कज़ाख़स्तान अब्राहम समझौते में शामिल होगा, अमेरिका से रिश्ते मज़बूत करने की रणनीतिक पहल

कज़ाख़स्तान ने 6 नवंबर को घोषणा की कि वह अब्राहम समझौते (Abraham Accords) में शामिल होगा – यह वह ऐतिहासिक कूटनीतिक पहल है जिसे अमेरिका ने मुस्लिम बहुल देशों और इज़राइल के बीच संबंध सामान्य करने के लिए आगे बढ़ाया था। यह कदम अमेरिका से अपने रिश्तों को मज़बूत करने की दिशा में कज़ाख़स्तान की एक रणनीतिक पहल मानी जा रही है।

 

हालांकि यह फैसला प्रतीकात्मक (symbolic) है, क्योंकि कज़ाख़स्तान ने 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद आज़ादी मिलने पर ही इज़राइल को मान्यता दे दी थी और तब से दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध बने हुए हैं।

फिर भी, अब्राहम समझौते में शामिल होना – जिसे डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की एक बड़ी विदेश नीति उपलब्धि माना जाता है – कज़ाख़स्तान को अमेरिका की नई मध्य एशिया नीति के केंद्र में ले आता है।

Kazakhstan to join Abraham

अब्राहम समझौता क्या है?

 

अब्राहम समझौता 2020 में शुरू की गई एक ऐतिहासिक कूटनीतिक पहल है, जिसके तहत इज़राइल और कई अरब देशों ने आपसी संबंधों को सामान्य और मैत्रीपूर्ण बनाने का निर्णय लिया। इसका नाम “अब्राहम” इसलिए रखा गया है क्योंकि अब्राहम यहूदी, ईसाई और इस्लाम – तीनों धर्मों में एक साझा और पूजनीय पैगंबर माने जाते हैं।

 

इस समझौते के माध्यम से संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन और मोरक्को जैसे देशों ने इज़राइल के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए। इन देशों ने एक-दूसरे के दूतावास खोलने, व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा देने, तथा रक्षा और तकनीकी सहयोग को मजबूत करने पर सहमति दी।

 

लंबे समय से फिलिस्तीन विवाद के चलते अरब देशों और इज़राइल के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। लेकिन अब्राहम समझौते ने पहली बार मुस्लिम देशों को इज़राइल के साथ खुले और स्थायी रिश्ते बनाने का अवसर दिया।

हालांकि, कई मुस्लिम देश इस समझौते की आलोचना करते हैं। उनका कहना है कि जब तक फिलिस्तीन को उसका अधिकार नहीं मिलता, तब तक इज़राइल के साथ संबंध सामान्य नहीं किए जाने चाहिए।

 

मुख्य बिंदु:

 

  • घोषणा: 13 अगस्त 2020
  • औपचारिक शुरुआत: 15 सितंबर 2020
  • प्रारंभिक हस्ताक्षरकर्ता देश: इज़राइल, UAE और बहरीन

 

अब तक शामिल देश:

  • संयुक्त अरब अमीरात – अगस्त 2020
  • बहरीन – सितंबर 2020
  • मोरक्को – दिसंबर 2020
  • सूडान – जनवरी 2021 (औपचारिक प्रक्रिया जारी)

 

वार्ता में शामिल देश: कज़ाख़स्तान (अंतिम चरण में), सऊदी अरब (शर्त: फिलिस्तीन के लिए समाधान जरूरी), अज़रबैजान और उज्बेकिस्तान।

 

उद्देश्य: अब्राहम समझौते का मुख्य उद्देश्य इज़राइल और मुस्लिम/अरब देशों के बीच राजनयिक, आर्थिक और रणनीतिक सहयोग बढ़ाना, क्षेत्र में स्थिरता और शांति को प्रोत्साहित करना, तथा व्यापार, पर्यटन, रक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नई साझेदारी स्थापित करना है।

 

अब्राहम समझौते का विस्तार

अब्राहम समझौते का उद्देश्य इज़राइल और मुस्लिम देशों के बीच सहयोग बढ़ाना था। संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन, और मोरक्को ने 2020 में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

 

अब ट्रंप प्रशासन इस पहल को विस्तारित करना चाहता है। इसी दिशा में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान 18 नवंबर को वॉशिंगटन की यात्रा पर जा रहे हैं, जहां इस मुद्दे पर चर्चा की जाएगी।

