प्रतिभा और रेमिटेंस पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

H-1B वीज़ा शुल्क पर मुकदमे की प्रमुख बातें:
- अवैधता का दावा: यूएस चेम्बर ऑफ कॉमर्स का कहना है कि $1 लाख शुल्क इमिग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट का उल्लंघन करता है, जिसके अनुसार वीज़ा शुल्क केवल आवेदन प्रक्रिया की वास्तविक प्रशासनिक लागत पर आधारित होना चाहिए। पहले H-1B आवेदन शुल्क आमतौर पर $4,000 से कम था।
- आर्थिक नुकसान का दावा: शिकायत में कहा गया है कि यह अत्यधिक शुल्क अमेरिकी कंपनियों, विशेषकर स्टार्टअप्स और छोटे-मध्यम व्यवसायों के लिए समस्या खड़ी करेगा, जिससे उन्हें या तो श्रम लागत बढ़ानी होगी या कुशल पेशेवरों की भर्ती कम करनी होगी, और इसका अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- लक्षित वीज़ा: सितंबर 2025 में जारी इस $1 लाख शुल्क वाली घोषणा केवल नई H-1B वीज़ा याचिकाओं पर लागू होती है, न कि नवीनीकरण या मौजूदा वीज़ा धारकों पर।
- ट्रंप प्रशासन का औचित्य: व्हाइट हाउस का कहना है कि यह शुल्क कंपनियों को विदेशी श्रमिकों का इस्तेमाल करके अमेरिकी मजदूरी घटाने से रोकने के लिए है। इसके लिए छूट का अनुरोध भी किया जा सकता है।
- उद्योग और राष्ट्रीय प्रभाव: टेक कंपनियों जैसे अमेज़न और माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि H-1B कार्यक्रम विशेषज्ञ भूमिकाओं को भरने के लिए महत्वपूर्ण है। अधिकांश H-1B वीज़ा भारतीय नागरिकों को जारी किए जाते हैं, इसलिए यह शुल्क भारतीय पेशेवरों पर असमान प्रभाव डालता है।
अमेरिका ने H-1B वीज़ा शुल्क बढ़ाकर $1 लाख किया, विदेशी कर्मचारियों पर बड़ा प्रभाव:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत H-1B वीज़ा की वार्षिक आवेदन फीस बढ़ाकर $100,000 (लगभग 88 लाख रुपये) कर दी गई है। यह वीज़ा उन कुशल विदेशी कर्मचारियों के लिए है जो सीमित अवधि (आमतौर पर तीन साल) के लिए अमेरिका में कानूनी रूप से काम करना चाहते हैं। अमेरिकी टेक कंपनियां इस वीज़ा कार्यक्रम का सबसे अधिक उपयोग करती हैं।
नई फीस की जानकारी:
- पहले औसतन फीस: लगभग 6 लाख रुपये (तीन साल के लिए)
- अब फीस: लगभग 88 लाख रुपये प्रति वर्ष, यानी तीन साल के लिए 2.64 करोड़ रुपये
- छह साल के लिए कुल शुल्क: 5.28 करोड़ रुपये, यानी खर्च लगभग 50 गुना बढ़ गया
नीति का उद्देश्य: राष्ट्रपति ट्रंप के अनुसार यह कदम कंपनियों को अमेरिकी नागरिकों को रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास है। उन्होंने कहा, “अगर आप किसी को प्रशिक्षण देने जा रहे हैं, तो अमेरिका के हाल ही में स्नातक हुए छात्रों को प्रशिक्षित करें। अमेरिकियों को रोजगार दें और हमारे देश के लोगों की नौकरी लेने के लिए बाहरी लोगों को लाना बंद करें।”
विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से भारतीय तकनीकी पेशेवरों और H-1B वीज़ा कार्यक्रम पर निर्भर कंपनियों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।
एच1बी वीजा क्या है?
एच1बी वीजा एक अमेरिकी वीज़ा प्रोग्राम है जो अमेरिकी कंपनियों को विशेष कौशल वाले विदेशी कर्मचारियों को स्पॉन्सर करने की अनुमति देता है। यह वीज़ा आम तौर पर तीन साल के लिए जारी किया जाता है और छह साल तक बढ़ाया जा सकता है।
एच-1बी वीज़ा के लिए पात्र कौन हैं?
