महत्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन को बढ़ावा: कैबिनेट ने नई रॉयल्टी दरों को दी मंजूरी, चीन के निर्यात प्रतिबंधों के बीच आया फैसला..

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को चार महत्वपूर्ण खनिजों ग्रेफाइट, सीज़ियम, रुबिडियम और ज़िरकोनियम की रॉयल्टी दरों को युक्तिसंगत बनाने को मंज़ूरी दी। यह फैसला देश में इन खनिजों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और नीलामी प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए लिया गया है। हरित ऊर्जा के लिए अहम माने जाने वाले ये खनिज चीन के निर्यात प्रतिबंधों के बीच भारत की आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने में मदद करेंगे।

boost to production of critical minerals

महत्वपूर्ण खनिज (Critical Minerals) क्या है ?

महत्वपूर्ण खनिज वे खनिज होते हैं जो किसी देश के आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी माने जाते हैं। अगर इन खनिजों की उपलब्धता कम हो जाए या ये सिर्फ कुछ देशों या क्षेत्रों में ही पाए जाएँ, तो उनकी आपूर्ति श्रृंखला कमजोर हो सकती है और उत्पादन या तकनीकी विकास में बाधा आ सकती है। इसलिए इन खनिजों को रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। शीर्ष उत्पादक देशों में चिली, इंडोनेशिया, कांगो, चीन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका शामिल है।

खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन के माध्यम से, कुल 24 महत्वपूर्ण खनिजों को सूचीबद्ध किया गया है, जिनमें ग्रेफाइट और ज़िरकोनियम शामिल हैं।

 

महत्वपूर्ण खनिज (critical minerals) क्यों है महत्वपूर्ण ?

  • आधुनिक प्रौद्योगिकी की नींव: महत्वपूर्ण खनिज आधुनिक तकनीक की बुनियाद हैं। इनका इस्तेमाल मोबाइल फोन, सौर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन (EV) बैटरी, और चिकित्सा उपकरणों जैसे कई जरूरी उत्पादों में होता है।
  • ऊर्जा संक्रमण: ये खनिज नवीकरणीय ऊर्जा तकनीकों के लिए जरूरी हैं, जो दुनिया के कई देशों की “नेट ज़ीरो” यानी कार्बन-रहित लक्ष्य को पूरा करने में मदद करते हैं। सौर पैनल, पवन टर्बाइन, अर्धचालक और बैटरियों के निर्माण में इनकी अहम भूमिका होती है।
  • भविष्यवादी अर्थव्यवस्था: भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था ऐसी तकनीकों पर निर्भर होगी जो लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट, टाइटेनियम और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों जैसे खनिजों का उपयोग करती हैं। ये खनिज हरित (ग्रीन) और डिजिटल अर्थव्यवस्था के आधार हैं।
  • आत्मनिर्भरता: इन खनिजों की पहचान और खोज से भारत अपनी दीर्घकालिक जरूरतों के अनुसार खनिज संसाधनों का विकास कर सकेगा। इससे आयात पर निर्भरता घटेगी, क्योंकि अभी भारत कुछ महत्वपूर्ण तत्वों के लिए पूरी तरह आयात पर निर्भर है।

 

संशोधित ढांचे के तहत नई रॉयल्टी दरें:

संशोधित ढांचे के तहत सरकार ने चार खनिजों की नई रॉयल्टी दरें तय की हैं। अब ग्रेफाइट की रॉयल्टी पहले की तरह प्रति टन नहीं, बल्कि उसके मूल्य के आधार पर तय होगी। इससे अलग-अलग गुणवत्ता वाले ग्रेफाइट की कीमतों में होने वाले बदलाव का सही असर दिखेगा। सरकार को उम्मीद है कि इस बदलाव से इन खनिजों वाले ब्लॉकों की नीलामी को बढ़ावा मिलेगा और हरित ऊर्जा व हाई-टेक उद्योगों के लिए जरूरी संसाधनों की उपलब्धता में सुधार होगा।

 

नई दरों के अनुसार:

  • 80% से अधिक स्थिर कार्बन वाले ग्रेफाइट पर औसत बिक्री मूल्य (ASP) का 2% रॉयल्टी लगेगी।
  • 80% से कम स्थिर कार्बन वाले ग्रेफाइट पर 4% रॉयल्टी लगेगी।
  • सीजियम और रुबिडियम पर ASP का 2%,
  • जबकि जिरकोनियम पर ASP का 1% रॉयल्टी तय की गई है।

 

सरकार के इस निर्णय का लक्ष्य:

सरकार का कहना है कि इस फैसले का उद्देश्य देश में खनिज भंडारों की खोज को बढ़ावा देना और लिथियम, टंगस्टन, दुर्लभ मृदा तत्वों व नियोबियम जैसे अन्य महत्वपूर्ण खनिजों की पहचान में मदद करना है। इससे भारत की आयात पर निर्भरता घटेगी, आपूर्ति श्रृंखला मजबूत होगी और खनन व इससे जुड़े क्षेत्रों में नए रोज़गार के मौके बनेंगे।

