शंघाई एयरपोर्ट पर अरुणाचल की महिला संग दुर्व्यवहार: भारतीय पासपोर्ट को बताया अवैध, भारत ने जताया कड़ा विरोध..

शंघाई हवाई अड्डे पर तीन घंटे के ट्रांज़िट का सफर ब्रिटेन में रहने वाली एक भारतीय महिला के लिए बड़ी परेशानी बन गया। अरुणाचल प्रदेश में जन्मी इस महिला को चीनी अधिकारियों ने उसके पासपोर्ट पर दर्ज जन्म स्थान के आधार पर 18 घंटे तक रोककर रखा, यह दावा करते हुए कि उसका भारतीय पासपोर्ट “अमान्य” है। इस घटना पर भारत ने तुरंत कड़ा विरोध जताया और बीजिंग, दिल्ली तथा शंघाई में अधिकारियों के जरिए मामले को उठाया।

Arunachal woman mistreated at Shanghai airport

कौन है वह महिला ?

वह महिला पेमा वांग थोंगडोक हैं, जिनकी उम्र 30 वर्ष है। वह पिछले 14 वर्षों से यूनाइटेड किंगडम में रहती हैं और पेशे से वित्तीय सलाहकार हैं। प्रेमा मूल रूप से अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग जिले के रूपा की रहने वाली हैं, जहां उनका परिवार आज भी रहता है। प्रेमा के मुताबिक, 16 अक्टूबर को भी वह इसी हवाई अड्डे से बिना किसी परेशानी के गुज़री थीं। इसलिए इस बार की कार्रवाई को उन्होंने साफ तौर पर उत्पीड़न कहा है।

पूरा मामला क्या है ?

21 नवंबर को पेमा थोंगडोक लंदन से जापान जा रही थीं। उनकी फ्लाइट का ट्रांज़िट शंघाई पुडोंग हवाई अड्डे पर सिर्फ तीन घंटे का था। उसी सुबह वे शंघाई उतरीं और आगे की उड़ान के लिए सुरक्षा जांच से गुजर रही थीं। तभी एक महिला अधिकारी आई और उन्हें कतार से अलग कर दिया।

पेमा ने कारण पूछा तो अधिकारियों ने उनके भारतीय पासपोर्ट की ओर इशारा किया, जिसमें उनका जन्मस्थान अरुणाचल प्रदेश लिखा था। चीनी अधिकारियों ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है, इसलिए उनका भारतीय पासपोर्ट “अमान्य” है।

 

पेमा थोंगडोक के साथ कैसा व्यवहार किया गया?

पेमा ने बताया कि अधिकारियों का रवैया बहुत अपमानजनक था। उनमें से एक अधिकारी ने तो यह तक कह दिया कि उन्हें चीनी पासपोर्ट ले लेना चाहिए, क्योंकि वे “चीनी” हैं। वह उनका मज़ाक उड़ा रहे थे।

आपको बता दे की उन्हें कुल 18 घंटे तक हवाई अड्डे पर रोके रखा गया, जबकि वह पहले ही लंदन से 12 घंटे की लंबी यात्रा करके आई थीं। अधिकारियों ने उनका पासपोर्ट छीन लिया और उन्हें कहीं जाने नहीं दिया। हालाँकि उनके पास जापान का वैध वीज़ा था, फिर भी अधिकारियों ने उन्हें जापान जाने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि उन्हें या तो यूनाइटेड किंगडम वापस जाना होगा या भारत लौटना होगा।  पेमा ने बताया कि उन्हें खाना तक भी नहीं दिया गया।

 

आखिरकार शंघाई हवाई अड्डे से बाहर कैसे निकली पेमा?

पेमा ने बताया कि उन्होंने अपने यूके में रहने वाले दोस्तों को फोन किया ताकि वे शंघाई स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास से संपर्क कर सकें। वाणिज्य दूतावास को खबर मिलते ही लगभग एक घंटे के अंदर छह अधिकारी हवाई अड्डे पहुँच गए। वे पेमा के लिए खाना भी लेकर आए, क्योंकि उन्हें कई घंटों से भोजन नहीं मिला था।

भारतीय अधिकारियों ने कोशिश की कि पेमा को जापान जाने की अनुमति मिल जाए, लेकिन चीनी अधिकारियों ने इसकी इजाज़त नहीं दी। उन्होंने यहां तक कहा कि पेमा सिर्फ़ चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस से ही अपनी नई फ्लाइट बुक करें। आख़िरकार, पेमा ने थाईलैंड में ट्रांज़िट के साथ भारत जाने की एक फ्लाइट बुक की। फिलहाल वह थाईलैंड में ही रुकी हैं और वहीं से रिमोटली काम कर रही हैं।

 

पेमा थोंगडोक ने क्या मांग की ?

