डिजिटल ठगी रोकने के लिए TRAI का नया नियम: कमर्शियल SMS के साथ अब प्री-टैगिंग अनिवार्य, कंपनियों के पास बदलाव के लिए 60 दिन..

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने फर्जी SMS और ऑनलाइन ठगी पर रोक लगाने के लिए एक सख्त और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। अब टेलीकॉम कंपनियों को अपने सभी वाणिज्यिक SMS टेम्प्लेट में मौजूद बदलने वाले हिस्सों को पहले से टैग और सत्यापित करना होगा, ताकि हर संदेश ग्राहक तक पहुँचने से पहले ही जांच लिया जाए। इससे धोखाधड़ी वाले लिंक और नंबर आसानी से पकड़े जा सकेंगे।

 

साथ ही, TRAI ने कंपनियों को 60 दिनों का समय दिया है ताकि वे अपने सभी पुराने टेम्प्लेट अपडेट कर सकें। समय सीमा के बाद गैर-अनुपालन टेम्प्लेट से भेजे गए SMS अपने आप ब्लॉक कर दिए जाएँगे और ग्राहकों तक नहीं पहुँचेंगे।

trai new rule to prevent digital fraud

ट्राई का नया नियम:

  • जब कोई कंपनी SMS टेम्प्लेट रजिस्टर करेगी, तो उसे हर वेरिएबल (जैसे लिंक, नंबर, राशि आदि) को प्री-टैग करना होगा। उदाहरण: लिंक के लिए #url#, फोन नंबर के लिए #number#
  • SMS भेजने से पहले इन सभी वेरिएबल्स को सत्यापित किया जाएगा, ताकि किसी फर्जी लिंक, नकली नंबर या धोखाधड़ी वाली जानकारी को भेजा न जा सके।

प्री-टैगिंग क्यों है आवश्यक?

प्री-टैगिंग इसलिए जरूरी है क्योंकि SMS में मौजूद लिंक, ऐप डाउनलोड लिंक या कॉल-बैक नंबर हर बार बदल जाते हैं, जबकि संदेश का बाकी हिस्सा वही रहता है। अगर ये बदलने वाले हिस्से पहले से टैग नहीं किए जाएँ, तो टेलीकॉम कंपनियाँ यह पहचान ही नहीं पातीं कि संदेश में डाला गया लिंक या नंबर असली है या किसी धोखाधड़ी वाले स्रोत से आया है। प्री-टैगिंग होने पर सिस्टम उन हिस्सों को आसानी से पहचानकर जांच सकता है कि वे व्हाइटलिस्टेड और सुरक्षित हैं या नहीं।

मंत्रालय के मुताबिक, पहले टैगिंग न होने का फायदा ठगों ने अक्सर उठाया है, जिससे नकली लिंक और नंबर बिना पकड़े ही सही SMS टेम्प्लेट के अंदर भेज दिए जाते थे। नए नियम से ऐसी फिशिंग और फ्रॉड गतिविधियों पर रोक लग सकेगी।

 

प्री-टैगिंग कैसे काम करता है ?

प्री-टैगिंग में कंपनियाँ अपने SMS टेम्प्लेट में मौजूद हर बदलने वाले हिस्से जैसे लिंक, ऐप लिंक या फोन नंबर को पहले से ही टैग करके रजिस्टर करती हैं। जब कोई संदेश भेजा जाता है, तो टेलीकॉम कंपनियाँ इन टैग किए गए हिस्सों को अपने सुरक्षित (whitelisted) डोमेन और नंबरों से ऑटोमैटिक रूप से मिलान करती हैं।

अगर लिंक या नंबर सुरक्षित सूची में होता है तो संदेश आगे भेज दिया जाता है, और अगर नहीं होता तो उसे रोक दिया जाता है। इस तरह, प्री-टैगिंग यह सुनिश्चित करती है कि केवल असली और सुरक्षित वेरिएबल्स वाले संदेश ही ग्राहकों तक पहुँचें। यह कदम उन धोखेबाजों को रोकने के लिए है जो SMS में नकली लिंक या कॉल-बैक नंबर डालकर लोगों को फंसाते हैं और वित्तीय ठगी या डेटा चोरी करते हैं।

 

TCCCPR विनियम, 2018 को मिलेगी मजबूती:

यह नया नियम ट्राई के दूरसंचार वाणिज्यिक संचार ग्राहक वरीयता विनियम (TCCCPR) 2018 को और मजबूत बनाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य अनचाहे और अनधिकृत वाणिज्यिक संदेशों को रोकना है। ट्राई का मानना है कि इस कदम से लोगों की सुरक्षा बढ़ेगी और डिजिटल मैसेजिंग चैनलों पर उनका भरोसा वापस आएगा। इससे धोखाधड़ी की संभावना लगभग खत्म हो जाएगी और उपयोगकर्ताओं को ज्यादा सुरक्षित अनुभव मिलेगा।

 

भारत में स्पैम संबंधित नियमन:

  • DND रजिस्ट्री: ट्राई ने 2007 में DND (Do-Not-Disturb) रजिस्ट्री शुरू की, जहाँ अगर कोई मोबाइल ग्राहक अपना नंबर रजिस्टर करता है, तो उसे स्पैम कॉल या SMS नहीं मिलने चाहिए।
  • TCCCPR 2018: TCCCPR 2018 नियम लागू किए गए, जिनके तहत अगर कोई टेलीमार्केटर DND वाले ग्राहकों को कॉल या संदेश भेजता है तो उसे चेतावनी दी जाती है। बहुत ज्यादा चेतावनियाँ मिलने पर उस टेलीमार्केटर को ब्लैकलिस्ट कर दिया जाता है और वह आगे संदेश नहीं भेज सकता। 2024 में ट्राई ने यह भी अनिवार्य कर दिया कि हर टेलीकॉम कंपनी के ऐप में स्पैम रिपोर्ट करने की सुविधा उपलब्ध हो, ताकि ग्राहक आसानी से शिकायत दर्ज कर सकें।

 

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) क्या है ?