एच-1बी वीज़ा एक नियोक्ता प्रायोजित (Employer-Sponsored) वीज़ा है। इसका अर्थ यह है कि वीज़ा आवेदन की फीस और प्रक्रिया नियोक्ता द्वारा पूरी की जाती है, न कि कर्मचारी द्वारा।
पात्रता की मुख्य शर्तें:
- नियोक्ता आवेदन करेगा: कर्मचारी की ओर से नियोक्ता ही वीज़ा के लिए आवेदन करता है।
- कौशल और योग्यता: नियोक्ता को साबित करना होता है कि कर्मचारी उनके व्यवसाय या संगठन के लिए आवश्यक कौशल और उपयुक्तता रखता है।
- विशेष व्यवसाय: आमतौर पर यह वीज़ा उन क्षेत्रों के लिए दिया जाता है जिनमें विशेष कौशल की आवश्यकता होती है, जैसे:
- इंजीनियरिंग (Engineering)
- जीव विज्ञान (Life Sciences)
- भौतिक विज्ञान (Physical Sciences)
- गणित (Mathematics) और व्यापार प्रबंधन (Business Management)
एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम कब शुरू हुआ?
एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम की शुरुआत 1990 में हुई थी और इसे अमेरिका के आव्रजन अधिनियम (Immigration Act) के तहत बनाया गया। यह कार्यक्रम अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कुशल कर्मचारियों को नौकरी देने की अनुमति देता है।
कोटा और अवधि:
- अमेरिका सरकार हर साल विभिन्न कंपनियों को 65,000–85,000 H-1B वीज़ा प्रदान करती है।
- इसके अतिरिक्त, अमेरिकी एडवांस डिग्रीधारकों के लिए 20,000 अतिरिक्त वीज़ा दिए जाते हैं।
- यह वीज़ा तीन साल के लिए मान्य होता है और इसे अगले तीन वर्षों के लिए नवीनीकृत (Renew) किया जा सकता है।
लाभ और सांख्यिकीय तथ्य:
- इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभ भारतीय कर्मचारियों को मिला है, जो पूरे वीज़ा कोटे का लगभग 73 प्रतिशत हासिल कर लेते हैं।
- H-1B वीज़ा के माध्यम से अमेरिकी कंपनियां विदेशी कुशल कर्मचारियों को अपनी टीम में शामिल कर सकती हैं और तकनीकी उद्योग में वैश्विक प्रतिभा का लाभ उठा सकती हैं।
देश के अनुसार H1B वीज़ा उपयोगकर्ता:

ट्रम्प ने H-1B वीज़ा शुल्क बढ़ाने के कारण और भारतीय पेशेवरों पर असर:
शुल्क वृद्धि के कारण:
- STEM क्षेत्रों में रोजगार और श्रमिक असंतुलन: 2000-2019 के बीच विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों में नौकरियों में केवल 5% वृद्धि हुई, जबकि कामगारों की संख्या 12 लाख से बढ़कर 25 लाख हो गई।
- H-1B प्रणाली में हेरफेर: कई आईटी कंपनियों ने H-1B वीज़ा प्रणाली का दुरुपयोग किया, जिससे अमेरिकी श्रमिकों को नुकसान पहुँचा।
- आईटी कर्मचारियों की बढ़ती हिस्सेदारी: 2003 में H-1B कर्मचारियों में आईटी पेशेवरों का हिस्सा 32% था, जो पिछले पांच वित्तीय वर्षों में औसतन 65% से अधिक हो गया।
- आउटसोर्सिंग और नौकरियों का विदेश जाना: बड़े H-1B नियोक्ता लगातार IT आउटसोर्सिंग कर अमेरिकी नौकरियों को विदेश स्थानांतरित कर रहे हैं।
- कमीशन लागत के लिए विदेशी श्रमिकों का लाभ:
- कंपनियां अमेरिकी कर्मचारियों को निकालकर कम वेतन पर विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करती हैं।
- H-1B वीज़ा मंजूरी मिलने के बाद यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।
भारतीय कर्मचारियों पर असर:
- H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि और नियमों में बदलाव का सीधा असर भारतीय पेशेवरों पर पड़ेगा।
- अनुमान है कि लगभग 2,00,000 से अधिक भारतीय प्रभावित होंगे।
- 2023 में H-1B वीज़ा प्राप्त करने वालों में 1,91,000 लोग भारतीय थे।
- 2024 में यह संख्या बढ़कर 2,07,000 हो गई।
- भारत की IT और टेक कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों को H-1B वीज़ा पर अमेरिका भेजती हैं, लेकिन इतनी ऊँची फीस अब कंपनियों के लिए कर्मचारियों को अमेरिका भेजना कम फायदेमंद बना देगी। इसका परिणाम यह हो सकता है कि कई कंपनियां भर्ती योजनाओं में संशोधन करें और कुछ विदेशी कर्मचारियों की संख्या घटा दें।
निष्कर्ष:
मुकदमे में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह यह घोषित करे कि राष्ट्रपति ट्रंप ने अपनी कार्यकारी शक्तियों का उल्लंघन किया है और संघीय एजेंसियों को नई H-1B फीस लागू करने से रोके। 17 अक्टूबर 2025 तक यह मामला विचाराधीन है। इसका नतीजा अमेरिकी आप्रवासन नीति और कुशल विदेशी प्रतिभा पर निर्भर अमेरिकी व्यवसायों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।