अरब सागर से जुड़ेगा राजस्थान: जालोर में बनेगा इनलैंड पोर्ट, औद्योगिक विकास में आएगी तेजी..

राजस्थान अब अपने विकास की नई दिशा तय करने जा रहा है। राज्य के जालोर ज़िले में एक अंतर्देशीय बंदरगाह विकसित किया जाएगा, जो राजस्थान को गुजरात के कांडला बंदरगाह के ज़रिए सीधे अरब सागर से जोड़ेगा। यह परियोजना केंद्र और राज्य सरकार मिलकर बना रहे हैं। इससे राजस्थान को पहली बार समुद्री व्यापार का सीधा मार्ग मिलेगा, जिससे औद्योगिक विकास, व्यापार और लॉजिस्टिक्स कनेक्टिविटी में बड़ी बढ़ोतरी होगी।

Rajasthan to be connected to the Arabian Sea

परियोजना के बारे में:

28 अक्टूबर को मुंबई में राजस्थान नदी बेसिन एवं जल संसाधन योजना प्राधिकरण और भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) के बीच हुए समझौते के बाद इस बड़ी परियोजना पर काम तेज हो गया है।

यह परियोजना राष्ट्रीय जलमार्ग-48 पर आधारित है, जिसकी लंबाई 262 किलोमीटर है और यह राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में फैली हुई है। करीब 10,000 करोड़ रुपये की लागत वाली इस परियोजना में जालोर जिले में एक अंतर्देशीय बंदरगाह बनाया जाएगा। साथ ही दोनों राज्यों में नदी को गहरा करने का काम किया जाएगा, ताकि इसे गुजरात के कांडला बंदरगाह और कच्छ की खाड़ी के रास्ते अरब सागर से जोड़ा जा सके।

 

औद्योगिक विकास में आएगी तेजी:

लूनी-जवाई बेसिन और जालोर-बाड़मेर इलाका पहले ही कपड़े, पत्थर, कृषि उत्पाद, तिलहन, ग्वार, दालें और बाजरा जैसी वस्तुओं का बड़ा व्यापारिक केंद्र है। साथ ही पचपदरा (बालोतरा) में एक बड़ी तेल रिफाइनरी भी बनाई जा रही है। ऐसे में समुद्र से सीधा संपर्क मिलने पर इस पूरे क्षेत्र में औद्योगिक विकास तेज होगा।

समुद्री मार्ग खुलने से भारी माल की आवाजाही आसान होगी, जिससे सड़क और रेल नेटवर्क पर बोझ कम पड़ेगा। साथ ही इस परियोजना से नए उद्योग, गोदाम, बंदरगाह सेवाएँ, कोल्ड स्टोरेज और औद्योगिक क्लस्टर बनने जैसे कई नए अवसर भी पैदा होंगे।

 

बनेंगे रोज़गार के नए अवसर:

इस परियोजना से राजस्थान और गुजरात दोनों राज्यों को बड़े पैमाने पर फायदा मिलने की उम्मीद है। सरकारी संस्था वाटर एंड पावर कंसल्टेंसी सर्विसेज़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस परियोजना से 50,000 से ज़्यादा नए रोज़गार पैदा हो सकते हैं। जोधपुर प्रशासन द्वारा जारी एक सरकारी बयान में बताया गया है कि निवेशक भी इस परियोजना में काफी रुचि दिखा रहे हैं, जिससे इसकी आर्थिक क्षमता साबित होती है।

 

परियोजना का अध्ययन कर रही संस्थाएँ:

इस परियोजना पर काम करने के लिए IWAI, IIT मद्रास के नेशनल टेक्नोलॉजी सेंटर फॉर पोर्ट्स, वॉटरवेज़ एंड कोस्ट्स, और जल संसाधन विभाग मिलकर अध्ययन कर रहे हैं। ये विशेषज्ञ अभी एक विस्तृत सर्वे कर रहे हैं, जिसमें यह पता लगाया जा रहा है:

  • पूरे साल नदी में पर्याप्त पानी रहेगा या नहीं
  • कितनी जमीन की जरूरत होगी
  • परियोजना पर कुल कितना खर्च आ सकता है

इसके अलावा, IIT मद्रास के विशेषज्ञ राजस्थान को एक बड़ा लॉजिस्टिक्स और समुद्री हब बनाने की दिशा में राज्य का एक बड़ा क्षेत्रीय अध्ययन करने की तैयारी भी कर रहे हैं।

 

अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन क्या है?

अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन का मतलब है; नदियों, नहरों, झीलों और अन्य जल निकायों के माध्यम से लोगों और सामानों का परिवहन। यानी जहाँ नदी या नहर पर्याप्त गहरी और चौड़ी हो, वहाँ नावों और जहाज़ों से माल या यात्रियों को ले जाया जाता है।

 

मुख्य कानून:

  • IWAI अधिनियम 1985: इसके तहत 1986 में IWAI बना, जो राष्ट्रीय जलमार्गों के विकास और नियमों की जिम्मेदारी संभालता है।
  • राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम 2016: 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया।
  • अंतर्देशीय पोत अधिनियम 2021: पूरे देश के अंतर्देशीय जहाज़ों के लिए एक जैसे सुरक्षा और संचालन नियम बनाए गए।

 

राष्ट्रीय जलमार्ग बनने के मानदंड:

  • मोटर चालित जहाज़ों के लिए उपयुक्त होना।
  • कम से कम 50 किमी लंबा होना।
  • कई राज्यों या बड़े औद्योगिक क्षेत्रों/बंदरगाहों को जोड़ना, या सुरक्षा और संपर्क में मदद करना।

 

भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों का विकास:

  • 2014 के बाद राष्ट्रीय जलमार्गों की संख्या में 767% की बढ़ोतरी हुई है।
  • माल ढुलाई (cargo transport) में 635% की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • कार्गो यातायात 18 मिलियन टन से बढ़कर 133 मिलियन टन हो गया है (2023-24), यानी लगभग 22% की वार्षिक वृद्धि दर।

 

भारत में अंतर्देशीय जलमार्गों के लाभ:

  • परिवहन सस्ता होता है: जलमार्ग से सामान भेजना सड़क से 60% और रेल से 20–30% तक सस्ता पड़ता है।
  • ईंधन की बचत: एक लीटर ईंधन से सड़क पर 1 किमी, रेल पर 85 किमी और जलमार्ग पर 105 किमी तक 24 टन माल ले जाया जा सकता है, इसलिए यह सबसे ऊर्जा-कुशल तरीका है।
  • पर्यावरण के लिए बेहतर: जलमार्ग सड़क की तुलना में 10 गुना कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, जिससे प्रदूषण कम होता है।
  • कम भूमि की जरूरत: सड़क और रेल की तुलना में जलमार्ग के लिए बहुत कम भूमि चाहिए, जिससे भूमि अधिग्रहण की समस्याएँ भी कम होती हैं।
  • रोजगार बढ़ता है: नदी की सफाई, जहाज संचालन, टर्मिनल प्रबंधन और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में नए रोजगार पैदा होते हैं।
  • कनेक्टिविटी बेहतर होती है: जलमार्ग अंदरूनी इलाकों को तटीय और बड़े व्यापारिक केंद्रों से जोड़ते हैं, खासकर उत्तर-पूर्वी राज्यों को मुख्य भूमि से जोड़ने में यह बहुत उपयोगी है।
  • पर्यटन को बढ़ावा: नदी क्रूज़ जैसे प्रयासों से पर्यटन बढ़ता है और नदी किनारे बसे इलाकों की संस्कृति और विरासत को पहचान मिलती है।

 

अंतर्देशीय जलमार्गों के लिए सरकारी प्रयास:

  • समुद्री भारत विजन 2030: यह भारत के समुद्री क्षेत्र के विकास के लिए 10 साल की योजना है। इसे नवंबर 2020 में जारी किया गया था। इसका लक्ष्य है; जलमार्गों का विस्तार, जहाज़ निर्माण उद्योग को बढ़ावा देना और क्रूज़ पर्यटन को बढ़ाना।
  • सागरमाला प्रोग्राम: सागरमाला परियोजना केंद्र सरकार की एक बड़ी योजना है, जिसका लक्ष्य भारत के बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और तटीय क्षेत्रों का विकास करना है। इसकी शुरुआत 15 अगस्त 2003 को हुई थी।
  • नदियों को जोड़ने के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना: इसका विचार 1850 के दशक में शुरू हुआ, 1980 के दशक में राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत आगे बढ़ा, और इसके अध्ययन के लिए 1982 में NWDA बनाई गई। 2021 में NIRA नामक नई प्राधिकरण का प्रस्ताव रखा गया। इस परियोजना से बड़ी जमीन सिंचित होगी, बिजली उत्पादन बढ़ेगा और ग्रामीण विकास तथा जल परिवहन को बढ़ावा मिलेगा।

 

निष्कर्ष:

जालोर में विकसित होने वाला अंतर्देशीय बंदरगाह राजस्थान के लिए समुद्री व्यापार और औद्योगिक विकास का नया मार्ग खोलेगा। कांडला बंदरगाह से सीधा जुड़ाव राज्य की लॉजिस्टिक क्षमता बढ़ाएगा और आर्थिक गतिविधियों को नई गति देगा। यह परियोजना राजस्थान को एक उभरते हुए व्यापारिक और औद्योगिक केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।