लद्दाख की दो सबसे प्रभावशाली संस्थाओं-लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA)-ने सोमवार को गृह मंत्रालय (MHA) को 29 पन्नों का विस्तृत ड्राफ्ट फ्रेमवर्क सौंपा। इस दस्तावेज़ में लद्दाख को छठी अनुसूची (Sixth Schedule) के तहत विशेष अधिकार देने और पूर्ण राज्य का दर्जा (Statehood) बहाल करने की मांग दोहराई गई है। साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 371 और XXI के तहत विशेष सुरक्षा देने की भी सिफारिश की गई है।
छठी अनुसूची जैसे शक्तिशाली ADCs की मांग
LAB और KDA ने वर्तमान लेह और कारगिल हिल डेवलपमेंट काउंसिल्स को बदलकर अधिक अधिकार संपन्न Autonomous District Councils (ADCs) गठित करने का प्रस्ताव रखा है। ये ADCs छठी अनुसूची के मॉडल पर आधारित होंगे और लद्दाख के सभी मौजूदा तथा प्रस्तावित नए जिलों पर लागू होंगे।
ड्राफ्ट के अनुसार ADCs को मिलने वाले अधिकारों में शामिल हैं-
- भूमि आवंटन, संरक्षण और उपयोग पर निर्णय
- भूमि विक्रय व हस्तांतरण पर नियंत्रण
- सामुदायिक भूमि, शमीलात और कच्छराई का प्रबंधन
- खनन, प्राकृतिक संसाधनों, नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरणीय संरक्षण का नियमन
- सांस्कृतिक विरासत और स्थानीय भाषाओं, शास्त्रों, संगीत व परंपराओं का संरक्षण
- मठ, स्मारक और पुरातात्विक स्थलों की रक्षा
- त्सोगस्पा, गोबा, नंबरदार और अंजुमन जैसी पारंपरिक संस्थाओं का नियमन
ADCs को संपत्ति उत्तराधिकार, जिला विकास योजनाएँ, बजटिंग, छोटे उद्योग, पर्यटन, रोजगार, सड़कें (हाईवे छोड़कर) सहित कई प्रशासनिक विषयों पर कानून बनाने का अधिकार देने की मांग की गई है।
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची क्या है?परिचय: अनुच्छेद 244(2) और 275(1) में निहित छठी अनुसूची जनजातीय शासन की सुरक्षा के लिये बोरदोलोई समिति की सिफारिशों पर आधारित है। प्रावधान:· यह राज्यपालों को स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADC) और स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदों (ARC) की स्थापना करने का अधिकार देता है, जो जनजातीय क्षेत्रों को स्वशासन प्रदान करते हैं। · ARC राज्यपाल को किसी स्वायत्त ज़िले को अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित करने की अनुमति देता है, यदि उसमें अलग-अलग अनुसूचित जनजातियाँ हों। · प्रत्येक ADC में सामान्यतः अधिकतम 30 सदस्य होते हैं (26 निर्वाचित, 4 राज्यपाल द्वारा नामित), जिनका कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है (असम में बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद एक अपवाद है, जिसमें 40 से अधिक सदस्य हैं)। · वर्तमान में, पूर्वोत्तर में असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा में 10 ADC हैं।
उद्देश्य: इस अनुसूची को उन क्षेत्रों में जनजातीय पहचान, संस्कृति, भूमि और शासन प्रणालियों की रक्षा के लिये तैयार किया गया था जहाँ जनजातीय आबादी महत्त्वपूर्ण है, साथ ही उन्हें भारतीय संघ के व्यापक ढाँचे के भीतर भी रखा गया था। ADC और ARC की शक्तियाँ:
1. विधायी शक्तियाँ: परिषदें भूमि, वन, कृषि, ग्राम प्रशासन, उत्तराधिकार, विवाह/तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों और खनन (प्रतिबंधों के साथ) जैसे विषयों पर कानून बना सकती हैं। सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति आवश्यक है। 2. न्यायिक शक्तियाँ: परिषदें गंभीर अपराधों को छोड़कर, अनुसूचित जनजातियों से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिये न्यायालय स्थापित कर सकती हैं। 3. कार्यकारी शक्तियाँ: परिषदें स्कूल, बाज़ार, औषधालय, सड़कें, जल निकाय और स्थानीय बुनियादी ढाँचे की स्थापना तथा प्रबंधन कर सकती हैं। 4. वित्तीय शक्तियाँ: अपने क्षेत्रों में कर, टोल और भू-राजस्व लगा सकती हैं तथा एकत्र कर सकती हैं। |
स्वास्थ्य, शिक्षा और भर्ती पर भी स्थानीय नियंत्रण की मांग
ड्राफ्ट में सुझाव दिया गया है कि ADCs के अधिकारों में शामिल हों:
- स्वास्थ्य सेवाएँ, अस्पताल और सार्वजनिक स्वास्थ्य
- शिक्षा और स्कूल प्रबंधन
- पशुपालन और कृषि जल प्रबंधन
- ग्रुप-B/Class-II तक की सरकारी भर्तियाँ
साथ ही, प्रस्ताव है कि भविष्य में किसी भी विषय को सरकारी अधिसूचना के माध्यम से ADCs को सौंपा जा सके।
“370-35A हटने के बाद हिल काउंसिल और कमजोर हुई”
LAB और KDA ने तर्क दिया कि 2019 में अनुच्छेद 370 और 35A हटने और विधानसभा भंग होने के बाद हिल काउंसिल की शक्तियाँ सीमित हो गईं।
उनका कहना है कि-
“छठी अनुसूची लागू होने से स्थानीय कानून बनाने की वास्तविक शक्ति मिलेगी और भागीदारी आधारित लोकतंत्र मजबूत होगा।”
उन्होंने सिक्किम और मिजोरम जैसे राज्यों का उदाहरण दिया, जो पहले केंद्र शासित प्रदेश थे और बाद में राज्य बने।
सोमन वांगचुक सहित सभी गिरफ्तार लोगों के लिए आम माफी की मांग
ड्राफ्ट में सबसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मांग है- क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक और सितंबर 24 प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार अन्य लोगों को सामान्य माफी (General Amnesty)।
LAB-KDA ने कहा-
- संवाद को आगे बढ़ाने के लिए सरकार तुरंत सभी मामलों को वापस ले
- इससे केंद्र और लद्दाख के लोगों के बीच विश्वास बहाल होगा
- पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर की तरह “हेलिंग हैंड” अप्रोच अपनाई जाए
भविष्य के राज्य लद्दाख की संरचना: 30 सीटों की विधानसभा
ड्राफ्ट में लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के बाद उसकी राजनीतिक संरचना भी प्रस्तावित की गई है:
- लोकसभा सीटें – 2
- विधानसभा – 30 सीटें, सभी प्रत्यक्ष चुनाव से
- 28 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित
- Ladakh Public Service Commission (PSC) का गठन
- PSC के लिए जम्मू-कश्मीर PSC के 2019 से पहले वाले नियम लागू करने का सुझाव
क्या है इस मांग के पीछे तर्क?
दोनों निकायों का कहना है-
- लद्दाख की विशिष्ट संस्कृति, जनजातीय पहचान और भौगोलिक कठिनाइयाँ विशेष प्रशासनिक ढाँचे की मांग करती हैं
- नए बनाए जिलों के चलते एक चुनी हुई विधानसभा आवश्यक हो गई है
- स्थानीय प्रतिनिधि शासन चलाने में सक्षम हैं और लोकतंत्र को मजबूत करेंगे
अगला कदम क्या?
MHA ने ड्राफ्ट प्राप्त कर लिया है। अब:
- केंद्र सरकार इसका कानूनी और प्रशासनिक परीक्षण करेगी
- LAB-KDA और केंद्र के बीच अगली दौर की बातचीत निर्धारित की जाएगी
लद्दाख में पिछले कई महीनों से छठी अनुसूची, राज्य की बहाली, भूमि अधिकार, और नौकरियों पर स्थानीय प्राथमिकता जैसे मुद्दों पर आंदोलन तेज रहा है।
यह ड्राफ्ट इन सभी मांगों को एक संरचित रूप देता है।
