रविवार को भारत ने अपने अब तक के सबसे भारी संचार उपग्रह CMS-03 (GSAT-7R) को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा। यह उपग्रह भारतीय नौसेना के लिए बनाया गया है और हिंद महासागर क्षेत्र में संचार क्षमता को और मजबूत करेगा। श्रीहरिकोटा से LVM3-M5 रॉकेट के ज़रिए हुआ यह प्रक्षेपण इसरो के लिए एक और ऐतिहासिक कदम साबित हुआ।
प्रक्षेपण के लगभग 16 मिनट बाद, LVM-3 रॉकेट ने GSAT-7R उपग्रह को सफलतापूर्वक उप-भूसमकालिक स्थानांतरण कक्षा (Sub-GTO) में स्थापित किया। इस कक्षा की उपभू दूरी यानी पृथ्वी से सबसे दूर बिंदु लगभग 26,700 किलोमीटर थी। यह सटीक प्रक्षेपण इसरो की तकनीकी दक्षता और विश्वसनीयता को एक बार फिर साबित करता है।
इसरो के अध्यक्ष वी. नारायणन ने कहा,
यह मिशन चुनौतीपूर्ण मौसम परिस्थितियों में भी सफल रहा। उन्होंने कहा कि उपग्रह का जीवनकाल लगभग 15 वर्ष है और इसमें कई नई स्वदेशी प्रौद्योगिकियाँ शामिल की गई हैं, जो भारत की अंतरिक्ष क्षमता को और आगे बढ़ाएँगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दी बधाई:
उन्होंने लिखा, “CMS-03 की लॉन्चिंग पर बधाई। हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत ने स्पेस सेक्टर को नवाचार और प्रगति का प्रतीक बना दिया है। यह उपलब्धि भारत के राष्ट्रीय विकास को और गति देगी।”
GSAT-7R क्या है?
GSAT-7R (CMS-03) एक नई पीढ़ी का मल्टी-बैंड संचार उपग्रह है, जिसे भारत की भूमि और समुद्र पर सुरक्षित व उच्च क्षमता वाली संचार सेवाएँ बढ़ाने के लिए बनाया गया है। इसे इसरो ने अंतरिक्ष विभाग के तहत पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से विकसित और प्रक्षेपित किया है। इसका उद्देश्य भारत के डिजिटल और रणनीतिक संचार नेटवर्क को और मजबूत बनाना है, ताकि सरकारी संस्थान, रक्षा बल, नौसेना और आपदा प्रबंधन एजेंसियाँ तेज़, विश्वसनीय और सुरक्षित संचार प्रणाली का उपयोग कर सकें।
GSAT-7R की खासियतें: यह उपग्रह पूरी तरह से भारतीय नौसेना की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें कई स्वदेशी और अत्याधुनिक तकनीकी घटक शामिल हैं। यह भारत की आत्मनिर्भरता और समुद्री सुरक्षा को मज़बूती देने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
मुख्य विशेषताएँ:
- यह उपग्रह हिंद महासागर क्षेत्र में मज़बूत और भरोसेमंद संचार कवरेज प्रदान करेगा।
- इसमें ऐसे ट्रांसपोंडर लगे हैं जो ध्वनि, डेटा और वीडियो लिंक को एक साथ सपोर्ट कर सकते हैं।
- यह नौसेना के जहाजों, विमानों, पनडुब्बियों और ऑपरेशन केंद्रों के बीच तेज़, सुरक्षित और निर्बाध संचार सुनिश्चित करेगा।
- इसकी उच्च बैंडविड्थ क्षमता नौसेना की निगरानी और समन्वय की क्षमता को पहले से कहीं अधिक बढ़ा देगी।
- बहुमुखी संचार अनुप्रयोगों के लिए C, Ku, और Ka बैंड को कवर करने वाले मल्टी-बैंड पेलोड लगाए गए हैं।
GSAT-7R की आवश्यकता क्यों पड़ी?
GSAT-7R की ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि यह पुराने GSAT-7 (रुक्मिणी) उपग्रह की जगह लेने के लिए बनाया गया है। GSAT-7 को साल 2013 में लॉन्च किया गया था और यह मुख्य रूप से भारतीय नौसेना के संचार के लिए इस्तेमाल होता है। अब उसकी तकनीक पुरानी हो चुकी है, इसलिए GSAT-7R को बेहतर तकनीक और ज़्यादा कवरेज क्षमता के साथ तैयार किया गया है। इसी परिवार का एक और उपग्रह, GSAT-7A, पहले भारतीय वायु सेना के लिए लॉन्च किया गया था।
कितना महत्वपूर्ण है यह मिशन?
