वैश्विक तनावों के बीच सेफ-हेवन डिमांड के चलते तेज़ी से उछलने के बाद अब सोना और चांदी दोनों की चमक फीकी पड़ने लगी है। इस महीने की शुरुआत में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बाद दोनों कीमती धातुओं में तेज गिरावट देखी जा रही है। निवेशकों द्वारा मुनाफावसूली और इक्विटी जैसे जोखिम वाले एसेट्स की ओर रुख करने से दामों में तेजी से सुधार हुआ है। सोना, जो हाल ही में करीब 4,381 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गया था, और चांदी, जो 54.5 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर थी, अब लगभग 13% तक लुढ़क चुकी हैं। भारतीय बाजार में भी चांदी अपने रिकॉर्ड स्तर से करीब 25,600 रुपये सस्ती हो गई है।

रिकॉर्ड स्तर से लुढ़की चांदी की कीमतें:
सोने के बाद अब चांदी की कीमतों में भी तेज़ गिरावट देखने को मिल रही है। 17 अक्टूबर 2025 को MCX पर ₹1,70,415 प्रति किलोग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद चांदी में मुनाफावसूली और अमेरिका-चीन के बीच व्यापारिक तनावों में कमी के चलते भारी करेक्शन आया। कुछ ही दिनों में दामों में 13% से ज़्यादा की गिरावट दर्ज की गई।
मुख्य घटनाक्रम:
- 17 अक्टूबर 2025: चांदी ने MCX पर ₹1,70,415 प्रति किग्रा का रिकॉर्ड हाई छुआ।
- 18 अक्टूबर: मुनाफावसूली के चलते कीमतें और लुढ़कीं, ₹1,53,929 प्रति किग्रा पर आ गईं- रिकॉर्ड स्तर से 8% से अधिक की गिरावट।
- 20 अक्टूबर (दीवाली): प्री–करेक्शन स्तर से दाम लगभग 7% घटकर ₹1,60,100 प्रति किग्रा रहे।
- 23 अक्टूबर 2025: MCX पर सिल्वर फ्यूचर्स ₹1,47,999 प्रति किग्रा के आसपास ट्रेड कर रहे थे- जो रिकॉर्ड हाई से16% नीचे है।
विश्लेषकों के अनुसार, यह गिरावट मुख्य रूप से मुनाफावसूली, वैश्विक बाजारों में जोखिम लेने की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी और अमेरिका-चीन के बीच तनावों में नरमी के कारण आई है।

चांदी 45 साल बाद 54.47 अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची, 2025 में 85% की बढ़ोतरी:
वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच 2025 में चांदी की कीमतों में जबरदस्त उछाल देखने को मिला। 17 अक्टूबर 2025 को चांदी ने US$54.47 प्रति औंस के नए सर्वकालिक उच्च स्तर को छुआ। यह उसका 45 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ने वाला क्षण था। इससे पहले 9 अक्टूबर 2025 को चांदी ने पहली बार 1980 के रिकॉर्ड स्तर को पार किया था।
2024 के अंत में US$28.99 प्रति औंस पर बंद होने के बाद 2025 में चांदी की कीमतों में 85% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई, जो मुख्य रूप से सेफ-हेवन डिमांड में बढ़ोतरी, आर्थिक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों से प्रेरित रही। इतिहास में देखे तो चांदी का पिछला सर्वकालिक उच्च स्तर US$49.95 प्रति औंस था, जो 17 जनवरी 1980 को दर्ज किया गया था।
चांदी की कीमतें महज 10 महीनों में हुई दोगुनी:
तेजी के दौर में चांदी की कीमतों ने महज 10 महीनों में दोगुनी छलांग लगाई है। जनवरी 2025 में करीब ₹86,000 प्रति किलोग्राम से बढ़कर अक्टूबर 2025 तक यह ₹1.70 लाख प्रति किलोग्राम के आसपास पहुंच गई। यह चांदी के इतिहास में अब तक की सबसे तेज़ बढ़त मानी जा रही है। इस दौरान चांदी ने सोने से 37% अधिक रिटर्न दिया, साथ ही शेयर बाजार और फिक्स्ड डिपॉज़िट जैसे पारंपरिक निवेश साधनों को भी पीछे छोड़ दिया।
चाँदी ने हाल के वर्षों में उल्लेखनीय रिटर्न दिए हैं:

हाल ही में चांदी की कीमतें क्यों बढ़ रही हैं?
