भारत की प्रति व्यक्ति आय 2031 तक 5,000 डॉलर के पार हो जाएगी, जिससे खपत बढ़ेगी: फ्रैंकलिन टेम्पलटन

फ्रैंकलिन टेम्पलटन की रिपोर्ट “Beyond Necessities: India’s Affluence-Driven Growth” के अनुसार, भारत की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2031 तक 5,000 अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार कर जाएगी। यह परिवर्तन देश में उपभोग को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।

India per capita income to cross $5000 by 2031 boosting consumption

रिपोर्ट बताती है कि भारत में एक संरचनात्मक बदलाव हो रहा है, जिसके तहत देश धीरे-धीरे एक मास-अफ्लुएंट (सामूहिक संपन्न) अर्थव्यवस्था में बदल रहा है। इसका अर्थ है कि भारतीय उपभोक्ताओं की खपत अब केवल बुनियादी जरूरतों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि लाइफस्टाइल और प्रीमियम उत्पादों की ओर तेजी से झुकेगी।

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फ्रैंकलिन टेम्पलटन रिपोर्ट के मुख्य अनुमान:

  1. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि: भारत कीप्रति व्यक्ति आय 2023-24 के $2,729 से बढ़कर 2031 तक लगभग $5,242 होने का अनुमान है, यानी आय लगभग दोगुनी हो जाएगी।
  2. समृद्ध परिवारों में वृद्धि: उच्च-मध्यवर्ग और अमीर परिवारों का हिस्सा 2010 में 11% से बढ़कर2035 तक लगभग 24% होने की संभावना है। इससे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ेगी जिनके पास अधिक खर्च करने की क्षमता होगी।
  3. विवेकाधीन खर्च में वृद्धि: गैर-आवश्यक वस्तुओं पर खर्च का अनुपात वर्तमान में36% है, जो FY2030 तक 43% होने का अनुमान है, यानी लोग बुनियादी जरूरतों से आगे जाकर अधिक उपभोग करेंगे।
  4. प्रीमियम उत्पादों की मांग: प्रीमियम वस्तुओं की मांगसामान्य उत्पादों की तुलना में 3 गुना तेज़ी से बढ़ रही है, यह रुझान खासकर FMCG और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में स्पष्ट है।
  5. नाममात्र GDP में वृद्धि: भारत कानाममात्र सकल घरेलू उत्पाद (Nominal GDP) FY24–FY30 के बीच 11% वार्षिक दर से बढ़ने का अनुमान है, 2030 तक GDP लगभग $7.3 ट्रिलियन तक पहुँच सकती है।
  6. उपभोग-आधारित विकास: कुल आर्थिक विकास का लगभग 60% हिस्सा उपभोगसे आने की संभावना है। इससे भारत 2026 तक विश्व का शीर्ष तीन उपभोक्ता बाजारों में से एक बन सकता है।

 

भारत में बढ़ती आय और उपभोग पैटर्न में बदलाव:

  1. बढ़ती आय से जीवनशैली आधारित खर्च में तेजी:

रिपोर्ट के अनुसार, FY2025 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 2,600 डॉलर से अधिक हो चुकी है और अगले छह वर्षों में इसके दोगुना होने की संभावना है। यह वृद्धि भारत को एक नए “Affluence Trigger Zone” में ले जाएगी, जहां उपभोग की प्रवृत्ति बुनियादी जरूरतों से हटकर लाइफस्टाइल और प्रीमियम उत्पादों व सेवाओं की ओर बढ़ेगी। जैसे-जैसे अधिक परिवार उच्च आय वर्ग में शामिल होंगे, डिस्क्रिशनरी स्पेंडिंग (गैर-जरूरी वस्तुओं पर खर्च) का हिस्सा कुल उपभोग में और बढ़ेगा।

  1. संपत्ति प्रभाव और संपन्न वर्ग का विस्तार:

रिपोर्ट बताती है कि इक्विटी मार्केट, रियल एस्टेट और सोना भारतीय परिवारों की संपत्ति बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं, जिससे उपभोक्ता आत्मविश्वास और खर्च करने की क्षमता दोनों बढ़ रही हैं। 2010 में जहां उच्च-मध्यवर्ग और अमीर परिवारों की हिस्सेदारी 11.1% थी, वह 2035 तक बढ़कर लगभग 24% होने की उम्मीद है। यानी हर चार में से एक परिवार के पास पर्याप्त विवेकाधीन खर्च करने की क्षमता होगी। यह परिवर्तन भारत को उपभोग-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर structurally अग्रसर कर रहा है।

  1. प्रीमियम उत्पादों की मांग और उपभोग मिश्रण में बदलाव:

