अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को परमाणु हथियारों के परीक्षण दोबारा शुरू करने का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि यह कदम अन्य देशों द्वारा किए जा रहे परीक्षणों के “समान आधार पर” उठाया जा रहा है। इस निर्णय के साथ अमेरिका लगभग तीन दशक पुराने परमाणु परीक्षण प्रतिबंध को समाप्त कर सकता है, जो शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से लागू था।
यह घोषणा उस समय की गई जब ट्रंप दक्षिण कोरिया में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक में शामिल हो रहे थे। यह कदम वैश्विक परमाणु संतुलन और भू-राजनीतिक तनावों पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है।
ट्रंप का बयान: “हम भी बराबरी के आधार पर परमाणु परीक्षण शुरू करेंगे”
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा- “अमेरिका के पास किसी भी अन्य देश से अधिक परमाणु हथियार हैं। मेरे पहले कार्यकाल के दौरान इन हथियारों का पूर्ण रूप से आधुनिकीकरण और नवीनीकरण किया गया था। इनकी अत्यधिक विनाशकारी शक्ति के कारण, मैं ऐसा नहीं करना चाहता था, लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। रूस दूसरे स्थान पर है, जबकि चीन काफी पीछे है, लेकिन अगले 5 वर्षों में वह बराबरी पर पहुंच सकता है। अन्य देशों के परमाणु परीक्षण कार्यक्रमों को देखते हुए, मैंने युद्ध विभाग जो हमारी सरकार में रक्षा विभाग के लिए प्रयुक्त नाम है- को निर्देश दिया है कि वह हमारे परमाणु हथियारों का परीक्षण बराबरी के आधार पर शुरू करे। यह प्रक्रिया तुरंत शुरू होगी।”
यह अभी स्पष्ट नहीं है कि अमेरिकी सेना वास्तव में कब या क्या कोई परमाणु परीक्षण करेगी, या राष्ट्रपति ट्रंप के “बराबरी के आधार पर परीक्षण” वाले बयान का सटीक अर्थ क्या है।
1992 में किया था आखिरी परीक्षण
बता दें कि अमेरिका ने आखिरी बार परमाणु हथियारों का 1054वां परीक्षण 33 साल पहले 23 सितंबर 1992 को किया था. रेनियर मेसा पहाड़ी पर 2300 फीट की गहराई में नेवादा नेशनल सिक्योरिटी साइट पर परीक्षण किया गया था, ताकि रेडिएशन जमीन तक न आए और विस्फोट इतना भयानक था कि सतह एक फीट ऊपर उठकर धंसी थी. चट्टानें भाप बन गई थीं और 10 मीटर गहरा 150 मीटर चौड़ा गड्ढा बन गया था.
अमेरिका में परमाणु परीक्षणों पर रोक:
अमेरिका ने 1992 में नेवादा परमाणु परीक्षण के बाद राष्ट्रपति जॉर्ज एच. डब्ल्यू. बुश ने सोवियत संघ के पतन के बाद परमाणु परीक्षणों पर रोक लगा दी थी। यह कदम शीत युद्ध की समाप्ति के बाद उठाया गया एक महत्वपूर्ण निर्णय था, जिसका उद्देश्य वैश्विक तनाव को कम करना और परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में आगे बढ़ना था।
उनके बाद राष्ट्रपति बने बिल क्लिंटन ने इस नीति को जारी रखा और व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) पर हस्ताक्षर किए, हालांकि अमेरिकी सीनेट ने इस संधि को अनुमोदित नहीं किया। आगे चलकर जॉर्ज डब्ल्यू. बुश (George W. Bush) ने अपने प्रशासन के दौरान भारत और पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों के बाद उन पर लगाए गए प्रतिबंधों को हटा लिया, लेकिन उन्होंने अमेरिकी परमाणु परीक्षणों पर लगी रोक को बरकरार रखा।
यह रोक लगभग 33 वर्षों तक प्रभावी रही, जब तक कि डोनाल्ड ट्रंप ने 2025 में परमाणु परीक्षणों को फिर से शुरू करने का आदेश देकर इस लंबे स्थगन को समाप्त करने का संकेत नहीं दिया।
चीन और रूस ने भी नहीं किया परमाणु परीक्षण:
चीन ने 1996 के बाद से कोई परमाणु परीक्षण नहीं किया है। रूस (तब का सोवियत संघ) ने 1990 के बाद कोई परमाणु परीक्षण नहीं किया, हालांकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में दावा किया कि रूस ने एक नया परमाणु-संचालित ड्रोन और क्रूज़ मिसाइल का परीक्षण किया है।
वर्तमान स्थिति:
चीन ने हाल के वर्षों में अपने परमाणु भंडार (nuclear arsenal) को तेजी से बढ़ाया है। पेंटागन का अनुमान है कि यह विस्तार पूरे दशक भर जारी रहेगा, जिससे वैश्विक परमाणु संतुलन पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
विश्लेषकों का मानना है कि यदि अमेरिका वास्तव में परीक्षण फिर से शुरू करता है, तो यह शीत युद्ध (Cold War) के बाद पहली बार परमाणु हथियारों की दौड़ को पुनर्जीवित कर सकता है।
चीन की बढ़ती परमाणु क्षमता:
सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ (CSIS) के अनुसार, चीन का परमाणु भंडार 2020 में 300 हथियारों से बढ़कर 2025 में लगभग 600 हो गया है, यानी पांच वर्षों में दोगुना वृद्धि। अमेरिकी सैन्य अधिकारियों का अनुमान है कि 2030 तक चीन के पास 1,000 से अधिक परमाणु हथियार होंगे।