चांदी की कीमतों में हाल ही में तेज़ उछाल के पीछे मजबूत औद्योगिक मांग, लगातार सप्लाई की कमी और भू-राजनीतिक अनिश्चितता मुख्य कारण हैं।
- औद्योगिक मांग: पिछले कुछ वर्षों में चांदी की औद्योगिक खपत में भारी वृद्धि हुई है, खासकर सोलर एनर्जी, इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और 5G तकनीकों में। इस बढ़ती मांग ने उपलब्ध आपूर्ति पर दबाव बढ़ा दिया है और कीमतों को ऊपर धकेला है।
- सप्लाई की कमी: चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं से औद्योगिक मांग के कारण वैश्विक चांदी बाजार में लगातार पांच साल से सप्लाई घाटा बना हुआ है। यह कमी बाजार भावना को बढ़ावा दे रही है और घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कीमतों को ऊपर ले जा रही है।
- भू-राजनीतिक अनिश्चितता: चांदी को अक्सर सेफ-हेवन एसेट माना जाता है, और भू-राजनीतिक तनाव के समय इसकी मांग बढ़ जाती है। ट्रेड वार की चिंताएं, बाजार में उतार-चढ़ाव, अमेरिकी सरकारी शटडाउन के कारण आर्थिक डेटा में देरी और अस्थिर वैश्विक माहौल निवेशकों को चांदी की ओर आकर्षित कर रहे हैं, जिससे कीमतें और बढ़ रही हैं।
अब चांदी की कीमतों में गिरावट के कारण क्या है?
रिकॉर्ड ऊंचाइयों छूने के बाद चांदी की कीमतों में तेज़ गिरावट देखी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह गिरावट कई कारणों से आई है, जिनमें मुनाफावसूली, अमेरिकी डॉलर की मजबूती, भू-राजनीतिक तनावों में कमी और औद्योगिक मांग में गिरावट प्रमुख हैं।
चांदी की कीमतों में गिरावट के प्रमुख कारण:
- मुनाफावसूली: लंबी तेजी के बाद जब चांदी रिकॉर्ड स्तरों पर पहुंची, निवेशकों ने लाभ बुक करना शुरू कर दिया, जिससे बाजार में स्वाभाविक करेक्शन आया।
- अमेरिकी डॉलर की मजबूती: डॉलर के मजबूत होने से अन्य मुद्राओं में खरीदने वालों के लिए चांदी महंगी हो गई, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग कमजोर पड़ी।
- भू-राजनीतिक तनावों में कमी: अमेरिका-चीन के बीच व्यापारिक वार्ताओं और वैश्विक संबंधों में सुधार से सेफ-हेवन डिमांड घटी, और निवेशकों ने इक्विटी जैसे जोखिम वाले एसेट्स की ओर रुख किया।
- औद्योगिक मांग में गिरावट: इलेक्ट्रॉनिक्स, सोलर पैनल और मेडिकल उपकरण उद्योगों में मांग की रफ्तार धीमी पड़ी, जिससे चांदी की औद्योगिक खपत प्रभावित हुई।
- फेडरल रिज़र्व नीति में अनिश्चितता: अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती में संभावित देरी की अटकलों से नॉन-यील्डिंग एसेट्स जैसे चांदी की आकर्षकता कम हुई है।
क्या 1980 और 2011 की तरह चांदी में फिर गिरावट आ सकती है?
चांदी के बाजार में मौजूदा उथल-पुथल ने निवेशकों को 2011 और 1980 की ऐतिहासिक घटनाओं की याद दिला दी है। उस समय भी चांदी की कीमतों में तेज़ उछाल आया था, लेकिन कुछ ही महीनों में भारी गिरावट ने निवेशकों को चौंका दिया था। विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा तेजी और फिर करेक्शन का यह दौर काफी हद तक उन्हीं घटनाओं से मेल खाता है, जहां बाजार भावना (market sentiment) ने मूल आर्थिक कारकों से ज्यादा अहम भूमिका निभाई थी।
1980 की ‘Silver Thursday’ तबाही: जब हंट ब्रदर्स ने चांदी के बाजार को हिला दिया:
1970 के दशक के आखिर में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में डॉलर की कमजोरी और हाइपरइन्फ्लेशन के डर ने निवेशकों को कीमती धातुओं की ओर मोड़ दिया। इसी दौरान अमेरिका के मशहूर हंट ब्रदर्स ने सिल्वर में भारी निवेश कर वैश्विक बाजार को हिला दिया। उनका उद्देश्य था- दुनिया के सिल्वर बाजार पर नियंत्रण। लेकिन उनकी यह महत्वाकांक्षा अंततः इतिहास के सबसे बड़े कमोडिटी क्रैश में बदल गई, जिसे आज भी “Silver Thursday” (27 मार्च 1980) के नाम से जाना जाता है।
