जम्मू-कश्मीर में 150 साल पुरानी ‘दरबार मूव’ परंपरा लौटी: 3 नवंबर से शुरू; मुख्यमंत्री सचिवालय समेत 39 सरकारी कार्यालय जम्मू से संचालित होंगे

चार साल के अंतराल के बाद ऐतिहासिक दरबार मूव’ परंपरा फिर से शुरू हो गई है। इस परंपरा के तहत सरकार के कार्यालय और कर्मचारी गर्मी की राजधानी श्रीनगर से अब शीतकालीन राजधानी जम्मू स्थानांतरित हो रहे हैं। श्रीनगर में सरकारी कार्यालय शुक्रवार को बंद कर दिए गए, और ये कार्यालय 3 नवंबर 2025 को जम्मू में फिर से खुलेंगे, जहाँ शीतकालीन सत्र की शुरुआत होगी।

150-year-old Darbar Move tradition returns to Jammu and Kashmir

दरबार मूव के तहत कार्यालयों का स्थानांतरण:

दरबार मूव परंपरा के तहत इस वर्ष कुल 39 सरकारी कार्यालय, जिनमें मुख्यमंत्री सचिवालय और सिविल सचिवालय के सभी विभाग शामिल हैं, पूरी तरह जम्मू स्थानांतरित किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, 47 विभाग केवल कैंप कार्यालयों के रूप में कार्य करेंगे। ये विभाग अपने कुल कर्मचारियों के 33% या अधिकतम 10 अधिकारियों (जो भी संख्या कम हो) के साथ काम करेंगे।
गर्मी के मौसम की शुरुआत होते ही ये सभी दफ्तर फिर से कश्मीर वापस लौट आएंगे।

श्रीनगर से अधिकारियों-कर्मचारियों और उनके परिजन को एक और  दो नवंबर को जम्मू लाने के लिए रोडवेज ने 34 बसों को लगाया है। सुरक्षित एवं सुखद यात्रा के लिए बेहतर गाड़ियों की व्यवस्था की गई है। जम्मू आने के बाद अधिकारियों और कर्मचारियों को सचिवालय से उनके घर तक और घर से सचिवालय तक पहुंचाने के लिए अलग से गाड़ियों की व्यवस्था की जाएगी।

 

16 अक्टूबर को आदेश जारी किया गया था

जम्मू-कश्मीर सरकार ने 16 अक्टूबर को आदेश जारी कर दिया कि 31 अक्टूबर को श्रीनगर में स्थित दरबार मूव कार्यालयों को बंद किया जाएगा। यह निर्णय मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला द्वारा इस ऐतिहासिक परंपरा की पुनर्स्थापना की घोषणा के कुछ घंटे बाद ही लिया गया।

2021 में बंद हुई थी ऐतिहासिक दरबार मूव परंपरा:

गौरतलब है कि  दरबार मूव प्रथा को 2021 में उपराज्यपाल प्रशासन ने बंद कर दिया था। इस फैसले का मुख्य उद्देश्य लगभग 200 करोड़ रुपये की वार्षिक बचत करना और शासन को ई-ऑफिस प्रणाली की ओर ले जाना था। इसके बाद जम्मू और श्रीनगर दोनों में सरकारी कार्यालय पूरे वर्ष संचालित होते रहे, जबकि केवल प्रशासनिक सचिव और कुछ वरिष्ठ अधिकारी ही दोनों शहरों के बीच आवागमन करते रहे।

 

जम्मू के नागरिकों ने इस कदम का स्वागत किया, इसे स्थानीय व्यापार, पर्यटन और क्षेत्रीय पहचान को मजबूत करने वाला कदम बताया। वहीं, व्यापारिक संगठनों और नागरिक समाज समूहों ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए इसे चुनाव-पूर्व वादों की पूर्ति और क्षेत्रीय असंतुलन के प्रतिकार के रूप में देखा।

दरबार मूव क्या है?

दरबार मूव जम्मू-कश्मीर की एक 150 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक प्रशासनिक परंपरा थी, जिसके तहत राज्य सरकार के सचिवालय और अन्य सरकारी कार्यालय हर छह महीने में श्रीनगर से जम्मू और जम्मू से श्रीनगर स्थानांतरित किए जाते थे। यह व्यवस्था सर्दियों में श्रीनगर की अत्यधिक ठंड और गर्मियों में जम्मू की गर्मी से बचने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इस दौरान सरकार की सभी फाइलें, रिकॉर्ड और हजारों कर्मचारी ट्रकों के माध्यम से स्थानांतरित किए जाते थे।

 

दरबार मूव की मुख्य बातें:

  • शुरुआत: इस परंपरा की शुरुआत 1872 में डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह ने की थी।
  • प्रक्रिया: हर वर्ष अप्रैल के अंत में जम्मू से श्रीनगर और अक्टूबर के अंत में श्रीनगर से जम्मू स्थानांतरण किया जाता था।
  • उद्देश्य: इसका प्रमुख उद्देश्य कठोर मौसम में भी जनता को निरंतर प्रशासनिक सेवाएँ उपलब्ध कराना था। साथ ही, यह परंपरा जम्मू और कश्मीर के बीच एकता, संतुलन और सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक भी मानी जाती थी।

 

क्यों पड़ी ‘दरबार मूव’ की जरूरत?

