अमेरिका और चीन ने अपने देशों के बीच संभावित तनाव को कम करने के लिए सैन्य-से-सैन्य (military-to-military) संवाद चैनल स्थापित करने पर सहमति जताई है। यानि दोनों देशों की ताकत अब एक दूसरे से टकराएगी नहीं, बल्कि वह शांति का साधन बनेगी। यह दावा अमेरिका के रक्षामंत्री पीट हेगसेथ ने अपने चीनी समकक्ष एडिमिरल डोंग जून के साथ बैठक के बाद किया है।
अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने शनिवार को X (पूर्व में ट्विटर) पर जारी एक बयान में कहा कि उन्होंने अपने चीनी समकक्ष, रक्षा मंत्री डोंग जुन (Dong Jun) के साथ शुक्रवार रात फोन पर बातचीत के बाद यह निर्णय लिया।
पीट हेगसेथ ने क्या कहा?
संयुक्त राज्य अमेरिका के युद्ध सचिव पीट हेगसेथ ने ट्वीट किया, “मैंने अभी राष्ट्रपति ट्रंप से बात की। हम दोनों सहमत हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच संबंध कभी बेहतर नहीं रहे। दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति ट्रंप की शी के साथ ऐतिहासिक मुलाकात के बाद अब मलेशिया में मेरी अपने चीनी समकक्ष और रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जून के साथ भी एक समानांतर और सकारात्मक मुलाकात हुई। हमने फिर कल रात बात की। एडमिरल और मैं सहमत हैं कि शांति, स्थिरता और अच्छे संबंध हमारे दोनों महान और शक्तिशाली देशों के लिए सबसे अच्छा मार्ग हैं।
हेगसेथ ने आगे लिखा, “जैसा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, उनकी ऐतिहासिक “G2 बैठक” यूएस और चीन के लिए शाश्वत शांति और सफलता की दिशा तय करने वाला था। युद्ध विभाग भी यही करेगा। “शक्ति के माध्यम से शांति” आपसी सम्मान और सकारात्मक संबंध। एडमिरल डोंग और मैं इस पर भी सहमत हुए कि हमें सैन्य-से-सैन्य चैनल स्थापित करने चाहिए। ताकि उत्पन्न होने वाली किसी भी समस्या को हल किया जा सके और तनाव को कम किया जा सके। इस पर और बैठकें जल्द ही आयोजित की जाएंगी। भगवान दोनों चीन और यूएसए पर कृपा करें!”
इस पहल का उद्देश्य है –
- किसी भी सैन्य तनाव या टकराव की स्थिति में संवाद बनाए रखना,
- गलतफहमियों को तुरंत दूर करना, और
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता और शांति सुनिश्चित करना।
क्या है ‘सैन्य-से-सैन्य चैनल‘ का महत्व?
‘सैन्य-से-सैन्य चैनल’ (Military-to-Military Channel) दो या दो से अधिक देशों की सेनाओं के बीच सीधा, औपचारिक और निरंतर संवाद बनाए रखने की एक प्रणाली है। इसका उद्देश्य किसी भी प्रकार के सैन्य तनाव, गलतफहमी या आकस्मिक टकराव की स्थिति को रोकना है।
मुख्य उद्देश्य:
- सैन्य जोखिमों को कम करना: इस चैनल का सबसे प्रमुख लक्ष्य है- किसी भी सैन्य गतिविधि या कार्रवाई से जुड़ेगलत आकलन और अनावश्यक जोखिमोंको कम करना।
- गलतफहमी दूर करना: यह तंत्र दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे केइरादों और रणनीतिक कदमोंको बेहतर तरीके से समझने में मदद करता है, जिससे संवाद पारदर्शी और भरोसेमंद बनता है।
- अप्रत्याशित युद्ध को टालना: यह चैनल इस बात को सुनिश्चित करता है कि किसी भीगलतफहमी, तकनीकी गलती या सीमाई घटनाके कारण युद्ध जैसी स्थिति न बने।
डी-एस्केलेशन का प्रभावी साधन
सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे चैनल ‘डी-एस्केलेशन’ (De-escalation) यानी तनाव कम करने के लिए सबसे प्रभावी माध्यम होते हैं। जब राजनीतिक स्तर पर मतभेद गहराते हैं, तब भी यह सैन्य संवाद स्थिरता बनाए रखने और छोटे विवादों को बड़े संघर्ष में बदलने से रोकने में मदद करता है। इसलिए, अमेरिका और चीन जैसे परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच इस तरह का चैनल स्थापित होना क्षेत्रीय शांति और वैश्विक स्थिरता के लिए बेहद महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
सालों बाद अमेरिका–चीन सैन्य संवाद की बहाली:
अमेरिका और चीन के बीच सैन्य संवाद फिर से शुरू करने का यह समझौता द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है। दोनों देशों के बीच कई वर्षों से संचार में गंभीर रुकावटें थीं।
2022 में तत्कालीन अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद बीजिंग ने वॉशिंगटन के साथ सभी सैन्य वार्ताएं निलंबित कर दी थीं। हालांकि बाइडन प्रशासन के दौरान 2024 के अंत में कुछ सीमित संपर्क बहाल हुए, लेकिन औपचारिक सैन्य संवाद तंत्र की स्थापना अब जाकर संभव हुई है।
क्षेत्रीय संदर्भ और रणनीतिक महत्व:
यह नया सैन्य संवाद ऐसे समय में शुरू हो रहा है जब ताइवान जलडमरूमध्य और दक्षिण चीन सागर में लगातार तनाव बना हुआ है। चीन पर फिलीपींस और अमेरिका समर्थक जहाजों के खिलाफ आक्रामक नौसैनिक गतिविधियों के आरोप लगते रहे हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम संघर्ष की आशंका या आकस्मिक टकराव को कम करने के लिए एक अहम तंत्र साबित हो सकता है।
अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने कहा कि वर्तमान में अमेरिका–चीन संबंध अपने “अब तक के सबसे बेहतर चरण” में हैं। उन्होंने इस सकारात्मक माहौल का श्रेय दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और राष्ट्रपति शी जिनपिंग की हालिया बैठक को दिया, जिसने दोनों देशों के रिश्तों को एक “स्थायी और सकारात्मक दिशा” प्रदान की है।
दक्षिण चीन सागर को लेकर अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता
दक्षिण चीन सागर में अमेरिका और चीन के बीच की प्रतिस्पर्धा क्षेत्रीय दावों, नौवहन की स्वतंत्रता और सैन्य प्रभुत्व को लेकर लगातार बढ़ रही है। चीन लगभग पूरे सागर पर अपना दावा करता है, जबकि अमेरिका इसे अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र मानते हुए वहाँ मुक्त नौवहन (Freedom of Navigation) का समर्थन करता है।
प्रतिद्वंद्विता के प्रमुख बिंदु:
- क्षेत्रीय दावे: चीन ‘नाइन-डैश लाइन (Nine-Dash Line)’ के तहत दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर दावा करता है। वहीं, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया और ब्रुनेईभी इसके कुछ हिस्सों पर अपने-अपने दावे करते हैं।
- नौवहन की स्वतंत्रता: अमेरिका नियमित रूप से “Freedom of Navigation Operations (FONOPS)” के तहत अपने युद्धपोत भेजता है। चीन इसे अपनेसंप्रभु दावे का उल्लंघनमानता है, जबकि अमेरिका कहता है कि ये क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय कानून (UNCLOS) के तहत खुले हैं।
- सैन्य गतिविधियाँ: चीन कृत्रिम द्वीप बनाकर उन पररडार सिस्टम, मिसाइलें और रनवेस्थापित कर रहा है। अमेरिका अपने सहयोगी देशों के साथ नौसैनिक अभ्यास (Naval Exercises) करता है, जिससे तनाव और बढ़ता है।
- अंतरराष्ट्रीय कानून का मुद्दा: अमेरिकाUNCLOS (United Nations Convention on the Law of the Sea) के सिद्धांतों का समर्थन करता है। चीन अपनीघरेलू व्याख्या और ऐतिहासिक अधिकारों के आधार पर अपने दावे को सही ठहराता है।
- आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा: दक्षिण चीन सागर दुनिया कीएक-तिहाई समुद्री व्यापारिक मार्गसे जुड़ा क्षेत्र है। चीन अपनी Belt and Road Initiative (BRI) के ज़रिए क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ा रहा है, जबकि अमेरिका इसे रणनीतिक चुनौती मानता है।
- क्षेत्रीय सहयोग: अमेरिका आसियान देशों से आग्रह करता है कि वे चीन के साथ जल्द ही”Code of Conduct” समझौता करें। साथ ही, वह इन देशों कीसमुद्री निगरानी और रक्षा क्षमताएँ बढ़ाने में मदद करता है।
अमेरिका-चीन रिश्तों में सुधार की नई शुरुआत:
मई में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा टैरिफ (आयात शुल्क) बढ़ाने की घोषणा के बाद दुनिया भर में आर्थिक हलचल मच गई थी। चीन ने इसके जवाब में अमेरिकी सोयाबीन और कृषि उत्पादों की खरीद रोक दी, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ गया था।
हालांकि, अब हालात बदलते दिख रहे हैं। दक्षिण कोरिया में ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई मुलाकात में कई अहम समझौते हुए हैं। दोनों नेताओं ने टैरिफ घटाने और कृषि व्यापार दोबारा शुरू करने पर सहमति जताई है।
बैठक की मुख्य बातें:
- ट्रंप ने घोषणा की कि चीन पर लगाए गए शुल्क को 57% से घटाकर 47% किया जाएगा।
- चीन ने अमेरिकी सोयाबीन और अन्य कृषि उत्पादों की खरीद फिर से शुरू करने का निर्णय लिया है।
- ट्रंप ने इस बैठक को “शानदार और ऐतिहासिक” बताया।
- उन्होंने कहा कि यह समझौता दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों को मजबूत करेगा।
- ट्रंप के अनुसार, यह कदम अमेरिकी किसानों के लिए राहत लेकर आएगा और व्यापारिक संतुलन बहाल करने में मदद करेगा।
निष्कर्ष:
अमेरिका और चीन के बीच सैन्य संवाद की बहाली और आगे की बैठकों के लिए प्रतिबद्धता स्थिरता और आपसी विश्वास की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। दोनों देशों द्वारा समानता, सम्मान और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर जोर देना यह संकेत देता है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अब टकराव की बजाय सहयोगात्मक स्थिरता की नीति अपनाई जा रही है। यदि यह पहल निरंतर बनी रही, तो यह न केवल संघर्ष की आशंका को कम करेगी बल्कि पारदर्शिता और संतुलित क्षेत्रीय व्यवस्था को भी मजबूत बनाएगी।
