नेपाल अब अपनी करेंसी छपवाने के लिए भारत की बजाय चीन की ओर बढ़ रहा है। यह सिर्फ एक आर्थिक फैसला नहीं, बल्कि बदलते भू-राजनीतिक संतुलन का बड़ा संकेत है। पहले नेपाल की मुद्रा भारतीय सुरक्षा प्रेस में छपती थी, लेकिन अब कई एशियाई और अफ्रीकी देशों की तरह वह भी चीन की प्रिंटिंग सुविधाओं पर निर्भर हो जाएगा। बीजिंग का करेंसी प्रिंटिंग बाज़ार में तेजी से बढ़ता दबदबा यह दिखाता है कि यह बदलाव केवल नोटों तक सीमित नहीं है, यह वैश्विक शक्ति समीकरण को भी चुपचाप बदल रहा है।
पूरा मामला क्या है ?
नेपाल ने अपनी करेंसी छपवाने का बड़ा काम अब चीन को सौंप दिया है। हाल ही में नेपाल राष्ट्र बैंक (NRB) ने चीन की सरकारी कंपनी चाइना बैंकनोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन (CBPMC) को एक औपचारिक पत्र भेजकर 1,000 रुपये के 43 करोड़ नोट छापने का ठेका दिया है। यह कॉन्ट्रैक्ट लगभग 17 मिलियन डॉलर का है।
नेपाल ने यह फैसला इसलिए लिया क्योंकि चीनी कंपनी ने सबसे कम बोली लगाई और उसके पास आधुनिक तकनीक व सुरक्षा सुविधाएँ हैं। नेपाल के पास खुद बड़े स्तर पर नोट छापने की क्षमता नहीं है, इसलिए उसे विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता है। अब स्थिति यह है कि नेपाल के लगभग सभी नोट चीन में ही छप रहे हैं।
भारत छोड़ चीन से मुद्रा छपवाने की वजह:
कई दशकों तक नेपाल की करेंसी भारत के नासिक स्थित सिक्योरिटी प्रेस में ही छपती थी। 1945 से 1955 तक तो हर नेपाली नोट भारत में ही छपता था, और यह साझेदारी लंबे समय तक भरोसेमंद रही।
लेकिन हालात 2015 में बदल गए। उस समय नेपाल ने अपनी नई मुद्रा के डिज़ाइन में लिपुलेख, लिंपियाधुरा और कालापानी; वे हिमालयी क्षेत्र जो भारत और नेपाल के बीच विवाद में हैं, को नेपाल का हिस्सा दिखाया। भारतीय सुरक्षा प्रेस ऐसे विवादित नक्शे वाले नोट छाप नहीं सकता था। यहीं से नेपाल ने नए मुद्रण पार्टनर तलाशने शुरू किए और धीरे-धीरे मुद्रण का पूरा काम चीन को दे दिया।
चीन में छपनेवाली मुद्रा की विशेषताएं:
चीन में छपने वाली मुद्रा इसलिए खास मानी जाती है क्योंकि वहाँ आधुनिक, सुरक्षित और किफायती तकनीक का उपयोग होता है। चीन न केवल नेपाल के डिज़ाइन स्वीकार करता है बल्कि कम कीमत पर बेहद उन्नत मुद्रण सुविधाएँ भी देता है। उसकी प्रिंटिंग मशीनें नोटों में ऐसे सुरक्षा फीचर जोड़ती हैं जो जालसाजी को काफी मुश्किल बना देते हैं जैसे; वॉटरमार्क, होलोग्राफिक सिक्योरिटी थ्रेड और रंग बदलने वाली स्याही।
चीन की सरकारी कंपनी CBPMC ने “कलरडांस” नाम की एक खास होलोग्राफिक तकनीक भी विकसित की है, जो नोटों की सुरक्षा बढ़ाती है और उनकी छपाई को सस्ता बनाती है। इसी उन्नत तकनीक, आधुनिक सुरक्षा उपायों और कम लागत के कारण नेपाल सहित कई देश अब अपनी मुद्रा चीन में छपवा रहे हैं।
मुद्रा मुद्रण कार्यों में तेजी से आगे बढ़ता चीन:
दुनिया में बहुत कम संस्थाएँ हैं जो बड़े पैमाने पर बैंक नोट छापने का काम करती हैं, और इस बाजार में चीन तेजी से सबसे आगे निकलता दिख रहा है। इस क्षेत्र में चीन की सरकारी कंपनी CBPMC, जापान की NPB, रूस की गोज़नक और अमेरिका की ब्यूरो ऑफ़ एनग्रेविंग एंड प्रिंटिंग जैसी सरकारी एजेंसियाँ शामिल हैं, जबकि ब्रिटेन की डे ला रू, जर्मनी की गीसेके एंड डेवरिएंट और फ्रांस की ओबेरथुर प्रमुख निजी खिलाड़ी हैं। लेकिन इनमें चीन सबसे तेज़ी से विस्तार कर रहा है।
