भारत ने हाल ही में सैटेलाइट संचालन से जुड़ी नई नीति लागू की हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना और विदेशी निर्भरता को कम करना है। इस पहल के तहत सरकार ने विशेष रूप से चीन से जुड़े सैटेलाइट्स के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। यह कदम न केवल प्रसारण और टेलीकॉम क्षेत्र में पारदर्शिता लाने के लिए है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में आत्मनिर्भरता (Atmanirbharta) को बढ़ावा देने की दिशा में भी एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
भारत की नई उपग्रह नीति: विदेशी और चीनी संबंध सैटेलाइट्स पर सख्ती
- हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) और भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) के माध्यम से एक नई नीति लागू की है, जिसके तहत देश में प्रसारण सेवाओं के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपग्रहों पर सख्त प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करना, संवेदनशील संचार डेटा की रक्षा करना और भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को आत्मनिर्भर बनाना है।
- नई नीति के अनुसार, अब सभी लाइसेंस प्राप्त टेलीविजन प्रसारकों और टेलीपोर्ट ऑपरेटरों को उन उपग्रहों का उपयोग बंद करना होगा, जिनका सीधा या अप्रत्यक्ष संबंध विदेशी स्वामित्व, विशेष रूप से चीनी कंपनियों से है। इसमें प्रमुख रूप से एशिया सैट (AsiaSat) और एपस्टार (Apstar) जैसे सैटेलाइट शामिल हैं।
- नीति के तहत, IN-SPACe ने 31 मार्च 2026 के बाद AsiaSat-5 और AsiaSat-7 उपग्रहों की अधिकृत अनुमति वापस ले ली है। इसका अर्थ है कि देश के सभी प्रसारण नेटवर्कों को इस तिथि से पहले इन विदेशी सैटेलाइट्स से अपनी सेवाओं को हटाकर विश्वसनीय या भारतीय उपग्रहों पर स्थानांतरित करना होगा।
- नई व्यवस्था में यह भी तय किया गया है कि किसी भी विदेशी सैटेलाइट ऑपरेटर को भारत में सेवाएं देने से पहले IN-SPACe से पुनः अधिकृत अनुमति लेनी होगी। इसके लिए आवेदन केवल भारतीय पंजीकृत कंपनियों के माध्यम से ही स्वीकार किए जाएंगे।
- 1 अक्टूबर 2025 से यह प्रावधान लागू हो चुका है कि केवल वही उपग्रह भारत में अपनी सेवा प्रदान कर सकेंगे जिन्हें IN-SPACe द्वारा स्पष्ट रूप से स्वीकृति दी गई हो। इससे पहले जिन प्रसारकों के अनुबंध विदेशी सैटेलाइट्स से जुड़े हुए हैं, उन्हें अब विश्वसनीय या घरेलू विकल्पों की ओर माइग्रेशन शुरू करना होगा।
- सूत्रों के अनुसार, Zee Entertainment Enterprises Limited और JioStar TV जैसी प्रमुख प्रसारण कंपनियों ने पहले ही भारतीय उपग्रहों या अन्य स्वीकृत अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्मों की ओर स्थानांतरण की प्रक्रिया आरंभ कर दी है।
- नई सैटेलाइट नीति के तहत भारत ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी संचार अवसंरचनाओं में विदेशी या संदिग्ध तकनीक को स्थान नहीं दिया जाएगा। इसके साथ ही, भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में नवाचार, पारदर्शिता और घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करने की दिशा में एक निर्णायक कदम उठाया है।
भारत द्वारा उपग्रह प्रतिबंध लागू करने के कारण
- सरकार को हमेशा चीनी स्वामित्व वाले उपग्रहों को लेकर गंभीर चिंताएँ रही हैं। कई रिपोर्टों में यह संकेत मिला था कि कुछ सैटेलाइट ऑपरेटर जिनकी मूल कंपनियाँ चीन से संबद्ध हैं, वे भारत में प्रसारण और डेटा वितरण के क्षेत्र में सक्रिय थीं। इन उपग्रहों में AS-6, AS-8 और AS-9 जैसे सैटेलाइट शामिल हैं, जिनकी अनुमति IN-SPACe ने 2025 में रद्द कर दी। भारत ने यह कदम इसलिए उठाया ताकि विदेशी प्रभाव या छिपे हुए साइबर हस्तक्षेप की संभावनाओं को पूरी तरह समाप्त किया जा सके।