सितंबर 2025 की विक्ट्री डे परेड में चीन ने ऐसी पाँच नई परमाणु क्षमताएँ प्रदर्शित कीं, जो अमेरिकी मुख्यभूमि तक पहुंचने में सक्षम हैं।
अमेरिका और रूस का भंडार: आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के अनुसार,
- अमेरिका के पास लगभग 5,044 परमाणु वारहेड्स हैं।
- रूस के पास लगभग 5,580 वारहेड्स हैं।
Country | Number of Nuclear Warheads |
Russia | 5,580 |
America | 5,044 |
China | 500–550 |
France | 290 |
Britain | 225 |
India | 180 |
Pakistan | 170 |
अमेरिकी परमाणु परीक्षण से 6.9 लाख नागरिक की मौत:
यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के अर्थशास्त्री कीथ मेयर्स की 2017 की एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, पिछले अमेरिकी परमाणु परीक्षणों से निकले रेडिएशन के कारण लगभग 6.9 लाख अमेरिकी नागरिकों की मौतें हुईं या उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
क्या अमेरिका करेगा एनपीटी का उल्लंघन:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा परमाणु परीक्षण फिर से शुरू करने का निर्देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चिंता का विषय बन गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का उल्लंघन हो सकता है, क्योंकि अमेरिका ने 1992 में आधिकारिक रूप से सभी परमाणु परीक्षणों को रोक दिया था। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने चेतावनी दी है कि इस तरह का कदम वैश्विक हथियारों की नई दौड़ को जन्म दे सकता है और अंतरराष्ट्रीय शांति प्रयासों को कमजोर करेगा। डेमोक्रेटिक सीनेटर एलिजाबेथ वॉरेन ने ट्रंप पर आरोप लगाया कि वे परमाणु युद्ध को “खेल का उपकरण” बना रहे हैं।
रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, रूस और चीन द्वारा हालिया हथियार परीक्षणों के जवाब में अमेरिका की यह नीति वैश्विक तनाव को और बढ़ा सकती है तथा दशकों से जारी निरस्त्रीकरण की दिशा में हुए प्रयासों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
परमाणु अप्रसार संधि (NPT):
परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty – NPT) एक ऐतिहासिक अंतरराष्ट्रीय समझौता है, जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना, शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा सहयोग को बढ़ावा देना और परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में कार्य करना है। यह संधि 1968 में हस्ताक्षर के लिए खोली गई और 1970 में लागू हुई।
मुख्य उद्देश्य:
- अप्रसार (Non-Proliferation): परमाणु हथियारों और उनकी तकनीक के गैर-परमाणु देशों में प्रसार को रोकना।
- निरस्त्रीकरण (Disarmament): परमाणु हथियारों में कमी और पूर्ण निरस्त्रीकरण की दिशा में वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा देना।
- शांतिपूर्ण उपयोग (Peaceful Use): परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण और विकासात्मक उपयोग में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना।
प्रमुख प्रावधान:
- परमाणु-संपन्न देश (Nuclear-Weapon States): ये देश किसी गैर-परमाणु राष्ट्र को परमाणु हथियार या उनकी तकनीक नहीं सौंपेंगे।
- गैर-परमाणु देश (Non-Nuclear-Weapon States): ये देश परमाणु हथियार विकसित या प्राप्त नहीं करेंगे और अपने परमाणु प्रतिष्ठानों को IAEA की निगरानी में रखेंगे ताकि सत्यापन हो सके।
कार्यान्वयन और निगरानी:
इस संधि के अनुपालन की निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) करती है, जो यह सुनिश्चित करती है कि गैर-परमाणु देश परमाणु हथियारों का विकास न करें। संधि से जुड़े देश हर पांच वर्ष में बैठक करते हैं, ताकि इसके क्रियान्वयन की समीक्षा की जा सके और इसे मजबूत करने के उपाय किए जा सकें।
संधि की स्थिति: वर्तमान में 191 देश NPT के सदस्य हैं, जिससे यह दुनिया की सबसे व्यापक रूप से स्वीकार की गई हथियार नियंत्रण संधि बन गई है।
निष्कर्ष:
अमेरिका द्वारा 33 वर्ष बाद परमाणु परीक्षण दोबारा शुरू करने का निर्णय, रूस और चीन की हालिया परमाणु गतिविधियाँ, तथा रूस के ‘पोसाइडन’ टॉरपीडो और ‘बुरेवेस्तनिक’ मिसाइल जैसे उन्नत हथियारों के सफल परीक्षण यह संकेत देते हैं कि विश्व एक बार फिर नए परमाणु हथियारों की दौड़ में प्रवेश कर चुका है।
यह स्थिति न केवल वैश्विक रणनीतिक संतुलन को अस्थिर करेगी, बल्कि परमाणु हथियारों के प्रसार और भू-राजनीतिक तनावों में भी उल्लेखनीय वृद्धि कर सकती है। यदि प्रमुख परमाणु शक्तियाँ अपने परीक्षण कार्यक्रमों को जारी रखती हैं, तो आने वाले वर्षों में वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था के लिए यह एक गंभीर और दीर्घकालिक चुनौती बन सकती है।