 

कज़ाख़स्तान, जो मध्य एशिया का सबसे बड़ा और समृद्ध देश है, अब्राहम समझौते में शामिल होने वाला इस क्षेत्र का पहला देश बनेगा। इससे यह पहल मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका से निकलकर मध्य एशिया तक फैल जाएगी।

कज़ाख़ सरकार ने अपने बयान में कहा –

“अब्राहम समझौते में हमारी प्रस्तावित भागीदारी कज़ाख़स्तान की विदेश नीति का स्वाभाविक और तार्किक विस्तार है, जो संवाद, पारस्परिक सम्मान और क्षेत्रीय स्थिरता पर आधारित है।”

 

अमेरिका के साथ रिश्ते मज़बूत करने की कोशिश

कज़ाख़स्तान, जो तेल और खनिज संपदाओं से समृद्ध है और रूस व चीन दोनों का सहयोगी माना जाता है, अब अमेरिका के साथ संतुलित साझेदारी चाहता है।

अटलांटिक काउंसिल के यूरेशिया सेंटर के एसोसिएट डायरेक्टर एंड्रयू डी’एनेरी ने लिखा –

“रूस और चीन के बीच स्थित कज़ाख़स्तान जितने ज़्यादा साझेदार बना सके उतना अच्छा मानता है। अब्राहम समझौते में शामिल होना एक व्यावहारिक कदम है जिससे अमेरिका का ध्यान उसकी ओर आकर्षित होगा और अमेरिकी निवेश को बढ़ावा मिलेगा।”

विशेषज्ञों के अनुसार, कज़ाख़स्तान की यह घोषणा उस समय की गई जब डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में मध्य एशियाई देशों के नेताओं की मेज़बानी की। इस बैठक में अमेरिका ने व्यापार, कूटनीति और खनिज क्षेत्रों में नए समझौते किए, ताकि रूस और चीन के प्रभाव वाले क्षेत्र में अपनी पकड़ मज़बूत की जा सके।

 

मिनरल डील्स और रणनीतिक महत्व

शिखर सम्मेलन से पहले कज़ाख़स्तान ने अमेरिका के साथ एक बड़ा खनिज समझौता किया, जिसके तहत दुनिया के सबसे बड़े टंग्स्टन (Tungsten) भंडारों में से एक का विकास किया जाएगा।

यॉर्कटाउन इंस्टीट्यूट के जोसेफ एपस्टीन ने कहा –

“कज़ाख़स्तान का अब्राहम समझौते में शामिल होना प्रतीकात्मक दिख सकता है, लेकिन यह समझौता अब मध्य पूर्व की शांति पहल से आगे बढ़कर एक प्रो-अमेरिका गठबंधन के रूप में विकसित हो रहा है, जिसमें मध्यमार्गी मुस्लिम देश शामिल हैं।”

 

क्षेत्रीय असर और भविष्य की संभावनाएं

मध्य एशिया और कॉकस क्षेत्र के अन्य देश, जैसे उज़्बेकिस्तान और अज़रबैजान, भी अब्राहम समझौते में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अस्ताना (कज़ाख़स्तान की राजधानी) और बाकू (अज़रबैजान) जैसे देश इस समझौते में शामिल होते हैं, तो यह अमेरिका और इज़राइल को रूस और ईरान पर रणनीतिक बढ़त दिला सकता है।

अटलांटिक काउंसिल की सीनियर फेलो सारा ज़ाइमि ने कहा –

“गैस, यूरेनियम और खनिज संसाधनों से समृद्ध ये देश अमेरिका और इज़राइल के लिए रणनीतिक रूप से अत्यंत अहम साबित हो सकते हैं, क्योंकि ये क्षेत्र लंबे समय से रूस और ईरान के प्रभाव में रहे हैं।”

 

निष्कर्ष:

कज़ाख़स्तान का अब्राहम समझौते में शामिल होना सिर्फ एक कूटनीतिक कदम नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन की दिशा में अहम बदलाव है।

यह निर्णय दर्शाता है कि मध्य एशिया अब वैश्विक राजनीति का नया केंद्र बन रहा है, जहाँ अमेरिका, रूस, चीन और इज़राइल – सभी अपनी रणनीतिक स्थिति मज़बूत करने में जुटे हैं।