दरअसल, श्रीनगर की सर्दियाँ अत्यंत कठोर होती हैं, जहाँ तापमान शून्य से नीचे चला जाता है, जबकि जम्मू में गर्मियों के दौरान अत्यधिक गर्मी पड़ती है। ऐसे में शासन की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए यह व्यवस्था बनाई गई कि सर्दियों में राजधानी जम्मू और गर्मियों में राजधानी श्रीनगर हो।

हालाँकि, समय के साथ इस परंपरा की जटिलता, भारी खर्च और लॉजिस्टिक चुनौतियों के कारण इसका विरोध भी शुरू हुआ, क्योंकि हर छह महीने में राजधानी स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में करोड़ों रुपये और हजारों कर्मचारियों की मेहनत लगती थी।

 

दरबार मूव की दूसरी कहानी: मौसम ही नहीं, राजनीतिक कारण भी थे

ऐसा माना जाता है कि दरबार मूव की शुरुआत केवल मौसम संबंधी कारणों से नहीं, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक और सामरिक कारण भी थे।

1870 के दशक में जब रूसी सेना मध्य एशिया की ओर बढ़ रही थी और अफगानिस्तान तक पहुँच गई थी, तब ब्रिटिश शासन को यह आशंका हुई कि रूस की अगली नजर कश्मीर घाटी पर हो सकती है। इसी रणनीतिक खतरे को देखते हुए अंग्रेजों ने दरबार मूव की परंपरा शुरू करवाई, ताकि प्रशासन सर्दियों में सुरक्षित रूप से जम्मू से संचालित हो सके।

ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, 1873 में ब्रिटिश और रूसी साम्राज्य के बीच एक समझौता हुआ, जिसके बाद 1889 में अंग्रेजों ने कश्मीर को सीमावर्ती (Frontier) राज्य घोषित किया। अगले 35 वर्षों तक महाराजा प्रताप सिंह नाम मात्र के शासक रहे, जबकि सत्ता पर वास्तविक नियंत्रण अंग्रेजों का था।

1924 में जब रूस का खतरा समाप्त हुआ, तब अंग्रेजों ने महाराजा को पुनः शासन अधिकार लौटाए, लेकिन 1925 में प्रताप सिंह का निधन हो गया। इसके बाद महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर की रियासत की बागडोर संभाली और यह परंपरा जारी रही।

 

आजादी के बाद भी जारी रही परंपरा: कई मुख्यमंत्रियों ने रोकने की कोशिश की, लेकिन विरोध के आगे झुकनी पड़ी सरकार

आजादी के बाद भी दरबार मूव की परंपरा जारी रही। 1957 में मुख्यमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद ने श्रीनगर को स्थायी राजधानी बनाने का फैसला किया, लेकिन इसका कड़ा विरोध हुआ। बाद में 1987 में मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने इस परंपरा को सीमित करने की कोशिश की और निर्णय लिया कि कुछ विभाग हमेशा जम्मू में रहेंगे, जबकि कुछ कश्मीर में। इस फैसले के खिलाफ जम्मू में 45 दिन तक बंद रहा, जिसके बाद सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा।

 

इतिहास में पहली बार कोविड काल में थमी ‘दरबार मूव’ की परंपरा:

2020 में इतिहास में पहली बार जम्मू-कश्मीर में ‘दरबार मूव’ नहीं हुआ। कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों को देखते हुए सरकार ने यह निर्णय लिया। हालांकि 4 मई को श्रीनगर में ग्रीष्मकालीन दरबार औपचारिक रूप से खुला था, लेकिन कर्मचारी अपने-अपने स्थानों पर ही रहे। इस दौरान जम्मू और श्रीनगर दोनों जगहों से सचिवालय का कामकाज चला।

बाद में, जून 2021 में जब तीन दर्जन से अधिक विभागों के अभिलेख का डिजिटलीकरण पूरा हो गया, तो प्रशासन ने दरबार मूव से जुड़े कर्मचारियों के लिए आवास आवंटन को रद्द कर दिया।

 

2021 में खत्म हुई 150 साल पुरानी ‘दरबार मूव’ परंपरा

2020 में अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने इस परंपरा की वैधता पर सवाल उठाया। अदालत ने कहा कि ‘दरबार मूव’ का कोई कानूनी या संवैधानिक आधार नहीं है। इस प्रक्रिया में सरकार का बहुत सारा समय, श्रम और धन व्यर्थ होता है। मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति राजेश ओसवाल की पीठ ने टिप्पणी की कि जब केंद्र शासित प्रदेश अपने नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं दे पा रहा है, तब संसाधनों का ऐसा गैर-जरूरी उपयोग उचित नहीं है।

इसके बाद जून 2021 में प्रशासन ने औपचारिक रूप से ‘दरबार मूव’ को समाप्त कर दिया। साथ ही 56 विभागों के प्रमुखों को स्थायी रूप से या कैंप कार्यालय के रूप में श्रीनगर में तैनात करने का निर्णय लिया गया।