- दूसरा बड़ा कारण भू-राजनीतिक परिदृश्य में तेजी से हो रहे बदलाव हैं। “Global Counterspace Capabilities Report 2025” के अनुसार, चीन ने अंतरिक्ष में निकटता संचालन (proximity operations) और जैमिंग तकनीकों में काफी प्रगति की है, जिससे अन्य देशों के सैटेलाइट नेटवर्क के लिए खतरे की स्थिति उत्पन्न हो गई है। भारत ने इस परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट किया कि अब अंतरिक्ष और संचार अवसंरचना राष्ट्रीय रक्षा प्रणाली का हिस्सा हैं, जिन्हें किसी भी बाहरी प्रभाव से मुक्त रखना आवश्यक है।
- तीसरा, यह नीति महत्वपूर्ण संचार चैनलों की सुरक्षा से भी जुड़ी है। भारत में सैकड़ों टेलीविजन प्रसारक और टेलीपोर्ट ऑपरेटर अपने प्रसारण, अपलिंक और डाउनलिंक संचालन के लिए विदेशी उपग्रहों की क्षमता पर निर्भर हैं। सरकार ने पाया कि जब यह क्षमता विदेशी स्वामित्व वाले सैटेलाइट्स से ली जाती है, तो डेटा इंटरसेप्शन, जासूसी या प्रसारण बाधा जैसी संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
- चौथा प्रमुख कारण घरेलू उपग्रह निर्माण और सेवा प्रदायन को प्रोत्साहन देना है। भारत अब तेजी से अपने अंतरिक्ष उद्योग को निजी और सरकारी साझेदारी के माध्यम से विकसित कर रहा है। ISRO और IN-SPACe मिलकर यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि भारत अपने उपग्रहों के माध्यम से प्रसारण, संचार और रक्षा सेवाओं के लिए आत्मनिर्भर बने। इस नीति के माध्यम से सरकार चाहती है कि घरेलू कंपनियाँ उपग्रह क्षमता, ग्राउंड स्टेशन नेटवर्क और डेटा ट्रांसमिशन सेवाओं में सक्रिय भूमिका निभाएँ।
भारत में संचालित विदेशी उपग्रह सेवाएँ
भारत में उपग्रह संचार सेवाओं का विस्तार अब केवल घरेलू स्तर तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की भागीदारी भी तेजी से बढ़ी है। सरकार द्वारा IN-SPACe (Indian National Space Promotion and Authorisation Centre) की स्थापना के बाद विदेशी उपग्रहों को भारत में सेवाएँ देने की अनुमति एक नियंत्रित और पारदर्शी ढाँचे के माध्यम से दी जा रही है।
- मई 2025 में IN-SPACe ने इंटेलसैट (Intelsat) को भारत में प्रत्यक्ष प्रसारण सेवा (Direct Broadcast Services) प्रदान करने की औपचारिक अनुमति दी थी। इस स्वीकृति के अंतर्गत चार प्रमुख भू-स्थिर उपग्रह — IS-17, IS-20, IS-36 और IS-39 — को भारत में उपयोग की अनुमति दी गई है। इन उपग्रहों की C-बैंड क्षमता विशेष रूप से भारतीय मीडिया उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए स्वीकृत की गई है।
- स्टारलिंक (Starlink), जो अमेरिकी कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) की एक प्रमुख इकाई है, को जुलाई 2025 में भारत में परिचालन की अनुमति मिली है। स्टारलिंक को अपनी Gen1 लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन के तहत भारत में ब्रॉडबैंड सेवाएँ देने का अधिकार मिला है। इस लाइसेंस की खास बात यह है कि इसमें डेटा स्थानीयकरण और ट्रैफिक रूटिंग के सख्त नियम शामिल हैं — यानी कोई भी भारतीय उपभोक्ता का डेटा भारत के बाहर स्थित गेटवे के माध्यम से नहीं भेजा जा सकता।
- वनवेब (OneWeb), जो भारतीय समूह भारती एंटरप्राइजेज (Bharti Enterprises) द्वारा समर्थित है। नवंबर 2023 में IN-SPACe ने वनवेब इंडिया को अपनी LEO सैटेलाइट प्रणाली के माध्यम से वाणिज्यिक सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएँ शुरू करने की अनुमति दी। यह अनुमति पाँच वर्षों के लिए वैध है और इसका कार्यान्वयन दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा आवंटित स्पेक्ट्रम पर निर्भर है। वनवेब की सेवा ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में तेज़ इंटरनेट उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली है, जिससे डिजिटल इंडिया मिशन को नई गति मिलेगी।
