रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने रूस की यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (UAC) के साथ भारत में SJ-100 सिविल कम्यूटर विमान के निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं।
यह समझौता 28 अक्टूबर को मॉस्को में हुआ और यह 1988 में एवरो HS-748 परियोजना के बाद भारत द्वारा पहली बार पूर्ण यात्री विमान के उत्पादन की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। इस साझेदारी से भारत की एयरोस्पेस क्षमता को नई दिशा मिलने की उम्मीद है साथ ही देश अपने पहले स्वदेशी रूप से निर्मित यात्री जेट की ओर भी बढ़ रहा है।
समझौता ज्ञापन(MoU) पर हस्ताक्षर:
यह समझौता HAL के CMD डी.के. सुनील और UAC के महानिदेशक वादिम बडेखा की मौजूदगी में हुआ। इस दौरान HAL के प्रभात रंजन और PJSC-UAC के ओलेग बोगोमोलोव ने MoU पर हस्ताक्षर किए। HAL ने इस साझेदारी को दोनों कंपनियों के बीच “पारस्परिक विश्वास” का प्रतीक बताया और कहा कि यह नागरिक विमानन निर्माण के क्षेत्र में गहरे सहयोग की दिशा में एक बड़ा कदम है।
इस पहल के मायने क्या है?
यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब भारत नागरिक विमान निर्माण के क्षेत्र में अपनी वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। अब भारत केवल रक्षा विमानों तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि वाणिज्यिक और क्षेत्रीय यात्री विमानों के उत्पादन में भी आगे बढ़ना चाहता है। इस परियोजना से रोजगार के नए अवसर पैदा होने और एयरोस्पेस निर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने की उम्मीद है।
HAL का कहना है कि भारत में SJ-100 विमान का निर्माण देश के विमानन उद्योग के लिए एक नए युग की शुरुआत होगी। यह परियोजना आत्मनिर्भर भारत पहल के अनुरूप है और देश की घरेलू विनिर्माण क्षमता को मजबूत करेगी। साथ ही रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे।
अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच भारत-रूस संबंध:
यह समझौता ऐसे समय हुआ है जब रूस की तेल और गैस कंपनियों पर अमेरिकी प्रतिबंध लगे हैं और भारतीय रिफाइनरियाँ रूस से तेल आयात घटाने पर विचार कर रही हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों ने UAC सहित कई रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे।
भारत हमेशा से एकतरफ़ा प्रतिबंधों का विरोध करता रहा है, लेकिन भारतीय कंपनियाँ आम तौर पर अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं करतीं, क्योंकि उन्हें द्वितीयक प्रतिबंधों का खतरा रहता है। इसके बावजूद, भारत ने रूसी तेल आयात जारी रखा, जिससे यह संदेश गया कि भारत अपनी विदेश और व्यापार नीति स्वतंत्र रूप से तय करता है।
SJ-100 की खासियतें:
SJ-100, जिसे पहले सुखोई सुपरजेट 100 (SSJ-100) कहा जाता था, एक दोहरे इंजन वाला संकीर्ण बॉडी (narrow-body) विमान है। इसकी उड़ान क्षमता लगभग 3,530 किलोमीटर है और यह 103 यात्रियों को ले जा सकता है। यह विमान छोटी और मध्यम दूरी की उड़ानों के लिए बनाया गया है और पहले से ही दुनिया की 16 एयरलाइनों में उपयोग में है, जिनमें इसकी 200 से अधिक इकाइयाँ सेवा में हैं। इस श्रेणी में इसके प्रमुख प्रतिस्पर्धी विमान हैं— एम्ब्रेयर E190 और एयरबस A220।
अनुकूलता और विशेषताएँ:
SJ-100 को कम परिचालन लागत वाला विमान माना जाता है, जिससे यह एयरलाइनों के लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद बनता है। यह विमान -55°C से +45°C तक के चरम मौसम में भी उड़ान भर सकता है, जिससे यह भारतीय जलवायु के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। इसके अलावा, विमान के केबिन को एयरलाइन की ज़रूरतों के अनुसार आसानी से पुनः डिजाइन किया जा सकता है, जिससे यात्रियों की सुविधा और संचालन दोनों में लचीलापन मिलता है।
भारत में इस श्रेणी के विमानों की जरूरत:
उद्योग के अनुमानों के मुताबिक, भारत को अगले 10 वर्षों में क्षेत्रीय उड़ानों के लिए लगभग 200 जेट विमानों की जरूरत होगी। इसके साथ ही हिंद महासागर क्षेत्र के अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों की सेवा के लिए करीब 350 और विमानों की आवश्यकता पड़ेगी। SJ-100 जैसे विमानों का स्वदेशी निर्माण इस बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद करेगा।