रिपोर्ट के मुताबिक, प्रति व्यक्ति आय में लगातार वृद्धि के साथ गैर-जरूरी वस्तुओं पर खर्च का हिस्सा 36% से बढ़कर FY2030 तक 43% हो जाएगा। प्रीमियम सेगमेंट पहले से ही सामान्य उत्पादों की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा है- जैसे प्रीमियम डिटर्जेंट की ग्रोथ 26% CAGR, जबकि साधारण उत्पादों की सिर्फ 7% है। इसी तरह, ग्रीन टी की खपत 25%, जबकि रेगुलर टी की 10% की दर से बढ़ रही है। यह रुझान दिखाता है कि भारतीय उपभोक्ता अब गुणवत्ता, ब्रांड वैल्यू और जीवनशैली को प्राथमिकता देने लगे हैं, जो एक परिपक्व और आकांक्षी बाजार का संकेत है।

 

भारत में उपभोग बढ़ाने वाले प्रमुख कारक:

  1. संपत्ति प्रभाव: शेयर बाजार, रियल एस्टेट और सोने की बढ़ती कीमतों ने भारतीय परिवारों की संपत्ति और आत्मविश्वास दोनों को मजबूत किया है। इन परिसंपत्तियों के मूल्य में वृद्धि से उपभोक्ताओं की विवेकाधीन खर्च की क्षमता बढ़ी है, जिससे लाइफस्टाइल और प्रीमियम उत्पादों की मांग में तेजी आई है।
  2. तेज़ी से बढ़ता शहरीकरण: भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण ने शहरों में आय और क्रय शक्ति दोनों को बढ़ाया है। अब मॉल्स और आधुनिक रिटेल नेटवर्क छोटे टियर-2 और टियर-3 शहरों तक फैल चुके हैं, जिससे पहले सीमित रहने वाले ब्रांडेड और प्रीमियम उत्पाद अब व्यापक उपभोक्ता वर्ग के लिए सुलभ हो गए हैं।
  3. वित्तीय समावेशन में वृद्धि: डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से क्रेडिट तक आसान पहुंच और UPI जैसे वित्तीय सेवाओं के व्यापक इस्तेमाल ने उपभोक्ताओं को खरीदारी के लिए और सशक्त बनाया है। इससे विशेष रूप से युवाओं और ग्रामीण आबादी में खपत का दायरा बढ़ा है।
  4. डिजिटल पैठ और ई-कॉमर्स: 2030 तक भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या एक अरब से अधिक पहुंचने की उम्मीद है। इससे ई-कॉमर्स और डिजिटल एंगेजमेंट ने उपभोक्ता व्यवहार को पूरी तरह बदल दिया है। ऑनलाइन शॉपिंग, डिजिटल पेमेंट और सोशल मीडिया आधारित मार्केटिंग ने अब उपभोग को और सुविधाजनक, विविध और गतिशील बना दिया है।

 

चुनौतियाँ और चिंताएँ:

  1. आय असमानता: भारत में आय और संपत्ति का वितरण असंतुलित बना हुआ है। गिनी कोएफिशिएंट लगभग 35–37 के बीच है, जो मध्यम स्तर की असमानता को दर्शाता है। देश की शीर्ष 10% आबादी लगभग 65% राष्ट्रीय संपत्ति की मालिक है, जिससे उपभोग में असमानता और सामाजिक असंतोष बढ़ने की आशंका है।
  2. रोजगारविहीन वृद्धि का जोखिम: भारत में आय तो बढ़ रही है, लेकिन उसी अनुपात में रोजगार के अवसर नहीं बन रहे हैं। यह प्रवृत्ति लंबे समय में उपभोग-आधारित वृद्धि को सीमित कर सकती है, क्योंकि रोजगारविहीन विकास से मांग की स्थिरता पर असर पड़ता है।
  3. ग्रामीण संकट: वर्तमान उपभोग वृद्धि मुख्य रूप से शहरी इलाकों तक सीमित है। ग्रामीण भारत में कम आय, कृषि संकट और सीमित रोजगार अवसरों के कारण खपत का स्तर कमजोर है। अगर यह असमानता बनी रही, तो संतुलित और समावेशी विकास कठिन हो सकता है।
  4. आपूर्ति बाधाएँ: भारत में बुनियादी ढांचे, लॉजिस्टिक्स और ऊर्जा क्षेत्र की सीमाएँ खपत विस्तार की क्षमता को सीमित कर सकती हैं। यदि सप्लाई चेन में सुधार और ऊर्जा आपूर्ति की स्थिरता सुनिश्चित नहीं की गई, तो बढ़ती मांग को पूरा करना चुनौतीपूर्ण होगा।

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