वैश्विक अध्ययन: भारत में क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ के सबसे अधिक मामलों में दूसरा स्थान

क्रॉनिक किडनी डिजीज (Chronic Kidney Disease – CKD) भारत के लिए एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन चुकी है। वर्ष 2023 में भारत 138 मिलियन मामलों के साथ दुनिया में दूसरा सबसे अधिक प्रभावित देश रहा, जो केवल चीन से पीछे है। वैश्विक स्तर पर, CKD नौवीं सबसे बड़ी मृत्यु का कारण है, जिसने उसी वर्ष लगभग 15 लाख लोगों की जान ली।

India has the second highest number of chronic kidney disease cases

क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ (Chronic Kidney Disease – CKD) क्या हैं?

किडनियों का लंबे समय तक धीरे-धीरे खराब होना या उनका काम करने की क्षमता का लगातार घटते जाना। सरल शब्दों में कहें तो, CKD एक ऐसी दीर्घकालिक (chronic) बीमारी है जिसमें किडनियां शरीर से अपशिष्ट पदार्थ और अतिरिक्त पानी को प्रभावी रूप से बाहर नहीं निकाल पातीं। इस बीमारी की शुरुआत धीरे-धीरे होती है और शुरुआती चरणों में आम तौर पर कोई लक्षण नहीं दिखाई देते। लेकिन समय के साथ, अगर इलाज न हो तो यह किडनी फेल्योर (Kidney Failure) तक पहुंच सकती है।

 

भारत में CKD का बोझ

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD) 2023 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में CKD का प्रसार दक्षिण एशिया में लगभग 16% तक पहुँच गया है। यह दर उत्तर अफ्रीका, मध्य पूर्व, उप-सहारा अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसी क्षेत्रों के समान है। किडनी की खराब कार्यप्रणाली हृदय रोग से होने वाली मौतों में भी प्रमुख योगदान देती है — 2023 में यह लगभग 12% हृदय मृत्यु के लिए जिम्मेदार रही, जिससे यह मधुमेह और मोटापे से भी आगे निकल गई।

 

एक अध्ययन के अनुसार, भारत में CKD की दर 2011–2017 के बीच 11.12% से बढ़कर 2018–2023 के बीच 16.38% हो गई है। अनुमान है कि 2040 तक CKD भारत में शीर्ष पाँच मृत्यु कारणों में शामिल हो जाएगी, और हर साल लगभग 5 लाख मौतें हो सकती हैं।

 

किडनी क्या करती हैं और जब वे फेल हो जाती हैं तो क्या होता है?

किडनियां शरीर के “फ़िल्टर सिस्टम” की तरह काम करती हैं। उनका सबसे मुख्य और निरंतर कार्य शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को निकालना होता है। जब किडनियां सही से काम करती हैं, तो वे रोज़मर्रा के मेटाबॉलिक बाय-प्रॉडक्ट्स को मूत्र (urine) के रूप में बाहर निकालती हैं। इसके साथ ही वे ब्लड प्रेशर को नियंत्रित, इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखने और रेड ब्लड सेल्स के उत्पादन को नियंत्रित करने में भी मदद करती हैं।

 

समय के साथ, डिहाइड्रेशन, हाई ब्लड प्रेशर या हाई ब्लड शुगर जैसी स्थितियों के कारण किडनियों को नुकसान पहुंच सकता है। यदि यह नुकसान लगातार बना रहे, तो यह क्रॉनिक किडनी डिज़ीज़ (CKD) में बदल सकता है, जो आगे चलकर किडनी फेल्योर तक पहुंच सकता है।

 

जब किडनियां फेल हो जाती हैं, तो वे मूत्र बनाना बंद कर देती हैं। इससे शरीर में तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स (जैसे पोटैशियम, फॉस्फेट) का खतरनाक स्तर तक जमाव होने लगता है। ऐसी स्थिति में केवल दो उपचार विकल्प रहते हैं —

  1. डायलिसिस – जो कृत्रिम रूप से किडनी का कार्य करता है।
  2. किडनी ट्रांसप्लांट – जो स्थायी समाधान माना जाता है।

डायलिसिस बेहद समय-साध्य और कठिन प्रक्रिया है, जिसमें रोगियों को हर सप्ताह कई बार, कई घंटे तक इलाज करवाना पड़ता है।

मुख्य जोखिम कारक (Risk Factors)

CKD के विकास और प्रगति में कई कारण भूमिका निभाते हैं। GBD अध्ययन में 14 प्रमुख जोखिम कारकों की पहचान की गई है, जिनमें प्रमुख हैं:

  • मधुमेह (Diabetes)
  • उच्च रक्तचाप (Hypertension)
  • मोटापा (Obesity)
  • फल और सब्जियों का कम सेवन तथा अत्यधिक नमक का सेवन

अन्य अध्ययनों में भी यह पाया गया कि हाइपरटेंशन (64.5%), एनीमिया (40.7%), और मधुमेह (31.6%) आम जोखिम कारक हैं। भारत में CKD of Unknown Etiology (CKDu) नामक समस्या भी देखी गई है, जिसमें मरीजों में पारंपरिक जोखिम कारक मौजूद नहीं होते। यह दर्शाता है कि भारत में CKD की प्रकृति जटिल और बहुआयामी है।

 

शुरुआती उपचार में आने वाली बाधाएं

  • कई बार, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में किडनी रोग का समय पर निदान नहीं हो पाता।
  • लगभग एक-तिहाई मरीजों को शुरुआती चरणों में कोई उपचार नहीं मिलता।
  • केवल 10% मरीजों को ही पता होता है कि उन्हें किडनी डिज़ीज़ है।
  • व्यस्त स्वास्थ्य प्रणाली और सीमित परामर्श समय के कारण डॉक्टर अक्सर अन्य गंभीर बीमारियों को प्राथमिकता देते हैं।

इससे कई मरीज बिना जानकारी के ही बीमारी के बढ़े हुए चरण में पहुंच जाते हैं, जहां उपचार कठिन और सीमित हो जाता है।

 

रोकथाम और शुरुआती पहचान की रणनीतियाँ

अधिकांश मरीज CKD के प्रारंभिक चरणों में ही पाए जाते हैं। इसलिए, स्क्रीनिंग प्रोग्राम और जोखिम पहचान रणनीतियाँ अत्यंत आवश्यक हैं। इन उपायों से न केवल हृदय संबंधी मौतों को कम किया जा सकता है, बल्कि डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांटेशन जैसी महंगी उपचार आवश्यकताओं में भी देरी संभव है।

हालाँकि, भारत सहित कई देशों में किडनी रिप्लेसमेंट थेरेपी तक पहुंच सीमित है। इसलिए, प्रभावी रोकथाम और सुलभ स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि CKD को अन्य गैर-संचारी रोगों की तुलना में कम नीति-ध्यान मिलता है, जबकि इसका प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है।

 

निष्कर्ष:

भारत में क्रॉनिक किडनी डिजीज तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य चुनौती बन चुकी है। बढ़ती मधुमेह, उच्च रक्तचाप, अस्वस्थ खानपान और सीमित जागरूकता इसके प्रमुख कारण हैं।
आवश्यक है कि प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में नियमित CKD स्क्रीनिंग, सार्वजनिक जागरूकता अभियान, और रोकथाम-आधारित नीतियों को प्राथमिकता दी जाए।
यदि समय रहते कदम उठाए जाएँ, तो भारत CKD से होने वाली भविष्य की व्यापक स्वास्थ्य और आर्थिक क्षति को काफी हद तक कम कर सकता है।