कैबिनेट ने निर्यात क्षेत्र के लिए 45,000 करोड़ रुपये की योजनाओं को दी मंजूरी: अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करना लक्ष्य, जानिए पूरी खबर..

केंद्र सरकार ने भारत के निर्यात क्षेत्र को नई मजबूती देने के लिए बड़ा कदम उठाया है। बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कुल ₹45,060 करोड़ की दो अहम योजनाओं — निर्यात संवर्धन मिशन (EPM) और क्रेडिट गारंटी योजना फॉर एक्सपोर्टर्स (CGSE) — को मंजूरी दी। इन योजनाओं का उद्देश्य देश के निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को सशक्त बनाना, MSMEs सहित सभी निर्यातकों के लिए तरलता की समस्या को कम करना और हाल ही में अमेरिका सहित अन्य देशों द्वारा बढ़ाए गए आयात शुल्कों से राहत दिलाना है। छह वित्तीय वर्षों में लागू होने वाला यह मिशन भारतीय निर्यात को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

Cabinet approves Rs 45000 crore worth of schemes for the export sector

निर्यात संवर्धन मिशन (EPM):

निर्यात संवर्धन मिशन (EPM) को केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2026 से 2031 तक के लिए ₹25,060 करोड़ की लागत से मंजूरी दी है। यह मिशन अब तक अलग-अलग चल रही निर्यात सहायता योजनाओं को एक जगह जोड़कर एक एकीकृत और परिणाम-उन्मुख ढांचा बनाएगा। वाणिज्य विभाग द्वारा संचालित यह मिशन भारत के निर्यात को और अधिक समावेशी, तकनीकी रूप से मजबूत और वैश्विक व्यापार में बदलावों के प्रति लचीला बनाएगा।

 

EPM दो हिस्सों में काम करेगा:

  1. निर्यात प्रोत्साहन: जिसका लक्ष्य निर्यातकों, खासकर एमएसएमई, को सस्ते और आसान व्यापार वित्त की सुविधा देना है। इसके लिए ₹10,400 करोड़ का बजट रखा गया है। इस योजना में निर्यात ऋण पर ब्याज में राहत, निर्यात फैक्टरिंग को बढ़ावा, MSMEs को गारंटी सहायता और ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिए निर्यात क्रेडिट कार्ड जैसी सुविधाएं दी जाएंगी ताकि छोटे ऑनलाइन विक्रेताओं को समय पर ऋण मिल सके।
  2. निर्यात दिशा: जिसके लिए ₹14,660 करोड़ का प्रावधान है, का फोकस गैर-वित्तीय सहायता पर होगा। इसमें निर्यात गुणवत्ता, परीक्षण और प्रमाणन, अंतरराष्ट्रीय ब्रांडिंग, पैकेजिंग, भंडारण, लॉजिस्टिक्स सुधार और व्यापार मेलों में भागीदारी जैसी मदद दी जाएगी। साथ ही, कम निर्यात वाले जिलों के लिए अंतर्देशीय परिवहन लागत की प्रतिपूर्ति भी की जाएगी ताकि उनकी रसद लागत कम हो सके।

 

क्रेडिट गारंटी योजना फॉर एक्सपोर्टर्स (CGSE):

क्रेडिट गारंटी योजना फॉर एक्सपोर्टर्स (CGSE) के तहत सरकार बैंकों और वित्तीय संस्थानों को 100% गारंटी देगी ताकि वे MSMEs समेत पात्र निर्यातकों को बिना संपार्श्विक (कोलैटरल) के 20,000 करोड़ रुपये तक का अतिरिक्त ऋण दे सकें। इस योजना का उद्देश्य निर्यातकों की तरलता की कमी को दूर करना, उनके कारोबार को सुचारू रूप से चलाना और भारत को 1 ट्रिलियन डॉलर के निर्यात लक्ष्य की ओर आगे बढ़ाना है।

इस योजना के तहत निर्यातकों को उनके मौजूदा निर्यात ऋण सीमा के 20% तक अतिरिक्त कार्यशील पूंजी मिलेगी, जो 31 मार्च 2026 तक मान्य रहेगी। यह पूरी तरह से सरकारी गारंटी द्वारा समर्थित होगी, जिससे निर्यातक बिना किसी अतिरिक्त सुरक्षा के नए और जोखिमपूर्ण बाजारों में अपना कारोबार बढ़ा सकेंगे। योजना के क्रियान्वयन और निगरानी की जिम्मेदारी वित्तीय सेवा विभाग के सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति संभालेगी।

 

इस मिशन का लक्ष्य:

