पाकिस्तान ने भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान पर आपत्ति जताई है, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के सिंध प्रांत का उल्लेख किया था। पाकिस्तान ने अपने आधिकारिक बयान में इसे गलत, भड़काऊ और संभावित रूप से खतरनाक करार दिया।
पाकिस्तान का कहना है कि ऐसे बयान अंतरराष्ट्रीय कानून और निर्धारित अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के विपरीत हैं। उसने आग्रह किया कि भारतीय नेतृत्व इस तरह की टिप्पणी से परहेज़ करे, ताकि क्षेत्रीय तनाव को बढ़ने से रोका जा सके।
पाकिस्तान ने ऐसा क्यों कहा ?
भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के एक हालिया बयान ने भारत-पाकिस्तान संबंधों में नई हलचल पैदा कर दी है। उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा कि “आज सिंध की जमीन भारत का हिस्सा भले न हो, लेकिन सभ्यता के हिसाब से सिंध हमेशा भारत का हिस्सा रहेगा। जहां तक जमीन की बात है। कब बॉर्डर बदल जाए कौन जानता है, कल सिंध फिर से भारत में वापस आ जाए”। उनका यह कथन राजनीतिक और सामरिक दोनों स्तरों पर तीव्र चर्चा का विषय बन गया।
पाकिस्तान ने इस बयान पर तुरंत आपत्ति जताई और इसे भड़काऊ, गलत और संभावित रूप से खतरनाक बताया। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने अपने आधिकारिक वक्तव्य में कहा कि इस तरह की टिप्पणियाँ अंतरराष्ट्रीय कानूनों और स्वीकार्य सीमाओं की अवहेलना करती हैं। पाकिस्तान का आरोप है कि ऐसे बयान दक्षिण एशिया में पहले से मौजूद संवेदनशील माहौल को और अस्थिर करते हैं, इसलिए भारत को इनसे बचना चाहिए। इस घटना ने दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद राजनीतिक तनाव को और गंभीर बना दिया है।
रक्षामंत्री के बयान के मायने क्या हैं ?
राजनाथ सिंह के कथन को भारतीय राजनीतिक विमर्श के दो अलग-अलग आयामों से देखा जा रहा है। एक ओर, इसे सांस्कृतिक विरासत की याद दिलाने के रूप में व्याख्यायित किया जा रहा है सिंधु नदी, सिंधु घाटी सभ्यता और सिंधी समुदाय भारत की सबसे प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं का आधार रहे हैं। सिंध न केवल वैदिक ग्रंथों का हिस्सा है, बल्कि “हिंदुस्तान” और “इंडिया” जैसे शब्द भी इसी “सिंधु” से उत्पन्न हुए हैं। दूसरी ओर, इसे राजनीतिक संकेत भी माना जा रहा है, क्योंकि यह बयान उस समय आया है जब भारत-पाकिस्तान के संबंधों में किसी भी तरह का संवाद लगभग ठप है और दोनों देशों की रणनीतिक गतिविधियाँ निरंतर कठोर होती जा रही हैं।
सिंध का इतिहास स्वयं इस विवाद की जड़ को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हजारों वर्ष पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता इसी क्षेत्र में विकसित हुई, जिसने भारतीय उपमहाद्वीप की संस्कृति, वाणिज्य और सामाजिक संरचना की नींव रखी। वैदिक युग में सिंधु नदी को केवल एक भौगोलिक धारा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आत्मा के रूप में देखा गया। मुगल काल से लेकर ब्रिटिश शासन तक, सिंध लंबे समय तक दक्षिण एशिया की एकीकृत सांस्कृतिक इकाई का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा। 1936 में इसे ब्रिटिश भारत के एक अलग प्रांत के रूप में स्थापित किया गया, और 1947 के विभाजन में यह पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। विभाजन के दौरान लाखों सिंधी हिंदू भारत आए और आज भी भारत में बसे सिंधी समुदाय का अपने पूर्वजों की भूमि के प्रति गहरा भावनात्मक संबंध बना हुआ है।
पाकिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा प्रांत सिंध लगभग 1.40 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला हुआ है और इसकी कुल आबादी लगभग 5.5 करोड़ है। दिलचस्प बात यह है कि आज सिंध की जनसंख्या में लगभग 1 करोड़ वे मुसलमान शामिल हैं जो 1947 में भारत से यहाँ आकर बसे। इस प्रांत में मुख्य रूप से उर्दू, सिंधी और अंग्रेजी भाषाएँ बोली जाती हैं।
सिंध की राजधानी कराची है, जो न केवल पाकिस्तान का सबसे बड़ा शहर है बल्कि इसकी आबादी लगभग 1.5 करोड़ मानी जाती है। कराची पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है क्योंकि अकेले सिंध प्रांत का देश की GDP में करीब 30% योगदान है।
कराची और उसके आसपास पाकिस्तान के दो प्रमुख बंदरगाह कराची पोर्ट और पोर्ट क़ासिम स्थित हैं, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मुख्य प्रवेश द्वार माने जाते हैं।
सिंध की राजनीति में राष्ट्रवादी विचारधारा भी गहरी जड़ें रखती है। वर्ष 1972 में ‘जेए सिंध क़ौमी महाज’ (JSQM) नामक संगठन की स्थापना की गई, जो सिंधी राष्ट्रवाद का प्रमुख वाहक माना जाता है। यह संगठन सिंध के सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों की मांग करता है और समय-समय पर पाकिस्तान के भीतर सिंध की स्वायत्तता तथा अधिक अधिकारों के लिए आंदोलन भी चलाता रहा है। JSQM का मुख्य उद्देश्य सिंध प्रांत को पाकिस्तान से अलग कर एक स्वतंत्र ‘सिंधु देश’ की स्थापना करना बताया जाता है।
पाकिस्तान के भीतर भी सिंधी पहचान को लेकर समय-समय पर विरोध और आंदोलन होते रहे हैं, जिनमें सिंधुदेश आंदोलन विशेष रूप से उल्लेखनीय है। ये आंदोलन केंद्र सरकार से सांस्कृतिक अधिकार, भाषाई संरक्षण और आर्थिक स्वायत्तता की मांग करते रहे हैं। इस पृष्ठभूमि ने सिंध को एक ऐसा प्रदेश बना दिया है जो पाकिस्तान की एकता और भारत-पाक संबंधों दोनों के लिए संवेदनशील मुद्दा है।
राजनाथ सिंह के बयान का प्रभाव
राजनाथ सिंह के बयान का प्रभाव कूटनीतिक स्तर पर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। पाकिस्तान ने इसे अपनी संप्रभुता पर सीधा आघात माना और चेतावनी दी कि ऐसे बयान भविष्य की वार्ता को असंभव बना सकते हैं। भारत के लिए यह बयान घरेलू राजनीतिक संदर्भ में भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद की उस धारा को मजबूत करता है जो भारत की ऐतिहासिक सीमाओं और सभ्यतागत दावों को पुनर्स्थापित करने की वकालत करती है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह वक्तव्य पड़ोसी देश पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है, विशेष रूप से वर्तमान भू-राजनीतिक माहौल को देखते हुए।
सिंध आज भी पाकिस्तान के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है कराची जैसे विशाल महानगर, औद्योगिक ढाँचा, कृषि के लिए जीवनदायी सिंधु नदी, और सूफी परंपराओं की गहरी जड़ें इसे सांस्कृतिक व आर्थिक दृष्टि से अनिवार्य बनाती हैं। भारत के लिए यह क्षेत्र भौगोलिक रूप से भले ही अब सीमा के पार हो, पर भावनात्मक और ऐतिहासिक रूप से इसका महत्व आज भी वैसा ही है जैसा हजारों वर्ष पहले था।
निष्कर्ष :
अंततः कहा जा सकता है कि राजनाथ सिंह का बयान केवल एक राजनीतिक वक्तव्य नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और सभ्यतागत स्मृतियों का मिश्रण है। इसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नए प्रश्न को जन्म दिया है क्या सीमाएँ केवल नक्शों का परिणाम हैं, या सभ्यता और इतिहास भी उन्हें परिभाषित करते हैं? फिलहाल यह विवाद भारत-पाक संबंधों की संवेदनशीलता का नया उदाहरण है, और आने वाले दिनों में इसके राजनीतिक और कूटनीतिक प्रभाव अवश्य दिखाई देंगे।