- इनमारसैट (Inmarsat) — जो एक ब्रिटिश उपग्रह संचार प्रदाता है भी भारत में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। अक्टूबर 2021 में इसकी साझेदार कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) को दूरसंचार विभाग से IFMC (Inflight & Maritime Connectivity) लाइसेंस मिला, जिसके तहत इनमारसैट की Global Xpress सेवाएँ भारतीय विमानन और समुद्री क्षेत्रों में उपलब्ध कराई गईं। इसके बाद मई 2022 में इनमारसैट ने BSNL के लाइसेंस में संशोधन के माध्यम से सैटेलाइट आधारित IoT (Internet of Things) सेवाएँ भी भारत में शुरू कीं, जो औद्योगिक और परिवहन क्षेत्रों के लिए बेहद उपयोगी सिद्ध हो रही हैं।
भारत में उपग्रह परिचालन का नियामकीय ढाँचा
- नियामक संस्थाएँ (Regulatory Authorities): भारत में उपग्रह संचालन से संबंधित प्रमुख नियामक संस्था IN-SPACe है, जो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) और अंतरिक्ष विभाग (Department of Space – DoS) के अधीन कार्य करती है। इसका कार्य उपग्रह सेवाओं, प्रक्षेपण और अंतरिक्ष आधारित प्रणालियों के लिए अनुमोदन जारी करना है, विशेषकर जब बात विदेशी उपग्रहों या अंतरराष्ट्रीय नक्षत्रों (constellations) की हो।
- इसके अलावा, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information and Broadcasting – MIB) देश के टेलीविजन प्रसारणकर्ताओं और टेलीपोर्ट ऑपरेटरों को दिशा-निर्देश जारी करता है, ताकि वे केवल अनुमोदित उपग्रह क्षमता का ही उपयोग करें।
- दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications – DoT) उपग्रह संचार सेवाओं (satcom) के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विभाग लाइसेंसिंग, स्पेक्ट्रम आवंटन, और सुरक्षा मानकों से जुड़ी निगरानी का कार्य करता है।
- नीतिगत ढाँचा (Policy Framework): भारत का उपग्रह नियमन कई नीतियों और कानूनी प्रावधानों के संयोजन पर आधारित है।
- सबसे पहले, टेलीकम्युनिकेशंस अधिनियम, 2023 (Telecommunications Act, 2023) को लागू किया गया, जिसने पुराने भारतीय तार अधिनियम, 1885 (Indian Telegraph Act, 1885) को प्रतिस्थापित किया। इस नए अधिनियम के तहत संचार के सभी आधुनिक रूपों — जैसे सैटेलाइट फोन, फिक्स्ड सैटेलाइट सेवाएँ और अंतरिक्ष आधारित कनेक्टिविटी — को कानूनी रूप से परिभाषित किया गया है।
- दूसरी ओर, भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 (Indian Space Policy, 2023) ने भारत में अंतरिक्ष गतिविधियों को स्पष्ट रूप से तीन प्रमुख संस्थाओं में बाँटा है —
- ISRO अनुसंधान और तकनीकी नवाचारों के लिए,
- NSIL (NewSpace India Limited) वाणिज्यिक कार्यान्वयन और विपणन के लिए, तथा
- IN-SPACe अनुमोदन और विनियमन के लिए।
- अंतरराष्ट्रीय दायित्व (International Treaties): भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में कई अंतरराष्ट्रीय संधियों का हस्ताक्षरकर्ता है, जिनमें 1967 की आउटर स्पेस संधि (Outer Space Treaty) और 1972 की लायबिलिटी कन्वेंशन (Liability Convention) शामिल हैं। इन संधियों के अनुसार, प्रत्येक राष्ट्र अपने नागरिकों और कंपनियों द्वारा किए गए अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए राज्य स्तर पर उत्तरदायी (State Responsibility) होता है।
आइए जानते हैं: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) के बारे में