- आत्मनिर्भरता: CMS-03 मिशन से भारत अब 4 टन तक के भारी उपग्रहों को खुद लॉन्च करने में सक्षम हो गया है। इससे लागत घटेगी और रणनीतिक स्वतंत्रता बढ़ेगी।
- रक्षा क्षमता: यह उपग्रह नौसेना, वायुसेना और थलसेना के बीच सुरक्षित व रियल-टाइम संचार को मजबूत करेगा, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में निगरानी और समन्वय बेहतर होगा।
- गगनयान से जुड़ाव: इसी LVM-3 रॉकेट का उपयोग भविष्य के गगनयान मिशन में होगा, जिससे इसकी विश्वसनीयता सिद्ध हुई है।
- भविष्य के मिशन: LVM-3 के उन्नत संस्करण आगे चलकर भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन और चंद्र अभियानों में उपयोग किए जाएंगे।
भारतीय मिट्टी से 4.4 टन का सैटेलाइट लॉन्च पहली बार:
अब तक इसरो अपने भारी संचार उपग्रहों को आम तौर पर फ्रेंच गयाना स्थित यूरोपीय स्पेसपोर्ट से लॉन्च करता था। लेकिन इस बार पहली बार भारत की अपनी जमीन से 4.4 टन वजनी उपग्रह GSAT-7R को लॉन्च किया गया, जो इसरो के लिए एक बड़ा कदम है।
इससे पहले, इसरो ने 5 दिसंबर 2018 को एरियन-5 रॉकेट की मदद से फ्रेंच गयाना से GSAT-11 (5,854 किलोग्राम वजनी) उपग्रह को लॉन्च किया था, जो अब तक इसरो का सबसे भारी उपग्रह माना जाता है।
लॉन्च के लिए LVM-3 का उपयोग:
इस मिशन में इसरो ने अपने सबसे शक्तिशाली रॉकेट LVM-3 का इस्तेमाल किया। आम तौर पर LVM-3 की क्षमता लगभग 4,000 किलोग्राम तक के उपग्रह को भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में ले जाने की होती है। लेकिन इस बार इसरो ने इसके प्रदर्शन में सुधार करके इसकी क्षमता को 10% तक बढ़ाया, जिससे यह 4,410 किलोग्राम वजनी GSAT-7R उपग्रह को ले जाने में सफल रहा।
LVM-3 के बारे में:
प्रक्षेपण यान मार्क-3 (LVM-3), जिसे पहले GSLV Mark-3 कहा जाता था, इसरो द्वारा विकसित एक तीन-चरणीय मध्यम-भार उठाने वाला रॉकेट है। इसे मुख्य रूप से भारी संचार उपग्रहों को भूस्थिर कक्षा में भेजने और भविष्य में मानव अंतरिक्ष मिशनों के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसकी पेलोड क्षमता पुराने GSLV रॉकेट से कहीं अधिक है। LVM-3 की ऊंचाई 43.5 मीटर है और यह इसरो का सबसे मज़बूत रॉकेट है।
LVM-3 का विकास:
कई परीक्षणों और सुधारों के बाद, LVM-3 की पहली सफल कक्षीय उड़ान 5 जून 2017 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से हुई थी। इस परियोजना की कुल लागत लगभग ₹2,963 करोड़ रही। 2018 में केंद्र सरकार ने 10 LVM-3 रॉकेट बनाने के लिए ₹4,338 करोड़ की मंज़ूरी दी।
LVM-3 का इस्तेमाल अब तक कई बड़े मिशनों में किया जा चुका है- जैसे CARE (कैप्सूल रिकवरी प्रयोग), चंद्रयान-2, चंद्रयान-3, और जल्द ही इसका उपयोग गगनयान, भारत के पहले मानव मिशन के लिए भी होगा। LVM-3 रॉकेट का पिछला मिशन चंद्रयान-3 था, जिसमें भारत 2023 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला देश बन गया था। उपग्रह का वजन 3841.4 किलोग्राम था।
इसरो के बारे में:
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) भारत की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है, जो देश में सभी अंतरिक्ष कार्यक्रमों की योजना और संचालन करती है। यह दुनिया की सबसे सफल और किफायती अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक मानी जाती है। इसरो, अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत काम करता है, जो सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है। इसके कई केंद्र मिलकर भारत के अंतरिक्ष मिशनों और तकनीकी विकास को अंजाम देते हैं।
इसरो का इतिहास:
भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरुआत 1960 के दशक की शुरुआत में हुई, जब पूरी दुनिया में यह क्षेत्र अभी प्रयोगात्मक दौर में था।
- INCOSPAR की स्थापना (1962): डॉ. विक्रम साराभाई के सुझाव पर, परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के तहत भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) बनाई गई। इसने तमिलनाडु में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 21 नवंबर 1963 को अमेरिका से लाए गए पहले साउंडिंग रॉकेट (नाइक-अपाचे) को यहीं से प्रक्षेपित किया गया था।
- इसरो की स्थापना (1969): 15 अगस्त 1969 को इसरो (ISRO) की स्थापना की गई, जिसका मुख्यालय बेंगलुरु में है। इसे INCOSPAR की जगह अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग के उद्देश्य से बनाया गया।
निष्कर्ष:
इस सफल प्रक्षेपण ने इसरो की तकनीकी दक्षता और विश्वसनीयता को फिर से साबित किया है। GSAT-7R (CMS-03) के अंतरिक्ष में पहुँचने से भारतीय नौसेना की संचार और निगरानी क्षमता और मजबूत होगी। यह भारत की अंतरिक्ष और रक्षा प्रगति का एक महत्वपूर्ण कदम है।