कैसे शुरू हुआ सिल्वर का खेल:
- 1970 के दशक की शुरुआत में जब हंट ब्रदर्स ने चांदी खरीदना शुरू किया, तब इसकी कीमत मात्र $2 प्रति औंस थी।
- 1979 तक यह $6 प्रति औंस और दिसंबर 1979 तक $25 प्रति औंस तक पहुंच गई।
- जनवरी 1980 में कीमत $50 प्रति औंस तक पहुंची- यानी कुछ ही सालों में 25 गुना उछाल।
- हंट ब्रदर्स के पास उस समय 100 मिलियन औंस से अधिक फिजिकल सिल्वर था।

COMEX का हस्तक्षेप और गिरावट की शुरुआत:
7 जनवरी 1980: COMEX ने “सिल्वर रूल 7” लागू किया, जिसके तहत मार्जिन पर सिल्वर खरीदने पर पाबंदी लगा दी गई। इस कदम से हंट ब्रदर्स के लिए उधार लेकर सिल्वर खरीदना लगभग असंभव हो गया। धीरे-धीरे उनका नियंत्रण कमजोर पड़ने लगा और बाजार में लिक्विडिटी क्राइसिस पैदा हुई।
सिल्वर थर्सडे: 27 मार्च 1980- चांदी की कीमत 50% से अधिक गिर गई–
27 मार्च 1980 को अमेरिकी बाजार में ऐसा वित्तीय भूचाल आया जिसे आज भी “सिल्वर थर्सडे” के नाम से याद किया जाता है। हंट ब्रदर्स, जिन्होंने चांदी के बाजार पर नियंत्रण करने की कोशिश में अरबों डॉलर निवेश किए थे, उस दिन मार्जिन कॉल चुकाने में असफल रहे। परिणामस्वरूप, ब्रोकरों ने उनकी विशाल सिल्वर होल्डिंग्स को बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी, जिससे बाजार में घबराहट फैल गई। कुछ ही घंटों में चांदी की कीमत 50% से अधिक गिर गई, और यह दिन कमोडिटी मार्केट के इतिहास में सबसे बड़ी गिरावटों में से एक बन गया।
इस घटना ने निवेश जगत को गहरा सबक दिया- जब कोई निवेशक बाजार को अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश करता है, तो नियामकीय हस्तक्षेप और बाजार की वास्तविक ताकत अंततः उसे धराशायी कर देती है। “सिल्वर थर्सडे” आज भी उस ऐतिहासिक चेतावनी के रूप में दर्ज है, जिसने साबित किया कि लालच और लेवरेज का अंत हमेशा विनाश में होता है।
2011 में चांदी का करेक्शन:
2011 में चांदी ने 30 साल के उच्चतम स्तर को छूने के बाद तेज़ गिरावट देखी। अप्रैल के अंत में चांदी की कीमत लगभग $48–49 प्रति औंस तक पहुंची, लेकिन इसके तुरंत बाद अगले हफ्तों और महीनों में यह $35 प्रति औंस तक गिर गई, विशेषकर अगस्त में अमेरिका के क्रेडिट रेटिंग डाउनग्रेड के बाद।
गिरावट के पीछे कई कारण थे, जिनमें वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएं और मजबूत अमेरिकी डॉलर प्रमुख थे।
इस तेजी से आए करेक्शन ने बाजार में ट्रेड करने वाले कई निवेशकों को चौंका दिया। गिरावट की अचानक तीव्रता के कारण कई निवेशकों के पास समय नहीं था कि वे सुरक्षित बाहर निकल सकें, जिससे भारी नुकसान हुआ।

टेक्नोलॉजी ने बढ़ाई चांदी की मांग:
हाल ही में चांदी की कीमतों में तेजी का एक बड़ा कारण औद्योगिक और तकनीकी मांग है। चांदी का इस्तेमाल कई उद्योगों और तकनीकी उपकरणों में हो रहा है, जिससे इसकी खपत लगातार बढ़ रही है। यही वजह है कि कहा जा सकता है- “टेक्नोलॉजी ने चांदी की चांदी ही चांदी कर दी है।”
चांदी का प्रमुख उपयोग:

कहाँ और कैसे इस्तेमाल होती है चांदी:
- सोलर पैनल: चांदी को पेस्ट के रूप में लगाया जाता है, जिससे बिजली उत्पादन अधिक तेज़ होता है।
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरी और चिप्स: नई टेक्नोलॉजी वाली गाड़ियों की बैटरियों और चिप्स में चांदी का उपयोग बढ़ रहा है।
- दवाओं में: कई आयुर्वेदिक और औषधीय उत्पादों में चांदी का इस्तेमाल इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए किया जाता है, जैसे च्यवनप्राश।