सरकार ने यह भी कहा कि नई रॉयल्टी दरें तय होने से बोली लगाने वालों को अधिक स्पष्ट और तर्कसंगत वित्तीय प्रस्ताव देने में मदद मिलेगी, जिससे नीलामी प्रक्रिया और ज़्यादा प्रतिस्पर्धी व पारदर्शी बन जाएगी।

 

16 सितंबर की घोषणा के बाद आया निर्णय:

मंत्रिमंडल का यह फैसला 16 सितंबर को केंद्र सरकार द्वारा घोषित महत्वपूर्ण खनिजों की नीलामी की छठी किस्त के बाद लिया गया है। इस नीलामी में 5 ग्रेफाइट ब्लॉक, 2 रुबिडियम ब्लॉक, और सीजियम व जिरकोनियम के 1-1 ब्लॉक शामिल हैं।

वर्तमान में भारत अपनी ज़रूरत का लगभग 60% ग्रेफाइट आयात करता है, जिसका उपयोग मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की बैटरियों में होता है। इस समय देश में 9 ग्रेफाइट खदानें चल रही हैं, 27 ब्लॉकों की नीलामी हो चुकी है, 20 ब्लॉक नीलामी के लिए तैयार हैं, और 26 ब्लॉकों पर खोज का काम जारी है।

 

वर्त्तमान में रॉयल्टी दर्रों की गणना कैसे की जाती है ?

अब तक ग्रेफाइट की रॉयल्टी दर रुपये प्रति टन के आधार पर तय की जाती थी, जो 1 सितंबर 2014 से लागू थी और इसे महत्वपूर्ण खनिजों में एक अपवाद बनाती थी। लेकिन ग्रेफाइट के अलग-अलग ग्रेडों में कीमतों में बड़ा अंतर होने के कारण सरकार ने अब रॉयल्टी की गणना मूल्य (यथामूल्य) के आधार पर करने का निर्णय लिया है।

इससे रॉयल्टी वसूली खनिज की वास्तविक कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को सही तरह से दर्शाएगी। हाल के वर्षों में अधिकांश महत्वपूर्ण खनिजों के लिए रॉयल्टी दरें 2% से 4% के बीच रखी गई हैं। यह बदलाव बोलीदाताओं को नीलामी के दौरान अधिक सटीक और तर्कसंगत वित्तीय प्रस्ताव देने में मदद करेगा।

 

भारत में इन खनिजों की उपयोगिता:

भारत में ग्रेफाइट, सीज़ियम, रुबिडियम और ज़िरकोनियम जैसे खनिजों का बड़ा महत्व है, क्योंकि ये आधुनिक तकनीक और ऊर्जा परिवर्तन से जुड़ी कई उन्नत जरूरतों के लिए जरूरी हैं। ग्रेफाइट और ज़िरकोनियम को खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 में शामिल 24 महत्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों में गिना गया है।

  • ग्रेफाइट इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की बैटरियों में एनोड सामग्री के रूप में इस्तेमाल होता है, जो बिजली की बेहतर चालकता और ऊर्जा भंडारण क्षमता देता है।
  • ज़िरकोनियम एक मजबूत धातु है जो जंग नहीं लगने देती और ऊँचे तापमान पर स्थिर रहती है। इसका उपयोग परमाणु ऊर्जा, एयरोस्पेस, स्वास्थ्य सेवा और विनिर्माण उद्योगों में किया जाता है।
  • सीज़ियम का प्रयोग उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स, जैसे परमाणु घड़ियाँ, GPS सिस्टम, परिशुद्ध उपकरण और चिकित्सा उपकरणों (जैसे कैंसर उपचार में) में होता है।
  • रुबिडियम का उपयोग फाइबर ऑप्टिक्स, दूरसंचार नेटवर्क और रात्रि दृष्टि उपकरणों में प्रयुक्त विशेष काँच बनाने में किया जाता है।

खान एवं खनिज (विनियमन एवं विकास) अधिनियम (1957):

खान एवं खनिज (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, 1957 भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए संसद द्वारा बनाया गया कानून है। यह देश में खनन से जुड़ी नीतियों और नियमों का मूल ढांचा तय करता है। इस अधिनियम में 2015 और 2016 में संशोधन किए गए थे ताकि खनन प्रक्रिया को और पारदर्शी और प्रभावी बनाया जा सके।

यह कानून लघु खनिजों और परमाणु खनिजों को छोड़कर सभी खनिजों पर लागू होता है। इसमें भारत में खनन या खोज लाइसेंस लेने की प्रक्रिया और उससे जुड़ी शर्तों का विवरण दिया गया है। लघु खनिजों का खनन राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आता है – जैसे नदी की रेत को लघु खनिज माना जाता है। इसके अलावा, वन क्षेत्र में खनन या खोज कार्य करने से पहले पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अनुमति लेना जरूरी होता है।

 

निष्कर्ष:

मंत्रिमंडल का यह निर्णय भारत के खनन क्षेत्र को मज़बूती देने वाला कदम है। इन खनिजों की रॉयल्टी दरों को युक्तिसंगत बनाना घरेलू उत्पादन, हरित ऊर्जा और औद्योगिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा तथा वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की स्थिति को सशक्त बनाएगा।