- स्थापना: भारत सरकार ने अंतरिक्ष विभाग (Department of Space – DoS) के अधीन एक स्वायत्त नोडल एजेंसी के रूप में IN-SPACe की स्थापना की। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य निजी कंपनियों, स्टार्टअप्स और शिक्षण संस्थानों को अंतरिक्ष गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना है।
- भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023 (Indian Space Policy 2023) में IN-SPACe को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है कि इसका दायित्व “देश में अंतरिक्ष गतिविधियों को प्रोत्साहित करना, मार्गदर्शन देना, सहायता करना और अधिकृत करना” है।
- यह संस्था निजी क्षेत्र के लिए सरकार और अंतरिक्ष विभाग के बीच एक सिंगल विंडो प्लेटफ़ॉर्म की तरह कार्य करती है, जिससे अनुमति, तकनीकी सहयोग और संचालन संबंधी प्रक्रियाएँ सरल और तेज़ बन सकें।
- मुख्य कार्य और भूमिका: IN-SPACe की भूमिका केवल अनुमोदन देने तक सीमित नहीं है; यह निजी संस्थाओं को तकनीकी, नीतिगत और नियामकीय सहायता भी प्रदान करता है। कोई भी गैर-सरकारी इकाई (Non-Governmental Entity – NGE) यदि उपग्रह निर्माण, प्रक्षेपण यान (Launch Vehicle) विकास, या अंतरिक्ष आधारित सेवाएँ प्रदान करना चाहती है, तो उसे IN-SPACe के माध्यम से आवश्यक अनुमति प्राप्त करनी होती है।
- यह संस्था विभिन्न अंतरिक्ष गतिविधियों के लिए दिशा-निर्देश (Guidelines) और प्रक्रियात्मक मानदंड (Procedures) जारी करती है, ताकि निजी कंपनियों को “Ease of Doing Business” का अनुभव हो सके।
- समन्वय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग: IN-SPACe न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी समन्वय स्थापित करता है। यह संस्था अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union – ITU) के साथ सहयोग में काम करती है ताकि भारत के उपग्रहों के लिए कक्षीय स्लॉट (Orbital Slot) और आवृत्ति पंजीकरण (Frequency Filing) सुनिश्चित हो सके। साथ ही, यह भारत की राष्ट्रीय आवृत्ति आवंटन निकायों (National Frequency Allocation Bodies) के साथ भी मिलकर काम करता है ताकि स्पेक्ट्रम प्रबंधन और उपयोग में पारदर्शिता और संतुलन बना रहे।
- मुख्यालय और प्रशासनिक ढाँचा: IN-SPACe का मुख्यालय अहमदाबाद, गुजरात में स्थित है, जहाँ से यह देशभर की निजी और सार्वजनिक संस्थाओं के साथ समन्वय स्थापित करता है। इसके तहत कई विभाग कार्यरत हैं, जो नीतिगत विकास, परियोजना मूल्यांकन, तकनीकी समीक्षा और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित हैं।
- विकास में योगदान: IN-SPACe की स्थापना से भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नया युग प्रारंभ हुआ है। पहले जहाँ अंतरिक्ष गतिविधियाँ केवल सरकारी संस्थानों तक सीमित थीं, वहीं अब निजी कंपनियाँ भी उपग्रह निर्माण, प्रक्षेपण सेवाएँ और अंतरिक्ष-आधारित संचार समाधान प्रदान करने में सक्षम हो रही हैं। इससे “आत्मनिर्भर भारत” के लक्ष्य को मजबूती मिली है और भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था (Space Economy) में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।
निष्कर्ष:
भारत द्वारा विदेशी, विशेष रूप से चीन-सम्बंधित सैटेलाइट्स पर लगाए गए प्रतिबंध केवल सीमित दंडात्मक उपाय नहीं हैं, बल्कि यह एक व्यापक रणनीतिक पुनर्गठन का संकेत हैं। इस नीति के तहत भारत अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों के अनुरूप अपनी अंतरिक्ष और संचार प्रणालियों को पुनर्संगठित कर रहा है। हालांकि, संक्रमण काल में प्रसारण उद्योग को तकनीकी और संचालन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, परंतु दीर्घकालिक दृष्टि से यह कदम भारत की सैटेलाइट संचार संरचना को अधिक आत्मनिर्भर, विश्वसनीय और प्रतिस्पर्धी बनाने में सहायक होगा।