इस मिशन का लक्ष्य भारत के निर्यात क्षेत्र को मजबूत बनाना और हाल ही में बढ़े वैश्विक शुल्कों से प्रभावित उद्योगों को राहत देना है। यह विशेष रूप से कपड़ा, चमड़ा, रत्न-आभूषण, इंजीनियरिंग सामान और समुद्री उत्पाद जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगा, ताकि उनके निर्यात ऑर्डर बनाए रखे जा सकें, रोजगार सुरक्षित रहे और नए बाजारों में विस्तार हो सके।

विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) इस मिशन की नोडल एजेंसी होगी, जो आवेदन और भुगतान की पूरी प्रक्रिया डिजिटल माध्यम से संचालित करेगी। ₹45,060 करोड़ के इस पैकेज से सरकार का उद्देश्य निर्यातकों को बाहरी व्यापार झटकों से बचाना, वित्तीय लागत कम करना और वैश्विक स्तर पर भारत के निर्यात को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना है।

 

भारत को निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं की आवश्यकता क्यों?

भारत को निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वित्त वर्ष 2025 में निर्यात GDP का लगभग 21% था और यह विदेशी मुद्रा भंडार में भी बड़ा योगदान देता है। निर्यात-उन्मुख उद्योग 45 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देते हैं, और MSMEs कुल निर्यात का लगभग 45% योगदान करते हैं। निरंतर निर्यात वृद्धि से भारत के चालू खाता संतुलन और आर्थिक स्थिरता में मदद मिलती है।

इसलिए, भारतीय निर्यातकों को नए बाजार खोजने और वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए वित्तीय सहायता और पर्याप्त समय देना जरूरी है। सरकार की अतिरिक्त तरलता सहायता से व्यापार बढ़ेगा और बाजार विस्तार आसान होगा।

 

अमेरिका ने लगाया था 50 प्रतिशत टैरिफ:

अमेरिका ने भारत से आयातित कुछ वस्तुओं पर 50% का उच्च टैरिफ लगाया है, जिससे भारतीय निर्यातकों पर दबाव बढ़ गया है। इसके असर के चलते सितंबर में अमेरिका को निर्यात में 12% की गिरावट आई है, और खासकर इंजीनियरिंग वस्तुओं का निर्यात, जो कुल निर्यात का लगभग एक-चौथाई है, 9.4% घट गया। 27 अगस्त से यह टैरिफ लागू हुआ और चीन-अमेरिका समझौते के बाद भारत पर यह वैश्विक स्तर पर सबसे उच्च टैरिफ है, ब्राजील को छोड़कर। इस स्थिति में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने निर्यातकों को राहत देने के लिए 20,000 करोड़ रुपये तक अतिरिक्त ऋण और 25,060 करोड़ रुपये के छह वर्षीय निर्यात संवर्धन मिशन को मंजूरी दी।

 

अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाने का कारण:

  • व्यापार वार्ता रुकी हुई थी, क्योंकि भारत संवेदनशील क्षेत्रों जैसे कृषि और डेयरी में उदारीकरण को लेकर सतर्क था।
  • अमेरिका को भारत के उच्च टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएं जैसे फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि में असंतुलन पैदा करने वाली नीतियां चिंता में डाल रही थीं। अमेरिका ने भारत द्वारा रूसी तेल और सैन्य उपकरणों की खरीद पर आपत्ति जताई और इसके संभावित प्रभावों का हवाला दिया।
  • भारत के साथ अमेरिका का 45 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा भी टैरिफ लगाने के पीछे कारण बना।
  • अमेरिका ने जापान और वियतनाम जैसे देशों के साथ बेहतर समझौते हासिल किए हैं, इसलिए भारत पर समान शर्तों के साथ तालमेल बिठाने का दबाव भी बढ़ गया।

 

भारत का निर्यात:

भारत का निर्यात हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ा है। वित्त वर्ष 2023-24 में यह 778.21 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो 2013-14 के 466.22 अरब डॉलर की तुलना में 67% की वृद्धि है। इसमें वस्तु निर्यात 437.10 अरब डॉलर और सेवा निर्यात 341.11 अरब डॉलर रहा, जो संतुलित विकास दिखाता है।

इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग सामान, लौह अयस्क और वस्त्र जैसे क्षेत्र इसमें मुख्य योगदान देने वाले रहे। मजबूत नीतियां, बढ़ी प्रतिस्पर्धात्मकता और व्यापक बाजार पहुँच से भारत का निर्यात तंत्र अब अधिक लचीला और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

 

निष्कर्ष:

केंद्र सरकार की यह पहल भारतीय निर्यातकों, खासकर MSMEs के लिए महत्वपूर्ण सहारा साबित होगी। ₹45,060 करोड़ की योजनाओं से निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत होगा, तरलता की चुनौतियां कम होंगी और वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। यह कदम रोजगार सृजन और आर्थिक स्थिरता को भी बढ़ावा देगा।