- संचालन उपकरण: चांदी दुनिया का सबसे अच्छा कंडक्टर है। टीवी, लैपटॉप, एयर कंडीशनर, ओवन, माइक्रोवेव और वॉटर फिल्टर जैसी डिवाइसों में बिजली की तेज़ और सुरक्षित डिलीवरी के लिए चांदी का उपयोग होता है।
- चिप इंडस्ट्री: आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक चिप्स में भी चांदी का इस्तेमाल काफी मात्रा में किया जाता है।
आज के बाजार में ‘सिल्वर थर्सडे’ जैसा संकट नहीं:
विश्लेषकों का कहना है कि चांदी के दामों में आज भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन सिल्वर थर्सडे (1980) के बाद लागू किए गए नियामकीय सेफगार्ड्स के चलते अब इतने बड़े पैमाने पर मार्केट मैनिपुलेशन करना मुश्किल है। उस समय बाजार में रेगुलेशन बहुत सीमित थे, जिससे हंट ब्रदर्स जैसी बड़ी ताकतें कीमतों को नियंत्रित कर सकती थीं।
इसके अलावा, चांदी की कीमतों को प्रभावित करने वाले फंडामेंटल्स भी हंट के समय से काफी बदल चुके हैं। अब सिल्वर की औद्योगिक मांग ट्रेडिशनल फोटोग्राफी से आगे बढ़कर आधुनिक तकनीकों जैसे सोलर पैनल्स और फोटोवोल्टिक सेल्स में फैल गई है। इन क्षेत्रों में सिल्वर का भारी इस्तेमाल हो रहा है, जिससे बाजार में स्थायी और मजबूत मांग बनी हुई है।
चांदी में निवेश के तरीके: फिजिकल सिल्वर से लेकर ईटीएफ और फ्यूचर्स तक
- फिजिकल सिल्वर: यह सबसे पारंपरिक और सीधा तरीका है। निवेशक सिक्के या बार खरीद सकते हैं। चोरी और शुद्धता की चिंता के चलते BIS हॉलमार्क्ड चांदी खरीदना जरूरी है। इसे जाने-माने ज्वेलर्स या बैंक के ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से खरीदा जा सकता है।
- सिल्वर ईटीएफ (Silver ETF): यह फंड चांदी की कीमतों पर आधारित होता है और इसकी वैल्यू चांदी की कीमत के अनुसार बदलती रहती है। ईटीएफ स्टॉक एक्सचेंज पर शेयरों की तरह खरीदी और बेची जा सकती है। इसके लिए डिमैट अकाउंट होना अनिवार्य है और इसमें चोरी या शुद्धता की चिंता नहीं रहती।
- सिल्वर फ्यूचर्स (Silver Futures): यह एक ट्रेडिंग आधारित निवेश है, जिसमें निवेशक भविष्य की किसी तारीख पर तय कीमत पर चांदी खरीदने या बेचने का कॉन्ट्रैक्ट करते हैं। यह MCX (कमोडिटी एक्सचेंज) पर होता है और कम पैसे लगाकर मार्जिन के जरिए ज्यादा मूल्य की चांदी खरीदी या बेची जा सकती है। हालांकि, इसमें जोखिम अधिक होने के कारण यह केवल अनुभवी निवेशकों के लिए सुझाया जाता है।
चांदी में निवेश: जोखिम और अवसर-
चांदी में निवेश को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि यह समय सावधानी और अवसर दोनों लेकर आता है। निवेशक को उच्च रिटर्न की संभावना और तेज़ उतार-चढ़ाव के जोखिम दोनों को समझना जरूरी है।
सकारात्मक पहलू:
- औद्योगिक मांग बढ़ती रहेगी, खासकर इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में।
- त्योहारी सीजन की मांग नवंबर तक मजबूत कीमतों को बनाए रख सकती है।
- ETF की तरलता निवेशकों को कीमतों में बदलाव पर तेजी से प्रतिक्रिया देने की सुविधा देती है।
जोखिम (Risks):
- चांदी में उच्च उतार-चढ़ाव आम हैं; तेज़ उछाल के बाद अक्सर बड़ी गिरावट आती है।
- आज का उच्च प्रवेश मूल्य खरीदारों को त्योहारी सीजन के बाद कीमत गिरने के जोखिम के लिए उजागर कर सकता है।
- वैश्विक अनिश्चितताएं जैसे ब्याज दर में बदलाव या सप्लाई सामान्यीकरण भी कीमतों में करेक्शन ला सकते हैं।
निष्कर्ष:
चांदी में निवेश उच्च रिटर्न और उच्च जोखिम दोनों के अवसर देता है। औद्योगिक और त्योहारी मांग मजबूत बनी हुई है, जबकि ETF की तरलता निवेशकों को तेजी से प्रतिक्रिया का मौका देती है। वहीं, उच्च उतार-चढ़ाव, प्रवेश मूल्य का प्रीमियम और वैश्विक अनिश्चितताएं संभावित गिरावट का खतरा भी बनाती हैं।
इसलिए, निवेशक को अपने जोखिम सहनशीलता और निवेश अवधि को ध्यान में रखते हुए ही निर्णय लेना चाहिए।