पेमा थोंगडोक ने कहा कि वह कई सालों से ब्रिटेन में रहती हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना भारतीय पासपोर्ट नहीं छोड़ा, क्योंकि उन्हें अपने देश से प्यार है और वह अपनी ही धरती पर विदेशी बनकर नहीं रहना चाहतीं। उनका मानना है कि अगर उनके पास ब्रिटिश पासपोर्ट होता, तो शायद उन्हें ऐसी परेशानी नहीं झेलनी पड़ती।

उन्होंने लिखा कि भारत और चीन के बीच के राजनीतिक या भू-राजनीतिक विवाद का असर किसी साधारण भारतीय नागरिक पर नहीं डाला जाना चाहिए, खासकर तब जब वह सिर्फ अंतरराष्ट्रीय ट्रांज़िट में हो।

पेमा की मांग:

  • इस पूरे मामले को चीनी सरकार के सामने सख्ती से उठाया जाए
  • उन्हें हुए उत्पीड़न, मानसिक और शारीरिक पीड़ा के लिए न्याय मिले
  • उनके वित्तीय नुकसान की भी भरपाई की जाए

 

भारत की ओर से क्या कहा गया ?

विदेश मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि भारत ने चीन से साफ-साफ कहा कि पेमा थोंगडोक को पूरी तरह बेबुनियाद कारणों पर रोका गया। भारतीय पक्ष ने ज़ोर देकर कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है, और वहां के लोगों को भारतीय पासपोर्ट रखने और उससे दुनिया में कहीं भी यात्रा करने का पूरा अधिकार है। भारत ने यह भी कहा कि चीनी अधिकारियों की यह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नियमों, यानी शिकागो और मॉन्ट्रियल कन्वेंशनों, का उल्लंघन करती है।

 

भारत-चीन सीमा विवाद:

भारत और चीन के बीच का सीमा विवाद बहुत पुराना और जटिल है। दोनों देशों की 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा पर कई जगहों पर मतभेद हैं। विवाद मुख्य रूप से दो बड़े क्षेत्रों में है:

  • अक्साई चिन: भारत-चीन सीमा विवाद के पश्चिमी क्षेत्र का मुख्य हिस्सा है, रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। चीन इसे अपने शिनजियांग प्रांत का हिस्सा मानता है, जबकि भारत इसे केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख का अभिन्न भाग बताता है। यह इलाक़ा इसलिए भी खास है क्योंकि यह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के पास स्थित है और चीन के लिए एक महत्वपूर्ण सैन्य मार्ग की तरह काम करता है, जिससे इस क्षेत्र का geopolitical महत्व और बढ़ जाता है।
  • अरुणाचल प्रदेश: भारत-चीन सीमा विवाद के पूर्वी क्षेत्र का केंद्र है, जिस पर चीन पूरा दावा करते हुए इसे “दक्षिण तिब्बत” कहता है, जबकि भारत इस राज्य पर पूर्ण प्रशासनिक नियंत्रण रखता है और इसे अपने देश का अभिन्न हिस्सा मानता है।

 

सीमा विवाद सुलझाने के लिए किए गए प्रयास:

  • 1914 शिमला समझौता: भारत और तिब्बत ने सीमा तय की, लेकिन चीन ने इसे नहीं माना। भारत आज भी मैकमोहन रेखा मानता है, चीन नहीं।
  • 1954 पंचशील समझौता: दोनों देशों ने एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करने की बात मानी, लेकिन 1962 के युद्ध के बाद इसका असर कम हो गया।
  • 1993 शांति समझौता: तय हुआ कि सीमा मुद्दा बातचीत से सुलझेगा और बल प्रयोग नहीं होगा। कुछ स्थिरता आई, पर तनाव जारी रहा।
  • 1996 सैन्य विश्वास उपाय: LAC पर सैन्य गतिविधियों की जानकारी पहले से देने और शांति रखने की व्यवस्था बनी।
  • 2013 सीमा रक्षा सहयोग समझौता (BDCA) समझौता: देपसांग जैसे विवाद रोकने के लिए किया गया। तनाव के बावजूद यह सीमा प्रबंधन के लिए एक अहम ढांचा है।

 

निष्कर्ष:

शंघाई हवाई अड्डे पर प्रेमा थोंगडोक के साथ हुई यह घटना केवल एक यात्री को रोके जाने का मामला नहीं, बल्कि भारत-चीन संबंधों में मौजूद संवेदनशील राजनीतिक और भू-राजनीतिक तनावों का स्पष्ट प्रतिबिंब है। एक वैध भारतीय पासपोर्ट धारण करने वाली नागरिक को उसके जन्मस्थान के आधार पर रोकना न केवल अंतरराष्ट्रीय यात्रा मानकों का उल्लंघन है, बल्कि मानवीय गरिमा और व्यक्तिगत अधिकारों का भी गंभीर हनन है।