ब्रिटेन ने कैरिबियन सागर में संदिग्ध मादक पदार्थ तस्करी करने वाले जहाजों पर अमेरिका की हालिया सैन्य कार्रवाई को लेकर गंभीर चिंता जताई है और इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ खुफिया जानकारी साझा करना बंद कर दिया है। सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटिश अधिकारियों को आशंका है कि उनकी दी गई सूचनाओं का उपयोग अमेरिका द्वारा किए जा रहे घातक हमलों में किया जा सकता है, जिन्हें लंदन अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मानता है।
लंबे समय से चली आ रही साझेदारी में दरार
पिछले कई वर्षों से ब्रिटेन – जो कैरिबियन के कई द्वीपीय इलाकों में खुफिया संसाधन रखता है – अमेरिका की ड्रग-रोधी कार्रवाइयों में मदद करता रहा है। आम तौर पर ब्रिटेन की ओर से संदिग्ध जहाजों की जानकारी ज्वाइंट इंटरएजेंसी टास्क फोर्स साउथ (फ्लोरिडा) को दी जाती थी, ताकि अमेरिकी कोस्ट गार्ड उन जहाजों को रोक सके, तलाशी ले सके और तस्करों को गिरफ्तार कर सके।
लेकिन सितंबर 2025 से अमेरिकी सेना ने इन जहाजों पर हवाई हमले शुरू कर दिए, जिनमें अब तक 76 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके बाद ब्रिटेन ने आशंका जताई कि उसकी दी हुई जानकारी इन लक्ष्यों को चिन्हित करने में इस्तेमाल की जा सकती है।
सीएनएन के मुताबिक, ब्रिटेन ने एक महीने से अधिक पहले खुफिया जानकारी साझा करना औपचारिक रूप से निलंबित कर दिया था।
अंतरराष्ट्रीय आलोचना और कानूनी विवाद
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार प्रमुख वोल्कर टुर्क ने पिछले महीने कहा था कि अमेरिका के ये हमले अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हैं और “न्यायेतर हत्या (extrajudicial killing)” की श्रेणी में आते हैं। यही दृष्टिकोण ब्रिटेन का भी है, रिपोर्ट में कहा गया।
पहले अमेरिका की ड्रग-विरोधी कार्रवाई मुख्यतः कानून प्रवर्तन एजेंसियों और कोस्ट गार्ड के माध्यम से होती थी, जहाँ तस्करों को अपराधी के रूप में गिरफ्तार कर न्यायिक प्रक्रिया से गुजारा जाता था। ब्रिटेन इसी मॉडल का समर्थन करता था।
हालाँकि, ट्रंप प्रशासन ने इन हमलों को वैध बताया और कांग्रेस को भेजे गए मेमो में कहा कि ड्रग तस्कर “शत्रु लड़ाके” (enemy combatants) हैं जो अमेरिका के साथ “सशस्त्र संघर्ष” में शामिल हैं। अमेरिकी न्याय विभाग के ऑफिस ऑफ लीगल काउंसल ने इस रुख का समर्थन करते हुए एक गोपनीय कानूनी राय जारी की। ट्रंप ने कई ड्रग कार्टेल्स को “विदेशी आतंकवादी संगठन” भी घोषित किया था।
व्हाइट हाउस का कहना है कि उसकी कार्रवाइयाँ “युद्ध के कानूनों (Law of Armed Conflict)” के पूरी तरह अनुरूप हैं।
विशेषज्ञों और सैन्य अधिकारियों के संदेह
कई कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि ये कानून नागरिक तस्करों पर भी लागू होते हैं और सिर्फ किसी संगठन को “आतंकी” घोषित कर देना घातक बल प्रयोग का औचित्य नहीं ठहराता। कुछ मामलों में अमेरिकी सेना ने उन नौकाओं पर हमला किया जो या तो स्थिर थीं या पीछे हट रही थीं, जिससे यह दावा कमजोर पड़ता है कि वे “तत्काल खतरा” थीं।
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिणी कमान (US Southern Command) के प्रमुख एडमिरल एल्विन होल्सी ने रक्षा मंत्री पीट हगसेथ और ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के साथ बैठक में इन हमलों की वैधता पर सवाल उठाए। रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने इस्तीफे की पेशकश भी की थी। होल्सी दिसंबर में अपने पद से हटने वाले हैं, जबकि उन्होंने केवल एक वर्ष पहले ही यह जिम्मेदारी संभाली थी।
पेंटागन के वकील भी इन हमलों को लेकर असहज बताए जा रहे हैं। कई वर्तमान और पूर्व सैन्य अधिवक्ताओं ने सीएनएन से कहा कि ये हमले अवैध प्रतीत होते हैं। हालांकि, हगसेथ के प्रवक्ता ने किसी आंतरिक मतभेद से इनकार किया है।
कनाडा ने भी दूरी बनाई
कनाडा, जो लंबे समय से अमेरिका का साझेदार रहा है, ने भी इस सैन्य अभियान से दूरी बनाई है। कनाडाई रक्षा प्रवक्ता ने कहा कि देश की कोस्ट गार्ड के साथ संयुक्त कार्रवाइयाँ अमेरिका की सैन्य कार्रवाइयों से “अलग और स्वतंत्र” हैं, और कनाडा नहीं चाहता कि उसकी दी गई जानकारी का उपयोग घातक हमलों में किया जाए।
निष्कर्ष:
ब्रिटेन और कनाडा जैसे प्रमुख सहयोगियों के अलग रुख से अमेरिका की कैरिबियन में सैन्य रणनीति पर गंभीर अंतरराष्ट्रीय सवाल खड़े हो गए हैं। जहाँ ट्रंप प्रशासन इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के दायरे में सही ठहराता है, वहीं अंतरराष्ट्रीय समुदाय और कई कानूनी विशेषज्ञ इसे न्यायेतर हत्या और अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन मानते हैं।