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) संसद द्वारा पारित ट्राई अधिनियम, 1997 के तहत बनाया गया एक संस्थान है। इसका मुख्य काम भारत में दूरसंचार सेवाओं को नियंत्रित और विनियमित करना है, जिसमें पहले सरकार द्वारा तय किए जाने वाले टैरिफ (दरें) भी शामिल हैं। ट्राई दूरसंचार क्षेत्र में टैरिफ, सेवा की गुणवत्ता, कंपनियों के आपसी इंटरकनेक्शन, स्पेक्ट्रम के उपयोग और उपभोक्ता सुरक्षा जैसे मुद्दों पर नजर रखता है। इसके अलावा, ट्राई दूरसंचार नीति बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और जरूरत पड़ने पर सरकार और उद्योग के लिए नियम, सिफारिशें और निर्देश जारी करता है।

 

ट्राई (TRAI) का संचालन और नियंत्रण:

ट्राई का संचालन एक अध्यक्ष, अधिकतम दो पूर्णकालिक सदस्य और दो अंशकालिक सदस्य मिलकर करते हैं। इन सभी की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है। ट्राई के सदस्य 3 साल या 65 वर्ष की उम्र तक, जो भी पहले पूरा हो, अपनी सेवा देते हैं।

  • ट्राई पूरी तरह स्वतंत्र संस्था नहीं है, क्योंकि यह कुछ सरकारी नियमों और सीमाओं के अधीन काम करती है।
  • ट्राई अधिनियम की धारा 25 के तहत केंद्र सरकार जरूरत पड़ने पर ट्राई को बाध्यकारी निर्देश दे सकती है।
  • ट्राई का फंडिंग भी सरकार द्वारा ही की जाती है।
  • ट्राई की सिफारिशें आमतौर पर सलाह स्वरूप होती हैं, बाध्यकारी नहीं, लेकिन सरकार को लाइसेंस और दूरसंचार से जुड़े मामलों पर ट्राई से परामर्श लेना जरूरी होता है।
  • ट्राई भारत के भीतर और बाहर दी जाने वाली दूरसंचार सेवाओं के लिए टेलीकॉम दरें आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित कर सकता है।

 

ट्राई की प्रमुख शक्तियाँ:

  • जानकारी मांगने की शक्ति: ट्राई किसी भी टेलीकॉम कंपनी से उसके कामकाज से जुड़ी जानकारी या स्पष्टीकरण लिखित रूप में माँग सकता है।
  • जांच कराने की शक्ति: अगर जरूरत पड़े, तो ट्राई किसी टेलीकॉम कंपनी की गतिविधियों की जांच करवाने के लिए एक या अधिक जांच अधिकारियों की नियुक्ति कर सकता है।
  • निरीक्षण करने की शक्ति: ट्राई अपने अधिकारियों को किसी भी सेवा प्रदाता की अकाउंट बुक्स या अन्य दस्तावेज़ों की जांच और निरीक्षण करने का आदेश दे सकता है।
  • निर्देश जारी करने की शक्ति: ट्राई टेलीकॉम कंपनियों को ऐसे निर्देश दे सकता है, जिन्हें वह सही और सुचारु सेवा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी समझता है।

 

भारत का दूरसंचार क्षेत्र:

भारत का दूरसंचार क्षेत्र आज तेजी से विकसित हो रहा है। जहाँ 2000 के दशक में मोबाइल फोन एक विलासिता थे, वहीं 2024 तक टेलीडेंसिटी 85.6% पहुँच गई है, जिससे देश में कनेक्टिविटी काफी बढ़ी है। डेटा की कीमतें बेहद घट गई हैं और औसत मासिक डेटा उपयोग 21.30 GB तक पहुँच चुका है। मोबाइल बेस स्टेशनों की संख्या 29.4 लाख होने से नेटवर्क मजबूत हुआ है।

5G का तेज़ रोलआउट भारत को दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते दूरसंचार बाज़ारों में शामिल करता है। कुल मिलाकर, दूरसंचार भारत में सस्ता, सुलभ और अत्यधिक तेज़ी से विस्तार करता क्षेत्र बन चुका है।

 

निष्कर्ष:

ट्राई का यह कदम डिजिटल संचार को अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय बनाने की दिशा में बड़ा बदलाव है। प्री-टैगिंग से फर्जी लिंक और नंबर आसानी से पकड़े जा सकेंगे, जिससे ऑनलाइन ठगी और फिशिंग पर प्रभावी रोक लगेगी। इससे उपयोगकर्ताओं का भरोसा भी मजबूत होगा।

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