मेहली मिस्त्री का टाटा ट्रस्ट से अलग होने का एलान: विदाई नोट में पारदर्शिता और सुशासन का किया आग्रह, कहा- ‘संस्था से बड़ा कोई नहीं’..

भारत के प्रमुख औद्योगिक घराने टाटा समूह में एक बार फिर अंदरूनी हलचल देखने को मिल रही है। रतन टाटा के करीबी और लंबे समय से सहयोगी रहे मेहली मिस्त्री ने टाटा ट्रस्ट्स के तीन प्रमुख ट्रस्टों सर रतन टाटा ट्रस्ट, सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और बाई हीराबाई जे.एन. टाटा नावसारी चैरिटेबल इंस्टीट्यूशन ट्रस्ट से इस्तीफा दे दिया है। 4 नवंबर को दिए गए पत्र में अपने पदत्याग की जानकारी देकर उन्होंने समूह में अपनी स्थिति को लेकर चल रही अटकलों पर पूर्ण विराम लगा दिया है।

mehli mistry announces separation from tata trusts

पद से हटने का मुख्य कारण:

चेयरमैन नोएल टाटा और अन्य ट्रस्टियों को लिखे पत्र में मेहली मिस्त्री ने कहा कि रतन टाटा के विजन और आदर्शों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण उन्होंने पद छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने बताया कि टाटा ट्रस्ट्स को विवादों से दूर रखना और उसकी प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखना उनकी जिम्मेदारी है, क्योंकि आंतरिक मतभेद बढ़ने से ट्रस्ट की छवि को अपूरणीय नुकसान हो सकता है।

 

मिस्त्री द्वारा लिखित पत्र:

मिस्त्री ने संस्थान के बारे में क्या कहा?

मिस्त्री ने अपने पत्र में कहा कि रतन टाटा की सोच के अनुसार, ट्रस्ट्स को हमेशा पारदर्शिता, अच्छे शासन और जनहित के सिद्धांतों पर काम करना चाहिए। उन्होंने यह भी लिखा कि रतन टाटा की तरह, उन्हें भी विश्वास है कि कोई भी व्यक्ति उस संस्थान से बड़ा नहीं होता जिसकी वह सेवा करता है। इस संदेश के साथ मिस्त्री ने टाटा ट्रस्ट्स से अपना नाता औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया।

 

मिस्त्री अभी पूरी तरह सिस्टम से बाहर नहीं हुए:

हाल ही में टाटा संस में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी रखने वाले दो प्रमुख ट्रस्ट — सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट — ने मेहली मिस्त्री को फिर से ट्रस्टी बनाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया। इस फैसले के बाद उनका सीधा प्रभाव कम हो गया है, क्योंकि इन्हीं ट्रस्टों के पास टाटा समूह में सबसे ज्यादा नियंत्रण है।

फिर भी, मिस्त्री पूरी तरह सिस्टम से बाहर नहीं हुए हैं। वे अभी भी टाटा एजुकेशन एंड डेवलपमेंट ट्रस्ट (TEDT), कोलकाता के टाटा मेडिकल सेंटर और मुंबई के ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल के बोर्ड सदस्य हैं। इन संस्थानों का शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में अहम योगदान है।

 

टाटा ट्रस्ट्स बोर्ड में बढ़ा आपसी मतभेद:

टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड में पिछले साल रतन टाटा के निधन के बाद से आपसी मतभेद बढ़ गए हैं। ट्रस्ट्स, जो टाटा संस में दो-तिहाई हिस्सेदारी रखते हैं, अब बोर्ड में प्रतिनिधित्व और कंपनी पर नियंत्रण को लेकर बंटे हुए नजर आ रहे हैं। पिछले हफ्ते विवाद तब और बढ़ गया जब मेहली मिस्त्री का ट्रस्टी कार्यकाल 28 अक्टूबर को खत्म होने के बाद, नोएल टाटा के नेतृत्व में बहुमत से उन्हें पद से हटा दिया गया।

 

क्या है टाटा ट्रस्ट्स से जुड़ा विवाद?

टाटा ट्रस्ट्स में विवाद नोएल टाटा और मेहली मिस्त्री के नेतृत्व वाले दो गुटों के बीच बढ़ती खींचतान से जुड़ा है। यह संस्था लगभग 180 अरब डॉलर के टाटा समूह को नियंत्रित करती है। रतन टाटा के निधन के एक साल बाद यह टकराव इस बात पर केंद्रित है कि टाटा संस के बोर्ड में ट्रस्ट्स का प्रतिनिधित्व कौन करेगा और शापूरजी पलोनजी समूह, जिसके पास टाटा संस में 18% हिस्सेदारी है, उसके बाहर निकलने की प्रक्रिया कैसे होगी।

मिस्त्री का इस्तीफा उस समय आया जब ट्रस्टी वेणु श्रीनिवासन की पुनर्नियुक्ति को सशर्त मंजूरी दी गई, यह फैसला टाटा ट्रस्ट्स की अब तक की सर्वसम्मति पर आधारित परंपरा से अलग था। इसके बाद बोर्ड ने उपाध्यक्ष विजय सिंह सहित अन्य ट्रस्टियों की पुनर्नियुक्ति को भी अस्वीकार कर दिया, जिससे यह साफ हुआ कि अब ट्रस्ट्स अपने पुराने सामूहिक निर्णय वाले ढांचे से दूर जा रहे हैं। विजय सिंह ने इस स्थिति को “अभूतपूर्व” बताते हुए कहा कि ट्रस्ट अब “एक नए दौर” में प्रवेश कर रहा है।

 

कितना बड़ा है यह विवाद?