 

जम्मू-कश्मीर में लगभग 150 साल पुरानी दरबार मूवकी प्रथा को समाप्त करने के मुख्य कारण:

  • आर्थिक बचत: इस प्रथा में हर छह महीने में सरकारी कार्यालयों और हजारों कर्मचारियों को श्रीनगर और जम्मू के बीच स्थानांतरित करने में भारी खर्च (अनुमानित ₹200 करोड़ प्रति वर्ष) होता था। इसे खत्म करने से इस पैसे की बचत हुई, जिसका उपयोग जन कल्याण के लिए किया जा सकता है।
  • ई-ऑफिस को बढ़ावा: प्रशासन ने “ई-ऑफिस” प्रणाली (डिजिटल संचालन) को अपनाया, जिससे फाइलों को भौतिक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की आवश्यकता समाप्त हो गई।
  • समय और ऊर्जा की बचत: जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने भी कहा था कि दरबार मूव से समय, प्रयास और ऊर्जा की बर्बादी होती है।
  • प्रशासनिक दक्षता: दोनों राजधानियों में साल भर कार्यालयों के डिजिटल संचालन की सुविधा से प्रशासनिक कार्य में दक्षता आई।
  • राजनीतिक कारण: कुछ संगठनों, जैसे कि भाजपा से जुड़े लोगों का तर्क था कि यह प्रथा कश्मीर-केंद्रित पार्टियों द्वारा सत्ता में अपना प्रभुत्व बनाए रखने का एक तरीका था और इससे जम्मू के लोगों को उनके उचित अधिकार से वंचित किया जाता था।

 

हालिया चुनावों में ‘दरबार मूव’ बना था बड़ा चुनावी मुद्दा:

जम्मू-कश्मीर में हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान दरबार मूव’ को बहाल किया जाए या नहीं, यह एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बनकर उभरा। विभिन्न राजनीतिक दलों के रुख इस प्रकार रहे-

  • नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी): उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली पार्टी ने इस परंपरा को फिर से शुरू करने की वकालत की और सत्ता में आते ही इसे पुनः लागू भी कर दिया।
  • बीजेपी: पार्टी ने ‘दरबार मूव’ खत्म करने के पक्ष में रहते हुए तर्क दिया कि इससे हर साल लगभग ₹200 करोड़ की बचत होती है, जिसे जनकल्याण योजनाओं में लगाया जा सकता है।
  • जम्मू और कश्मीर अपनी पार्टी: इस पार्टी ने भी ‘दरबार मूव’ बहाल करने की माँग का समर्थन किया, इसे क्षेत्रीय संतुलन और पारंपरिक जुड़ाव से जोड़कर देखा।

 

दरबार मूव के समर्थकों का तर्क:

  • क्षेत्रीय जुड़ाव का प्रतीक: समर्थकों का कहना है कि ‘दरबार मूव’ से जम्मू और श्रीनगर के बीच एकता और संतुलन बना रहता था। इससे दोनों क्षेत्रों में समान रूप से विकास और प्रशासनिक भागीदारी सुनिश्चित होती थी।
  • आर्थिक दृष्टि से लाभ: उमर अब्दुल्ला के अनुसार, इस प्रथा को खत्म करने से जम्मू की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा।
    • जम्मू की स्थानीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक कश्मीर से आने वाले सरकारी कर्मचारियों पर निर्भर थी, जो छह महीने तक यहां रहकर किराये, परिवहन और खरीदारी पर खर्च करते थे।
    • इससे स्थानीय व्यवसाय, बाजार और आवास क्षेत्र को बड़ा लाभ मिलता था।
  • पर्यटन पर असर: उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अब पर्यटक जम्मू में ठहरते नहीं, वे सीधे कटरा और वैष्णो देवी चले जाते हैं, जिससे जम्मू का पर्यटन क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है।
  • राजनीतिक दृष्टिकोण: विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि इस परंपरा को खत्म कर सरकार ने जम्मू की आर्थिक और सामाजिक स्थिति कमजोर कर दी है, इसलिए वोटों के लिए इसे बहाल करने का वादा किया जा रहा है।

 

जम्मू के व्यापारियों की मांग – दरबार मूव की बहाली जरूरी:

  • आर्थिक नुकसान: दरबार मूव पर रोक का सबसे बड़ा असर जम्मू के व्यापारियों पर पड़ा। उनका कहना है कि इस परंपरा के समाप्त होने से स्थानीय कारोबार, होटल उद्योग और किराये का बाजार बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
  • व्यापारी संगठनों का मत: व्यापारिक समुदाय लगातार इस परंपरा की पुनर्बहाली की मांग कर रहा है। उनका मानना है कि दरबार मूव की वापसी जम्मू की अर्थव्यवस्था को दोबारा गति देगी।
  • एकता का प्रतीक: व्यापारी और राजनीतिक दलों दोनों का कहना है कि दरबार मूव केवल आर्थिक गतिविधि नहीं थी, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर की एकता, सद्भाव और परस्पर जुड़ाव का प्रतीक भी थी।