2015 में CBPMC ने ब्रिटेन की मशहूर कंपनी डे ला रू के बैंकनोट मुद्रण विभाग को खरीदकर उन्नत तकनीक और अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों खासकर यूरोप, अफ्रीका और पश्चिम एशिया तक सीधी पहुँच बना ली। आज चीन के पास दुनिया में सबसे ज़्यादा मुद्रण सुविधाएँ और सबसे बड़ा स्टाफ़ है, जो उसे वैश्विक प्रभाव बढ़ाने का बड़ा अवसर देता है।
भारत के कितने पड़ोसी चीन से छपवाते है मुद्रा:
- नेपाल (Nepal): 2015 के बाद से नेपाल अपनी पूरी करेंसी चीन में छपवा रहा है। पहले उसके नोट भारत के नासिक प्रेस में छपते थे।
- बांग्लादेश (Bangladesh): बांग्लादेश की मुद्रा टका 2010 से चीन में छप रही है।
- श्रीलंका (Sri Lanka): 2015 के बाद से श्रीलंका भी मुख्य रूप से अपनी करेंसी चीन में ही छपवाता है।
- थाईलैंड (Thailand): 2018 से थाईलैंड सस्ती और उन्नत चीनी प्रिंटिंग सुविधाओं का लाभ ले रहा है।
- मलेशिया (Malaysia): 2010 के बाद से मलेशिया भी अपनी करेंसी चीन में छपवाता है।
जो पड़ोसी देश चीन पर निर्भर नहीं:
- भूटान (Bhutan): अभी भी अपनी पूरी मुद्रा भारत के नासिक प्रेस में छपवाता है, हालांकि उसने भविष्य में चीन से सहयोग की संभावना जताई है।
- पाकिस्तान (Pakistan): अपनी करेंसी घरेलू प्रेस में खुद छापता है, लेकिन कभी-कभी चीन से तकनीकी सहायता लेता है।
मुद्रा मुद्रण में चीन के बढ़ते दबदबे के मायने:
चीन अब दुनिया की मुद्रा छपाई व्यवस्था में बड़ी भूमिका निभाने लगा है, और इसका असर सिर्फ़ आर्थिक नहीं बल्कि रणनीतिक भी है। कई देशों की करेंसी छापने के काम पर नियंत्रण पाकर चीन धीरे-धीरे उनके वित्तीय ढाँचों पर प्रभाव डाल रहा है।
नेपाल जैसे छोटे देशों के लिए, जो अपनी मुद्रा के लिए पूरी तरह विदेशी कंपनियों पर निर्भर हैं, चीन का यह बढ़ता दबदबा सिर्फ़ सस्ती प्रिंटिंग तक सीमित नहीं है। यह दिखाता है कि दक्षिण एशिया में चीन की पकड़ वित्तीय स्तर पर भी मज़बूत हो रही है। इससे भारत का पारंपरिक प्रभाव कमज़ोर पड़ रहा है और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बदल रहा है। भारत को इस बढ़ती चीनी पकड़ पर लगातार नज़र रखनी होगी।
CBPMC के बारे में:
चाइना बैंकनोट प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन (CBPMC) बीजिंग के शीचेंग ज़िले में स्थित एक सरकारी कंपनी है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी मुद्रा छापने वाली संस्था माना जाता है। इसकी स्थापना 1948 में हुई थी और आज इसके पास 18,000 से ज़्यादा कर्मचारी हैं; जिनमें इंजीनियर, डिज़ाइनर और तकनीशियन शामिल हैं।
यह कंपनी चीन की अपनी मुद्रा के साथ-साथ कई अन्य देशों की मुद्राएँ भी छापती है। इसके पास पूरे चीन में 10 से अधिक अत्यधिक सुरक्षित प्रिंटिंग सुविधाएँ हैं जहाँ कागज़ी नोट और सिक्के दोनों बनाए जाते हैं।
निष्कर्ष:
नेपाल का अपनी मुद्रा छपवाने का काम भारत से हटाकर चीन की ओर ले जाना सिर्फ लागत या सुविधा का मामला नहीं, बल्कि बदलते क्षेत्रीय समीकरणों का संकेत है। एशिया के कई देशों की तरह नेपाल का यह कदम बताता है कि चीन धीरे-धीरे करेंसी प्रिंटिंग बाजार और दक्षिण एशिया की रणनीतिक व्यवस्था में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। यह बदलाव केवल नोटों तक सीमित नहीं, बल्कि भविष्य की शक्ति-संतुलन राजनीति को भी प्रभावित करने वाला है।
