श्रीलंका की प्रधानमंत्री डॉ. हरिनी अमरसूर्या 16 से 18 अक्टूबर तक तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर भारत आई हैं। यह पदभार संभालने के बाद उनकी पहली भारत यात्रा है, जिसमें वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात कर द्विपक्षीय संबंधों और आपसी हितों पर चर्चा करेंगी। उनकी यह यात्रा मंगलवार को चीन की तीन दिवसीय यात्रा पूरी करने के बाद हो रही है।

भारत यात्रा से पहले अमरसूर्या ने कहा,
श्रीलंका के प्रधानमंत्री के रूप में यह मेरी पहली आधिकारिक भारत यात्रा है। भारत और श्रीलंका इतिहास, संस्कृति और साझा मूल्यों से गहराई से जुड़े हुए हैं। हमारे संबंध बहुत मजबूत और महत्वपूर्ण हैं। मैं इस यात्रा के दौरान व्यापार, निवेश, शिक्षा और विकास जैसे क्षेत्रों में हमारे सहयोग को और आगे बढ़ाने के लिए उत्साहित हूँ।
भारत यात्रा के दौरान उनके कार्यक्रम:
भारत यात्रा के दौरान श्रीलंका की प्रधानमंत्री डॉ. हरिनी अमरसूर्या कई अहम कार्यक्रमों में शामिल होंगी। वह दिल्ली में NDTV और चिंतन रिसर्च फाउंडेशन द्वारा आयोजित ‘NDTV वर्ल्ड समिट’ में मुख्य भाषण देंगी। विदेश मंत्रालय के अनुसार, अमरसूर्या, जो श्रीलंका की शिक्षा मंत्री भी हैं, IIT दिल्ली और नीति आयोग का दौरा करेंगी ताकि शिक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग की नई संभावनाओं पर चर्चा की जा सके। प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री से मुलाकात भी करेंगी।
इसके अलावा, वह भारत-श्रीलंका के व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने के लिए एक व्यापारिक कार्यक्रम में भी भाग लेंगी। डॉ. अमरसूर्या, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज की पूर्व छात्रा हैं, अपनी इस यात्रा के दौरान अपने कॉलेज (अल्मा मेटर) का भी दौरा करेंगी।
हिंदू कॉलेज की पूर्व छात्रा: कहा- कॉलेज वापस आकर बहुत अच्छा लगा:
श्रीलंका की प्रधानमंत्री डॉ. हरिनी अमरसूर्या ने अपने पुराने कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज का दौरा किया, जहाँ वे 1991 से 1994 तक पढ़ी थीं। उनके आगमन पर NCC कैडेटों द्वारा उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। क्लास 27 में बैठकर उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों को याद किया, जहाँ वे खिड़की के पास बैठकर नोट्स लिखा करती थीं।
कॉलेज लौटने पर हरिनी ने कहा कि यहां वापस आकर बहुत अच्छा लग रहा है और नए छात्रों को देखकर उन्हें बहुत उम्मीद मिलती है। उन्होंने राजनीति को बेहतर बनाने के लिए भ्रष्टाचार और पक्षपात खत्म करने की बात कही और लोगों से राजनीति से दूर न भागने की अपील की, क्योंकि यही दुनिया बदलने का रास्ता है। हरिनी ने देशों के बीच दीवारों की बजाय पुल बनाने का संदेश दिया और भारत की डिजिटल गवर्नेंस की प्रगति की सराहना करते हुए इसे दूसरे देशों के लिए एक उदाहरण बताया।
भारत के मॉडल पर बारीकी से नज़र: अमरसूर्या
डॉ. हरिनी अमरसूर्या ने कहा कि श्रीलंका भारत के विकास मॉडल को ध्यान से देख रहा है, ताकि यह समझा जा सके कि ऐसी पहलें अपने देश में कैसे लागू की जा सकती हैं। मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा, “हम भारत से सीखने की कोशिश कर रहे हैं कि श्रीलंका में भी ऐसा कैसे किया जा सकता है। लेकिन मेरे दोस्त मज़ाक में कहते हैं कि मैं तकनीक को अपनाने में थोड़ी देर करती हूँ।”
नीति आयोग के भूमिका की सराहना:
श्रीलंका की प्रधानमंत्री डॉ. हरिनी अमरसूर्या ने नीति आयोग की सराहना करते हुए कहा कि यह दीर्घकालिक नीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने में अहम भूमिका निभा रहा है। उन्होंने आयोग के केंद्रीय मंत्रालयों और राज्यों के साथ समन्वय की प्रक्रिया और साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण में दिलचस्पी दिखाई।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन के. बेरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में पीएम गति शक्ति, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, पर्यटन सहयोग, और डिजिटल नवाचार जैसी पहलों पर चर्चा हुई। दोनों देशों ने ‘पड़ोसी प्रथम’ और ‘महासागर विजन’ के तहत तकनीक और ज्ञान आधारित साझेदारी को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई।
‘महासागर विजन’ और ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति होगी सुदृढ़:
विदेश मंत्रालय ने बताया कि श्रीलंकाई प्रधानमंत्री की यह यात्रा भारत और श्रीलंका के बीच ऊँचे स्तर पर हो रहे नियमित संवाद की परंपरा को आगे बढ़ाएगी। इससे दोनों देशों के गहरे और बहुआयामी संबंध और मजबूत होंगे।
मंत्रालय ने कहा कि यह दौरा भारत की ‘महासागर विजन’ और ‘पड़ोसी प्रथम’ नीति को और सुदृढ़ करेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने मार्च में मॉरीशस की यात्रा के दौरान ‘महासागर विजन’ की घोषणा की थी।
‘महासागर विजन’ क्या है?
