सुप्रीम कोर्ट ने आवारा पशुओं पर दिया आदेश: कहा- कुत्तों की नसबंदी कर होम शेल्टर में रखें, हाईवे से आवारा जानवर भी हटाएं..

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में बढ़ते कुत्तों के काटने के मामलों पर सख्त रुख अपनाते हुए शुक्रवार को बड़ा आदेश दिया। अदालत ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, खेल परिसरों, बस स्टैंडों और रेलवे स्टेशनों से सभी आवारा कुत्तों को तुरंत हटाकर उन्हें नसबंदी और टीकाकरण के बाद सुरक्षित आश्रय गृहों में रखा जाए। कोर्ट ने यह निर्देश जनता की सुरक्षा, स्वास्थ्य और आवारा कुत्तों के बेहतर प्रबंधन के हित में जारी किया है।

कोर्ट ने क्या निर्देश दिए ?

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे दो हफ्तों के भीतर सभी सरकारी और निजी स्कूलों, अस्पतालों, खेल परिसरों, बस स्टैंडों और रेलवे स्टेशनों की पहचान करें और इन परिसरों को मजबूत बाड़, दीवार या अन्य संरचनाओं से सुरक्षित बनाएं ताकि आवारा कुत्तों का प्रवेश रोका जा सके। कोर्ट ने कहा कि हर संस्थान में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए जो परिसर की सफाई और सुरक्षा का ध्यान रखे। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इन क्षेत्रों से पकड़े गए कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के बाद उन्हें निर्दिष्ट आश्रय गृहों में रखा जाए और उन्हें वापस उसी स्थान पर न छोड़ा जाए।

साथ ही, पीठ ने अधिकारियों को राजमार्गों और एक्सप्रेसवे से मवेशियों और अन्य आवारा पशुओं को हटाकर सुरक्षित आश्रय स्थलों में पहुंचाने का भी निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद होगी।

 

कैसे शुरू हुआ पूरा मामला ?

सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला खुद ही 28 जुलाई को शुरू किया था, जब मीडिया में ऐसी खबरें आईं कि दिल्ली में आवारा कुत्तों के काटने से, खासकर बच्चों में, रेबीज के मामले बढ़ रहे हैं। इस पर अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की और 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने MCD और दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि वे आठ हफ्तों के भीतर सभी आवारा कुत्तों को आश्रय गृहों में पहुंचाएं। बाद में, 22 अगस्त को अदालत ने इस आदेश में बदलाव किया और कहा कि कुत्तों को नसबंदी और टीकाकरण के बाद उनके मूल स्थानों पर वापस छोड़ा जा सकता है, लेकिन उन्हें खिलाने की व्यवस्था केवल तय किए गए क्षेत्रों में ही की जाएगी।

लेकिन अब कोर्ट ने फिर से आदेश दिया है की आवारा कुत्तों को सुरक्षित आश्रय गृहों में रखा जाए। साथ ही इसका दायरा दिल्ली से बढ़ाकर पूरे देश तक कर दिया है। कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मामले में पक्षकार बनाया।

 

शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों से माँगे थे हलफनामा:

सुप्रीम कोर्ट ने पहले सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया था कि वे पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियमों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों का पूरा विवरण देते हुए हलफनामा दायर करें। इसमें कुत्तों की नसबंदी, टीकाकरण कार्यक्रम और पशु आश्रय गृहों या पाउंड की स्थापना से जुड़ी जानकारी शामिल करने को कहा गया था। लेकिन 27 अक्टूबर को अदालत ने नाराज़गी जताई कि 22 अगस्त के स्पष्ट आदेश के बावजूद ज्यादातर राज्य सरकारों ने अभी तक हलफनामा दाखिल नहीं किया है। कोर्ट ने बताया कि अब तक सिर्फ पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और दिल्ली नगर निगम (MCD) ने ही अपनी रिपोर्ट सौंपी है। अंततः 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने एफिडेविट दायर की।

 

दायर हलफनामा में राज्यों ने क्या बताया ?

सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने बताया कि उनके यहां कितने शेल्टर होम और एनिमल बर्थ कंट्रोल (ABC) सेंटर हैं, जहां आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण किया जा रहा है। दिल्ली ने बताया कि उसके पास 20 ABC सेंटर हैं, जहां हर दिन करीब 15 कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण किया जाता है। महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा 236 ABC सेंटर हैं, जबकि उत्तर प्रदेश के 17 शहरों में ये केंद्र मौजूद हैं। वहीं बिहार में एक भी ABC सेंटर नहीं है, लेकिन कुत्तों के लिए 16 जगहों पर अस्थायी व्यवस्था की गई है।

 

मामले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त:

सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के बढ़ते हमलों पर सख्त रुख अपनाते हुए 3 नवंबर को कहा था कि वह संस्थागत क्षेत्रों में कुत्तों के काटने की गंभीर समस्या से निपटने के लिए अस्थायी दिशा-निर्देश जारी करेगी। अदालत ने यह भी बताया कि कई जगह कर्मचारियों द्वारा आवारा कुत्तों को खाना खिलाने और उन्हें बढ़ावा देने से समस्या और बढ़ रही है।

इससे पहले, 31 अक्टूबर को कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की उस मांग को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने मुख्य सचिवों को ऑनलाइन पेश होने की अनुमति मांगी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा कि सभी मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होना होगा।

 

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले का किया समर्थन:

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले का समर्थन किया जिसमें तीन महीने पहले सरकारी एजेंसियों को सड़कों से आवारा जानवरों को हटाने का आदेश दिया गया था। राजस्थान हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर कोई व्यक्ति इस कार्रवाई में बाधा डाले तो उसके खिलाफ FIR दर्ज की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि अब यह फैसला पूरे देश में लागू होगा।

 

पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2023:

पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2023 का मकसद आवारा कुत्तों की संख्या को नियंत्रित करना और इंसानों व पशुओं के बीच टकराव को कम करना है। 2019 से 2022 के बीच देश में करीब 16 करोड़ कुत्तों के काटने के मामले दर्ज हुए थे। इन नियमों के तहत नगर निगमों और स्थानीय निकायों को कुत्तों की नसबंदी और एंटी-रेबीज़ टीकाकरण अभियान एक साथ चलाना होगा। साथ ही, नसबंदी के बाद कुत्तों को सुरक्षित रूप से उनके मूल स्थान पर छोड़ा जाएगा ताकि इंसानों की सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों सुनिश्चित हो सकें।

 

कुत्तें के काटने से होने वाला रोग (रेबीज़ ):

रेबीज़ एक खतरनाक लेकिन वैक्सीन से रोकी जा सकने वाली बीमारी है, जो एक वायरस से होती है। यह बीमारी जानवरों से इंसानों में फैलती है और इसे ज़ूनोटिक रोग कहा जाता है। एशिया और अफ्रीका में इसके 95% से ज़्यादा मामले दर्ज होते हैं।

  • कारण: रेबीज़ एक RNA वायरस के कारण होता है, जो पागल जानवरों जैसे; कुत्ते, बिल्ली या बंदर की लार में पाया जाता है। जब ऐसा जानवर किसी व्यक्ति को काटता है, तो उसकी लार के ज़रिए वायरस शरीर में प्रवेश कर जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, इंसानों में होने वाले रेबीज़ के लगभग 99% मामले कुत्तों के काटने से होते हैं।
  • उपचार: अगर काटे जाने के तुरंत बाद घाव को धोकर, और समय पर वैक्सीन लगवा लिया जाए। टीकाकरण और शुरुआती चिकित्सा देखभाल से इस बीमारी को पूरी तरह रोका जा सकता है।

 

भारत में रेबीज की स्थिति क्या है ?

भारत में रेबीज़ एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है और यह बीमारी यहां स्थानिक (endemic) मानी जाती है। दुनिया में रेबीज़ से होने वाली कुल मौतों में से लगभग 36% भारत में होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में रेबीज़ के 30% से 60% मामले बच्चों में पाए जाते हैं, खासकर 15 साल से कम उम्र के बच्चों में। इसका कारण यह है कि बच्चों में काटने के छोटे घावों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है और समय पर रिपोर्ट नहीं की जाती।

 

रेबीज़ नियंत्रण से जुड़ी प्रमुख पहलें:

  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर: यूनाइटेड अगेंस्ट रैबीज़ (UAR) फोरम की स्थापना वैश्विक सहयोग के लिए की गई है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक रेबीज़ से होने वाली मौतों को खत्म करना है। इस पहल में कई देश, मंत्रालय और विशेषज्ञ मिलकर काम कर रहे हैं।
  • भारत में: भारत ने कुत्तों से फैलने वाले रेबीज़ उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPRE) बनाई है, जिसे राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) ने पशुपालन मंत्रालय के सहयोग से तैयार किया है। यह योजना WHO और GARC के दिशानिर्देशों पर आधारित है।

 

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश देशभर में बढ़ते कुत्तों के काटने के मामलों को रोकने और सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस निर्णय से न केवल लोगों की जान की रक्षा होगी, बल्कि आवारा कुत्तों के मानवीय और व्यवस्थित प्रबंधन का मार्ग भी प्रशस्त होगा। अदालत की यह पहल जनहित और पशु कल्याण दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास है।