भारत सरकार की “उड़ान योजना” के तहत पिछले नौ वर्षों से हर साल नए विमान जोड़े जा रहे हैं, ताकि देश के छोटे शहरों को हवाई नेटवर्क से जोड़कर यात्रा को आसान और सस्ती बनाया जा सके।
सहयोग का भविष्य अभी अनिश्चित:
हालाँकि HAL ने इस MoU को आगे वास्तविक समझौते में बदलने की कोई समय-सीमा नहीं बताई, न ही यह स्पष्ट किया कि कंपनी की कौन-सी इकाई विमान का निर्माण करेगी। फिलहाल HAL पहले से ही कई लड़ाकू विमान परियोजनाओं पर काम कर रही है, जो उसकी वर्तमान उत्पादन क्षमता से कहीं ज़्यादा हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा हालात में इस सहयोग के भविष्य को लेकर कुछ कहना अभी जल्दबाज़ी होगी। भले ही अमेरिकी द्वितीयक प्रतिबंधों का सीधा असर न हो, लेकिन पश्चिमी देशों द्वारा रूस के एयरोस्पेस क्षेत्र पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों से आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) पर असर पड़ा है। इसके कारण रूसी निर्माताओं को पश्चिमी पुर्जों तक सीमित पहुँच मिल रही है। रूस की रिपोर्टों के अनुसार, वहाँ अब विमान पूरी तरह रूसी पुर्जों से बनाए जा रहे हैं, लेकिन इन परियोजनाओं में देरी हो रही है।
HAL और PJSC-UAC के बारे में:
- HAL (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड): यह भारत की सरकारी एयरोस्पेस कंपनी है, जो मुख्य रूप से सैन्य विमान जैसे तेजस फाइटर जेट बनाती है। अब कंपनी नागरिक विमानन (civil aviation) क्षेत्र में भी कदम रख रही है। HAL का कहना है कि यह समझौता उनके ‘डाइवर्सिफिकेशन’ यानी विविधीकरण की दिशा में एक अहम कदम है।
- PJSC-UAC (यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन): यह रूस की सरकारी एयरोस्पेस कंपनी है, जो सैन्य और नागरिक दोनों तरह के विमान बनाती है। UAC के पास SJ-100 की पूरी तकनीक और अनुभव है। अब तक कंपनी ने 200 से ज़्यादा SJ-100 विमान बनाए हैं, जो 16 से अधिक एयरलाइनों में इस्तेमाल हो रहे हैं।
भारतीय विमानन क्षेत्र:
अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाजार है, जो दक्षिण एशिया के एयरलाइन यातायात का लगभग 69% हिस्सा रखता है। अनुमान है कि 2030 तक भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा हवाई यात्री बाजार बन जाएगा।
वित्त वर्ष 2025 (सितंबर 2024 तक) कुल यात्री यातायात 196.91 मिलियन तक पहुँच गया। यह क्षेत्र सीधे लगभग 3.7 लाख लोगों को रोजगार देता है और 5.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक योगदान करता है। पर्यटन और इससे जुड़े क्षेत्रों को मिलाकर यह 7.7 मिलियन नौकरियाँ और करीब 53.6 बिलियन डॉलर (GDP का 1.5%) का समर्थन करता है। परिचालन हवाई अड्डों की संख्या 2014 में 74 से बढ़कर 2024 में 157 हो गई है, और लक्ष्य है कि 2047 तक इसे 350-400 तक बढ़ाया जाए।
भारतीय विमानन उद्योग की प्रमुख पहलें:
- राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति 2016: विमानन क्षेत्र को सुरक्षित, सुलभ और किफायती बनाना।
- उड़ान (UDAN) योजना: छोटे शहरों को हवाई नेटवर्क से जोड़कर सस्ती यात्रा उपलब्ध कराना।
- FDI नीति: हवाई परिवहन और एमआरओ क्षेत्रों में 100% विदेशी निवेश की अनुमति।
- बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण: Digi यात्रा और NABH निर्माण से संचालन और यात्री सुविधा में सुधार।
- स्थायित्व प्रयास: दिल्ली-मुंबई एयरपोर्ट को स्तर 4+ कार्बन मान्यता, और 73 हवाई अड्डे सौर ऊर्जा से संचालित।
निष्कर्ष:
HAL और UAC के बीच हुआ यह समझौता भारत के विमानन इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। एसजे-100 परियोजना न केवल भारत को स्वदेशी यात्री विमान निर्माण के क्षेत्र में अग्रणी बनाएगी, बल्कि यह देश की तकनीकी आत्मनिर्भरता और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी सशक्त करेगी। यह सहयोग भारत को रक्षा से लेकर नागरिक उड्डयन तक, एयरोस्पेस विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनने की दिशा में आगे बढ़ाएगा।