‘महासागर विजन’ का मतलब है– “क्षेत्र में सभी के लिए सक्रिय सुरक्षा और विकास के लिए समुद्री सहयोग।” इसका उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के बीच आपसी सहयोग और संवाद को बढ़ावा देना है। इस पहल में बांग्लादेश, मालदीव, श्रीलंका, मॉरीशस, केन्या, सेशेल्स, मेडागास्कर, मोजाम्बिक, कोमोरोस और तंजानिया जैसे देशों की नौसेनाएँ और समुद्री एजेंसियाँ शामिल हैं।
‘महासागर विजन’ भारत सरकार की ‘सागर नीति’ (क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के अनुरूप है, जिसे भारत ने 2015 में हिंद महासागर क्षेत्र में आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के लिए शुरू किया था।
महासागर विजन का महत्व:
- छोटे देशों के साथ मजबूत संबंध बनाना।
- समुद्री क्षेत्रों के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
- अवैध गतिविधियों पर रोक लगाना।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दीर्घकालिक अवसर प्रदान करना।
महासागर विजन के समक्ष चुनौतियाँ:
- इसकी सैद्धांतिक नींव पर्याप्त मजबूत नहीं है।
- कार्यान्वयन और निगरानी में कठिनाइयाँ हैं।
- असरदार तरीके से लागू करने के लिए पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है।
भारत की पड़ोस प्रथम नीति (NFP) के बारे में:
- उत्पत्ति: NFP की योजना 2008 में बनाई गई, और 2014 के बाद इसे अधिक महत्व दिया गया।
- अवधारणा: यह नीति भारत के निकटतम पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने का तरीका बताती है।
- शामिल देश: अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
- उद्देश्य: पूरे क्षेत्र में भौतिक, डिजिटल और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाना, साथ ही व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देना।
- सहभागिता के प्रमुख सिद्धांत (5S): सम्मान, संवाद, शांति, समृद्धि और संस्कृति, जो परामर्शात्मक, परिणामोन्मुखी और समग्र दृष्टिकोण से लागू होंगे।
स्टालिन ने की कच्चाथीवू वापस लेने की मांग:
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर श्रीलंका से कच्चाथीवू द्वीप वापस लेने और मछुआरों की समस्याओं को हल करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि कच्चाथीवू द्वीप पहले भारत का हिस्सा था, लेकिन 1974 में बिना राज्य सरकार की अनुमति के इसे श्रीलंका को सौंप दिया गया। इसके बाद से तमिलनाडु के मछुआरों को मछली पकड़ने में लगातार दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
आपको बता दे वर्ष 2021 से अब तक 106 अलग-अलग घटनाओं में 1482 मछुआरों और 198 मछली पकड़ने वाली नौकाओं को हिरासत में लिया जा चूका है।
कच्चातीवु द्वीप के बारे में:
कच्चातीवु भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य में स्थित 285 एकड़ का एक निर्जन द्वीप है। यह रामेश्वरम के उत्तर-पूर्व में, भारतीय तट से लगभग 33 किमी दूर और जाफना, श्रीलंका से लगभग 62 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
द्वीप स्थायी मानव बस्ती के लिए उपयुक्त नहीं है, क्योंकि यहां पीने का पानी उपलब्ध नहीं है। द्वीप की एकमात्र प्रमुख संरचना है सेंट एंथोनी चर्च, जो 20वीं शताब्दी का एक कैथोलिक तीर्थस्थल है। यहाँ भारत और श्रीलंका के ईसाई पादरी वार्षिक उत्सव सेवाएँ आयोजित करते हैं, जिसमें दोनों देशों के श्रद्धालु भाग लेते हैं।
कच्चातीवु द्वीप का इतिहास:
- उत्पत्ति: यह द्वीप 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बना।
- प्रारंभिक शासक: प्रारंभिक मध्यकाल में यह क्षेत्र श्रीलंका के जाफना साम्राज्य के अधीन था। 17वीं शताब्दी में रामनाद जमींदारी के तहत मदुरै के नायक वंश के नियंत्रण में आ गया।
- स्वामित्व विवाद:
- भारत का पक्ष: द्वीप पर भारत और श्रीलंका का दावा 1974 तक जारी रहा। यह द्वीप पहले ब्रिटिश राज के दौरान मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा था।
- श्रीलंका का पक्ष: श्रीलंका का दावा था कि 1505-1658 ई. में पुर्तगालियों ने इस द्वीप पर कब्जा किया और अपना अधिकार स्थापित किया।
- मुख्य घटनाएँ:
- 1974: भारत-श्रीलंका समुद्री समझौते के तहत द्वीप श्रीलंका को सौंपा गया।
- 1976: एक अतिरिक्त समझौते के तहत दोनों देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में मछली पकड़ने पर रोक लगी, जिससे मछली पकड़ने के अधिकारों में अस्पष्टता आई।
- 2009: श्रीलंका के गृह युद्ध के बाद भारतीय मछुआरों के जलक्षेत्र में प्रवेश को लेकर तनाव बढ़ा, गिरफ्तारियाँ हुईं और कच्चातीवु के वापसी की मांग फिर से उठी।
निष्कर्ष:
श्रीलंका की प्रधानमंत्री डॉ. हरिनी अमरसूर्या की यह भारत यात्रा दोनों देशों के गहरे और बहुआयामी संबंधों को और मजबूती प्रदान करने, व्यापार, निवेश, शिक्षा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय साझेदारी को सुदृढ़ करने का महत्वपूर्ण अवसर है।