यह विवाद अब इतना बढ़ गया है कि कानूनी और सरकारी स्तर तक पहुंच गया है। मेहली मिस्त्री ने मुंबई में चैरिटी कमिश्नर के पास एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने मांग की है कि टाटा ट्रस्ट्स के रिकॉर्ड में कोई भी बदलाव करने से पहले उनका पक्ष सुना जाए। इससे संकेत मिलता है कि मामला अब ट्रस्ट के प्रबंधन और आजीवन ट्रस्टीशिप की वैधता को लेकर कानूनी लड़ाई में बदल सकता है।

विवाद की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और गृह मंत्री अमित शाह ने खुद हस्तक्षेप करते हुए दोनों पक्षों से स्थिरता बनाए रखने की अपील की है; जो किसी कॉर्पोरेट विवाद में सरकार के सीधा दखल का एक दुर्लभ मामला है।

 

2016 में भी हुआ था सार्वजनिक विवाद:

2016 की घटनाओं से इसकी समानता साफ दिखती है। उस समय मेहली मिस्त्री के चचेरे भाई, साइरस मिस्त्री को रतन टाटा से मतभेद के बाद टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया था। इस फैसले ने कई साल तक चलने वाली कानूनी लड़ाई को जन्म दिया, जिसका अंत 2021 में सुप्रीम कोर्ट के टाटा समूह के पक्ष में आए फैसले से हुआ।

मेहली मिस्त्री ने उस विवाद में रतन टाटा का साथ दिया था और बाद में 2022 में टाटा ट्रस्ट्स के बोर्ड में शामिल हुए। अब हालात कुछ वैसे ही दिख रहे हैं — बस भूमिकाएँ बदल गई हैं। वही परिवार, वही संस्थाएँ और वही कॉर्पोरेट परंपरा एक बार फिर वफादारी, पारदर्शिता और नेतृत्व को लेकर नए विवाद के केंद्र में हैं। यह घटनाक्रम 2016 के सार्वजनिक टकराव की याद दिलाता है, जिसने न केवल टाटा समूह बल्कि देश की प्रतिष्ठा पर भी असर डाला था।

 

इससे क्या साबित होता है?

भारत के सबसे भरोसेमंद कारोबारी समूह से जुड़ी यह घटना यह दिखाती है कि जब शक्ति कुछ पारिवारिक हाथों में केंद्रित हो जाती है, तो प्रबंधन व्यवस्था कमजोर पड़ सकती है। रिलायंस, अदानी, महिंद्रा और बिड़ला जैसे अन्य बड़े पारिवारिक समूह भी अब वैश्विक विस्तार और विदेशी निवेश आकर्षित करने की कोशिश में ऐसी ही चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। अब यह स्पष्ट हो गया है कि केवल नाम और प्रतिष्ठा से निवेशकों का भरोसा नहीं जीता जा सकता; इसके लिए पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन आवश्यक हैं। टाटा ट्रस्ट्स के निर्णयों में अस्पष्टता और शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी ने यह दिखा दिया है कि संस्थागत पारदर्शिता की कमी किस तरह शासन पर सवाल खड़े कर सकती है।

 

टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड के बारे में:

टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड, टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी है, जिसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है। यह कंपनी टाटा समूह की ज्यादातर सहयोगी कंपनियों में हिस्सेदारी रखती है और भारत में इसकी जमीन, चाय बागान और इस्पात संयंत्र भी हैं। टाटा संस की आय मुख्य रूप से इन कंपनियों से मिलने वाले लाभांश से होती है। इसके अलावा, यह भारत और कई अन्य देशों में “टाटा” ट्रेडमार्क की मालिक भी है।

टाटा संस की स्थापना 1917 में एक व्यापारिक उद्यम के रूप में हुई थी। शुरुआत में यह समूह के मुनाफे की देखरेख और प्रबंधन पर केंद्रित थी, लेकिन समय के साथ यह टाटा समूह की प्रमुख होल्डिंग कंपनी बन गई। कंपनी की लगभग 66% हिस्सेदारी टाटा परिवार द्वारा स्थापित परोपकारी ट्रस्टों के पास है, जिनमें सबसे बड़े हैं सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट।

 

निष्कर्ष:

यह घटना दर्शाती है कि परंपरा और विरासत जितनी अहम हैं, उतना ही आवश्यक है पारदर्शी, उत्तरदायी और संस्थागत रूप से सशक्त शासन ढांचा। जैसे-जैसे भारतीय उद्योग वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति मजबूत करने की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह जरूरी हो जाता है कि पारिवारिक प्रभाव से ऊपर उठकर कॉर्पोरेट प्रशासन के आधुनिक सिद्धांतों को अपनाया जाए।